एक हफ्ते की कोशिश, 15 km बेखौफ नहीं घूम सके:यह फिलिस्तीन या यूक्रेन नहीं, मणिपुर का जिरीबाम है; भास्कर रिपोर्टर की डायरी
'मणिपुर में जिस तरफ जाओ लोग आपको शक की नजरों से देखते हैं। ऐसा लगता है मणिपुर अब भारत में नहीं रहा, लगता है आप बिना वीजा किसी दूसरे देश में घूम रहे हैं। सड़कों पर लोगों से ज्यादा पुलिसवाले नजर आते हैं। हालात ये हैं कि सेना की वर्दी पहने लोग आते हैं, घरों को आग लगाकर लोगों को जिंदा जला देते हैं। दो साल के बच्चे को गोली मार देते हैं। कब-कहां से गोली चल जाए, इसकी गारंटी नहीं है।' मणिपुर में 7 से 17 नवंबर के बीच करीब 21 लोगों की मौत हुई है। इस बार हिंसा का हॉटस्पॉट जिरीबाम जिला है, जहां बोरोबेक्रा इलाका सबसे ज्यादा हिंसा प्रभावित है। मैं सबसे पहले 14 नवंबर असम के सिलचर से जिरीबाम पहुंचा। सिलचर से जिरीबाम करीब 48 km दूर है। जिरीबाम शहर से बोरोबेक्रा 26 km दूर है। मुझे कुल 74 km का सफर तय करना था, लेकिन मैं आगे नहीं बढ़ पा रहा था। 14 नवंबर से 21 नवंबर के दौरान मैं तीन बार जिरीबाम गया। 21 नवंबर को लेटिंगखाल तक पहुंचा, लेकिन वहां से सिर्फ 17 km दूर बोरोबेक्रा नहीं जा सका। 5 दिनों के दौरान हर बार कुछ किलोमीटर आगे बढ़ पाता, लोग कहते थे- आगे मत जाना, खतरा है। ऐसा लग रहा था जैसे मैं मणिपुर में नहीं, फिलिस्तीन या यूक्रेन में हूं। आखिरकार 10 दिन बाद 24 नवंबर को मेरे साथी रिपोर्टर देवांशु तिवारी के साथ मैं बोरोबेक्रा पहुंच सका। पढ़िए भास्कर रिपोर्टर की डायरी... पहला दिन: 14 नवंबर राहत शिविर में पीड़ित परिवारों ने सुनाई आपबीती पार्ट 1: हम सुबह करीब 8 बजे सिलचर से जिरीबाम के लिए रवाना हुए। करीब 40 मिनट के सफर के बाद मणिपुर बॉर्डर से लगे असम के जिरीघाट पहुंचे। आगे बढ़ते ही बराक नदी पर बना पुल आ गया। यह असम का छोर है। पुल के उस पार जिरीबाम शुरू हो जाता है। जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा था, ऐसा लगने लगा जैसे बिना वीजा के किसी दूसरे देश में कदम रखने जा रहे हों। जिरीबाम की तरफ से आ रहे ऑटोरिक्शा, बाइक या दूसरे वाहनों पर सवार लोग शक की नजर से देख रहे थे। जिरीबाम शहर में सन्नाटा पसरा था। अमूमन यहां के बाजार में भीड़ रहती है। असम के लोग भी जिरीबाम के बाजारों में आते हैं, लेकिन अब तस्वीर बदल गई है। हर चौक-चौराहे पर सुरक्षाबलों की सख्त तैनाती थी। सभी दुकानें बंद, इक्का-दुक्का खुली भी थीं, तो दुकानदार अजीब तरीके से घूर रहे थे। बोरोबेक्रा में 11 नवंबर को सुरक्षाबलों से मुठभेड़ में कुकी आदिवासी समूह से जुड़े हमार समुदाय के 10 कथित मिलिटेंट्स मारे गए थे। इसी दिन 6 मैतेई महिलाओं-बच्चों को अगवा कर लिया गया। हर तरफ उनकी तलाश की जा रही थी। इन दोनों घटनाओं के खिलाफ जिरीबाम के गांवों में हिंसा भड़क उठी। बड़ी संख्या में मैतेई समुदाय के लोग अपने घर छोड़कर शहर में बने राहत शिविरों में रहने आ गए थे। हम बाजार से आगे बढ़कर जिरीबाम हायर सेकेंडरी स्कूल में बने राहत शिविर पहुंचे। यहां लैसराम बारेन मेतेई (63 साल) और एम केशो मेतेई (71 साल) का परिवार मिला। 