31 को मनेगी दीपावली..सिर्फ डेढ़ घंटे रहेगा शुभ मुहूर्त:लखनऊ में जुटे देशभर के विद्वानों ने बताई वजह; बोले- 25 साल में नहीं दिखा ऐसा योग

अमावस्या के दिन प्रदोष काल में ही महालक्ष्मी के पूजन का विधान है। शास्त्रों में दीवाली के दिन 4 तरीके के पूजन का विधान बताया गया है। इस बार प्रदोष काल की शुरुआत गुरुवार से हो रही है। यही कारण है कि मिथिला से लेकर दक्षिण भारत तक विद्वानों ने 31 अक्टूबर को ही दीवाली पूजन की बात कही है। इस दौरान सूर्यास्त के डेढ़ घंटे से बाद से अगले डेढ़ घंटे के लिए विशेष पूजन मुहूर्त होगा। इस दौरान महालक्ष्मी के पूजन से विशेष कृपा मिलेगी। ऐसा विशेषज्ञों का मत है। कैंपस@लखनऊ सीरीज के 30वें ऐपिसोड में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के निदेशक प्रो.सर्वानंद झा और ज्योतिष विभाग के प्रोफेसर डॉ. मदन मोहन पाठक से खास बातचीत...। प्रो.सर्वानंद झा कहते हैं कि दीवाली के दिन 4 तरह के पूजा होती है। पितृपक्ष के पूजन और विसर्जन के बाद उल्का भ्रमण के द्वारा मार्ग प्रशस्त किया जाता है। पितरों के पित्रलोक जाने के बाद प्रदोष काल लगते ही लक्ष्मी पूजन की शुरुआत होती है। प्रदोष काल को लेकर विद्वानों में अलग-अलग मत है, लेकिन प्रदोष काल में ही लक्ष्मी पूजन का विधान है। इसके बाद मध्य रात्रि में महाकाली के पूजन का विधान है। फिर दरिद्रा को हटाने का विधान है। ये सभी 4 कर्म अमावस्या के दिन होते है। उस दिन शाम को साढ़े 3 से 4 बजे के बीच सभी पंचांगों में अमावस्या का आरंभ होता। जो दूसरे दिन तक चलता है। 31 अक्टूबर की रात में ये सारे कर्म किए जा सकते हैं। इस लिहाज से दीवाली पूजन का मुहूर्त 31 अक्टूबर को ही है। इसी दिन दीवाली मनाई जानी चाहिए। प्रो.सर्वानंद कहते हैं ये समझना होगा कि पूजा से कभी कोई असुविधा नहीं होती है। हमेशा इससे लाभ ही मिलता है। यदि कोई इसी पूर्वाग्रह में है कि शास्त्र सम्मत होने के बावजूद उसे 31 की जगह 1 नवंबर को दीवाली पूजन करना है तो ये उसकी स्वतंत्रता है। 2025 में फिर 2 दिन होगी अमावस्या ज्योतिष विभाग के प्रोफेसर डॉ.मदन मोहन पाठक कहते हैं- 'मेरा मानना है कि सूर्यास्त से पहले यदि अमावस्या शुरू हुई है। अगले दिन सूर्यास्त से पहले खत्म हो रही है। ऐसे में पूरी रात दीवाली पूजन का विधान है।' 25 साल में नहीं दिखा ऐसा योग प्रो.मदन पाठक कहते है कि पिछले 25 साल से वो श्रीजगन्नाथ पंचांग के संपादन कर रहा हूं। इन 25 साल में अब तक कोई ऐसा अवसर नहीं आया जब 2 दिन प्रदोष काल में काल में अमावस्या हो। पर अगले साल यानी 2025 में भी कुछ ऐसा ही योग बन रहा है कि तो इस बार से यही सीख मिलती है कि पहले ही दिन अमावस्या के साथ दीवाली मनाई जाए।

