बीबीएयू के कुलसचिव को मिली बड़ी राहत:लखनऊ हाईकोर्ट ने निलंबन पर लगाई रोक; डॉ. अश्वनी सिंह पर लगे हैं भ्रष्टाचार के आरोप

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने बाबा साहब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. अश्वनी कुमार सिंह के निलंबन पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने कुलसचिव के खिलाफ जांच पर भी रोक लगा दी है। साथ ही केंद्र सरकार और विश्वविद्यालय को चार सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। जस्टिस अब्दुल मोइन की एकल पीठ ने डॉ. अश्वनी कुमार सिंह की याचिका पर गुरुवार को यह आदेश दिया। डॉ. अश्वनी ने 18 नवंबर को निलंबन और 22 नवंबर को विभागीय जांच के आदेश को चुनौती दी थी। दोनों ही आदेश कार्यवाहक कुलपति द्वारा पारित किए गए थे। डॉ. अश्वनी की दलील है कि नियम के तहत उनके खिलाफ ये आदेश पारित करना कुलपति के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। वहीं इस याचिका का विरोध करते हुए विश्वविद्यालय की ओर से दलील दी गई कि कुलपति को विश्वविद्यालय के कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार है। भ्रष्टाचार का एक मामला पाए जाने के बाद डॉ. अश्वनी के खिलाफ यह कार्रवाई की गई है। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि विश्वविद्यालय के नियमों के प्रावधानों के तहत कर्मचारियों और अधिकारियों को अलग-अलग परिभाषित किया गया है और कुलसचिव को एक अधिकारी माना गया है। कोर्ट ने कहा कि कुलपति सिर्फ कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है, अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर सकता है। इसलिए देखने से लग रहा है की कुलपति ने दोनों आदेश अपने अधिकार से बाहर जाकर किया है, जो की गलत है।

Nov 30, 2024 - 00:10
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बीबीएयू के कुलसचिव को मिली बड़ी राहत:लखनऊ हाईकोर्ट ने निलंबन पर लगाई रोक; डॉ. अश्वनी सिंह पर लगे हैं भ्रष्टाचार के आरोप
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने बाबा साहब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. अश्वनी कुमार सिंह के निलंबन पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने कुलसचिव के खिलाफ जांच पर भी रोक लगा दी है। साथ ही केंद्र सरकार और विश्वविद्यालय को चार सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। जस्टिस अब्दुल मोइन की एकल पीठ ने डॉ. अश्वनी कुमार सिंह की याचिका पर गुरुवार को यह आदेश दिया। डॉ. अश्वनी ने 18 नवंबर को निलंबन और 22 नवंबर को विभागीय जांच के आदेश को चुनौती दी थी। दोनों ही आदेश कार्यवाहक कुलपति द्वारा पारित किए गए थे। डॉ. अश्वनी की दलील है कि नियम के तहत उनके खिलाफ ये आदेश पारित करना कुलपति के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। वहीं इस याचिका का विरोध करते हुए विश्वविद्यालय की ओर से दलील दी गई कि कुलपति को विश्वविद्यालय के कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार है। भ्रष्टाचार का एक मामला पाए जाने के बाद डॉ. अश्वनी के खिलाफ यह कार्रवाई की गई है। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि विश्वविद्यालय के नियमों के प्रावधानों के तहत कर्मचारियों और अधिकारियों को अलग-अलग परिभाषित किया गया है और कुलसचिव को एक अधिकारी माना गया है। कोर्ट ने कहा कि कुलपति सिर्फ कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है, अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर सकता है। इसलिए देखने से लग रहा है की कुलपति ने दोनों आदेश अपने अधिकार से बाहर जाकर किया है, जो की गलत है।

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