11 नवंबर को जिले के मधुपुर गांव में कथित कुकी मिलिटेंट्स ने कई घरों में आग लगा दी थी। इसमें दोनों बुजुर्गों की जिंदा जलकर मौत हो गई थी। उनके परिवार का कोई भी सदस्य मीडिया से बात करने के लिए तैयार नहीं था। काफी कोशिश के बाद लैसराम बारेन मेतेई के बेटे लैसराम विक्रम मेतेई हमसे बात करने के लिए राजी हुए। लैसराम विक्रम ने कहा, 'पिछले साल हिंसा शुरू होने के बाद पापा ने मुझे मुंबई भेज दिया था, ताकि मैं जिंदा रह सकूं। खुद गांव में रहते थे। मां और छोटा भाई इंफाल के राहत शिविर में थे। लैसराम बाबुसना मेतेई भी शिविर में था। उसके पिता एम केसो मेतेई मधुपुर में घर और जमीन की रखवाली कर रहे थे। 11 नवंबर को सेना की वर्दी पहने करीब दर्जन भर हथियारबंद लोग आए और गांव के सारे घरों में आग लगा दी। इसमें मेरे पापा और एम केशो जिंदा जलकर मर गए।' राहत शिविर में हमारी मुलाकात टी उत्तम सिंह से भी हुई। जिन 6 लोगों को अगवा किया गया था, उनमें उनकी पत्नी और आठ साल की बेटी भी शामिल थी। उत्तम ने बताया, 'मैं मेघालय के गारो हिल्स में दिहाड़ी मजदूरी करता था। पत्नी और बेटी जकुराढोर गांव में राहत शिविर में थे। साथ में मेरी सास, साली और उसके दो बच्चे भी थे। मिलिटेंट्स सभी को उठाकर ले गए।' इसके बाद हमने जकुराढोर और मधुपुर जाने का फैसला किया। जिरीबाम में कई लोकल लोगों से मदद मांगी, लेकिन सभी ने जान का खतरा बताकर साथ जाने से मना कर दिया। फिर भी आगे बढ़ा। करीब 10 से 12 km का सफर भी तय कर लिया। ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर चलते हुए हम बंगाली भाषी मुस्लिम बहुल गांव सोनापुर तक पहुंचे। बंगाली आती है, इसलिए लोगों से आगे का रास्ता और हालात पता करने के लिए कुछ देर वहां रुके। कुछ ही देर में बहुत सारे लोग जमा हो गए। लोगों ने साफ कहा, 'बिना सुरक्षाबलों के आगे जाने में खतरा है। कब, कहां से गोली चल जाए कोई गारंटी नहीं है। रास्ता भी खराब है।' लोगों की बात सुनकर आगे जाने का फैसला टालना ही ठीक लगा। वापस लौटने से पहले सोनापुर में ही जिरीबाम के JDU विधायक असहाब उद्दीन के घर पहुंचे। घर में मौजूद लोगों ने बताया कि विधायक अपने ऊपर हमले की आशंका के चलते कई दिनों से बाहर रह रहे हैं। हालांकि मणिपुर-असम सीमा पर जिरीघाट में विधायक असहाब उद्दीन मिल गए। उन्होंने बताया, 'मणिपुर के हालात बहुत खराब हैं। स्कूल-कॉलेज बंद है। दोनों गुट अपने-अपने समुदाय को बचाने में जुटा है। केंद्र और राज्य, दोनों जगह हमारी सरकार है।' 'सरकार से मेरी अपील है कि दोनों गुटों के बीच बातचीत कराई जाए। इनके बीच जो गलतफहमी है, वो दूर की जाए। मुझे अपने इलाके में जाने से किसी ने रोका नहीं है। फिर भी अपने ऊपर हमले की आशंका को देखते हुए घर नहीं जा रहा हूं।' विधायक से बातचीत के बाद हम सिलचर लौट आए। हिंसा प्रभावित इलाकों तक नहीं पहुंच सके। गांव छोड़कर आए कई लोगों से फोन पर बात की, लेकिन कोई भी वापस नहीं जाना चाहता था, लेकिन अगली सुबह फिर जिरीबाम जाने का फैसला किया। दूसरा दिन: 15 नवंबर, 2024 पुलिस ने कहा- आगे मत जाना, अधिकारियों ने फोन-
