दरगाह फातमान के संस्थापक की 266वीं बरसी 14 नवंबर को:300 साल पहले ईरान से बनारस आये थे शेख अली हजी, महाराजा चेत सिंह ने दी थी जमीन

वाराणसी के लल्लापुरा स्थित दरगाह फातमान पर 14 नवंबर को शेख अली हजी की मजार पर उनकी पुण्यतिथि मनाई जाएगी। 266वीं पुण्यतिथि (बरसी) पर जवादिया अरबी कालेज के मौलाना जमीरूल हसन रिजवी, इमानिया अरबी कालेज के मौलाना अकील हुसैनी और डॉ शफीक हैदर उनकी जिंदगी पर प्रकाश डालेंगे। दरगाह फातमान की जमीन 300 साल पहले महाराजा चेतसिंह ने उन्हें दी थी। 300 साल पहले ईरान से भारत आये थे शेख अली हजी दरगाह के मुतवल्ली शफक रिजवी ने बताया- आज से 300 साल पहले शेख अली हजी जो ईरान के स्कालर थे। वो भारत आये थे। कई शहरों से होते हुए वाराणसी पहुंचे थे। यहां आने के बाद वो यहीं रुक गए। जो स्थान आज दरगाह फातमान है। यह जमीन उन्होंने महाराजा चेत सिंह से मांगी तो उन्होंने यह जमीन उन्हें दी। उसके बाद वो यहीं रहने लगे। बनवाया मौला अली, इमाम हुसैन और अब्बास का रौजा शफक ने बताया- इसके बाद उन्होंने यहां शिया मुसलामानों के पहले इमाम और सुन्नी मुसलामानों के चौथे खलीफा पैगंबर मोहम्मद साहब के चचेरे भाई इमाम अली का रौजा बनवाया। इसके बाद उनके बेटे इमाम हुसैन और अब्बास का रौजा बना जो शिया मुसलामानों के अकीदत का केंद्र तब से ही हैं। आज से 266 साल पहले उनकी डेथ हो गयी। उन्हें यहीं दफनाया गया है। इस्लामिक कैलेंडर के पांचवें महीने की 11 तारीख को हुई थी डेथ इस मौके पर मौजूद शिया जामा मस्जिद के प्रवक्ता फरमान हैदर ने बताया- ईरान से आकर शेख अली हजी यहीं बस गए। ईरान सरकार ने उन्हें वापस आने का खत लिखा लेकिन उन्होंने मना कर दिया और खत के जवाब में फारसी में लिखा- 'आ बनारस ना रवम, मा बदे आम इजा अस्त, हर ब्राम्हण पिसरे लक्ष्मणों राम ईजा अस्त।' यानी बनारस इबादत की खास जगह है। यहां इबादत आम है। साथ ही हर ब्राह्मण के बेटे में मुझे राम और लक्ष्मण नजर आते हैं। उनकी डेथ आज से 266 साल पहले इस्लामिक कैलेण्डर के पांचवें महीने की 11 तारीख को हुई थी। जो इस बार 14 नवंबर को मनाई जाएगी।

Nov 12, 2024 - 19:00
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दरगाह फातमान के संस्थापक की 266वीं बरसी 14 नवंबर को:300 साल पहले ईरान से बनारस आये थे शेख अली हजी, महाराजा चेत सिंह ने दी थी जमीन
वाराणसी के लल्लापुरा स्थित दरगाह फातमान पर 14 नवंबर को शेख अली हजी की मजार पर उनकी पुण्यतिथि मनाई जाएगी। 266वीं पुण्यतिथि (बरसी) पर जवादिया अरबी कालेज के मौलाना जमीरूल हसन रिजवी, इमानिया अरबी कालेज के मौलाना अकील हुसैनी और डॉ शफीक हैदर उनकी जिंदगी पर प्रकाश डालेंगे। दरगाह फातमान की जमीन 300 साल पहले महाराजा चेतसिंह ने उन्हें दी थी। 300 साल पहले ईरान से भारत आये थे शेख अली हजी दरगाह के मुतवल्ली शफक रिजवी ने बताया- आज से 300 साल पहले शेख अली हजी जो ईरान के स्कालर थे। वो भारत आये थे। कई शहरों से होते हुए वाराणसी पहुंचे थे। यहां आने के बाद वो यहीं रुक गए। जो स्थान आज दरगाह फातमान है। यह जमीन उन्होंने महाराजा चेत सिंह से मांगी तो उन्होंने यह जमीन उन्हें दी। उसके बाद वो यहीं रहने लगे। बनवाया मौला अली, इमाम हुसैन और अब्बास का रौजा शफक ने बताया- इसके बाद उन्होंने यहां शिया मुसलामानों के पहले इमाम और सुन्नी मुसलामानों के चौथे खलीफा पैगंबर मोहम्मद साहब के चचेरे भाई इमाम अली का रौजा बनवाया। इसके बाद उनके बेटे इमाम हुसैन और अब्बास का रौजा बना जो शिया मुसलामानों के अकीदत का केंद्र तब से ही हैं। आज से 266 साल पहले उनकी डेथ हो गयी। उन्हें यहीं दफनाया गया है। इस्लामिक कैलेंडर के पांचवें महीने की 11 तारीख को हुई थी डेथ इस मौके पर मौजूद शिया जामा मस्जिद के प्रवक्ता फरमान हैदर ने बताया- ईरान से आकर शेख अली हजी यहीं बस गए। ईरान सरकार ने उन्हें वापस आने का खत लिखा लेकिन उन्होंने मना कर दिया और खत के जवाब में फारसी में लिखा- 'आ बनारस ना रवम, मा बदे आम इजा अस्त, हर ब्राम्हण पिसरे लक्ष्मणों राम ईजा अस्त।' यानी बनारस इबादत की खास जगह है। यहां इबादत आम है। साथ ही हर ब्राह्मण के बेटे में मुझे राम और लक्ष्मण नजर आते हैं। उनकी डेथ आज से 266 साल पहले इस्लामिक कैलेण्डर के पांचवें महीने की 11 तारीख को हुई थी। जो इस बार 14 नवंबर को मनाई जाएगी।

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