uttarakhand breaking: गायक पवन सेमवाल के खिलाफ मुकदमा, दिल्ली से लाया गया देहरादून, पूछताछ के बाद नोटिस देकर छोड़ा
देहरादून। धामी सरकार के खिलाफ गाए गाने के बाद लोकगायक पवन सेमवाल एक बार सरकार के निशाने पर हैं। एक महिला की शिकायत पर देहरादून के पटेलनगर थाने में सेमवाल के खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है। पुलिस ने पवन सेमवाल को पूछताछ के लिए दिल्ली के कल्याणपुरी थाने से हिरासत में …

Uttarakhand Breaking: लोक गायक पवन सेमवाल के खिलाफ मुकदमा, दिल्ली से लाया गया देहरादून, पूछताछ के बाद नोटिस देकर छोड़ा
देहरादून। धामी सरकार के खिलाफ गाए गए गाने के चलते लोकगायक पवन सेमवाल एक बार फिर राजनीति के केंद्र में आ गए हैं। एक महिला की शिकायत पर देहरादून के पटेलनगर थाने में सेमवाल के खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है। पुलिस ने पवन सेमवाल को दिल्ली के कल्याणपुरी थाने से हिरासत में लेकर देहरादून लाया, जहां पूछताछ के बाद उन्हें नोटिस देकर छोड़ दिया गया। यह मामला न केवल मनोरंजन उद्योग में चर्चित हुआ है, बल्कि इसे राजनीतिक तूल भी मिल रहा है। इस स्थिति ने पवन सेमवाल के समर्थकों और विरोधियों के बीच सोशल मीडिया पर तर्क-वितर्क का माहौल बना दिया है।
क्या है पूरा मामला?
जानकारी के अनुसार, 19 जुलाई को पवन सेमवाल द्वारा एक यूट्यूब चैनल पर अपनी फेसबुक आईडी से एक गीत दोबारा प्रसारित किया गया, जिसमें उत्तराखंड सरकार की नीतियों के खिलाफ टिप्पणियां की गई हैं। इस गाने में बेटियों के खिलाफ बढ़ते बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों का भी जिक्र किया गया है। इस गीत को पहले विवाद के बाद हटा दिया गया था, लेकिन दोबारा पोस्ट करने पर एक महिला ने पटेलनगर कोतवाली में तहरीर दी। अब इस मामले में आई पीसी की धाराओं 196, 353(1)(b), और 79 के तहत मुकदमा संख्या 369/25 दर्ज किया गया है।
पुलिस कार्रवाई
मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस टीम ने पवन सेमवाल को दिल्ली के कल्याणपुरी थाने में नियमानुसार बुलाया। पूछताछ के दौरान उन्होंने अपने रुख का स्पष्ट रूप में बचाव किया। अंततः कहा जा रहा है कि उनकी बातों से ना केवल पुलिस को संतुष्टि मिली, बल्कि उन्हें BNSS की धारा 35(a) के तहत नोटिस तामील कराकर थाने से छोड़ दिया गया। साथ ही, उन्हें सुझाव दिया गया है कि वे भविष्य में किसी भी जांच में सहयोग करें।
सामाजिक प्रतिक्रियाएँ
यह मामला सोशल मीडिया पर भी सुर्खियाँ बटोरने में सफल रहा है। पवन सेमवाल के समर्थक उन्हें इस मामले में सहायता देने के लिए खड़े हो गए हैं, जबकि उनके विरोधियों ने इस अच्छे अवसर का लाभ उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कुछ लोग इसे स्वविवेक की कमी बताकर उन पर सवाल उठाते हैं, जबकि कुछ अन्य इसे उनकी कला की अभिव्यक्ति बता रहे हैं।
निष्कर्ष
पवन सेमवाल का यह मामला न केवल स्थानीय स्तर पर, बल्कि राज्य सरकार की छवि पर भी सवाल उठाता है। यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि सरकार की नीतियां और कला की स्वतंत्रता के बीच कितना मुश्किल संतुलन है। वर्तमान में, सबकी निगाहें पवन सेमवाल के भविष्य और इस मामले की जांच पर टिकी हुई हैं। निश्चित रूप से, आगे क्या होने वाला है, यह तो देखने वाली बात होगी।
इसके अलावा, इस तरह की घटनाओं को देखकर यह कहा जा सकता है कि कला और राजनीति के संबंध में कोई भी मुद्दा कभी छोटा नहीं होता। अगर पवन सेमवाल अपने विचारों को व्यक्त करने का हक रखते हैं, तो क्या यह सरकार का काम नहीं है कि वह अपने आलोचकों की आवाजों को भी सुने? इस पर विचार करने की आवश्यकता है।
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