उन्नाव का पुराना गंगापुल...इतिहास, गौरव और उसके गिरने की कहानी:ऊपर चलता था रेल का पहिया, नीचे बहती थी गंगा मईया

उन्नाव जिले के शुक्लागंज का पुराना गंगापुल, जिसे आज भी लोग गंगा पुल के नाम से जानते हैं, अपनी ऐतिहासिक धरोहर और महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यह पुल न केवल उन्नाव और कानपुर के बीच का एक प्रमुख संपर्क मार्ग था, बल्कि यह उस समय की इंजीनियरिंग का अद्भुत उदाहरण भी था, जब ब्रिटिश साम्राज्य ने इसे 148 साल पहले बनाया था। लेकिन हाल ही में, इस पुल के एक महत्वपूर्ण हिस्से का गिरना, जो एक कोठी के बीच गिरा, एक ऐतिहासिक घटना के रूप में सामने आया और इसने एक बार फिर से इस पुल के महत्व को उजागर किया। आइए जानें इस पुल के निर्माण, विकास, और आखिरकार इसके गिरने की घटनाओं के बारे में। गंगापुल का ऐतिहासिक निर्माण गंगापुल का निर्माण ब्रिटिश काल में हुआ था, जब कानपुर और शुक्लागंज को जोड़ने के लिए एक पुल की आवश्यकता महसूस की गई थी। लगभग 148 साल पहले, 1875 में ब्रिटिश शासन ने इस पुल का निर्माण शुरू किया था। इसे अवध एंड रुहेलखंड कंपनी लिमिटेड द्वारा निर्मित किया गया था। इस पुल की डिजाइन प्रसिद्ध इंजीनियर जेएम हेपोल ने तैयार की थी, जबकि निर्माण के दौरान रेजीडेंट इंजीनियर एसबी न्यूटन और असिस्टेंट इंजीनियर ई वेडगार्ड ने मिलकर काम किया था। पुल का कुल निर्माण कार्य एक महत्वपूर्ण कदम था, क्योंकि यह रेल और सड़क यातायात दोनों के लिए उपयोगी था। इस पुल की सबसे खास बात यह थी कि यह दो हिस्सों में बना था। नीचे एक लकड़ी का पुल था, जहां हल्के वाहन और पैदल यात्री गुजरते थे, और ऊपर एक रेलवे ट्रैक था, जो नैरो गैज प्रणाली पर आधारित था। 14 जुलाई 1875 को इस पुल के नीचे वाले पैदल पुल का उद्घाटन हुआ, और अगले दिन रेलवे ट्रैक से ट्रेनों का संचालन शुरू हो गया। यह पुल लगभग 800 मीटर लंबा था और अपने समय में एक महत्वपूर्ण यातायात मार्ग था। पुल पर बढ़ता यातायात और नया रेलवे पुल समय के साथ शुक्लागंज और कानपुर के बीच सड़क यातायात और रेल यातायात दोनों में वृद्धि हुई। सड़क यातायात के बढ़ने के साथ-साथ ट्रेनों की संख्या भी बढ़ने लगी। क्योंकि यह पुल सिंगल रेल ट्रैक पर आधारित था, रेलवे ने महसूस किया कि एक और रेलवे पुल की आवश्यकता है। 1910 में, पुराने गंगापुल के समानांतर एक नया रेलवे पुल बनाया गया। यह पुल 814 मीटर लंबा था और इसके साथ दोनों पुलों पर ट्रेनों का संचालन हुआ। हालांकि, 1925 में रेलवे ने पुराना गंगापुल राज्य सरकार को सौंप दिया। इसके बाद इस पुल का संचालन लोक निर्माण विभाग (PWD) द्वारा किया जाने लगा और रेलवे ट्रैक को हटा कर इस पर सड़क बना दी गई। अब यह पुल केवल सड़क यातायात के लिए उपयोगी था, और तब से यह सड़क यातायात का एक अहम हिस्सा बन गया। पुल का गिरना और उसकी मरम्मत की कहानी बीतते समय के साथ पुराने गंगापुल की स्थिति खराब होती गई और कई बार इसकी मरम्मत की गई। वर्ष 2013 में, इस पुल के ऊपर के सड़क मार्ग का जीर्णोद्धार किया गया। इस जीर्णोद्धार के बाद, पुल का उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और लोक निर्माण मंत्री शिवपाल यादव ने 18 अक्टूबर 2013 को किया। इसके बाद, 8 जुलाई 2019 को, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने निचले लकड़ी के पुल के जीर्णोद्धार का उद्घाटन किया। लकड़ी के इस पुल पर बिटुमिन के साथ कंक्रीट की लेयर बिछाई गई, ताकि उसकी मजबूती बनी रहे। रेलवे पुल का जीर्णोद्धार भी समय-समय पर किया गया। पहले इसे 1990 में ठीक किया गया और फिर 2016 में रेलवे ने इसकी मरम्मत की। इसमें पुराने गाटर को बदलने का काम किया गया और लगभग एक हजार से अधिक गाटर लगाए गए, जिन्हें ब्रिटिशों ने स्थापित किया था। 1993-94 में, नैरो गैज लाइन को ब्रॉडगेज में परिवर्तित किया गया, जिससे रेल यातायात की क्षमता बढ़ी। पुल की देखरेख और लगती थी रोज झाड़ू गंगापुल की देखरेख के लिए एक भारी भरकम टीम को तैनात किया गया था, जब रेलवे ने 1925 में इसे राज्य सरकार को सौंप दिया। पुल की देखरेख में लगे कर्मचारी और उनके परिवार आज भी पुल के आसपास के इलाकों में रहते हैं। बुजुर्गों के अनुसार, पहले इस पुल पर दिनभर झाड़ू लगाई जाती थी और पुल के दोनों ओर द्वार होते थे, जहां से पूरी क्षेत्र की निगरानी की जाती थी। गंगा पुल का गिरना, एक नई चुनौती बीते मंगलवार को, पुराना गंगापुल अचानक गिर गया और एक कोठी के बीच गिरने से गंगा में समा गया। यह घटना पूरे दिन चर्चा का विषय बनी रही। इस पुल के गिरने ने इस ऐतिहासिक धरोहर की स्थिति पर सवाल उठाए हैं। हालांकि यह पुल पुराने समय में कई मरम्मत और जीर्णोद्धार से गुजर चुका था, फिर भी इसकी पुरानी संरचना और समय के साथ आई समस्याओं ने आखिरकार इसे अस्थिर बना दिया, जिसके परिणामस्वरूप यह गिर गया। अब हो सकती है योजनाएं पुराने गंगापुल के गिरने के बाद, इस क्षेत्र के लिए एक नई चुनौती उत्पन्न हो गई है। पुल की गिरने की घटना ने यह साबित कर दिया कि पुराने इंफ्रास्ट्रक्चर की देखरेख और उसकी मरम्मत में निरंतरता की आवश्यकता होती है। अब सरकार और संबंधित विभागों को एक नई योजना बनानी होगी ताकि इस क्षेत्र में यातायात की सुविधा बनी रहे और ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित किया जा सके। पुराना पुल टूटने से अब नगरवासियों को नये पुल की आस जगी चार साल पहले अप्रैल माह में कानपुर प्रशासन और उन्नाव प्रशासन ने सोशल मीडिया पर पुल के क्षतिग्रस्त होने की सूचना पर उसे बंद कर दिया था। तब से उसे मरम्मत कराकर चलाने की कवायदें चल रहीं थी। मंगलवार सुबह उस समय विराम लग गया, जब लोगों को पता चला कि पुराना यातायात पुल गिर गया है। अब किसी भी हालत में उसे मरम्मत करने के बाद भी नहीं चलाया जा सकता है। क्षेत्र के श्रीकांत पांडे, अनिल साहू, शिवनाथ पांडेय, विकास मिश्रा, वीरेन्द्र शुक्ला, के डी त्रिवेदी बताते हैं कि पुराने पुल के समानांतर पुल का सर्वे हो गया है। मृदा परीक्षण भी कराया जा रहा है, उम्मीद है कि जल्द ही नया पुल बनने का काम शुरू हो जायेगा।

Nov 27, 2024 - 09:10
