भाजपा के गढ़ में भ्रष्टाचार का पुल:7 विधायक और सांसद भाजपा के; फिर भी जनता बरेली की जनता परेशान

भ्रष्टाचार की नीव पर खड़े हुए अधूरे पुल की वजह से तीन महिलाओं का सुहाग उजड़ गया, छोटे छोटे बच्चे अनाथ हो गए, मां-बाप के बुढ़ापे की लाठी चली गई, तीन परिवारों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। इस निकम्मे सिस्टम की वजह से रोजाना सैकड़ों लोग जान जोखिम में डालकर रामगंगा नदी पार करते है। लेकिन न तो इन नेताओं के कान पर जूं रेंगता है और न ही सरकारी मशीनरी पर। करोड़ों रूपए की लागत से सात साल में बनकर तैयार हुआ पुल महज कुछ दिन ही चल पाया और बाढ़ में वह गया। बाढ़ में पुल बहने के बावजूद जीरो टॉलरेंस की बात करने वाली योगी सरकार ने सेतु निगम, लोक निर्माण विभाग, जिला प्रशासन के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की। ताज्जुब की बात ये है की बेशर्म अधिकारियों ने तो मॉडल स्टडी के लिए 30 लाख रूपए का बजट और शासन को भेज दिया। आईआईटी रूढकी द्वारा स्टडी कराने का प्रस्ताव भ्रष्ट अधिकारियों ने शासन को भेजा है। जबकि ये काम पुल बनने से पहले होना चाहिए था। हादसे में 3 युवकों की गई जान दरअसल 24 नवम्बर को गुड़गांव से अमित , अजीत और नितिन कार से बरेली के फरीदपुर आ रहे थे। अजीत और नितिन भाई थे, और अपने चचेरे भाई की बेटी की शादी में शामिल होने आ रहे थे। 24 नवंबर को ही फरीदपुर में शादी थी। लेकिन शादी वाले दिन ही सुबह फोन पहुंचा कि जिस कार से तीनों लोग आ रहे थे वो टूटे हुए पुल से रामगंगा नदी में करीब 50 फिट की गहराई में गिर गई है और कार में सवार तीनों लोगों की मौत हो गई है। सोचिए जिस घर में शादी का माहौल हो, वहां खुशियां ही खुशियां हो और वहां खबर पहुंचे कि जिस बेटी की शादी है उसके दो चाचा भ्रष्टाचार के पुल से गिरकर काल के गाल में समा गए। उस परिवार पर क्या बीत रही होगी। लेकिन इन नेताओं पर कोई असर नहीं पड़ता कोई मरता है तो मरने दो। कुछ महीने में ही बाढ़ में वह गया पुल जिस पुल की हम बात कर रहे है वो बरेली और बदायू बॉर्डर पर है। दातागंज से फरीदपुर जाने के लिए रामगंगा नदी पर ये पुल 2016 में अखिलेश सरकार में स्वीकृत हुआ था। 2017 में सरकार बदल गई और सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बन गए। 2017 में काम शुरू हुआ और 2023 में बनकर तैयार हुआ। और 2023 जुलाई ने पुल की अप्रोच रोड और पुल का काफी हिस्सा बाढ़ में बह गया। एक साल से अधिक समय हो गया लेकिन इस पुल पर न तो अफसरों का ध्यान गया और न ही नेताओं का। नतीजा ये हुआ कि 3 लोगों की जान चली गई। अफसरों और नेताओं का नकारापन एक साल से अधिक समय से पुल टूटा हुआ है। उसके बावजूद गूगल मैप ने उस रास्ते को सही दिखाया। लोक निर्माण विभाग और सेतु निगम ने कोई बैरिकेडिंग नहीं की। डीएम,कमिश्नर किसी का भी ध्यान इस ओर नहीं गया। सब कुंभकर्णी नींद में सोते रहे। अगर उस पुल का रास्ता गूगल मैप सही नहीं दिखाता, अधिकारी वहां बैरिकेडिंग करते। तो ये हादसा नहीं होता। अब जब तीन जाने चली गई तब जाकर ये सभी अफसर कुंभकर्णी नींद से जागे और अब पुल पर कई जगह दीवार बनवा दी गई है। बड़े बड़े पत्थर लगा दिए गए है। चेतावनी बोर्ड भी लगा दिए गए है। गूगल मैप की लोकेशन भी बंद करवा दी गई है। दोषी अफसरों के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज करवा दिया गया है। मृतक के परिजनों को नहीं मिली कोई आर्थिक मदद इस निकम्मे और बेशर्म सिस्टम की वजह से जिन तीन लोगों की जान गई