प्रशांत कुमार स्थायी DGP बनेंगे या नहीं?:सिर्फ 3 दिन बचे; अब तक कमेटी नहीं बनी, 11 में से सिर्फ एक अफसर योगी के भरोसेमंद
प्रदेश में स्थायी डीजीपी की तैनाती को लेकर सस्पेंस बरकरार है। कैबिनेट से नई नियमावली पास कराने के बाद भी अब तक सरकार ने इसे सार्वजनिक नहीं किया है। कैबिनेट में डीजीपी की नियुक्ति के लिए जिस कमेटी को गठित करने की बात की गई, वो भी गठित नहीं हो पाई। नई नियमावली के हिसाब से अगले 3 दिन में प्रक्रिया पूरी नहीं की गई, तो मौजूदा कार्यवाहक डीजीपी प्रशांत कुमार का स्थायी डीजीपी बनना मुश्किल हो जाएगा। अब सवाल उठ रहे हैं कि आखिर नई नियमावली आने के बाद भी इस प्रक्रिया में कहां बाधा आ रही है। उत्तर प्रदेश में बीते ढाई साल से कोई स्थायी डीजीपी नहीं है। मुकुल गोयल को हटाए जाने के बाद से इस पद पर कार्यवाहक डीजीपी ही तैनात किए जा रहे हैं। बिना ठोस आधार के मुकुल गोयल को हटाए जाने पर संघ लोकसेवा आयोग ने सवाल उठाए थे। उसके बाद से उत्तर प्रदेश सरकार ने आयोग को डीजीपी की स्थायी नियुक्ति के लिए कोई प्रस्ताव नहीं भेजा। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने उन सभी सात राज्यों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा जहां कार्यवाहक डीजीपी की तैनाती थी। उत्तर प्रदेश सरकार ने अदालत में जवाब देने से पहले अपनी नई नियमावली बना ली, जिसमें डीजीपी की तैनाती राज्य सरकार की ओर से गठित कमेटी को करने का अधिकार दे दिया गया। इसमें रिटायर्ड जस्टिस हाईकोर्ट, रिटायर्ड डीजीपी उत्तर प्रदेश, मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव गृह, संघ लोकसेवा आयोग के एक सदस्य के साथ-साथ मौजूदा पूर्ण कालिक डीजीपी को रखा गया। 5 नवंबर को कैबिनेट में आए इस प्रस्ताव के पास होने के बाद से अब तक इससे संबंधित नियमावली सार्वजनिक नहीं की गई है और न ही कमेटी का गठन किया गया, जिससे डीजीपी की स्थायी नियुक्ति हो सके। … ताे क्या कार्यवाहक डीजीपी के रूप में ही काम करेंगे प्रशांत कुमार
कैबिनेट में पास हुए नए प्रस्ताव के तहत प्रदेश में स्थायी डीजीपी बनने के लिए कम से कम 6 महीने का कार्यकाल शेष होना चाहिए। प्रशांत कुमार का रिटायरमेंट 31 मई 2025 है। इसके हिसाब से अगर 30 नवंबर तक प्रशांत कुमार की नियुक्ति स्थायी डीजीपी के रूप में नहीं हो सकी तो उनका स्थायी डीजीपी बनना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए 3 दिन के अंदर कमेटी गठित करके डीजीपी की नियुक्ति के लिए बैठक जरूरी है। ऐसे में अगर 30 नवंबर से पहले डीजीपी की नियुक्ति के लिए बैठक नहीं होती है तो प्रशांत कुमार स्थायी डीजीपी की रेस से बाहर हो सकते हैं। इसकी दूसरी सूरत यह भी बन रही है कि सुप्रीम कोर्ट में अवमानना की सुनवाई 7 दिसंबर को होने वाली है। उस समय सरकार अपना जवाब दाखिल करेगी और बताएगी कि उसने स्थायी डीजीपी के लिए नई नियमावली बनाई है। अदालत सरकार की नियमावली को स्वीकार करती है तो स्थायी डीजीपी की नियुक्ति होने तक प्रक्रिया थोड़ी लंबी खिच सकती है। प्रशांत कुमार के रिटायरमेंट के बाद नए डीजीपी की नियुक्ति को लेकर प्रक्रिया पूरी की जा सकती है। क्या केंद्र नहीं है राजी?