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उन्नाव का पुराना गंगापुल...इतिहास, गौरव और उसके गिरने की कहानी:ऊपर चलता था रेल का पहिया, नीचे बहती थी गंगा मईया
उन्नाव जिले के शुक्लागंज का पुराना गंगापुल, जिसे आज भी लोग गंगा पुल के नाम से जानते हैं, अपनी ऐतिहासिक धरोहर और महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यह पुल न केवल उन्नाव और कानपुर के बीच का एक प्रमुख संपर्क मार्ग था, बल्कि यह उस समय की इंजीनियरिंग का अद्भुत उदाहरण भी था, जब ब्रिटिश साम्राज्य ने इसे 148 साल पहले बनाया था। लेकिन हाल ही में, इस पुल के एक महत्वपूर्ण हिस्से का गिरना, जो एक कोठी के बीच गिरा, एक ऐतिहासिक घटना के रूप में सामने आया और इसने एक बार फिर से इस पुल के महत्व को उजागर किया। आइए जानें इस पुल के निर्माण, विकास, और आखिरकार इसके गिरने की घटनाओं के बारे में। गंगापुल का ऐतिहासिक निर्माण गंगापुल का निर्माण ब्रिटिश काल में हुआ था, जब कानपुर और शुक्लागंज को जोड़ने के लिए एक पुल की आवश्यकता महसूस की गई थी। लगभग 148 साल पहले, 1875 में ब्रिटिश शासन ने इस पुल का निर्माण शुरू किया था। इसे अवध एंड रुहेलखंड कंपनी लिमिटेड द्वारा निर्मित किया गया था। इस पुल की डिजाइन प्रसिद्ध इंजीनियर जेएम हेपोल ने तैयार की थी, जबकि निर्माण के दौरान रेजीडेंट इंजीनियर एसबी न्यूटन और असिस्टेंट इंजीनियर ई वेडगार्ड ने मिलकर काम किया था। पुल का कुल निर्माण कार्य एक महत्वपूर्ण कदम था, क्योंकि यह रेल और सड़क यातायात दोनों के लिए उपयोगी था। इस पुल की सबसे खास बात यह थी कि यह दो हिस्सों में बना था। नीचे एक लकड़ी का पुल था, जहां हल्के वाहन और पैदल यात्री गुजरते थे, और ऊपर एक रेलवे ट्रैक था, जो नैरो गैज प्रणाली पर आधारित था। 14 जुलाई 1875 को इस पुल के नीचे वाले पैदल पुल का उद्घाटन हुआ, और अगले दिन रेलवे ट्रैक से ट्रेनों का संचालन शुरू हो गया। यह पुल लगभग 800 मीटर लंबा था और अपने समय में एक महत्वपूर्ण यातायात मार्ग था। पुल पर बढ़ता यातायात और नया रेलवे पुल समय के साथ शुक्लागंज और कानपुर के बीच सड़क यातायात और रेल यातायात दोनों में वृद्धि हुई। सड़क यातायात के बढ़ने के साथ-साथ ट्रेनों की संख्या भी बढ़ने लगी। क्योंकि यह पुल सिंगल रेल ट्रैक पर आधारित था, रेलवे ने महसूस किया कि एक और रेलवे पुल की आवश्यकता है। 1910 में, पुराने गंगापुल के समानांतर एक नया रेलवे पुल बनाया गया। यह पुल 814 मीटर लंबा था और इसके साथ दोनों पुलों पर ट्रेनों का संचालन हुआ। हालांकि, 1925 में रेलवे ने पुराना गंगापुल राज्य सरकार को सौंप दिया। इसके बाद इस पुल का संचालन लोक निर्माण विभाग (PWD) द्वारा किया जाने लगा और रेलवे ट्रैक को हटा कर इस पर सड़क बना दी गई। अब यह पुल केवल सड़क यातायात के लिए उपयोगी था, और तब से यह सड़क यातायात का एक अहम हिस्सा बन गया। पुल का गिरना और उसकी मरम्मत की कहानी बीतते समय के साथ पुराने गंगापुल की स्थिति खराब होती गई और कई बार इसकी मरम्मत की गई। वर्ष 2013 में, इस पुल के ऊपर के सड़क मार्ग का जीर्णोद्धार किया गया। इस जीर्णोद्धार के