'मणिपुर में जिस तरफ जाओ लोग आपको शक की नजरों से देखते हैं। ऐसा लगता है मणिपुर अब भारत में नहीं रहा, लगता है आप बिना वीजा किसी दूसरे देश में घूम रहे हैं। सड़कों पर लोगों से ज्यादा पुलिसवाले नजर आते हैं। हालात ये हैं कि सेना की वर्दी पहने लोग आते हैं, घरों को आग लगाकर लोगों को जिंदा जला देते हैं। दो साल के बच्चे को गोली मार देते हैं। कब-कहां से गोली चल जाए, इसकी गारंटी नहीं है।' मणिपुर में 7 से 17 नवंबर के बीच करीब 21 लोगों की मौत हुई है। इस बार हिंसा का हॉटस्पॉट जिरीबाम जिला है, जहां बोरोबेक्रा इलाका सबसे ज्यादा हिंसा प्रभावित है। मैं सबसे पहले 14 नवंबर असम के सिलचर से जिरीबाम पहुंचा। सिलचर से जिरीबाम करीब 48 km दूर है। जिरीबाम शहर से बोरोबेक्रा 26 km दूर है। मुझे कुल 74 km का सफर तय करना था, लेकिन मैं आगे नहीं बढ़ पा रहा था। 14 नवंबर से 21 नवंबर के दौरान मैं तीन बार जिरीबाम गया। 21 नवंबर को लेटिंगखाल तक पहुंचा, लेकिन वहां से सिर्फ 17 km दूर बोरोबेक्रा नहीं जा सका। 5 दिनों के दौरान हर बार कुछ किलोमीटर आगे बढ़ पाता, लोग कहते थे- आगे मत जाना, खतरा है। ऐसा लग रहा था जैसे मैं मणिपुर में नहीं, फिलिस्तीन या यूक्रेन में हूं। आखिरकार 10 दिन बाद 24 नवंबर को मेरे साथी रिपोर्टर देवांशु तिवारी के साथ मैं बोरोबेक्रा पहुंच सका। पढ़िए भास्कर रिपोर्टर की डायरी... पहला दिन: 14 नवंबर राहत शिविर में पीड़ित परिवारों ने सुनाई आपबीती पार्ट 1: हम सुबह करीब 8 बजे सिलचर से जिरीबाम के लिए रवाना हुए। करीब 40 मिनट के सफर के बाद मणिपुर बॉर्डर से लगे असम के जिरीघाट पहुंचे। आगे बढ़ते ही बराक नदी पर बना पुल आ गया। यह असम का छोर है। पुल के उस पार जिरीबाम शुरू हो जाता है। जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा था, ऐसा लगने लगा जैसे बिना वीजा के किसी दूसरे देश में कदम रखने जा रहे हों। जिरीबाम की तरफ से आ रहे ऑटोरिक्शा, बाइक या दूसरे वाहनों पर सवार लोग शक की नजर से देख रहे थे। जिरीबाम शहर में सन्नाटा पसरा था। अमूमन यहां के बाजार में भीड़ रहती है। असम के लोग भी जिरीबाम के बाजारों में आते हैं, लेकिन अब तस्वीर बदल गई है। हर चौक-चौराहे पर सुरक्षाबलों की सख्त तैनाती थी। सभी दुकानें बंद, इक्का-दुक्का खुली भी थीं, तो दुकानदार अजीब तरीके से घूर रहे थे। बोरोबेक्रा में 11 नवंबर को सुरक्षाबलों से मुठभेड़ में कुकी आदिवासी समूह से जुड़े हमार समुदाय के 10 कथित मिलिटेंट्स