कार्तिक पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं ने लगाई आस्था की डुबकी:बांसी नदी घाट पर जुटी लाखों लोगों की भीड़
कुशीनगर में "सौ काशी बराबर एक बॉसी" मान्यता वाले कार्तिक पूर्णिमा स्नान पर लाखों श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई। स्नान के लिए एक दिन पहले ही घाटों पर श्रद्धालुओं का आना शुरू हो गया था। इस मेले में भारी भीड़ होती है। क्योंकि बांसी नदी का महत्व रामायण काल से जुड़ा माना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा पर बांसी नदी में स्नान के महत्व को स्थानीय लोग सौ काशी के पुण्य के बराबर मानते है। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर विशुनपुरा ब्लाक क्षेत्र में सिंघापट्टी गांव में बहने वाली पौराणिक बांसी नदी के तट पर गुरुवार को हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचने लगे। पुलिस और प्रशासन ने इसके लिए पहले से तैयारियां पूरी कर ली थी। सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम और जरूरी तैयारियों पर जिला प्रशासन और पुलिस एक सप्ताह से लग कार्य पूरा किया। बासी नदी भगवान राम से जुड़ी है इस नदी के महत्व को 'सौ काशी और एक बांसी' की लोकोक्ति से समझा जा सकता है। पौराणिक महत्व यह है कि नदी त्रेता युगीन होने के साथ संबंधित क्षेत्र के लोगों के लिए जीवनदायिनी है। ऐसी मान्यता है कि मिथिला जाते समय भगवान श्रीराम ने विश्वामित्र ऋषि और अपने भाई लक्ष्मण के साथ बांसी नदी के तट पर विश्राम किया था। माघ माह में स्नान के अवसर पर मोक्ष प्राप्ति के लिए इस नदी में लाखों लोग डुबकी लगाते हैं। नेपाल स्थित हिमालय की पहाडि़यों से निकली बांसी नदी पिपरा-पिपरासी, मधुबनी, पडरौना के खिरकिया स्थान होते हुए सेवरही के शिवाघाट से आगे पिपराघाट में नारायणी में जाकर मिल जाती है। करीब 100 किमी की यात्रा करते हुए यह नदी सैकड़ों गांवों को अपने जल से प्रभावित करती रहती है। इस नदी मे कार्तिक पूर्णिमा के दिन श्रद्धा श्रद्धालु स्नान दान करते हैं और अपने को धन्य मानते हैं। श्रद्धालुओं का जमावड़ा नदी किनारे लगा जिला मुख्यालय पडरौना से 8 किमी दूर बिहार सीमा पर स्थित बांसी नदी के घाट पर लगने वाले ऐतिहासिक कार्तिक पूर्णिमा मेले में शुक्रवार की सुबह लाखों श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जनकपुर से अयोध्या लौटने के दौरान की कहानी में भी इस स्थान का जिक्र आने से इस स्थान की महत्ता अधिक है। इसी कारण यहां कहा जाता है कि 'सौ काशी तो एक बांसी' मेले के दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं का जमावड़ा यहां नदी किनारे होता है। उस दिन भोर से ही लोग नदी में स्नान कर पुण्य का लाभ कमाते हैं।
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