योगी का बंटेंगे-कटेंगे चलेगा या अखिलेश का जुड़ेंगे-जीतेंगे:यूपी उपचुनाव का सुबह 9 बजे आएगा पहला रुझान, दोपहर तक साफ होगी तस्वीर

यूपी उपचुनाव में 9 सीटों पर हुई वोटिंग की आज काउंटिंग होगी। इन सीटों पर 20 नवंबर को 49.3% मतदान हुआ था। 90 कैंडिडेट के लिए वोटिंग की गई। इनमें 11 महिला कैंडिडेट हैं। आज सबसे पहले कानपुर की सीसामऊ सीट का रिजल्ट आएगा, क्योंकि यहां सिर्फ 20 राउंड काउंटिंग होनी है। अन्य सभी सीटों पर 32 राउंड काउंटिंग होगी। सुबह 9 बजे तक पहला रुझान सामने आ सकता है। पहले बैलेट की काउंटिंग होगी। इसके बाद ईवीएम और वीवी-पैट खोले जाएंगे। उपचुनाव में 3,718 पोलिंग बूथ पर मतदान हुआ था। इसके लिए 5,151 ईवीएम, 5,171 बैलेट यूनिट और 5,524 वीवीपैट का इस्तेमाल हुआ। मतगणना स्थल पर थ्री-लेयर सिक्योरिटी है। योगी का बंटेंगे-कटेंगे चलेगा या अखिलेश का जुड़ेंगे-जीतेंगे उपचुनाव के नतीजे यूपी में विधानसभा चुनाव 2027 की राजनीतिक दिशा तय करेंगे। सीएम योगी आदित्यनाथ के बंटेंगे तो कटेंगे और एक रहेंगे तो नेक रहेंगे का नारा कितना हिट हुआ? अखिलेश यादव का जुड़ेंगे तो जीतेंगे के साथ PDA फॉर्मूला किस तरह काम करता दिखा? रिजल्ट इन सवालों के जवाब देगा। पॉलिटिकल एक्सपर्ट मानते हैं, इस चुनाव से सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। लेकिन, लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा ने खुद को कितना रिकवर किया, यह देखने वाली बात होगी। अगर परिणाम सपा के पक्ष में आते हैं, तो यह माना जाएगा कि सत्तापक्ष की तमाम कोशिशों के बावजूद सपा का PDA फॉर्मूला सफल रहा। उपचुनाव में मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा के बीच तय माना जा रहा है। जिन 9 सीटों पर उपचुनाव हुए, उनमें से 4 सीटें करहल, सीसामऊ, कटेहरी और कुंदरकी सपा के पास थीं। 5 पर NDA ने जीत दर्ज की थी। इनमें अलीगढ़ की खैर, गाजियाबाद और फूलपुर सीट भाजपा जीती थी। मझवां निषाद पार्टी और मीरापुर रालोद ने जीती थी। भाजपा ने 8 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे और मुजफ्फरनगर की मीरापुर सीट रालोद को दी। सपा ने सभी सीटों पर अपने कैंडिडेट उतारे। सबसे पहले एक नजर वोटिंग प्रतिशत पर एक नजर यूपी उपचुनाव के टॉप-5 चेहरों पर, जो चर्चा में रहे... अब बात 9 सीटों की... यूपी की जिन 9 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं, उनमें से 8 सीटें तो ऐसी हैं, जिनके विधायक लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए। एक सीट सीसामऊ सपा के पास थी। यहां विधायक इरफान सोलंकी को जाजमऊ अग्निकांड मामले में 7 साल की सजा सुनाई गई। इसके बाद नियमानुसार उनकी विधायकी चली गई। इसलिए यहां उपचुनाव हुए। 1. पहली बार उतरीं नसीम सोलंकी, पहली जीत की तलाश में सुरेश अवस्थी सीसामऊ सीट पर भाजपा ने अंतिम बार 1996 में जीत दर्ज की थी। तब भाजपा के राकेश सोनकर यहां से चुनाव जीते। परिसीमन के बाद यह सीट मुस्लिम बहुल हो गई। पिता हाजी मुस्ताक सोलंकी की राजनीतिक विरासत संभाल रहे इरफान सोलंकी आर्य नगर सीट से सीसामऊ शिफ्ट हो गए। 