मारे गए थे। इसी दिन 6 मैतेई महिलाओं-बच्चों को अगवा कर लिया गया। हर तरफ उनकी तलाश की जा रही थी। इन दोनों घटनाओं के खिलाफ जिरीबाम के गांवों में हिंसा भड़क उठी। बड़ी संख्या में मैतेई समुदाय के लोग अपने घर छोड़कर शहर में बने राहत शिविरों में रहने आ गए थे। हम बाजार से आगे बढ़कर जिरीबाम हायर सेकेंडरी स्कूल में बने राहत शिविर पहुंचे। यहां लैसराम बारेन मेतेई (63 साल) और एम केशो मेतेई (71 साल) का परिवार मिला। 11 नवंबर को जिले के मधुपुर गांव में कथित कुकी मिलिटेंट्स ने कई घरों में आग लगा दी थी। इसमें दोनों बुजुर्गों की जिंदा जलकर मौत हो गई थी। उनके परिवार का कोई भी सदस्य मीडिया से बात करने के लिए तैयार नहीं था। काफी कोशिश के बाद लैसराम बारेन मेतेई के बेटे लैसराम विक्रम मेतेई हमसे बात करने के लिए राजी हुए। लैसराम विक्रम ने कहा, 'पिछले साल हिंसा शुरू होने के बाद पापा ने मुझे मुंबई भेज दिया था, ताकि मैं जिंदा रह सकूं। खुद गांव में रहते थे। मां और छोटा भाई इंफाल के राहत शिविर में थे। लैसराम बाबुसना मेतेई भी शिविर में था। उसके पिता एम केसो मेतेई मधुपुर में घर और जमीन की रखवाली कर रहे थे। 11 नवंबर को सेना की वर्दी पहने करीब दर्जन भर हथियारबंद लोग आए और गांव के सारे घरों में आग लगा दी। इसमें मेरे पापा और एम केशो जिंदा जलकर मर गए।' राहत शिविर में हमारी मुलाकात टी उत्तम सिंह से भी हुई। जिन 6 लोगों को अगवा किया गया था, उनमें उनकी पत्नी और आठ साल की बेटी भी शामिल थी। उत्तम ने बताया, 'मैं मेघालय के गारो हिल्स में दिहाड़ी मजदूरी करता था। पत्नी और बेटी जकुराढोर गांव में राहत शिविर में थे। साथ में मेरी सास, साली और उसके दो बच्चे भी थे। मिलिटेंट्स सभी को उठाकर ले गए।' इसके बाद हमने जकुराढोर और मधुपुर जाने का फैसला किया। जिरीबाम में कई लोकल लोगों से मदद मांगी, लेकिन सभी ने जान का खतरा बताकर साथ जाने से मना कर दिया। फिर भी आगे बढ़ा। करीब 10 से 12 km का सफर भी तय कर लिया। ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर चलते हुए हम बंगाली भाषी मुस्लिम बहुल गांव सोनापुर तक पहुंचे। बंगाली आती है, इसलिए लोगों से आगे का रास्ता और हालात पता करने के लिए कुछ देर वहां रुके। कुछ ही देर में बहुत सारे लोग जमा हो गए। लोगों ने साफ कहा, 'बिना सुरक्षाबलों के आगे जाने में खतरा है। कब, कहां से गोली चल जाए कोई गारंटी नहीं है। रास्ता भी खराब है।' लोगों की बात सुनकर आगे जाने का फैसला टालना ही ठीक लगा। वापस लौटने से पहले सोनापुर में ही जिरीबाम के JDU विधायक असहाब उद्दीन के घर पहुंचे। घर में मौजूद लोगों ने बताया कि विधायक अपने ऊपर हमले की आशंका के चलते कई दिनों से बाहर रह रहे हैं। हालांकि मणिपुर-असम सीमा पर जिरीघाट में विधायक असहाब उद्दीन मिल गए। उन्होंने बताया, 'मणिपुर के हालात बहुत खराब हैं। स्कूल-कॉलेज बंद है। दोनों गुट अपने-अपने समुदाय को बचाने में जुटा है। केंद्र और राज्य, दोनों जगह हमारी सरकार है।' 