है वे सभी 30 से 40 साल की उम्र के थे। सभी को शादी को भी ज्यादा समय नहीं हुआ था। नितिन के तो एक महीने पहले ही बेटा हुआ था। बेटा तो अपने पापा को अभी पहचानता भी नहीं था। आर्थिक तंगी की वजह से नितिन गाजियाबाद में टैक्सी चलाता था। अजीत सिक्योरिटी एजेंसी में काम करता था और अमित सिक्योरिटी एजेंसी चलाता था। इससे आप अंदाजा लगा सकते है कि अपने परिवार को पालने के लिए ये लोग अपने बीबी बच्चों और परिवार से दूर 400 किलोमीटर रह रहे थे। अब जब घर में कोई कमाने वाला नहीं रहा तो ऐसे में ये पहाड़ जैसी जिंदगी इन सभी के परिवार वाले कैसे गुजारेंगे। इस ओर अभी तक किसी का ध्यान नहीं गया है। अगर सरकार द्वारा इन सबके परिवारों की आर्थिक मदद हो जाती तो शायद इनके जख्मों पर ये मरहम का काम करता। बरेली में 4 इंजन वाली भाजपा सरकार, लेकिन जनता निराश वर्तमान में उत्तर प्रदेश प्रदेश में डबल इंजन की सरकार है लेकिन बरेली में ये चार इंजनों वाली सरकार है। यहां जिला पंचायत से लेकर नगर निगम में भी भाजपा की सरकार है। जिस बरेली में 7 विधायक भाजपा के है। एक सांसद, जिला पंचायत अध्यक्ष, दो एमएलसी सब भाजपा के ही है। जनता ने भाजपा को भरपूर सहयोग दिया है। हर जगह कमल खिला हुआ है। लेकिन जनता के इतने प्यार के बावजूद इन नेताओं को जनता के सुख दुख से कोई मतलब नहीं है। अब ये सभी 5 साल बाद जब चुनाव होगा तब वोट मांगते नजर आएंगे। अब तो ये नेता जल्दी फोन भी नहीं उठाते है। फिलहाल इस सोए हुए सिस्टम को जगाने का काम दैनिक भास्कर हमेशा करता रहेगा। हम हमेशा आपकी आवाज को उठाते रहेंगे। सरकारें कोई भी हो लेकिन हम अपना पत्रकारिता का धर्म निभाते रहेंगे।

Nov 29, 2024 - 22:05
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भाजपा के गढ़ में भ्रष्टाचार का पुल:7 विधायक और सांसद भाजपा के; फिर भी जनता बरेली की जनता परेशान
भ्रष्टाचार की नीव पर खड़े हुए अधूरे पुल की वजह से तीन महिलाओं का सुहाग उजड़ गया, छोटे छोटे बच्चे अनाथ हो गए, मां-बाप के बुढ़ापे की लाठी चली गई, तीन परिवारों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। इस निकम्मे सिस्टम की वजह से रोजाना सैकड़ों लोग जान जोखिम में डालकर रामगंगा नदी पार करते है। लेकिन न तो इन नेताओं के कान पर जूं रेंगता है और न ही सरकारी मशीनरी पर। करोड़ों रूपए की लागत से सात साल में बनकर तैयार हुआ पुल महज कुछ दिन ही चल पाया और बाढ़ में वह गया। बाढ़ में पुल बहने के बावजूद जीरो टॉलरेंस की बात करने वाली योगी सरकार ने सेतु निगम, लोक निर्माण विभाग, जिला प्रशासन के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की। ताज्जुब की बात ये है की बेशर्म अधिकारियों ने तो मॉडल स्टडी के लिए 30 लाख रूपए का बजट और शासन को भेज दिया। आईआईटी रूढकी द्वारा स्टडी कराने का प्रस्ताव भ्रष्ट अधिकारियों ने शासन को भेजा है। जबकि ये काम पुल बनने से पहले होना चाहिए था। हादसे में 3 युवकों की गई जान दरअसल 24 नवम्बर को गुड़गांव से अमित , अजीत और नितिन कार से बरेली के फरीदपुर आ रहे थे। अजीत और नितिन भाई थे, और अपने चचेरे भाई की बेटी की शादी में शामिल होने आ रहे थे। 