2012 में उन्होंने सीसामऊ से जीत दर्ज की। फिर 2017 और 2022 का चुनाव जीत हैट्रिक लगाई। सोलंकी परिवार की मजबूत पकड़ के चलते सपा ने यहां इरफान सोलंकी की पत्नी को प्रत्याशी बनाया। भाजपा ने 2017 में जीत के बेहद करीब पहुंचे सुरेश अवस्थी को टिकट दिया। 45% मुस्लिम बहुल सीट पर भाजपा ने एड़ी-चोटी का जोर लगाया। यहां कुल 5 प्रत्याशी मैदान में उतरे। मेन फाइट नसीम सोलंकी और सुरेश अवस्थी के बीच है। 2. अखिलेश यादव की सीट पर फूफा VS भतीजे की लड़ाई मैनपुरी की करहल सीट पर भाजपा ने धर्मेंद्र यादव के बहनोई अनुजेश यादव को टिकट देकर मुकाबला रोमांचक बना दिया। 2022 चुनाव में इस सीट पर अखिलेश यादव चुनाव लड़े और जीते थे। इससे पहले 2002 में भाजपा ने आखिरी बार यहां जीत दर्ज की। भाजपा ने 22 साल पुराना यादव VS यादव फॉर्मूला अपनाया है। यह सीट मुलायम सिंह यादव की कर्मभूमि है। यहां भाजपा सुशासन और विकास के मुद्दे के साथ उतरी। वहीं तेज प्रताप के लिए खुद डिंपल यादव, अखिलेश यादव-शिवपाल यादव इस सीट पर लगातार कैंपेनिंग करने पहुंचे। यहां 7 प्रत्याशियों के लिए वोटिंग हुई। 3. बर्क के गढ़ कुंदरकी में कांटे की टक्कर में कौन मारेगा बाजी? मुरादाबाद की कुंदरकी सीट पर भाजपा को सिर्फ एक बार 1993 में जीत मिली। 31 साल बाद भाजपा जीत की तलाश में है। यह सीट सपा के दिग्गज नेता शफीकुर्रहमान बर्क की कर्मभूमि रही। उनके पोते जियाउर रहमान बर्क यहां 2022 में 1.25 लाख के बड़े मार्जिन से चुनाव जीते। उनके सामने तब मोहम्मद रिजवान ने बसपा के टिकट से चुनाव लड़ा और हार गए। इस बार सपा ने उन्हें उतारा, क्योंकि रिजवान तीन बार यहां से चुनाव जीत चुके थे। 60% मुस्लिम बहुल वोटर वाली इस सीट पर भाजपा ने दो बार चुनाव हार चुके रामवीर पर फिर से भरोसा जताया। रामवीर लोगों के बीच गए। उनसे ढाई साल मांगे। जालीदार टोपी पहन मुस्लिम वोटर में अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश की। मुस्लिम कम्युनिटी में एक बार उन्हें भी मौका देने पर चर्चा हुई। 4. प्रयागराज की फूलपुर सीट पर भाजपा लगा पाएगी हैट्रिक? 2022 चुनाव में प्रयागराज की फूलपुर सीट पर कांटे का मुकाबला हुआ था। इस सीट पर मुज्तबा सिद्दीकी जीत के बेहद करीब पहुंचकर चुनाव हार गए थे। लोकसभा चुनाव में फूलपुर विधानसभा सीट से सपा को 17 हजार वोटों की लीड मिली, हालांकि अन्य क्षेत्रों से मौजूदा विधायक प्रवीण पटेल बढ़त लेकर जीत गए। यही वजह रही कि सपा ने मुज्तबा सिद्दीकी को यहां फिर से टिकट दिया। भाजपा ने उनके सामने पूर्व सांसद केसरी देवी पटेल के बेटे दीपक पटेल को उतारा। यहां कुल 12 कैंडिडेट के लिए वोटिंग हुई। मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा के बीच तय माना जा रहा है। 5. मिर्जापुर की मझवां में सुचिस्मिता मौर्य VS ज्योति बिंद 2022 चुनाव में इस सीट पर भाजपा गठबंधन के साथ निषाद पार्टी के विनोद कुमार बिंद ने जीत दर्ज की। लोकसभा चुनाव में विनोद कुमार बिंद ने भदोही से जीत दर्ज की और सांसद बन गए। भाजपा ने इस सीट पर 2017 की विधायक रहीं सुचिस्मिता मौर्य को उतारा। वह पूर्व विधायक रामचंद्र मौर्य की बहू हैं। सपा ने पूर्व विधायक डॉ. रमेश बिंद की बेटी डॉ. ज्योति बिंद को टिकट दिया। यहां बसपा ने दीपक त