'सरकार से मेरी अपील है कि दोनों गुटों के बीच बातचीत कराई जाए। इनके बीच जो गलतफहमी है, वो दूर की जाए। मुझे अपने इलाके में जाने से किसी ने रोका नहीं है। फिर भी अपने ऊपर हमले की आशंका को देखते हुए घर नहीं जा रहा हूं।' विधायक से बातचीत के बाद हम सिलचर लौट आए। हिंसा प्रभावित इलाकों तक नहीं पहुंच सके। गांव छोड़कर आए कई लोगों से फोन पर बात की, लेकिन कोई भी वापस नहीं जाना चाहता था, लेकिन अगली सुबह फिर जिरीबाम जाने का फैसला किया। दूसरा दिन: 15 नवंबर, 2024 पुलिस ने कहा- आगे मत जाना, अधिकारियों ने फोन-मैसेज के जवाब नहीं दिए जिरीबाम के हालात और नाजुक हो चुके थे। हम करीब 11 बजे जिरीबाम पहुंचे। इस बार हलचल पहले से भी कम थी। चप्पे-चप्पे पर पुलिस तैनात थी। एक पुलिसवाले ने हिदायत भी दी, कहा- 'शहर से आगे नहीं जाना।' हम दोबारा उसी राहत शिविर पहुंचे। वहां मैतेई समुदाय के टी रोमियों से बात हुई। उनके कई रिश्तेदार हिंसा प्रभावित इलाकों से बचकर आए हैं। बातचीत में रोमियों कुकी समुदाय और सरकार से काफी नाराज नजर दिखे। कहने लगे, 'हम दिन का 200-300 रुपए कमाने-खाने वाले लोग हैं। एक-एक रुपए जोड़कर छोटा सा घर बनाया था। सब खत्म हो गया। कुकी हमारी जमीन पर कब्जा करना चाहते हैं। केंद्र सरकार या राज्य सरकार कुछ नहीं कर रही है। हमें धन-दौलत कुछ नहीं चाहिए। बस वो शांति चाहिए, जो मणिपुर में पहले होती थी। लगता है जैसे मणिपुर को किसी की नजर लग गई है।' हमने जिरीबाम के पुलिस सुपरिंटेंडेंट रॉबिन्सन खमनम से कई बार बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया। CRPF के अधिकारी भी बात करने से बचते नजर आए। शाम के 4 बज गए थे। लोगों ने बताया कि सूरज ढलते ही जिरीबाम के हालात और खराब हो जाते हैं। हमें सिलचर लौटना पड़ा। तीसरा दिन: 16 नवंबर, 2024 कथित मिलिटेंट्स के शवों को लेकर मेडिकल कॉलेज में झड़प की आंखों देखी मुठभेड़ में मारे गए 10 कथित कुकी मिलिटेंट्स के शव पिछले पांच दिनों से सिलचर मेडिकल कॉलेज की मॉर्चुरी में रखे हुए थे। आज पोस्टमॉर्टम के बाद इन शवों को मणिपुर के चुराचांदपुर एयरलिफ्ट किया जाना था। सिलचर में आज हिंसा होने की आशंका जाहिर की जा रही थी। इसलिए हमने जिरीबाम जाने का फैसला टाल दिया और मेडिकल कॉलेज पहुंचे। वहां सैकड़ों की तादाद में कुकी-हमार संगठनों के कार्यकर्ता मेडिकल कॉलेज के सामने जमा हुए थे। कुकी और हमार समुदाय के लोग अंतिम संस्कार के लिए मृतकों के शव सौंपने की मांग कर रहे थे। शव नहीं मिलने पर कुकी-हमार समुदाय के लोग उग्र हो गए। उन्होंने सुरक्षाबलों पर पथराव कर दिया। पुलिस ने भी लाठीचार्ज किया। जमकर बवाल हुआ। इस दौरान पुलिस, पत्रकार सहित कई लोग जख्मी हो गए। बाद में सुरक्षाबलों और कुकी-हमार समुदाय के बीच समझौता हुआ। सुरक्षाबलों