सीसामऊ में क्यों हारी BJP...नसीम की स्ट्रेटजी क्या रही:भाजपा दलितों का वोट रोक नहीं पाई; नसीम के आंसुओं ने हिंदू वोट भी खींचे

यूपी चुनाव में कानपुर की सीसामऊ सीट पर सपा प्रत्याशी नसीम सोलंकी ने जीत दर्ज की। उन्होंने BJP प्रत्याशी सुरेश अवस्थी को 8564 वोटों से हराया। सोलंकी परिवार की इस पारंपरिक सीट पर CM योगी ने दो बार रैली और एक बार रोड शो किया। दोनों डिप्टी सीएम केशव मौर्य और ब्रजेश पाठक भी जनसभा करने पहुंचे। लेकिन, 28 साल बाद भी इस सीट पर कमल नहीं खिल सका। हार की क्या वजह रही? भाजपा से कहां चूक हुई? नसीम ने ऐसी कौन सही स्ट्रैटजी से अपनाई। जिसे भाजपा के बड़े-बड़े दिग्गज भांप नहीं पाए। भास्कर ने इन तथ्यों की पड़ताल की...6 प्वाइंट में समझिए भाजपा की हार के कारण। 1. मंदिर में पूजा से सपा के पक्ष में हुआ हिंदू नसीम सोलंकी ने चुनाव प्रचार के दौरान विधानसभा क्षेत्र में आने वाले वनखंडेश्वर मंदिर में जलाभिषेक किया। इसके बाद उनके खिलाफ फतवा जारी हुआ। लेकिन, इसके बावजूद मुस्लिम तो नसीम के पक्ष में खड़ा रहा। साथ ही ज्यादातर हिंदुओं के दिल में वो जगह बनाने में कामयाब रहीं। फतवे के बाद भी उन्होंने कहा था कि उन्हें मंदिर बुलाया जाएगा तो वे फिर जाएंगी। 2. सिखों की नाराजगी पड़ी भारी कानपुर में सिख लगातार भाजपा से राजनीति में बड़ा प्रतिनिधित्व मांगती आईं हैं। लेकिन, भाजपा ने इसे हमेशा दरकिनार किया है। इसको लेकर इस बार सीसामऊ क्षेत्र में रहने वाले करीब 6 हजार सिख मतदाताओं में से 70 परसेंट वोट सपा में गया। वहीं, दलितों के वोट लेने में भाजपा ने कोई ठोस प्लानिंग पर काम नहीं किया। 3. राकेश सोनकर की टिकट कटने से पनपी नाराजगी सीसामऊ विधानसभा में करीब 60 हजार दलित वोटर हैं। इसको देखते हुए इस सीट से पूर्व विधायक रहे राकेश सोनकर की टिकट फाइनल थी। अचानक राकेश की टिकट काटकर भाजपा ने फिर से ब्राह्मण कार्ड खेला। इसको देखते हुए दलित वोटर में नाराजगी पनप गई। इसको दूर करने के लिए भाजपा ने खास रणनीति पर काम नहीं किया। 4. घरों से निकलने में कामयाब नहीं हुए भाजपा के वरिष्ठ मंत्री व सीसामऊ प्रभारी सुरेश खन्ना ने माइक्रो मैनेजमेंट कर हर वोटर को घर से बूथ तक लाने की प्लानिंग की थी। लेकिन, वो प्लानिंग धरातल पर नहीं उतरी। भाजपा के बड़े जिम्मेदार भी मतदान नहीं करा सके। जबकि पुलिस की रोकटोक के बाद भी मुस्लिम मतदाताओं ने मतदान किया। सपा विधायक अमिताभ बाजपेई और कांग्रेस नेता हिंदू वोट बंटोरने में कामयाब रहे। 5. छोटी जनसभाओं पर किया फोकस सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुनील साजन और शिवपाल सिंह यादव सपा की जीत के आधार बने। बड़ी जनसभाओं के मुकाबले सपा ने मुस्लिम और हिंदू क्षेत्रों में छोटी-छोटी जनसभाओं पर फोकस किया। शिवपाल ने एक दर्जन से अधिक छोटी जनसभाएं कीं। नसीम के आंसुओं और इरफान पर हुए सरकार के अत्याचार को भुनाने में कामयाब रहीं। आखिरी दिन डिंपल यादव का रोड शो गेमचेंजर साबित हुआ। 