बाद, पुल का उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और लोक निर्माण मंत्री शिवपाल यादव ने 18 अक्टूबर 2013 को किया। इसके बाद, 8 जुलाई 2019 को, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने निचले लकड़ी के पुल के जीर्णोद्धार का उद्घाटन किया। लकड़ी के इस पुल पर बिटुमिन के साथ कंक्रीट की लेयर बिछाई गई, ताकि उसकी मजबूती बनी रहे। रेलवे पुल का जीर्णोद्धार भी समय-समय पर किया गया। पहले इसे 1990 में ठीक किया गया और फिर 2016 में रेलवे ने इसकी मरम्मत की। इसमें पुराने गाटर को बदलने का काम किया गया और लगभग एक हजार से अधिक गाटर लगाए गए, जिन्हें ब्रिटिशों ने स्थापित किया था। 1993-94 में, नैरो गैज लाइन को ब्रॉडगेज में परिवर्तित किया गया, जिससे रेल यातायात की क्षमता बढ़ी। पुल की देखरेख और लगती थी रोज झाड़ू गंगापुल की देखरेख के लिए एक भारी भरकम टीम को तैनात किया गया था, जब रेलवे ने 1925 में इसे राज्य सरकार को सौंप दिया। पुल की देखरेख में लगे कर्मचारी और उनके परिवार आज भी पुल के आसपास के इलाकों में रहते हैं। बुजुर्गों के अनुसार, पहले इस पुल पर दिनभर झाड़ू लगाई जाती थी और पुल के दोनों ओर द्वार होते थे, जहां से पूरी क्षेत्र की निगरानी की जाती थी। गंगा पुल का गिरना, एक नई चुनौती बीते मंगलवार को, पुराना गंगापुल अचानक गिर गया और एक कोठी के बीच गिरने से गंगा में समा गया। यह घटना पूरे दिन चर्चा का विषय बनी रही। इस पुल के गिरने ने इस ऐतिहासिक धरोहर की स्थिति पर सवाल उठाए हैं। हालांकि यह पुल पुराने समय में कई मरम्मत और जीर्णोद्धार से गुजर चुका था, फिर भी इसकी पुरानी संरचना और समय के साथ आई समस्याओं ने आखिरकार इसे अस्थिर बना दिया, जिसके परिणामस्वरूप यह गिर गया। अब हो सकती है योजनाएं पुराने गंगापुल के गिरने के बाद, इस क्षेत्र के लिए एक नई चुनौती उत्पन्न हो गई है। पुल की गिरने की घटना ने यह साबित कर दिया कि पुराने इंफ्रास्ट्रक्चर की देखरेख और उसकी मरम्मत में निरंतरता की आवश्यकता होती है। अब सरकार और संबंधित विभागों को एक नई योजना बनानी होगी ताकि इस क्षेत्र में यातायात की सुविधा बनी रहे और ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित किया जा सके। पुराना पुल टूटने से अब नगरवासियों को नये पुल की आस जगी चार साल पहले अप्रैल माह में कानपुर प्रशासन और उन्नाव प्रशासन ने सोशल मीडिया पर पुल के क्षतिग्रस्त होने की सूचना पर उसे बंद कर दिया था। तब से उसे मरम्मत कराकर चलाने की कवायदें चल रहीं थी। मंगलवार सुबह उस समय विराम लग गया, जब लोगों को पता चला कि पुराना यातायात पुल गिर गया है। अब किसी भी हालत में उसे मरम्मत करने के बाद भी नहीं चलाया जा सकता है। क्षेत्र के श्रीकांत पांडे, अनिल साहू, शिवनाथ पांडेय, विकास मिश्रा, वीरेन्द्र शुक्ला, के डी त्रिवेदी बताते हैं कि पुराने पुल के समानांतर पुल का सर्वे हो गया है। मृदा परीक्षण भी कराया जा रहा है, उम्मीद है कि जल्द ही नया पुल बनने का काम शुरू हो जायेगा।

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