Oct 30, 2024 - 07:40
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31 को मनेगी दीपावली..सिर्फ डेढ़ घंटे रहेगा शुभ मुहूर्त:लखनऊ में जुटे देशभर के विद्वानों ने बताई वजह; बोले- 25 साल में नहीं दिखा ऐसा योग
अमावस्या के दिन प्रदोष काल में ही महालक्ष्मी के पूजन का विधान है। शास्त्रों में दीवाली के दिन 4 तरीके के पूजन का विधान बताया गया है। इस बार प्रदोष काल की शुरुआत गुरुवार से हो रही है। यही कारण है कि मिथिला से लेकर दक्षिण भारत तक विद्वानों ने 31 अक्टूबर को ही दीवाली पूजन की बात कही है। इस दौरान सूर्यास्त के डेढ़ घंटे से बाद से अगले डेढ़ घंटे के लिए विशेष पूजन मुहूर्त होगा। इस दौरान महालक्ष्मी के पूजन से विशेष कृपा मिलेगी। ऐसा विशेषज्ञों का मत है। कैंपस@लखनऊ सीरीज के 30वें ऐपिसोड में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के निदेशक प्रो.सर्वानंद झा और ज्योतिष विभाग के प्रोफेसर डॉ. मदन मोहन पाठक से खास बातचीत...। प्रो.सर्वानंद झा कहते हैं कि दीवाली के दिन 4 तरह के पूजा होती है। पितृपक्ष के पूजन और विसर्जन के बाद उल्का भ्रमण के द्वारा मार्ग प्रशस्त किया जाता है। पितरों के पित्रलोक जाने के बाद प्रदोष काल लगते ही लक्ष्मी पूजन की शुरुआत होती है। प्रदोष काल को लेकर विद्वानों में अलग-अलग मत है, लेकिन प्रदोष काल में ही लक्ष्मी पूजन का विधान है। इसके बाद मध्य रात्रि में महाकाली के पूजन का विधान है। फिर दरिद्रा को हटाने का विधान है। ये सभी 4 कर्म अमावस्या के दिन होते है। उस दिन शाम को साढ़े 3 से 4 बजे के बीच सभी पंचांगों में अमावस्या का आरंभ होता। जो दूसरे दिन तक चलता है। 31 अक्टूबर की रात में ये सारे कर्म किए जा सकते हैं। इस लिहाज से दीवाली पूजन का मुहूर्त 31 अक्टूबर को ही है। इसी दिन दीवाली मनाई जानी चाहिए। प्रो.सर्वानंद कहते हैं ये समझना होगा कि पूजा से कभी कोई असुविधा नहीं होती है। हमेशा इससे लाभ ही मिलता है। यदि कोई इसी पूर्वाग्रह में है कि शास्त्र सम्मत होने के बावजूद उसे 31 की जगह 1 नवंबर को दीवाली पूजन करना है तो ये उसकी स्वतंत्रता है। 2025 में फिर 2 दिन होगी अमावस्या ज्योतिष विभाग के प्रोफेसर डॉ.मदन मोहन पाठक कहते हैं- 'मेरा मानना है कि सूर्यास्त से पहले यदि अमावस्या शुरू हुई है। अगले दिन सूर्यास्त से पहले खत्म हो रही है। ऐसे में पूरी रात दीवाली पूजन का विधान है।' 25 साल में नहीं दिखा ऐसा योग प्रो.मदन पाठक कहते है कि पिछले 25 साल से वो श्रीजगन्नाथ पंचांग के संपादन कर रहा हूं। इन 25 साल में अब तक कोई ऐसा अवसर नहीं आया जब 2 दिन प्रदोष काल में काल में अमावस्या हो। पर अगले साल यानी 2025 में भी कुछ ऐसा ही योग बन रहा है कि तो इस बार से यही सीख मिलती है कि पहले ही दिन अमावस्या के साथ दीवाली मनाई जाए।

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