6. अंदरखाने गुटबाजी का शिकार हुई भाजपा दो बार से हार रहे प्रत्याशी सुरेश अवस्थी के नाम पर मुहर लगते ही भाजपा में अंदरखाने नाराजगी हावी रही। कानपुर के भाजपा बड़े पदाधिकारियों और नेताओं ने प्रचार में चेहरा तो खूब दिखाया, लेकिन गलियों में प्रचार करने नहीं उतरे। नसीम ने पति से ज्यादा वोटों से हराया नसीम ने पति से ज्यादा वोटों से भाजपा प्रत्याशी सुरेश अवस्थी को हराया। दरअसल, 2017 विधानसभा चुनाव में इरफान सोलंकी के सामने सुरेश अवस्थी चुनाव लड़े थे। तब यहां नेक टू नेक फाइट हुई। इरफान ने सुरेश अवस्थी को 5 हजार 826 वोटों से हराया था। अब नसीम सोलंकी ने सुरेश अवस्थी को 8 हजार 564 वोटों से हराया है। यह मार्जिन 2 हजार 738 वोट ज्यादा है। समाजवादी पार्टी को मजबूत गढ़ बन चुकी सीसामऊ विधानसभा पूरी तरह सुरक्षित हो गया है। इसे बचाए रखने में सोलंकी परिवार पूरी तरह कामयाब रहा। इरफान सोलंकी की पत्नी नसीम सोलंकी ने संघर्ष के बाद जीत दर्ज की। वहीं भाजपा को चौथी बार भी हार का सामना करना पड़ा। सीसामऊ सीट का रोचक फैक्ट राजनीतिक विश्लेषक क्या कहते हैं पढ़िए... राजनीतिक विश्लेषक व वरिष्ठ पत्रकार गौरव श्रीवास्तव कहते हैं कि पूरा चुनाव नसीम सोलंकी और सपा की प्लानिंग के नाम पर रहा। भाजपा के लिए पूरी सरकार खड़ी रही। सीएम आए रोडशो हुआ। वरिष्ठ मंत्री सुरेश खन्ना आए और आबकारी मंत्री नितिन अग्रवाल रहे। हाजी मुश्ताक सोलंकी की विरासत को आगे बढ़ाया। भले ही मतदान के दिन उनके बस्ते नहीं लगे हो, लेकिन उनके लोग वोट कराने में कामयाब रहे। मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में सपा को उतना ही वोट मिला जो जीत में मददगार हो। हिंदू बाहुल्य क्षेत्रों में अच्छा वोट मिला है। दलितों ने नसीम के आंसुओं पर सपा को वोट किया। सोलंकी परिवार के साथ भले ही सरकार ने जात्तियां की हो, लेकिन सब कुछ सहते हुए उन्होंने बड़ी जीत दर्ज की। इस प्रकार रहा है सीसामऊ का इतिहास सीसामऊ विधानसभा सीट मुस्लिम मतदाता बाहुल्य है। 1991 की राम लहर में पहली बार यहां से भाजपा के राकेश सोनकर विधायक बने थे। वे 1993 और 1996 में भी जीते। लेकिन, 2002 में कांग्रेस ने भाजपा से यह सीट झटक ली और 2007 में भी चुनाव जीती। इसके बाद 2012 में परिसीमन बदला तो यह सीट समाजवादी पार्टी के हिस्से में आ गई। यहां आर्यनगर के विधायक रहे इरफान सोलंकी जीते। इरफान ने 2017 और 2022 में भी यहां से चुनाव जीता। लेकिन, जाजमऊ में आगजनी मामले में सजा मिलने के बाद उनकी सदस्यता रद हो गई है। अभी इस सीट पर उप चुनाव की तिथि घोषित नहीं हुई है लेकिन भाजपा इस बार सपा से यह सीट छीनने की व्यूह रचना में जुटी है।

Nov 24, 2024 - 07:05
 0  7.1k