24 नवंबर को ही फरीदपुर में शादी थी। लेकिन शादी वाले दिन ही सुबह फोन पहुंचा कि जिस कार से तीनों लोग आ रहे थे वो टूटे हुए पुल से रामगंगा नदी में करीब 50 फिट की गहराई में गिर गई है और कार में सवार तीनों लोगों की मौत हो गई है। सोचिए जिस घर में शादी का माहौल हो, वहां खुशियां ही खुशियां हो और वहां खबर पहुंचे कि जिस बेटी की शादी है उसके दो चाचा भ्रष्टाचार के पुल से गिरकर काल के गाल में समा गए। उस परिवार पर क्या बीत रही होगी। लेकिन इन नेताओं पर कोई असर नहीं पड़ता कोई मरता है तो मरने दो। कुछ महीने में ही बाढ़ में वह गया पुल जिस पुल की हम बात कर रहे है वो बरेली और बदायू बॉर्डर पर है। दातागंज से फरीदपुर जाने के लिए रामगंगा नदी पर ये पुल 2016 में अखिलेश सरकार में स्वीकृत हुआ था। 2017 में सरकार बदल गई और सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बन गए। 2017 में काम शुरू हुआ और 2023 में बनकर तैयार हुआ। और 2023 जुलाई ने पुल की अप्रोच रोड और पुल का काफी हिस्सा बाढ़ में बह गया। एक साल से अधिक समय हो गया लेकिन इस पुल पर न तो अफसरों का ध्यान गया और न ही नेताओं का। नतीजा ये हुआ कि 3 लोगों की जान चली गई। अफसरों और नेताओं का नकारापन एक साल से अधिक समय से पुल टूटा हुआ है। उसके बावजूद गूगल मैप ने उस रास्ते को सही दिखाया। लोक निर्माण विभाग और सेतु निगम ने कोई बैरिकेडिंग नहीं की। डीएम,कमिश्नर किसी का भी ध्यान इस ओर नहीं गया। सब कुंभकर्णी नींद में सोते रहे। अगर उस पुल का रास्ता गूगल मैप सही नहीं दिखाता, अधिकारी वहां बैरिकेडिंग करते। तो ये हादसा नहीं होता। अब जब तीन जाने चली गई तब जाकर ये सभी अफसर कुंभकर्णी नींद से जागे और अब पुल पर कई जगह दीवार बनवा दी गई है। बड़े बड़े पत्थर लगा दिए गए है। चेतावनी बोर्ड भी लगा दिए गए है। गूगल मैप की लोकेशन भी बंद करवा दी गई है। दोषी अफसरों के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज करवा दिया गया है। मृतक के परिजनों को नहीं मिली कोई आर्थिक मदद इस निकम्मे और बेशर्म सिस्टम की वजह से जिन तीन लोगों की जान गई है वे सभी 30 से 40 साल की उम्र के थे। सभी को शादी को भी ज्यादा समय नहीं हुआ था। नितिन के तो एक महीने पहले ही बेटा हुआ था। बेटा तो अपने पापा को अभी पहचानता भी नहीं था। आर्थिक तंगी की वजह से नितिन गाजियाबाद में टैक्सी चलाता था। अजीत सिक्योरिटी एजेंसी में काम करता था और अमित सिक्योरिटी एजेंसी चलाता था। इससे आप अंदाजा लगा सकते है कि अपने परिवार को पालने के लिए ये लोग अपने बीबी बच्चों और परिवार से दूर 400 किलोमीटर रह रहे थे। अब जब घर में कोई कमाने वाला नहीं रहा तो ऐसे में ये पहाड़ जैसी जिंदगी इन सभी के परिवार वाले कैसे गुजारेंगे। इस ओर अभी तक किसी का ध्यान नहीं गया है। अगर सरकार द्वारा इन सबके परिवारों की आर्थिक मदद हो जाती तो शायद इनके जख्मों पर ये मरहम का काम करता। बरेली में 4 इंजन वाली भाजपा सरकार, लेकिन जनता निराश वर्तमान में उत्तर प्रदेश प्रदेश में डबल इंजन की सरकार है लेकिन बरेली में ये चार इंजनों वाली सरकार है। यहां जिला पंचायत से लेकर नगर निगम में भी भाजपा की सरकार है। जिस बरेली में 7 विधायक भाजपा के है। एक सांसद, जिला पंचायत अध्यक्ष, दो एमएलसी सब भाजपा के ही है। जनता ने भाजपा को भरपूर सहयोग दिया है। हर जगह कमल खिला हुआ है। लेकिन जनता के इतने प्यार के बावजूद इन नेताओं को जनता के सुख दुख से कोई मतलब नहीं है। अब ये सभी 5 साल बाद जब चुनाव होगा तब वोट मांगते नजर आएंगे। अब तो ये नेता जल्दी फोन भी नहीं उठाते है। फिलहाल इस सोए हुए सिस्टम को जगाने का काम दैनिक भास्कर हमेशा करता रहेगा। हम हमेशा आपकी आवाज को उठाते रहेंगे। सरकारें कोई भी हो लेकिन हम अपना पत्रकारिता का धर्म निभाते रहेंगे।

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