सूत्रों का कहना है कि यूपी सरकार ने डीजीपी नियुक्ति की जो प्रक्रिया अपनाई है, उससे केंद्र के लोग राजी नहीं हैं। केंद्र सरकार का मानना है कि राज्यों को डीजीपी की नियुक्ति का अधिकार मिल जाने की वजह से अफसर केंद्र की अनदेखी शुरू कर देंगे। दूसरे राज्य भी उत्तर प्रदेश की तरह अपने-अपने यहां नियमावली बनाकर डीजीपी की पोस्टिंग शुरू कर देंगे। शायद यही वजह है कि कैबिनेट से प्रस्ताव पास होने के 20 दिन बाद भी स्थायी डीजीपी बनाए जाने की प्रक्रिया अभी शुरू नहीं हो सकी है। प्रशांत कुमार नहीं तो कौन बनेगा स्थायी डीजीपी?
अगर 30 नवंबर से पहले प्रदेश में स्थाई डीजीपी की नियुक्ति नहीं होती तो प्रशांत कुमार के अलावा 1989 बैच के आईपीएस आदित्य मिश्रा और पीवी रामाशास्त्री डीजीपी की रेस से बाहर हो जाएंगे। इसके बाद वरिष्ठतम अफसरों में आशीष गुप्ता, संदीप सालुंके, रेणुका मिश्रा, बीके मौर्य, तिलोत्मा वर्मा, राजीव कृष्णा, अभय कुमार प्रसाद और पीसी मीणा रहेंगे। इसके अलावा केंद्र में मौजूद अफसरों में दलजीत चौधरी, आलोक शर्मा, पीयूष आनंद का नाम भी शामिल रहेगा। राजीव कृष्णा को छोड़ दिया जाए तो एक भी नाम ऐसा नहीं है जो मुख्यमंत्री का सबसे भरोसेमंद हो। कोर्ट में चल रहा है अवमानना का केस
प्रकाश सिंह बनाम सरकार के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों में डीजीपी की नियुक्ति के लिए संघ लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया था, जिसे सीनियाॅरिटी, योग्यता और रिकार्ड के हिसाब से तीन अधिकारियों का पैनल बनाने का निर्देश दिया था। उत्तर प्रदेश में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार दो डीजीपी की नियुक्ति की गई थी। पहली नियुक्त हितेश चंद्र अवस्थी की और दूसरी नियुक्त मुकुल गोयल की हुई थी। हितेश चंद्र अवस्थी अपना 17 महीने का कार्यकाल पूरा करने के बाद रिटायर हो गए थे, जबकि मुकुल गोयल को बीच में ही हटा दिया गया था। दो राज्यों में स्थायी नियुक्ति से बढ़ा यूपी सरकार पर दबाव
दो राज्यों उत्तराखंड और मध्य प्रदेश में स्थायी डीजीपी की नियुक्ति कर दी गई है। उत्तराखंड में केंद्र सरकार से वापस बुलाकर दीपम सेठ को डीजीपी बनाया गया है। वहीं मध्य प्रदेश में कैलाश मकवाना काे नया डीजीपी बनाया गया है। इन दोनों डीजीपी की तैनाती संघ लोकसेवा आयोग के तहत और सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के हिसाब से की गई है। ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार पर भी स्थायी डीजीपी बनाए जाने को लेकर दबाव बढ़ गया है। जानकारों का कहना है कि उत्तराखंड सरकार अभिनव कुमार को डीजीपी बनाना चाहती थी। लेकिन उनके यूपी कॉडर के होने के नाते संघ लोकसेवा आयोग ने उनके नाम पर विचार नहीं किया। ----------------- ये भी पढ़ें... अब 60 साल की उम्र में रिटायर होंगे डीजीपी:यूपी में अभी तक था 2 साल पद पर रहने का नियम; जानिए पूरी गाइडलाइन प्रदेश में स्थायी डीजीपी की नियुक्ति के लिए शासन ने गाइडलाइन को हरी झंडी दे दी। इसके अनुसार, डीजीपी के नियुक्ति के लिए न्यूनतम सीमा 6 महीने की तय की गई। दो साल तक डीजीपी तभी