Nov 23, 2024 - 05:40
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योगी का बंटेंगे-कटेंगे चलेगा या अखिलेश का जुड़ेंगे-जीतेंगे:यूपी उपचुनाव का सुबह 9 बजे आएगा पहला रुझान, दोपहर तक साफ होगी तस्वीर
यूपी उपचुनाव में 9 सीटों पर हुई वोटिंग की आज काउंटिंग होगी। इन सीटों पर 20 नवंबर को 49.3% मतदान हुआ था। 90 कैंडिडेट के लिए वोटिंग की गई। इनमें 11 महिला कैंडिडेट हैं। आज सबसे पहले कानपुर की सीसामऊ सीट का रिजल्ट आएगा, क्योंकि यहां सिर्फ 20 राउंड काउंटिंग होनी है। अन्य सभी सीटों पर 32 राउंड काउंटिंग होगी। सुबह 9 बजे तक पहला रुझान सामने आ सकता है। पहले बैलेट की काउंटिंग होगी। इसके बाद ईवीएम और वीवी-पैट खोले जाएंगे। उपचुनाव में 3,718 पोलिंग बूथ पर मतदान हुआ था। इसके लिए 5,151 ईवीएम, 5,171 बैलेट यूनिट और 5,524 वीवीपैट का इस्तेमाल हुआ। मतगणना स्थल पर थ्री-लेयर सिक्योरिटी है। योगी का बंटेंगे-कटेंगे चलेगा या अखिलेश का जुड़ेंगे-जीतेंगे उपचुनाव के नतीजे यूपी में विधानसभा चुनाव 2027 की राजनीतिक दिशा तय करेंगे। सीएम योगी आदित्यनाथ के बंटेंगे तो कटेंगे और एक रहेंगे तो नेक रहेंगे का नारा कितना हिट हुआ? अखिलेश यादव का जुड़ेंगे तो जीतेंगे के साथ PDA फॉर्मूला किस तरह काम करता दिखा? रिजल्ट इन सवालों के जवाब देगा। पॉलिटिकल एक्सपर्ट मानते हैं, इस चुनाव से सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। लेकिन, लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा ने खुद को कितना रिकवर किया, यह देखने वाली बात होगी। अगर परिणाम सपा के पक्ष में आते हैं, तो यह माना जाएगा कि सत्तापक्ष की तमाम कोशिशों के बावजूद सपा का PDA फॉर्मूला सफल रहा। उपचुनाव में मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा के बीच तय माना जा रहा है। जिन 9 सीटों पर उपचुनाव हुए, उनमें से 4 सीटें करहल, सीसामऊ, कटेहरी और कुंदरकी सपा के पास थीं। 5 पर NDA ने जीत दर्ज की थी। इनमें अलीगढ़ की खैर, गाजियाबाद और फूलपुर सीट भाजपा जीती थी। मझवां निषाद पार्टी और मीरापुर रालोद ने जीती थी। भाजपा ने 8 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे और मुजफ्फरनगर की मीरापुर सीट रालोद को दी। सपा ने सभी सीटों पर अपने कैंडिडेट उतारे। सबसे पहले एक नजर वोटिंग प्रतिशत पर एक नजर यूपी उपचुनाव के टॉप-5 चेहरों पर, जो चर्चा में रहे... अब बात 9 सीटों की... यूपी की जिन 9 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं, उनमें से 8 सीटें तो ऐसी हैं, जिनके विधायक लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए। एक सीट सीसामऊ सपा के पास थी। यहां विधायक इरफान सोलंकी को जाजमऊ अग्निकांड मामले में 7 साल की सजा सुनाई गई। इसके बाद नियमानुसार उनकी विधायकी चली गई। इसलिए यहां उपचुनाव हुए। 1. पहली बार उतरीं नसीम सोलंकी, पहली जीत की तलाश में सुरेश अवस्थी सीसामऊ सीट पर भाजपा ने अंतिम बार 1996 में जीत दर्ज की थी। तब भाजपा के राकेश सोनकर यहां से चुनाव जीते। परिसीमन के बाद यह सीट मुस्लिम बहुल हो गई। पिता हाजी मुस्ताक सोलंकी की राजनीतिक विरासत संभाल रहे इरफान सोलंकी आर्य नगर सीट से सीसामऊ शिफ्ट हो गए। 