ने उन्हें शवों को सौंप दिया। इसके बाद सभी शवों को मणिपुर के चुराचांदपुर एयरलिफ्ट किया गया। नोट: पथराव में भास्कर रिपोर्टर को भी चोटें आई थीं। उनका मोबाइल भी टूट गया। टूटे मोबाइल में 14 और 15 नवंबर को जिरीबाम जाने के फुटेज और लोगों से बातचीत की रिकॉर्डिंग थी। हमने डेटा रिकवर करने की कोशिश की, लेकिन नहीं हो सका। चौथा दिन: 18 नवंबर, 2024 असम के इस गांव में कुकी और मैतेई एकजुट, आपस में शादियां भी करते हैं हम जिरीबाम के लिए निकले थे, लेकिन उससे 12 km पहले असम के कछार जिले में जिरीघाट के पास दिघली मणिपुरी बस्ती पहुंचे। भले ही पूरे मणिपुर में कुकी-मैतेई जानी दुश्मन हैं, लेकिन दिघली मणिपुरी बस्ती में दोनों एक-साथ रहते हैं। यहां कुकी और मैतेई लोगों के गांव आमने-सामने हैं। बीच में महज 100 मीटर की दूरी होगी। दोनों समुदाय के पुरुषों और महिलाओं के बीच कई शादियां भी हुई हैं। लोगों के मन में डर है, लेकिन कोई भी इलाका छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। दिघली मणिपुरी में कुकी गांव के हेडमैन मुर्थांग कुकी से हमारी बात हुई। वो रिटायर्ड टीचर हैं। उन्होंने कहा, 'मणिपुर में जो चल रहा है, उससे हमारे बीच कोई दिक्कत नहीं है। असम में बहुत शांति है। यहां कुकी और मैतेई गुट के परिवार 100 साल से ज्यादा समय से मिल-जुल कर रह रहे हैं। मैतेई लोगों के साथ हम पले-पढ़े हैं। वो हमारे गांव आते हैं। हम उनके गांव में जाते हैं।' हमने 30 साल की मैतेई महिला और हमार समुदाय के उसके पति से बात की। यह कपल गांव के पास हमारखावलीन में रहता है। दोनों की 2022 में शादी हुई थी। अपना नाम न बताने की शर्त पर महिला ने कहा, 'हमारी अरेंज मैरिज हुई है। मेरे पिता ने हमार दुल्हा चुना क्योंकि उन्हें लगा कि वह मेरे लिए सही इंसान है। मुझे कभी कोई खतरा महसूस नहीं होता। जब हम मणिपुर में हत्याओं की खबर पढ़ते हैं तो दुख होता है, लेकिन इसका हमारे रिश्ते पर असर नहीं पड़ता।' महिला के पति ने कहा, 'हम दोनों एक दूसरे के सामने मैतेई बनाम कुकी विवाद पर बात ही नहीं करते। हमने एक दूसरे की भाषा, संस्कृति और परंपरा को अपनाया है। हमारी शादी एक उदाहरण है कि प्यार सबसे ऊंचा हो सकता है।' कपल से बात करने के बाद हम उनके गांव हमारखावलीन पहुंचे। असम का यह गांव हमार बहुल इलाका है। यहां कुकी समुदाय के पीड़ित परिवार मणिपुर से आए हुए हैं। इनमें जैरोन गांव के लोग भी थे। 7 नवंबर को यहां आगजनी में एक महिला की मौत हुई थी। हमने इनसे बात करने की कोशिश की तो वे मीडिया से बहुत नाराज दिखे। उन्होंने कहा, 'मीडिया में कुकी युवाओं को मिलिटेंट बताया जा रहा, जबकि वे कुकी विलेज वॉलंटियर्स (KVV) हैं। वे अपने समुदाय की रक्षा कर रहे हैं। सुरक्षाबलों ने उन्हें मिलिटेंट बताकर मार दिया।' डेबोरा नाम की एक युवती ने बताया कि उनका परिवार हमारखावलीन में शरण लिए हुए है। उसने कमाई