शहर के जनप्रतिनिधि क्यों नहीं लेते शिक्षा का हाल:आगरा के दैनिक भास्कर ऑफिस में हुई परिचर्चा, शिक्षा में सुधार पर रखे विचार
शिक्षा में प्राइमरी, सेकेंडरी और हायर लेवल तक सुधार की जरूरत है। जितना एजुकेशन सिस्टम को बदलने की बात होती है, उतना ही बदलाव घरों में पेरेंट्स को भी लाना होगा। बच्चों को स्कूल भेजने का मतलब यह नहीं कि सारी जिम्मेदारी स्कूलों की है। नैतिकता का पाठ घर से ही पढ़ाना होगा। जरूरत है सिलेबस में इमोशनल इंटेलीजेंस को जोड़ने की। युवाओं को अपनी जिम्मेदारी का एहसास करवाना भी शिक्षा भी है। यह सभी बातें आगरा के शिक्षा जगत से जुड़े टीचर्स, प्रिंसिपल, डायरेक्टर्स ने कही। दैनिक भास्कर ऑफिस में हुई परिचर्चा में शिक्षा जगत से जुड़े लोगों ने खुलकर अपनी बातें,सुझाव और दिक्कतों को साझा किया। जैसा कि दैनिक भास्कर करता आ रहा है कि सोमवार को नेगेटिव न्यूज नहीं निकाली जाती है। ऐसा ही एक दिन शिक्षा के लिए भी रखना होगा। यूनिवर्सिटी से जुड़े इंस्टीट्यूट्स, कॉलेजों और विभागों में होने वाले कामों की खबरों पर फोकस करना भी जरूरी है। रिसर्च, नए अपडेट्स के अलावा छात्रों में होने वाले नए बदलावों की जानकारी भी दें, जिससे आने वाली जनरेशन के साथ ही हम शिक्षक भी जानकारी कर सकें।- प्रो. ब्रजेश रावत, सेठ पदमचंद जैन इंस्टीट्यूट, डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय हमें देखना होगा कि युवा मिसलीड तो नहीं हो रहे हैं। आईटी का इस्तेमाल अगर आज की जरूरत है तो उस पर नजर रखना हमारी जिम्मेदारी है। हमें ही युवाओं को बताना होगा कि इसके लाभ और नुकसान क्या हैं। चैलेंजेस हमारे सामने आ रहे हैं, उन चैलेंजेस का सामना करने के साथ ही अपने छात्रों के साथ एक हेल्दी वातावरण बनाना भी हमारा ही काम है। हमें उन्हें बताना होगा कि आईटी के इस्तेमाल की सीमा क्या है, इसके बाद क्या नुकसान हो सकते हैं- प्रो. मोहम्मद अरशद, डीन ऑफ स्टूडेंट वेलफेयर, डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आरटीई जितना जरूरी और कारगर है, उतना ही लोग इसका गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। हर स्कूल में 25 प्रतिशत कोटा आरटीई के लिए होता है। इसमें 90 प्रतिशत फेक एडमिशन होते हैं। लोग खुद को गरीब दिखाकर बच्चे का एडमिशन करवाते हैं। इन फेक एडमिशन की वजह से जरूरतमंद बच्चों के एडमिशन नहीं हो पाते हैं। जरूरत है इस तरफ सभी का ध्यान खींचने की। आरटीई का लाभ गलत लोगों को नहीं मिलना चाहिए। जिन बच्चों के माता-पिता 5-5 लाख का इनकम टैक्स भरते हैं, उनके बच्चे फ्री में एजुकेशन लेते हैं- केएस राना, डायरेक्टर, ऑल सेंट्स स्कूल आगरा के युवा पलायन कर रहे हैं। विश्वविद्यालय के अलावा कॉलेजों में सीटें नहीं भर पा रही हैं। यही नहीं स्कूल लेवल पर भी बच्चे बाहर पढ़ने जा रहे हैं। इसे रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाने होंगे। विश्वविद्यालय का इतिहास बहुत सुनहरा रहा है। ह में उस इतिहास की चमक को खत्म नहीं होने देना है। सेल्फ फाइनेंस कॉलेजों की अंधी दौड़ में विश्वविद्यालय स्तर से सहयोग नहीं मिल पा रहा है। बच्चों को नर्सरी से लेकर हायर एजुकेशन तक आगरा में वर्ल्ड क्लास लेवल की मिले, इसकी चिंता करनी होगी- डॉ. गिरधर शर्मा, डायरेक्टर, सेंट एंड्रूज स्कूल पूरे देश में एक कोर्स, एक सिलेबस होना चाहिए। सीबीएसई, आईसीएसई, यूपी बोर्ड या अन्य स्टेट बोर्ड को खत्म कर देना चाहिए। हर राज्य अपनी भाषा में बच्चों को पढ़ाए, लेकिन कोर्स एक हो। अगर यह हो गया तो कोचिंग और ट्यूशन की जरूरत ही खत्म हो जाएगी। बच्चों के कोर्स में इमोशनल इंटेलीजेंस और फाइनेंशियल लिटरेसी को शामिल किया जाए। बच्चों को हारना भी सिखाया जाए, सिर्फ जीतना जरूरी नहीं है। बच्चे अपनी हार को भी स्वीकार करें, और पूरी मेहनत से दोबारा मेहनत करें- प्रद्युम्न चतुर्वेदी, डायरेक्टर, गायत्री पब्लिक स्कूल जो भी मु्द्दा उठाएं, उसे आखिरी तक लेकर जाएं। सबसे पहले इस मुद्दे पर बात होनी चाहिए कि कोचिंग क्लासेज स्कूल टाइमिंग में होनी चाहिए या नहीं। अगर 11वीं और 12वीं के बच्चों को स्कूल की जरूरत नहीं है तो स्कूलों में इन दोनों क्लासेज को खत्म कर दिया जाए। बच्चे 10वीं के बाद डमी स्कूल में एडमिशन लेते हैं। यह खतरनाक है। साथ ही आरटीई पर भी सख्ती होनी चाहिए। आरटीई के तहत होने वाले एडमिशन के पेमेंट स्कूलों को समय से नहीं होते हैं। उन बच्चों पर कोई नियम लागू नहीं होता है, जो गलत है- सुशील गुप्ता, डायरेक्टर, प्रिल्यूड पब्लिक स्कूल शिक्षा को दोष देना गलत है। आजकल के युवा ही जिम्मेदार नहीं हैं। क्लास लेने नहीं आते हैं। कहते हैं कि हमें मैसेज नहीं मिला। अगर समय से कॉलेज आएंगे तो सारी सूचनाएं मिलेंगी, मैसेज पर निर्भरता खत्म हो जाएगी। एनईपी खामियों पर कोई बात नहीं करता है। बच्चे की ड्राफ्टिंग की जरूरत है। पर्सनेल्टी डवलपमेंट के लिए बहुत सारे कदम उठाने होंगे। सेकेंड्री लेवल पर बच्चों को कॉलेज के लिए तैयार करना होगा। 12वीं के बाद बच्चे नौकरी करना चाहते हैं। इसमें पेरेंट्स की भूमिका जरूरी हो जाती है- डॉ. पूनम तिवारी, आरबीएस कॉलेज आगरा शहर में जितने जनप्रतिनिधि हैं, उतने पूरे प्रदेश में नहीं हैं। विधायक, सांसद से लेकर मनोनीत सांसद तक हैं। कुछ तो विश्वविद्यालय और कॉलेजों में टीचर भी हैं। इसके बावजूज क्या उन्हें यहां की दिक्कतें नहीं दिखती हैं। पिछले कई सालों से कोई विधायक, सांसद कॉलेज, स्कूल या विश्वविद्यालय में छात्रों की समस्याओं को लेकर नहीं पहुंचा है। यहां तक की उच्च शिक्षा मंत्री भी शहर के ही हैं। जनप्रतिनिधियों से सवाल करना होगा कि रिजल्ट, मार्कशीट या डिग्री नहीं मिलने पर परेशान होने वाले सैंकड़ों छात्रों की जिम्मेदारी उनकी नहीं है- डॉ. संजय मिश्रा, महामंत्री, डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय शिक्षक संघ किसी भी घटना के दो पक्ष होते हैं। जरूरत है दोनों पक्षों को सही तरह से लिखने की। इल्जाम लगाया जाता है कि कॉलेजों में क्लासेज नहीं लगतीं। छात्रों से सवाल करें कि वो क्लासेज लेने क्यों नहीं आते हैं। छात्र पूरा दिन कॉलेज में मोबाइल लेकर बैठे रहते हैं। यहां तक की क्लास में प्रोफेसरों के लेक्चर को रिकॉर्ड करने में ध्यान लगाते हैं, नोट्स नहीं बनाते हैं। सरकार ने छा
शिक्षा में प्राइमरी, सेकेंडरी और हायर लेवल तक सुधार की जरूरत है। जितना एजुकेशन सिस्टम को बदलने की बात होती है, उतना ही बदलाव घरों में पेरेंट्स को भी लाना होगा। बच्चों को स्कूल भेजने का मतलब यह नहीं कि सारी जिम्मेदारी स्कूलों की है। नैतिकता का पाठ घर से ही पढ़ाना होगा। जरूरत है सिलेबस में इमोशनल इंटेलीजेंस को जोड़ने की। युवाओं को अपनी जिम्मेदारी का एहसास करवाना भी शिक्षा भी है। यह सभी बातें आगरा के शिक्षा जगत से जुड़े टीचर्स, प्रिंसिपल, डायरेक्टर्स ने कही। दैनिक भास्कर ऑफिस में हुई परिचर्चा में शिक्षा जगत से जुड़े लोगों ने खुलकर अपनी बातें,सुझाव और दिक्कतों को साझा किया। जैसा कि दैनिक भास्कर करता आ रहा है कि सोमवार को नेगेटिव न्यूज नहीं निकाली जाती है। ऐसा ही एक दिन शिक्षा के लिए भी रखना होगा। यूनिवर्सिटी से जुड़े इंस्टीट्यूट्स, कॉलेजों और विभागों में होने वाले कामों की खबरों पर फोकस करना भी जरूरी है। रिसर्च, नए अपडेट्स के अलावा छात्रों में होने वाले नए बदलावों की जानकारी भी दें, जिससे आने वाली जनरेशन के साथ ही हम शिक्षक भी जानकारी कर सकें।- प्रो. ब्रजेश रावत, सेठ पदमचंद जैन इंस्टीट्यूट, डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय हमें देखना होगा कि युवा मिसलीड तो नहीं हो रहे हैं। आईटी का इस्तेमाल अगर आज की जरूरत है तो उस पर नजर रखना हमारी जिम्मेदारी है। हमें ही युवाओं को बताना होगा कि इसके लाभ और नुकसान क्या हैं। चैलेंजेस हमारे सामने आ रहे हैं, उन चैलेंजेस का सामना करने के साथ ही अपने छात्रों के साथ एक हेल्दी वातावरण बनाना भी हमारा ही काम है। हमें उन्हें बताना होगा कि आईटी के इस्तेमाल की सीमा क्या है, इसके बाद क्या नुकसान हो सकते हैं- प्रो. मोहम्मद अरशद, डीन ऑफ स्टूडेंट वेलफेयर, डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आरटीई जितना जरूरी और कारगर है, उतना ही लोग इसका गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। हर स्कूल में 25 प्रतिशत कोटा आरटीई के लिए होता है। इसमें 90 प्रतिशत फेक एडमिशन होते हैं। लोग खुद को गरीब दिखाकर बच्चे का एडमिशन करवाते हैं। इन फेक एडमिशन की वजह से जरूरतमंद बच्चों के एडमिशन नहीं हो पाते हैं। जरूरत है इस तरफ सभी का ध्यान खींचने की। आरटीई का लाभ गलत लोगों को नहीं मिलना चाहिए। जिन बच्चों के माता-पिता 5-5 लाख का इनकम टैक्स भरते हैं, उनके बच्चे फ्री में एजुकेशन लेते हैं- केएस राना, डायरेक्टर, ऑल सेंट्स स्कूल आगरा के युवा पलायन कर रहे हैं। विश्वविद्यालय के अलावा कॉलेजों में सीटें नहीं भर पा रही हैं। यही नहीं स्कूल लेवल पर भी बच्चे बाहर पढ़ने जा रहे हैं। इसे रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाने होंगे। विश्वविद्यालय का इतिहास बहुत सुनहरा रहा है। ह में उस इतिहास की चमक को खत्म नहीं होने देना है। सेल्फ फाइनेंस कॉलेजों की अंधी दौड़ में विश्वविद्यालय स्तर से सहयोग नहीं मिल पा रहा है। बच्चों को नर्सरी से लेकर हायर एजुकेशन तक आगरा में वर्ल्ड क्लास लेवल की मिले, इसकी चिंता करनी होगी- डॉ. गिरधर शर्मा, डायरेक्टर, सेंट एंड्रूज स्कूल पूरे देश में एक कोर्स, एक सिलेबस होना चाहिए। सीबीएसई, आईसीएसई, यूपी बोर्ड या अन्य स्टेट बोर्ड को खत्म कर देना चाहिए। हर राज्य अपनी भाषा में बच्चों को पढ़ाए, लेकिन कोर्स एक हो। अगर यह हो गया तो कोचिंग और ट्यूशन की जरूरत ही खत्म हो जाएगी। बच्चों के कोर्स में इमोशनल इंटेलीजेंस और फाइनेंशियल लिटरेसी को शामिल किया जाए। बच्चों को हारना भी सिखाया जाए, सिर्फ जीतना जरूरी नहीं है। बच्चे अपनी हार को भी स्वीकार करें, और पूरी मेहनत से दोबारा मेहनत करें- प्रद्युम्न चतुर्वेदी, डायरेक्टर, गायत्री पब्लिक स्कूल जो भी मु्द्दा उठाएं, उसे आखिरी तक लेकर जाएं। सबसे पहले इस मुद्दे पर बात होनी चाहिए कि कोचिंग क्लासेज स्कूल टाइमिंग में होनी चाहिए या नहीं। अगर 11वीं और 12वीं के बच्चों को स्कूल की जरूरत नहीं है तो स्कूलों में इन दोनों क्लासेज को खत्म कर दिया जाए। बच्चे 10वीं के बाद डमी स्कूल में एडमिशन लेते हैं। यह खतरनाक है। साथ ही आरटीई पर भी सख्ती होनी चाहिए। आरटीई के तहत होने वाले एडमिशन के पेमेंट स्कूलों को समय से नहीं होते हैं। उन बच्चों पर कोई नियम लागू नहीं होता है, जो गलत है- सुशील गुप्ता, डायरेक्टर, प्रिल्यूड पब्लिक स्कूल शिक्षा को दोष देना गलत है। आजकल के युवा ही जिम्मेदार नहीं हैं। क्लास लेने नहीं आते हैं। कहते हैं कि हमें मैसेज नहीं मिला। अगर समय से कॉलेज आएंगे तो सारी सूचनाएं मिलेंगी, मैसेज पर निर्भरता खत्म हो जाएगी। एनईपी खामियों पर कोई बात नहीं करता है। बच्चे की ड्राफ्टिंग की जरूरत है। पर्सनेल्टी डवलपमेंट के लिए बहुत सारे कदम उठाने होंगे। सेकेंड्री लेवल पर बच्चों को कॉलेज के लिए तैयार करना होगा। 12वीं के बाद बच्चे नौकरी करना चाहते हैं। इसमें पेरेंट्स की भूमिका जरूरी हो जाती है- डॉ. पूनम तिवारी, आरबीएस कॉलेज आगरा शहर में जितने जनप्रतिनिधि हैं, उतने पूरे प्रदेश में नहीं हैं। विधायक, सांसद से लेकर मनोनीत सांसद तक हैं। कुछ तो विश्वविद्यालय और कॉलेजों में टीचर भी हैं। इसके बावजूज क्या उन्हें यहां की दिक्कतें नहीं दिखती हैं। पिछले कई सालों से कोई विधायक, सांसद कॉलेज, स्कूल या विश्वविद्यालय में छात्रों की समस्याओं को लेकर नहीं पहुंचा है। यहां तक की उच्च शिक्षा मंत्री भी शहर के ही हैं। जनप्रतिनिधियों से सवाल करना होगा कि रिजल्ट, मार्कशीट या डिग्री नहीं मिलने पर परेशान होने वाले सैंकड़ों छात्रों की जिम्मेदारी उनकी नहीं है- डॉ. संजय मिश्रा, महामंत्री, डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय शिक्षक संघ किसी भी घटना के दो पक्ष होते हैं। जरूरत है दोनों पक्षों को सही तरह से लिखने की। इल्जाम लगाया जाता है कि कॉलेजों में क्लासेज नहीं लगतीं। छात्रों से सवाल करें कि वो क्लासेज लेने क्यों नहीं आते हैं। छात्र पूरा दिन कॉलेज में मोबाइल लेकर बैठे रहते हैं। यहां तक की क्लास में प्रोफेसरों के लेक्चर को रिकॉर्ड करने में ध्यान लगाते हैं, नोट्स नहीं बनाते हैं। सरकार ने छात्रों को मोबाइल और लैपटॉप बांटे हैं, लेकिन इस्तेमाल नहीं सिखाया। एक अहम मुद्दा स्कूलों में हर साल बदलने वाले सिलेबस का भी है। इस पर रोक लगाना बहुत जरूरी है- डॉ. अमित अग्रवाल, चीफ प्रोक्टर, आगरा कॉलेज एजुकेशन सिस्टम को परिवार, स्कूल और पॉलिसी मिलकर चलाते हैं। स्कूल स्ट्रक्चर मजबूत होगा तो बच्चा कॉलेज में भी मजबूत बना रहेगा। ऑल इंडिया लेवल पर बच्चों की काउंसलिंग की जरूरत है। कॉलेजों और स्कूलों में करियर काउंसलर्स होने चाहिए। वही काउंसलर्स बच्चों से बात कर उनकी पसंद के कोर्स में उनका एडमिशन कराने की सलाह दें। पेरेंट्स से लिखित में काउंसलर्स के सुझाव के बाद अनुमति ली जाए कि बच्चा जो पढ़ना चाहता है, वहीं पढ़ाएं। अपनी मर्जी उन पर थोपें नहीं- डॉ. शिव कुमार सिंह, आगरा कॉलेज मेरा सुझाव है कि सभी अधिकारियों, नेताओं और इंडस्ट्रियलस्ट के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ें। उनके वहां एडमिशन कराए जाएं। जिससे उनके सामने हकीकत आ जाए। नैतिक विकास की जरूरत है। एजुकेशन सिस्टम में मोरल एजुकेशन की जरूरत है। प्राइमरी लेवल पर ही वैदिक ज्ञान, वैदिक शिक्षा बच्चों को दी जाए, जिससे वो अपनी परंपरा, अपनी जड़ों से जुड़ें। राज्य सरकारों को शिक्षा की जिम्मेदारी देनी चाहिए।- डॉ. अशोक कुमार, आगरा कॉलेज आज के समय में बेबाक रिपोर्टिंग की जरूरत है। यर्थाथ बिल्कुल अलग है, एनईपी बिल्कुल अलग है। एनईपी में आदर्शवाद की बातें हो रही हैं, जो हकीकत से कोसों दूर है। एनईपी में बहुत दिक्कतें हैं, लेकिन कोई उस पर बात नहीं करता है। एनईपी के लिए पहले एजुकेशन सिस्टम को समझना होगा, बदलना होगा। यह रातों रात नहीं होगा। इसमें बड़े स्तर पर सुधार लाना होगा। बच्चों को इमोशनल इंटेलीजेंस की जरूरत है। जो हमारी शिक्षा का हिस्सा नहीं है- डॉ. अनुराग पालीवाल, आगरा कॉलेज