प्रदेश में स्थायी डीजीपी की तैनाती को लेकर सस्पेंस बरकरार है। कैबिनेट से नई नियमावली पास कराने के बाद भी अब तक सरकार ने इसे सार्वजनिक नहीं किया है। कैबिनेट में डीजीपी की नियुक्ति के लिए जिस कमेटी को गठित करने की बात की गई, वो भी गठित नहीं हो पाई। नई नियमावली के हिसाब से अगले 3 दिन में प्रक्रिया पूरी नहीं की गई, तो मौजूदा कार्यवाहक डीजीपी प्रशांत कुमार का स्थायी डीजीपी बनना मुश्किल हो जाएगा। अब सवाल उठ रहे हैं कि आखिर नई नियमावली आने के बाद भी इस प्रक्रिया में कहां बाधा आ रही है। उत्तर प्रदेश में बीते ढाई साल से कोई स्थायी डीजीपी नहीं है। मुकुल गोयल को हटाए जाने के बाद से इस पद पर कार्यवाहक डीजीपी ही तैनात किए जा रहे हैं। बिना ठोस आधार के मुकुल गोयल को हटाए जाने पर संघ लोकसेवा आयोग ने सवाल उठाए थे। उसके बाद से उत्तर प्रदेश सरकार ने आयोग को डीजीपी की स्थायी नियुक्ति के लिए कोई प्रस्ताव नहीं भेजा। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने उन सभी सात राज्यों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा जहां कार्यवाहक डीजीपी की तैनाती थी। उत्तर प्रदेश सरकार ने अदालत में जवाब देने से पहले अपनी नई नियमावली बना ली, जिसमें डीजीपी की तैनाती राज्य सरकार की ओर से गठित कमेटी को करने का अधिकार दे दिया गया। इसमें रिटायर्ड जस्टिस हाईकोर्ट, रिटायर्ड डीजीपी उत्तर प्रदेश, मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव गृह, संघ लोकसेवा आयोग के एक सदस्य के साथ-साथ मौजूदा पूर्ण कालिक डीजीपी को रखा गया। 5 नवंबर को कैबिनेट में आए इस प्रस्ताव के पास होने के बाद से अब तक इससे संबंधित नियमावली सार्वजनिक नहीं की गई है और न ही कमेटी का गठन किया गया, जिससे डीजीपी की स्थायी नियुक्ति हो सके। … ताे क्या कार्यवाहक डीजीपी के रूप में ही काम करेंगे प्रशांत कुमार
कैबिनेट में पास हुए नए प्रस्ताव के तहत प्रदेश में स्थायी डीजीपी बनने के लिए कम से कम 6 महीने का कार्यकाल शेष होना चाहिए। प्रशांत कुमार का रिटायरमेंट 31 मई 2025 है। इसके हिसाब से अगर 30 नवंबर तक प्रशांत कुमार की नियुक्ति स्थायी डीजीपी के रूप में नहीं हो सकी तो उनका स्थायी डीजीपी बनना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए 3 दिन के अंदर कमेटी गठित करके डीजीपी की नियुक्ति के लिए बैठक जरूरी है। ऐसे में अगर 30 नवंबर से पहले डीजीपी की नियुक्ति के लिए बैठक नहीं होती है तो प्रशांत कुमार स्थायी डीजीपी की रेस से बाहर हो सकते हैं। इसकी दूसरी सूरत यह भी बन रही है कि सुप्रीम कोर्ट में अवमानना की सुनवाई 7 दिसंबर को होने वाली है। उस समय सरकार अपना जवाब दाखिल करेगी और बताएगी कि उसने स्थायी डीजीपी के लिए नई नियमावली बनाई है। अदालत सरकार की नियमावली को स्वीकार करती है तो स्थायी डीजीपी की नियुक्ति होने तक प्रक्रिया थोड़ी लंबी खिच सकती है। प्रशांत कुमार के रिटायरमेंट के बाद नए डीजीपी की नियुक्ति को लेकर प्रक्रिया पूरी की जा सकती है। क्या केंद्र नहीं है राजी?