के लिए छोटी सी दुकान खोल ली है। उसमें चाय और पान बेचती हैं। डेबोरा ने बताया कि मणिपुर से आए कई लोगों ने असम के स्कूलों में ही अपने बच्चों का एडमिशन करवा दिया है। यहीं पर जिरीबाम की 32 साल की लालरूटमोई भी एक छोटी सी दुकान चलाती हैं। उन्होंने इस साल जून में यहां शरण ली थी। जिरीबाम में उनकी दो दुकानें थीं, जिन्हें दूसरे गुट ने नष्ट कर दिया। लालरूटमोई ने कहा, 'मैं घर में अकेले कमाने वाली हूं। माता-पिता की तबीयत ठीक नहीं रहती है। छोटा भाई अभी पढ़ रहा है। हम यहां सुरक्षित महसूस करते हैं।' अब हमने नाव के जरिए हिंसाग्रस्त इलाकों में जाने का मन बनाया। नाव भी तैयार थी, पर जिन इलाकों में जाना था, वहां के हेडमैन या ग्राम प्रमुखों से संपर्क नहीं हो सका। फिर भी हम लखीपुर फेरी घाट गए। नदी किनारे हमार नेताओं ने बताया कि जब तक हेडमैन से बात न हो जाए, नाव से आगे जाना ठीक नहीं है। इस कारण हमें लौटना पड़ा। पांचवां दिन: 21 नवंबर, 2024 जिरीबाम स्टेशन पर सन्नाटा, बोरोबेक्रा से ठीक पहले रास्ता भटके आज हिंसा प्रभावित इलाकों में जाने की हमारी ये आखिरी कोशिश थी। हम चौथी बार जिरीबाम के लिए निकले। असम बॉर्डर पार करते ही हमें पुलिसवालों ने रोक लिया, सख्ती से तलाशी ली। पुलिस चेक पोस्ट पर नाम, मोबाइल नंबर और सिग्नेचर देने पड़े। किस मकसद से आए हैं, सब पूछताछ हुई। जिरीबाम में पूरा सन्नाटा पसरा था। जैसे-जैसे बोरोबेक्रा की तरफ बढ़ रहे थे, इलाके सुनसान दिखाई दे रहे थे। इक्का-दुक्का लोग रास्ते में नजर आए, लेकिन कोई शोर-शराबा नहीं था। जिरीबाम स्टेशन पर भी सन्नाटा पसरा था। पता चला कि सिलचर से रोज एक ट्रेन 'बैंगाईचुंगपाओ सिलचर स्पेशल पैसेंजर' चलती है। ज्यादातर पैसेंजर स्थानीय होते हैं। स्टेशन से करीब 6 किलोमीटर आगे सोनापुर पहुंचा। फिर लालपानी नाम का इलाका आया। उसके आगे चंद्रनाथपुर था, जहां से बोरोबेक्रा जाने का रास्ता है। हम रास्ता भटक गए और लेटिंगखाल पहुंच गए। वहां बंगाली मुस्लिम समुदाय के कुछ लोग मिले। उन्होंने आगे के खतरे के बारे में चेताया। लेटिंगखाल से बोरोबेक्रा सिर्फ 17 km दूर था, लेकिन फिर से रास्ता भटकने से बेहतर लगा कि वापस लौट चलें। वापसी के दौरान सोनापुर में तैनात CRPF के जवानों ने बताया कि लेटिंगखाल के आसपास आदिवासी रहते हैं। कुकी-हमार समुदाय की भी बस्ती है। वहां मौजूदा हालात के बीच जाना सुरक्षित नहीं है। उनकी बात सुनकर समझ आया कि मणिपुर में सिर्फ आम लोग ही नहीं, सुरक्षाबलों के मन में भी दहशत है। छठा दिन: 24 नवंबर हिंसाग्रस्त बोरोबेक्रा पहुंचे, 26 km के दौरान 4 बार सुरक्षाबलों ने रोका इस बार मैं और साथी रिपोर्टर देवांशु जिरीबाम के लिए फिर निकले। सुबह करीब 9:30 पर हम 26 km दूर बोरोबेक्रा के लिए निकले। हमारा ड्राइवर सेबुल हक लोकल था। उसने बताया कि वह इसी रूट पर गाड़ी चलाता है और मैतेई और कुकी समुदाय के बीच उसकी