2012 में उन्होंने सीसामऊ से जीत दर्ज की। फिर 2017 और 2022 का चुनाव जीत हैट्रिक लगाई। सोलंकी परिवार की मजबूत पकड़ के चलते सपा ने यहां इरफान सोलंकी की पत्नी को प्रत्याशी बनाया। भाजपा ने 2017 में जीत के बेहद करीब पहुंचे सुरेश अवस्थी को टिकट दिया। 45% मुस्लिम बहुल सीट पर भाजपा ने एड़ी-चोटी का जोर लगाया। यहां कुल 5 प्रत्याशी मैदान में उतरे। मेन फाइट नसीम सोलंकी और सुरेश अवस्थी के बीच है। 2. अखिलेश यादव की सीट पर फूफा VS भतीजे की लड़ाई मैनपुरी की करहल सीट पर भाजपा ने धर्मेंद्र यादव के बहनोई अनुजेश यादव को टिकट देकर मुकाबला रोमांचक बना दिया। 2022 चुनाव में इस सीट पर अखिलेश यादव चुनाव लड़े और जीते थे। इससे पहले 2002 में भाजपा ने आखिरी बार यहां जीत दर्ज की। भाजपा ने 22 साल पुराना यादव VS यादव फॉर्मूला अपनाया है। यह सीट मुलायम सिंह यादव की कर्मभूमि है। यहां भाजपा सुशासन और विकास के मुद्दे के साथ उतरी। वहीं तेज प्रताप के लिए खुद डिंपल यादव, अखिलेश यादव-शिवपाल यादव इस सीट पर लगातार कैंपेनिंग करने पहुंचे। यहां 7 प्रत्याशियों के लिए वोटिंग हुई। 3. बर्क के गढ़ कुंदरकी में कांटे की टक्कर में कौन मारेगा बाजी? मुरादाबाद की कुंदरकी सीट पर भाजपा को सिर्फ एक बार 1993 में जीत मिली। 31 साल बाद भाजपा जीत की तलाश में है। यह सीट सपा के दिग्गज नेता शफीकुर्रहमान बर्क की कर्मभूमि रही। उनके पोते जियाउर रहमान बर्क यहां 2022 में 1.25 लाख के बड़े मार्जिन से चुनाव जीते। उनके सामने तब मोहम्मद रिजवान ने बसपा के टिकट से चुनाव लड़ा और हार गए। इस बार सपा ने उन्हें उतारा, क्योंकि रिजवान तीन बार यहां से चुनाव जीत चुके थे। 60% मुस्लिम बहुल वोटर वाली इस सीट पर भाजपा ने दो बार चुनाव हार चुके रामवीर पर फिर से भरोसा जताया। रामवीर लोगों के बीच गए। उनसे ढाई साल मांगे। जालीदार टोपी पहन मुस्लिम वोटर में अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश की। मुस्लिम कम्युनिटी में एक बार उन्हें भी मौका देने पर चर्चा हुई। 4. प्रयागराज की फूलपुर सीट पर भाजपा लगा पाएगी हैट्रिक? 2022 चुनाव में प्रयागराज की फूलपुर सीट पर कांटे का मुकाबला हुआ था। इस सीट पर मुज्तबा सिद्दीकी जीत के बेहद करीब पहुंचकर चुनाव हार गए थे। लोकसभा चुनाव में फूलपुर विधानसभा सीट से सपा को 17 हजार वोटों की लीड मिली, हालांकि अन्य क्षेत्रों से मौजूदा विधायक प्रवीण पटेल बढ़त लेकर जीत गए। यही वजह रही कि सपा ने मुज्तबा सिद्दीकी को यहां फिर से टिकट दिया। भाजपा ने उनके सामने पूर्व सांसद केसरी देवी पटेल के बेटे दीपक पटेल को उतारा। यहां कुल 12 कैंडिडेट के लिए वोटिंग हुई। मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा के बीच तय माना जा रहा है। 5. मिर्जापुर की मझवां में सुचिस्मिता मौर्य VS ज्योति बिंद 2022 चुनाव में इस सीट पर भाजपा गठबंधन के साथ निषाद पार्टी के विनोद कुमार बिंद ने जीत दर्ज की। लोकसभा चुनाव में विनोद कुमार बिंद ने भदोही से जीत दर्ज की और सांसद बन गए। भाजपा ने इस सीट पर 2017 की विधायक रहीं सुचिस्मिता मौर्य को उतारा। वह पूर्व विधायक रामचंद्र मौर्य की बहू हैं। सपा ने पूर्व विधायक डॉ. रमेश बिंद की बेटी डॉ. ज्योति बिंद को टिकट दिया। यहां बसपा ने दीपक तिवारी को उतार ब्राह्मण-दलित-मुस्लिम समीकरण साधने की कोशिश की। 13 कैंडिडेट के लिए यहां वोटिंग हुई। 6. गाजियाबाद में भाजपा लगा पाएगी हैट्रिक या पहली जीत दर्ज कराएगी सपा? उपचुनाव में सबसे कम 33.3% वोटिंग गाजियाबाद की सदर सीट पर हुई। यहां भाजपा ने नगर महामंत्री संजीव शर्मा को उतारा। वहीं, सपा ने सिंह राज जाटव को कैंडिडेट बनाया। सदर सीट पर सबसे ज्यादा 14 कैंडिडेट के लिए वोटिंग हुई। मेन फाइट भाजपा और सपा के बीच मानी जा रही है। ऐसा अनुमान जताया जा रहा है कि यहां जीत-हार के मार्जिन में ज्यादा बड़ा अंतर नहीं होगा क्योंकि यहां पोलिंग पर्सेंट बेहद कम रहा। इस सीट पर 2012 में बसपा ने जीत दर्ज की। इसके बाद 2017 और 2022 में भाजपा ने जीती। इस सीट पर पार्टी के गठन के बाद सपा कभी नहीं जीती। वह पहली बार फाइट में है। 7. अलीगढ़ की खैर सीट पर राजनीतिक विरासत की जंग जाट लैंड कही जाने वाली अलीगढ़ की खैर सीट पर भाजपा को रालोद से गठबंधन के साथ चुनावी मैदान में उतरी। यहां हाथरस के पूर्व सांसद राजवीर दिलेर के बेटे सुरेंद्र दिलेर को प्रत्याशी बनाया। यह उनका पहला चुनाव है। सपा ने यहां 2022 में बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुकीं चारू कैन को अपना उम्मीदवार बनाया। 5 कैंडिडेट के लिए यहां 61.9% वोटिंग हुई। सुरेंद्र दिलेर और चारू कैन के बीच मुकाबला माना जा रहा है। दोनों राजनीतिक विरासत के लिए चुनावी मैदान में उतरे हैं। 8. अंबेडकरनगर की कटेहरी सीट पर सांसद लालजी वर्मा की प्रतिष्ठा दांव पर अंबेडकरनगर की कटेहरी सीट सपा के पास थी। 2022 में लालजी वर्मा ने 93 हजार वोटों से जीत दर्ज की। इसके बाद अंबेडकरनगर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा और सांसद बन गए। उपचुनाव के ऐलान के साथ ही उन्होंने अपनी पत्नी शोभावती वर्मा को चुनावी मैदान में उतारा। भाजपा ने इस सीट से 1996 से लगातार तीन बार बसपा के टिकट पर विधायक रह चुके धर्मराज निषाद को चुनावी मैदान में उतारा। इस सीट पर भाजपा ने अंतिम बार 1991 में जीत दर्ज कराई। 33 साल का सूखा खत्म करने के लिए खुद सीएम योगी ने इस सीट की कमान संभाली। यहां 11 कैंडिडेट के लिए वोटिंग हुई। मेन मुकाबला भाजपा और सपा के बीच है। 9. मीरापुर में मिथलेश या कादिर राणा की बहू? मीरापुर में भाजपा गठबंधन के साथ रालोद ने 2009 में उपचुनाव जीतीं मिथलेश पाल को चुनावी मैदान में उतारा। सपा से कादिर राणा की बहू सुम्बुल राणा चुनावी मैदान में उतरीं। वहीं, बसपा, आजाद समाज पार्टी और ओवैसी की AIMIM पार्टी ने सपा के लिए मुश्किलें खड़ी की हैं। मेन मुकाबला रालोद और सपा के बीच माना जा रहा है। यहां सपा अंतिम बार 1996 में चुनाव जीती थी। इस सीट पर हुई कम वोटिंग रिजल्ट को दिलचस्प बना सकती है। यहां कुल 11 प्रत्याशियों के लिए वोटिंग हुई।

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