सीसामऊ में क्यों हारी BJP...नसीम की स्ट्रेटजी क्या रही:भाजपा दलितों का वोट रोक नहीं पाई; नसीम के आंसुओं ने हिंदू वोट भी खींचे
यूपी चुनाव में कानपुर की सीसामऊ सीट पर सपा प्रत्याशी नसीम सोलंकी ने जीत दर्ज की। उन्होंने BJP प्रत्याशी सुरेश अवस्थी को 8564 वोटों से हराया। सोलंकी परिवार की इस पारंपरिक सीट पर CM योगी ने दो बार रैली और एक बार रोड शो किया। दोनों डिप्टी सीएम केशव मौर्य और ब्रजेश पाठक भी जनसभा करने पहुंचे। लेकिन, 28 साल बाद भी इस सीट पर कमल नहीं खिल सका। हार की क्या वजह रही? भाजपा से कहां चूक हुई? नसीम ने ऐसी कौन सही स्ट्रैटजी से अपनाई। जिसे भाजपा के बड़े-बड़े दिग्गज भांप नहीं पाए। भास्कर ने इन तथ्यों की पड़ताल की...6 प्वाइंट में समझिए भाजपा की हार के कारण। 1. मंदिर में पूजा से सपा के पक्ष में हुआ हिंदू नसीम सोलंकी ने चुनाव प्रचार के दौरान विधानसभा क्षेत्र में आने वाले वनखंडेश्वर मंदिर में जलाभिषेक किया। इसके बाद उनके खिलाफ फतवा जारी हुआ। लेकिन, इसके बावजूद मुस्लिम तो नसीम के पक्ष में खड़ा रहा। साथ ही ज्यादातर हिंदुओं के दिल में वो जगह बनाने में कामयाब रहीं। फतवे के बाद भी उन्होंने कहा था कि उन्हें मंदिर बुलाया जाएगा तो वे फिर जाएंगी। 2. सिखों की नाराजगी पड़ी भारी कानपुर में सिख लगातार भाजपा से राजनीति में बड़ा प्रतिनिधित्व मांगती आईं हैं। लेकिन, भाजपा ने इसे हमेशा दरकिनार किया है। इसको लेकर इस बार सीसामऊ क्षेत्र में रहने वाले करीब 6 हजार सिख मतदाताओं में से 70 परसेंट वोट सपा में गया। वहीं, दलितों के वोट लेने में भाजपा ने कोई ठोस प्लानिंग पर काम नहीं किया। 3. राकेश सोनकर की टिकट कटने से पनपी नाराजगी सीसामऊ विधानसभा में करीब 60 हजार दलित वोटर हैं। इसको देखते हुए इस सीट से पूर्व विधायक रहे राकेश सोनकर की टिकट फाइनल थी। अचानक राकेश की टिकट काटकर भाजपा ने फिर से ब्राह्मण कार्ड खेला। इसको देखते हुए दलित वोटर में नाराजगी पनप गई। इसको दूर करने के लिए भाजपा ने खास रणनीति पर काम नहीं किया। 4. घरों से निकलने में कामयाब नहीं हुए भाजपा के वरिष्ठ मंत्री व सीसामऊ प्रभारी सुरेश खन्ना ने माइक्रो मैनेजमेंट कर हर वोटर को घर से बूथ तक लाने की प्लानिंग की थी। लेकिन, वो प्लानिंग धरातल पर नहीं उतरी। भाजपा के बड़े जिम्मेदार भी मतदान नहीं करा सके। जबकि पुलिस की रोकटोक के बाद भी मुस्लिम मतदाताओं ने मतदान किया। सपा विधायक अमिताभ बाजपेई और कांग्रेस नेता हिंदू वोट बंटोरने में कामयाब रहे। 5. छोटी जनसभाओं पर किया फोकस सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुनील साजन और शिवपाल सिंह यादव सपा की जीत के आधार बने। बड़ी जनसभाओं के मुकाबले सपा ने मुस्लिम और हिंदू क्षेत्रों में छोटी-छोटी जनसभाओं पर फोकस किया। शिवपाल ने एक दर्जन से अधिक छोटी जनसभाएं कीं। नसीम के आंसुओं और इरफान पर हुए सरकार के अत्याचार को भुनाने में कामयाब रहीं। आखिरी दिन डिंपल यादव का रोड शो गेमचेंजर साबित हुआ। 