जगतगुरु रामभद्राचार्य ने किया दीपदान:बोले- भगवान श्रीराम जब लंका विजय से लौट रहे थे, तब चित्रकूट आए थे

चित्रकूट में दीपावली की रात तुलसी पीठाधीश्वर जगतगुरु रामभद्राचार्य ने भगवान कामदगिरि की पंचकोसी परिक्रमा की। कामदगिरि पर्वत पर दीपदान किया। इस मौके पर उन्होंने दीपावली के महत्व के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि जब भगवान श्रीराम लंका विजय के बाद अयोध्या लौट रहे थे, तब दीपावली के दिन वे चित्रकूट आए थे। जगतगुरु ने बताया कि उस समय अमावस्या की रात थी और चारों ओर अंधेरा था। तब माता सीता ने आदेश दिया कि पूरे चित्रकूट को दीपों से रोशन किया जाए। उसी दिन से दीपावली मनाने की परंपरा शुरू हुई। दीप जलाकर भगवान कामदगिरि से अपनी इच्छाएं मांगते हैं चित्रकूट की दीपावली का खास महत्व है, क्योंकि यहां भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण ने मिलकर दीपावली मनाई थी। हर साल देश और विदेश से लोग यहां दीपदान करने आते हैं। चित्रकूट में यह परंपरा 5 दिन तक चलती है, जिसमें श्रद्धालु अलग-अलग जगहों पर दीप जलाकर भगवान कामदगिरि से अपनी इच्छाएं मांगते हैं। मान्यता है कि अमावस्या के दिन भगवान चित्रकूट आते हैं और भक्तों के दीपदान से यह जगह भक्ति और आस्था से भर जाती है। दीपावली का यह पर्व आस्था और एकता का प्रतीक है। जो श्रद्धालुओं के दिलों में एक खास स्थान रखता है। इस अवसर पर भक्तों की भीड़ से चित्रकूट और भी जगमगा उठा। दीपों की रोशनी से क्षेत्र दिव्य और आनंदमय हो गया।

Nov 1, 2024 - 11:25
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जगतगुरु रामभद्राचार्य ने किया दीपदान:बोले- भगवान श्रीराम जब लंका विजय से लौट रहे थे, तब चित्रकूट आए थे
चित्रकूट में दीपावली की रात तुलसी पीठाधीश्वर जगतगुरु रामभद्राचार्य ने भगवान कामदगिरि की पंचकोसी परिक्रमा की। कामदगिरि पर्वत पर दीपदान किया। इस मौके पर उन्होंने दीपावली के महत्व के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि जब भगवान श्रीराम लंका विजय के बाद अयोध्या लौट रहे थे, तब दीपावली के दिन वे चित्रकूट आए थे। जगतगुरु ने बताया कि उस समय अमावस्या की रात थी और चारों ओर अंधेरा था। तब माता सीता ने आदेश दिया कि पूरे चित्रकूट को दीपों से रोशन किया जाए। उसी दिन से दीपावली मनाने की परंपरा शुरू हुई। दीप जलाकर भगवान कामदगिरि से अपनी इच्छाएं मांगते हैं चित्रकूट की दीपावली का खास महत्व है, क्योंकि यहां भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण ने मिलकर दीपावली मनाई थी। हर साल देश और विदेश से लोग यहां दीपदान करने आते हैं। चित्रकूट में यह परंपरा 5 दिन तक चलती है, जिसमें श्रद्धालु अलग-अलग जगहों पर दीप जलाकर भगवान कामदगिरि से अपनी इच्छाएं मांगते हैं। मान्यता है कि अमावस्या के दिन भगवान चित्रकूट आते हैं और भक्तों के दीपदान से यह जगह भक्ति और आस्था से भर जाती है। दीपावली का यह पर्व आस्था और एकता का प्रतीक है। जो श्रद्धालुओं के दिलों में एक खास स्थान रखता है। इस अवसर पर भक्तों की भीड़ से चित्रकूट और भी जगमगा उठा। दीपों की रोशनी से क्षेत्र दिव्य और आनंदमय हो गया।

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