सूत्रों का कहना है कि यूपी सरकार ने डीजीपी नियुक्ति की जो प्रक्रिया अपनाई है, उससे केंद्र के लोग राजी नहीं हैं। केंद्र सरकार का मानना है कि राज्यों को डीजीपी की नियुक्ति का अधिकार मिल जाने की वजह से अफसर केंद्र की अनदेखी शुरू कर देंगे। दूसरे राज्य भी उत्तर प्रदेश की तरह अपने-अपने यहां नियमावली बनाकर डीजीपी की पोस्टिंग शुरू कर देंगे। शायद यही वजह है कि कैबिनेट से प्रस्ताव पास होने के 20 दिन बाद भी स्थायी डीजीपी बनाए जाने की प्रक्रिया अभी शुरू नहीं हो सकी है। प्रशांत कुमार नहीं तो कौन बनेगा स्थायी डीजीपी?
अगर 30 नवंबर से पहले प्रदेश में स्थाई डीजीपी की नियुक्ति नहीं होती तो प्रशांत कुमार के अलावा 1989 बैच के आईपीएस आदित्य मिश्रा और पीवी रामाशास्त्री डीजीपी की रेस से बाहर हो जाएंगे। इसके बाद वरिष्ठतम अफसरों में आशीष गुप्ता, संदीप सालुंके, रेणुका मिश्रा, बीके मौर्य, तिलोत्मा वर्मा, राजीव कृष्णा, अभय कुमार प्रसाद और पीसी मीणा रहेंगे। इसके अलावा केंद्र में मौजूद अफसरों में दलजीत चौधरी, आलोक शर्मा, पीयूष आनंद का नाम भी शामिल रहेगा। राजीव कृष्णा को छोड़ दिया जाए तो एक भी नाम ऐसा नहीं है जो मुख्यमंत्री का सबसे भरोसेमंद हो। कोर्ट में चल रहा है अवमानना का केस
प्रकाश सिंह बनाम सरकार के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों में डीजीपी की नियुक्ति के लिए संघ लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया था, जिसे सीनियाॅरिटी, योग्यता और रिकार्ड के हिसाब से तीन अधिकारियों का पैनल बनाने का निर्देश दिया था। उत्तर प्रदेश में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार दो डीजीपी की नियुक्ति की गई थी। पहली नियुक्त हितेश चंद्र अवस्थी की और दूसरी नियुक्त मुकुल गोयल की हुई थी। हितेश चंद्र अवस्थी अपना 17 महीने का कार्यकाल पूरा करने के बाद रिटायर हो गए थे, जबकि मुकुल गोयल को बीच में ही हटा दिया गया था। दो राज्यों में स्थायी नियुक्ति से बढ़ा यूपी सरकार पर दबाव
दो राज्यों उत्तराखंड और मध्य प्रदेश में स्थायी डीजीपी की नियुक्ति कर दी गई है। उत्तराखंड में केंद्र सरकार से वापस बुलाकर दीपम सेठ को डीजीपी बनाया गया है। वहीं मध्य प्रदेश में कैलाश मकवाना काे नया डीजीपी बनाया गया है। इन दोनों डीजीपी की तैनाती संघ लोकसेवा आयोग के तहत और सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के हिसाब से की गई है। ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार पर भी स्थायी डीजीपी बनाए जाने को लेकर दबाव बढ़ गया है। जानकारों का कहना है कि उत्तराखंड सरकार अभिनव कुमार को डीजीपी बनाना चाहती थी। लेकिन उनके यूपी कॉडर के होने के नाते संघ लोकसेवा आयोग ने उनके नाम पर विचार नहीं किया। ----------------- ये भी पढ़ें... अब 60 साल की उम्र में रिटायर होंगे डीजीपी:यूपी में अभी तक था 2 साल पद पर रहने का नियम; जानिए पूरी गाइडलाइन प्रदेश में स्थायी डीजीपी की नियुक्ति के लिए शासन ने गाइडलाइन को हरी झंडी दे दी। इसके अनुसार, डीजीपी के नियुक्ति के लिए न्यूनतम सीमा 6 महीने की तय की गई। दो साल तक डीजीपी तभी रहेगा, जब उसके रिटायरमेंट में दो साल बचे हों। नहीं तो रिटायर होते ही डीजीपी का कार्यकाल समाप्त हो जाएगा। यानी सामान्य रूप से न्यूनतम दो साल की अवधि के लिए या 60 साल (रिटायरमेंट) तक, दोनों में से जो पहले हो, उसी समय तक डीजीपी रहेगा। पढ़ें पूरी खबर...