कांगड़ा की पौंग झील में 65 लाख मछली बीज:एक साल में हुआ 2.32 लाख Kg का उत्पादन, मत्स्य विभाग ने कमाए 4.72 करोड़

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित महाराणा प्रताप सागर (पौंग झील) में 2024-25 के लिए मछली उत्पादन बढ़ाने की दिशा में बड़ा कदम उठाया गया है। मत्स्य विभाग के निदेशक विवेक चंदेल ने बताया कि इस वर्ष झील में 65 लाख मछली का बीज संग्रहित किया गया है। इन बीजों का आकार 70 मिमी से अधिक है। इसके तहत प्रमुख प्रजातियों जैसे कतला, रोहू, मोरी और ग्रास कार्प को शामिल किया गया। इनमें कतला के 30 लाख, रोहू के 20 लाख, मोरी के 5 लाख और ग्रास कार्प के 10 लाख बीज झील में डाले गए हैं। बीज संग्रहण का कार्य पौंग झील के विभिन्न स्थानों जैसे सिहाल, मझार, डाडासीबा और जंबल में किया गया। इस दौरान विभागीय पर्यवेक्षक, स्थानीय मछुआरे, मत्स्य सहकारी सभा के सदस्य, जनप्रतिनिधि और अन्य गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति रही। मछली उत्पादन और मछुआरों की आय पौंग जलाशय में वर्ष 2024-25 में 15 नवंबर तक कुल 232440 किलोग्राम मछली का उत्पादन हुआ, जिसकी बाजार कीमत 4 करोड़ 72 लाख 68 हजार 388 आंकी गई है। यह जलाशय देश में अपनी तरह का एकमात्र ऐसा स्थान है जहां मछुआरों को उनकी मछली के सबसे अधिक दाम मिलते हैं। इस वर्ष नंदपुर मत्स्य सहकारी सभा ने मछली की कीमत 311 प्रति किलो प्राप्त की, जो अब तक की सबसे अधिक कीमत है। संरक्षण की अपील पौंग झील के सहायक निदेशक संदीप कुमार ने मछुआरों से अपील की कि वे झील में डाले गए मछली बीज का संरक्षण करें। यह मछली आपूर्ति को बनाए रखने में मदद करेगा और भविष्य में उनकी आय को और बढ़ाएगा। विभाग का मानना है कि मछली बीज संग्रहण और उसका संरक्षण, मछुआरों और झील के पारिस्थितिकी तंत्र दोनों के लिए फायदेमंद होगा। महाराणा प्रताप सागर में मत्स्य बीज डाले जाने की यह प्रक्रिया झील के संसाधनों को सतत उपयोग और मछुआरों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए एक महत्वपूर्ण पहल है। विश्वप्रसिद्ध है यहां की मछलियां पौंग झील (महाराणा प्रताप सागर) की कतला, रोहू, और ग्रास कार्प जैसी मछलियां विश्व प्रसिद्ध हैं। इन प्रजातियों की खासियत उनका स्वाद, पोषण मूल्य और उच्च गुणवत्ता है, जो इन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में अत्यधिक मांग वाली मछलियां बनाती हैं।विशेष रूप से कतला और रोहू भारतीय उपमहाद्वीप की पारंपरिक मछली प्रजातियां हैं, जिन्हें झील में प्रचुर मात्रा में पाला जाता है। पौंग झील का स्वच्छ और अनुकूल पर्यावरण इन मछलियों की गुणवत्ता को और बढ़ाता है, जिससे यह जलाशय मत्स्य पालन के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त कर चुका है।

Dec 1, 2024 - 15:10
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कांगड़ा की पौंग झील में 65 लाख मछली बीज:एक साल में हुआ 2.32 लाख Kg का उत्पादन, मत्स्य विभाग ने कमाए 4.72 करोड़
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित महाराणा प्रताप सागर (पौंग झील) में 2024-25 के लिए मछली उत्पादन बढ़ाने की दिशा में बड़ा कदम उठाया गया है। मत्स्य विभाग के निदेशक विवेक चंदेल ने बताया कि इस वर्ष झील में 65 लाख मछली का बीज संग्रहित किया गया है। इन बीजों का आकार 70 मिमी से अधिक है। इसके तहत प्रमुख प्रजातियों जैसे कतला, रोहू, मोरी और ग्रास कार्प को शामिल किया गया। इनमें कतला के 30 लाख, रोहू के 20 लाख, मोरी के 5 लाख और ग्रास कार्प के 10 लाख बीज झील में डाले गए हैं। बीज संग्रहण का कार्य पौंग झील के विभिन्न स्थानों जैसे सिहाल, मझार, डाडासीबा और जंबल में किया गया। इस दौरान विभागीय पर्यवेक्षक, स्थानीय मछुआरे, मत्स्य सहकारी सभा के सदस्य, जनप्रतिनिधि और अन्य गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति रही। मछली उत्पादन और मछुआरों की आय पौंग जलाशय में वर्ष 2024-25 में 15 नवंबर तक कुल 232440 किलोग्राम मछली का उत्पादन हुआ, जिसकी बाजार कीमत 4 करोड़ 72 लाख 68 हजार 388 आंकी गई है। यह जलाशय देश में अपनी तरह का एकमात्र ऐसा स्थान है जहां मछुआरों को उनकी मछली के सबसे अधिक दाम मिलते हैं। इस वर्ष नंदपुर मत्स्य सहकारी सभा ने मछली की कीमत 311 प्रति किलो प्राप्त की, जो अब तक की सबसे अधिक कीमत है। संरक्षण की अपील पौंग झील के सहायक निदेशक संदीप कुमार ने मछुआरों से अपील की कि वे झील में डाले गए मछली बीज का संरक्षण करें। यह मछली आपूर्ति को बनाए रखने में मदद करेगा और भविष्य में उनकी आय को और बढ़ाएगा। विभाग का मानना है कि मछली बीज संग्रहण और उसका संरक्षण, मछुआरों और झील के पारिस्थितिकी तंत्र दोनों के लिए फायदेमंद होगा। महाराणा प्रताप सागर में मत्स्य बीज डाले जाने की यह प्रक्रिया झील के संसाधनों को सतत उपयोग और मछुआरों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए एक महत्वपूर्ण पहल है। विश्वप्रसिद्ध है यहां की मछलियां पौंग झील (महाराणा प्रताप सागर) की कतला, रोहू, और ग्रास कार्प जैसी मछलियां विश्व प्रसिद्ध हैं। इन प्रजातियों की खासियत उनका स्वाद, पोषण मूल्य और उच्च गुणवत्ता है, जो इन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में अत्यधिक मांग वाली मछलियां बनाती हैं।विशेष रूप से कतला और रोहू भारतीय उपमहाद्वीप की पारंपरिक मछली प्रजातियां हैं, जिन्हें झील में प्रचुर मात्रा में पाला जाता है। पौंग झील का स्वच्छ और अनुकूल पर्यावरण इन मछलियों की गुणवत्ता को और बढ़ाता है, जिससे यह जलाशय मत्स्य पालन के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त कर चुका है।

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