6. अंदरखाने गुटबाजी का शिकार हुई भाजपा दो बार से हार रहे प्रत्याशी सुरेश अवस्थी के नाम पर मुहर लगते ही भाजपा में अंदरखाने नाराजगी हावी रही। कानपुर के भाजपा बड़े पदाधिकारियों और नेताओं ने प्रचार में चेहरा तो खूब दिखाया, लेकिन गलियों में प्रचार करने नहीं उतरे। नसीम ने पति से ज्यादा वोटों से हराया नसीम ने पति से ज्यादा वोटों से भाजपा प्रत्याशी सुरेश अवस्थी को हराया। दरअसल, 2017 विधानसभा चुनाव में इरफान सोलंकी के सामने सुरेश अवस्थी चुनाव लड़े थे। तब यहां नेक टू नेक फाइट हुई। इरफान ने सुरेश अवस्थी को 5 हजार 826 वोटों से हराया था। अब नसीम सोलंकी ने सुरेश अवस्थी को 8 हजार 564 वोटों से हराया है। यह मार्जिन 2 हजार 738 वोट ज्यादा है। समाजवादी पार्टी को मजबूत गढ़ बन चुकी सीसामऊ विधानसभा पूरी तरह सुरक्षित हो गया है। इसे बचाए रखने में सोलंकी परिवार पूरी तरह कामयाब रहा। इरफान सोलंकी की पत्नी नसीम सोलंकी ने संघर्ष के बाद जीत दर्ज की। वहीं भाजपा को चौथी बार भी हार का सामना करना पड़ा। सीसामऊ सीट का रोचक फैक्ट राजनीतिक विश्लेषक क्या कहते हैं पढ़िए... राजनीतिक विश्लेषक व वरिष्ठ पत्रकार गौरव श्रीवास्तव कहते हैं कि पूरा चुनाव नसीम सोलंकी और सपा की प्लानिंग के नाम पर रहा। भाजपा के लिए पूरी सरकार खड़ी रही। सीएम आए रोडशो हुआ। वरिष्ठ मंत्री सुरेश खन्ना आए और आबकारी मंत्री नितिन अग्रवाल रहे। हाजी मुश्ताक सोलंकी की विरासत को आगे बढ़ाया। भले ही मतदान के दिन उनके बस्ते नहीं लगे हो, लेकिन उनके लोग वोट कराने में कामयाब रहे। मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में सपा को उतना ही वोट मिला जो जीत में मददगार हो। हिंदू बाहुल्य क्षेत्रों में अच्छा वोट मिला है। दलितों ने नसीम के आंसुओं पर सपा को वोट किया। सोलंकी परिवार के साथ भले ही सरकार ने जात्तियां की हो, लेकिन सब कुछ सहते हुए उन्होंने बड़ी जीत दर्ज की। इस प्रकार रहा है सीसामऊ का इतिहास सीसामऊ विधानसभा सीट मुस्लिम मतदाता बाहुल्य है। 1991 की राम लहर में पहली बार यहां से भाजपा के राकेश सोनकर विधायक बने थे। वे 1993 और 1996 में भी जीते। लेकिन, 2002 में कांग्रेस ने भाजपा से यह सीट झटक ली और 2007 में भी चुनाव जीती। इसके बाद 2012 में परिसीमन बदला तो यह सीट समाजवादी पार्टी के हिस्से में आ गई। यहां आर्यनगर के विधायक रहे इरफान सोलंकी जीते। इरफान ने 2017 और 2022 में भी यहां से चुनाव जीता। लेकिन, जाजमऊ में आगजनी मामले में सजा मिलने के बाद उनकी सदस्यता रद हो गई है। अभी इस सीट पर उप चुनाव की तिथि घोषित नहीं हुई है लेकिन भाजपा इस बार सपा से यह सीट छीनने की व्यूह रचना में जुटी है।

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow