सिरमौर में बूढ़ी दिवाली की धूम:बेडोली और असकली बनकर तैयार, कल मशाल लेकर इकट्ठे होंगे लोग

सिरमौर के गिरिपार के आदिवासी क्षेत्र में आज से शुरू बूढ़ी दीवाली का पर्व पारंपरिक तरीके से धूमधाम से मनाया जा रहा है। कल सुबह मशाल के साथ लोग एक जगह एकत्रित होगे। फिर नाटी के साथ पर्व को मनाया जाएगा। नई दिवाली के ठीक एक माह बाद पूरे गिरिपार क्षेत्र मे मनाए जाने वाले इस अहम पर्व की तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी है। गृहिणियों ने इस पर्व पर परोसे जाने वाले मुख्य व्यंजन मुड़ा और शाकुली बनाने का कार्य पूरा कर लिया है। बूढ़ी दीवाली का यह त्योहार सिरमौर के गिरिपार के घणद्वार, मस्त भौज, जेल-भौज, आंज-भौज, कमरऊ, शिलाई, रोनहाट व संगड़ाह क्षेत्र के अलावा उतराखंड के जौंसार बाबर में भी मनाया जाता है। बूढ़ी दीवाली के इस त्योहार को परंपरागत तरीके से मनाने के लिए क्षेत्र के ग्रामीण कई दिन पहले से तैयारी में जुट जाते है। इन दिनों ग्रामीण अपने घरों लिपाई-पुताई करते है। बूढ़ी दीवाली का पारंपरिक व्यंजन मुड़ा है, जो कि गेंहू को उबालकर सूखाने के बाद कड़ाही में भूनकर तैयार किया जाता है। इस मूड़े के साथ अखरोट की गीरी, खील, बताशे व मुरमुरे आदि मिलाए जाते है। इस पर्व की पूर्व संध्या पर घर पर पारंपरिक शाकाहारी व्यंजन बेडोली और असकली आदि बनाई जाती है। जिसे शुद्ध घी के साथ खाया जाता है। आज रात यानी सुबह करीब 4 बजे उठकर अंधेरे में लोग घास व लकड़ी की मशालें जलाकर एक जगह में एकत्रित हो जाते है। अंधेरे में ही माला नृत्य गीत व संगीत का कार्यक्रम शुरू हो जाता है। कुछ घंटो तक टीले व धार पर लोकनृत्य व वीरगाथाएं गाकर लोग वापस अपने गांव के सांझा आंगन में आ जाते है। इसके बाद दिनभर लोक नृत्य का कार्यक्रम होता है। एक दूसरे से मिलकर दिवाली की बधाई दी जाती है। यह पर्व तीन से सात दिन तक चलता है। इस दौरान मशाल नृत्य, भियूरी और हारूल नृत्य की शानदार प्रस्तुति होती है। कई गांवों में सांस्कृतिक संध्याएं भी आयोजित होती है

Nov 30, 2024 - 12:45
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सिरमौर में बूढ़ी दिवाली की धूम:बेडोली और असकली बनकर तैयार, कल मशाल लेकर इकट्ठे होंगे लोग
सिरमौर के गिरिपार के आदिवासी क्षेत्र में आज से शुरू बूढ़ी दीवाली का पर्व पारंपरिक तरीके से धूमधाम से मनाया जा रहा है। कल सुबह मशाल के साथ लोग एक जगह एकत्रित होगे। फिर नाटी के साथ पर्व को मनाया जाएगा। नई दिवाली के ठीक एक माह बाद पूरे गिरिपार क्षेत्र मे मनाए जाने वाले इस अहम पर्व की तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी है। गृहिणियों ने इस पर्व पर परोसे जाने वाले मुख्य व्यंजन मुड़ा और शाकुली बनाने का कार्य पूरा कर लिया है। बूढ़ी दीवाली का यह त्योहार सिरमौर के गिरिपार के घणद्वार, मस्त भौज, जेल-भौज, आंज-भौज, कमरऊ, शिलाई, रोनहाट व संगड़ाह क्षेत्र के अलावा उतराखंड के जौंसार बाबर में भी मनाया जाता है। बूढ़ी दीवाली के इस त्योहार को परंपरागत तरीके से मनाने के लिए क्षेत्र के ग्रामीण कई दिन पहले से तैयारी में जुट जाते है। इन दिनों ग्रामीण अपने घरों लिपाई-पुताई करते है। बूढ़ी दीवाली का पारंपरिक व्यंजन मुड़ा है, जो कि गेंहू को उबालकर सूखाने के बाद कड़ाही में भूनकर तैयार किया जाता है। इस मूड़े के साथ अखरोट की गीरी, खील, बताशे व मुरमुरे आदि मिलाए जाते है। इस पर्व की पूर्व संध्या पर घर पर पारंपरिक शाकाहारी व्यंजन बेडोली और असकली आदि बनाई जाती है। जिसे शुद्ध घी के साथ खाया जाता है। आज रात यानी सुबह करीब 4 बजे उठकर अंधेरे में लोग घास व लकड़ी की मशालें जलाकर एक जगह में एकत्रित हो जाते है। अंधेरे में ही माला नृत्य गीत व संगीत का कार्यक्रम शुरू हो जाता है। कुछ घंटो तक टीले व धार पर लोकनृत्य व वीरगाथाएं गाकर लोग वापस अपने गांव के सांझा आंगन में आ जाते है। इसके बाद दिनभर लोक नृत्य का कार्यक्रम होता है। एक दूसरे से मिलकर दिवाली की बधाई दी जाती है। यह पर्व तीन से सात दिन तक चलता है। इस दौरान मशाल नृत्य, भियूरी और हारूल नृत्य की शानदार प्रस्तुति होती है। कई गांवों में सांस्कृतिक संध्याएं भी आयोजित होती है

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