अच्छी जान-पहचान है। जंगल और पहाड़ों के बीच पथरीले रास्ते से होते हुए पहले सोनापुर पहुंचे। चेक पोस्ट पर मणिपुर पुलिस ने पूछताछ की। चंद्रनाथपुर से थोड़ा आगे बढ़े तो कुकी गांव मिला। कुकी विलेज वॉलंटियर्स (KVV) ने गांव में जाने वाले रास्ते पर चेक गेट बना रखा था। ड्राइवर ने बताया कि आज रविवार है। वॉलंटियर्स चर्च में प्रार्थना के लिए गए हुए हैं। नहीं तो हर समय गेट पर पहरा देते हैं। यहां मैतेई लोगों के घुसने पर सख्त पाबंदी है। बाकी कोई भी समुदाय गांव में जा सकता है। फिर छोटो बोरोबेक्रा पहुंचे। यहां CRPF कैंप मिला। जवानों ने पूरी डिटेल जानने के बाद आगे जाने दिया। थोड़ी दूर आगे बढ़ने पर असम राइफल्स का कैंप आया। जवानों ने लगभग आधे घंटे रोक कर रखा। अथॉरिटी लेटर मांगे। पूछा, किसकी इजाजत से आए हैं। कुछ देर बातचीत के बाद जवानों ने बताया कि आगे मिलिटेंट्स के खिलाफ ऑपरेशन चल रहा है। जब तक हरी झंडी नहीं मिलती, किसी को आगे नहीं जाने दे सकते हैं। थोड़ी देर बाद आगे जाने का सिग्नल मिल गया। बोरोबेक्रा से 6 km पहले फिर CRPF कैंप आया। यहां मामूली पूछताछ हुई। इसके बाद हम बोरोबेक्रा पहुंच गए। 11 नवंबर को यहीं पर CRPF से मुठभेड़ में 10 कथित कुकी मिलिटेंट्स मारे गए थे। यहीं पर एक ही परिवार के छह मैतेई लोगों को अगवा किया गया था। बाद में उनके शव मिले। मणिपुर में 11 नवंबर के बाद भड़की हिंसा की शुरुआत यहीं से हुई थी। इस दिन हम फाइनली हिंसा वाली जगह तक पहुंच पाए। मणिपुर में 3 मई, 2023 से कुकी और मैतेई समुदाय के बीच हिंसा चल रही है। अब तक 250 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। 1500 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। हजारों संपत्ति जलकर खाक हो गई है।लगभग 60 हजार लोग घर छोड़कर रिलीफ कैंप में रह रहे हैं। हिंसा के आरोप में अब तक करीब 500 लोगों को अरेस्ट किया गया है। ........................................................... मणिपुर हिंसा से जुड़ी ये खबरें भी पढ़ें... बच्चे को गोली मारी, टीचर को काटा, फिर सुलगा मणिपुर: एक-दूसरे के गांव जला रहे कुकी-मैतेई, CRPF की गोली से मरे 10 लोग कौन जंगल और पहाड़ों से घिरा जिरीबाम बीते 20 दिन से जल रहा है। भास्कर रिपोर्टर देवांशु तिवारी मणिपुर की राजधानी इंफाल से 250 किमी दूर जिरीबाम के बोरोबेकरा गांव पहुंचे। मणिपुर में फिर से हिंसा भड़कने की शुरुआत इसी गांव से हुई है। पूरी खबर पढ़ें... मणिपुर में मारे गए कुकी उग्रवादियों के समर्थन में प्रदर्शन:, सैकड़ों लोग खाली ताबूत लेकर सड़कों पर उतरे मणिपुर में 11 नवंबर को सुरक्षाबलों से मुठभेड़ में मारे गए 10 कुकी उग्रवादियों के लिए न्याय की मांग करते हुए कुकी समुदाय लगातार प्रदर्शन कर रहा है। 19 नवंबर को जिरिबाम और चुराचांदपुर जिले में सैकड़ों लोगों ने 10 खाली ताबूत लेकर मार्च निकाला। पूरी खबर पढ़ें...