लखनऊ में सुप्रीम कोर्ट के AMU फैसले का स्वागत:मुस्लिम धर्म गुरुओं , AMU के पूर्व छात्रों ने "अल्पसंख्यक दर्जे" को कायम रखना ऐतिहासिक बताया

लखनऊ में मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया । अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के "अल्पसंख्यक दर्जा" पर फैसला सुनाते हुए उसे "अल्पसंख्यक दर्जे" का हकदार माना है। मौलाना खालिद रशीद ने कहा कि कोर्ट का यह फैसला ऐतिहासिक है। मौलाना खालिद रशीद ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का फैसला आया है उसका हम स्वागत करते हैं, ये ऐतिहासिक फैसला है। सुप्रीम कोर्ट ने 1967 के फैसले को पलटा है। जो यह बात कही गई है कि रेगुलर बेंच के सामने इस मामले को रखा जाएगा हमारे पास सभी सबूत मौजूद है की अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को मुसलमानों द्वारा मुसलमानों के डोनेशन से ही बनाया गया है। 1920 में ये यूनिवर्सिटी बनी थी जिसका भारत के विकास में अहम योगदान रहा है। हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक एक लंबा कानूनी सफर तय हुआ। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक होने के रास्ते में जो रुकावटें थी वह दूर होंगी। "मदरसे से AMU की हुई थी शुरुआत" मौलाना ने कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक मदरसे के रूप में शुरू हुआ था। सर सैयद ने 10 फरवरी 1872 में इसे कॉलेज का रूप दिया । उस समय सर सैयद ने अपने भाषण में कहा था कि यह शैक्षणिक संस्थान मुसलमानों की शिक्षा के लिए बनाया गया है। इस यूनिवर्सिटी के माध्यम से अल्पसंख्यक समुदाय को शिक्षा के लिए जागरूक किया जाएगा। "60 साल की लड़ाई को बल मिला" अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ओल्ड बॉयज एसोसिएशन के अध्यक्ष सैयद शोएब ने फैसले को संतोषजनक बताया। उन्होंने कहा कि विगत 60 सालों से जो लड़ाई चल रही थी अब वह सफलता की ओर बढ़ रही है । अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से जुड़े हुए प्रत्येक शिक्षक और छात्र समेत सभी बधाई के पात्र हैं । सुप्रीम कोर्ट के उन सभी न्याय मूर्तियों का धन्यवाद जिन्होंने संविधान के माध्यम से सर सैयद के मिशन को आगे बढ़ाने में सहयोग किया । 7 जजों की बेंच में 4-3 के बहुमत से "अल्पसंख्यक दर्जे" को कायम रखने की सहमति बनी। इस फैसले से भारत के कानून और अदालत पर मुसलमान समेत पूरे देश के नागरिकों का विश्वास और मजबूत हुआ है।

Nov 8, 2024 - 15:55
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लखनऊ में सुप्रीम कोर्ट के AMU फैसले का स्वागत:मुस्लिम धर्म गुरुओं , AMU के पूर्व छात्रों ने "अल्पसंख्यक दर्जे" को कायम रखना ऐतिहासिक बताया
लखनऊ में मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया । अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के "अल्पसंख्यक दर्जा" पर फैसला सुनाते हुए उसे "अल्पसंख्यक दर्जे" का हकदार माना है। मौलाना खालिद रशीद ने कहा कि कोर्ट का यह फैसला ऐतिहासिक है। मौलाना खालिद रशीद ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का फैसला आया है उसका हम स्वागत करते हैं, ये ऐतिहासिक फैसला है। सुप्रीम कोर्ट ने 1967 के फैसले को पलटा है। जो यह बात कही गई है कि रेगुलर बेंच के सामने इस मामले को रखा जाएगा हमारे पास सभी सबूत मौजूद है की अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को मुसलमानों द्वारा मुसलमानों के डोनेशन से ही बनाया गया है। 1920 में ये यूनिवर्सिटी बनी थी जिसका भारत के विकास में अहम योगदान रहा है। हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक एक लंबा कानूनी सफर तय हुआ। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक होने के रास्ते में जो रुकावटें थी वह दूर होंगी। "मदरसे से AMU की हुई थी शुरुआत" मौलाना ने कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक मदरसे के रूप में शुरू हुआ था। सर सैयद ने 10 फरवरी 1872 में इसे कॉलेज का रूप दिया । उस समय सर सैयद ने अपने भाषण में कहा था कि यह शैक्षणिक संस्थान मुसलमानों की शिक्षा के लिए बनाया गया है। इस यूनिवर्सिटी के माध्यम से अल्पसंख्यक समुदाय को शिक्षा के लिए जागरूक किया जाएगा। "60 साल की लड़ाई को बल मिला" अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ओल्ड बॉयज एसोसिएशन के अध्यक्ष सैयद शोएब ने फैसले को संतोषजनक बताया। उन्होंने कहा कि विगत 60 सालों से जो लड़ाई चल रही थी अब वह सफलता की ओर बढ़ रही है । अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से जुड़े हुए प्रत्येक शिक्षक और छात्र समेत सभी बधाई के पात्र हैं । सुप्रीम कोर्ट के उन सभी न्याय मूर्तियों का धन्यवाद जिन्होंने संविधान के माध्यम से सर सैयद के मिशन को आगे बढ़ाने में सहयोग किया । 7 जजों की बेंच में 4-3 के बहुमत से "अल्पसंख्यक दर्जे" को कायम रखने की सहमति बनी। इस फैसले से भारत के कानून और अदालत पर मुसलमान समेत पूरे देश के नागरिकों का विश्वास और मजबूत हुआ है।

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