बिना खेल अनुभव कंपनियों को प्लाट किए थे आवंटित:CAG की आपत्ति पर प्राधिकरण ने खुद माना हो गई गलती, 9000 करोड़ का घोटाला
स्पोर्टस सिटी के भूखंड उन कंपनियों को आवंटित किए गए। जिनके पास खेलकूद से संबंधित निर्माण या विकास का कोई अनुभव ही नहीं था। वास्तव में इस परियोजना का मकसद ही बिल्डरों को अनुचित लाभ देना ही था। इसलिए टेंडर के तकनीकी मापदंड में ऐसी कोई शर्त नहीं रखी गई। जिससे कंपनियों को खेलकूद संबंधित स्ट्रक्चर और सुविधा विकसित करने का पहले से कोई अनुभव होने की आवश्यकता हो। ये बात प्राधिकरण ने भी मानी कि टेंडर की शर्तों में उनसे ये गलती हो गई थी। स्पोर्टस नहीं सिर्फ रियल स्टेट फैक्टर को दी प्राथमिकता सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि योजना में कंपनियों को आवंटित करने के लिए सिर्फ एक मापदंड पर भरोसा किया वो था वह रियल स्टेट परियोजनाओं को विकसित करने का अनुभव। शर्तों के अनुसार खेल भूखंड के कब्जे से पहले चरण 0 से 3 साल , दूसरा चरण 3 से 5 साल और तीसरा चरण 5 से 8 साल में पूरा होना था। यानी पूरी योजना 2016 तक पूरी होनी थी। लेकिन अब तक पूरी नहीं हो सकी। राष्ट मंडल खेल की अवधारणा सीएजी ने यह भी कहा कि 2007 में प्राधिकरण बोर्ड ने स्पोर्टस सिटी की अवधारणा राष्ट्र मंडल खेलों जैसे आयोजन के लिए की थी। इसके बाद भी टेंडर में स्पोर्टस स्ट्रक्चर और सुविधाओं का अनुभव जैसी शर्त को शामिल नहीं किया गया। यही वजह रही कि अब तक स्पोर्टस सिटी में एक भी खेल सुविधाओं का विकास नहीं हो सका। प्राधिकरण ने माना हो गई गलती सीएजी के इस आपत्ति पर सितंबर 2020 में प्राधिकरण का जवाब आया। जिसमें प्राधिकरण ने माना कि योजना में खेलकूद की सुविधाएं विकसित नहीं हो पाई। जिस तरह से टेंडर में नियम और शर्तो को सम्मिलित किया गया। जिस तरह से क्रियान्वयन किया गया वह त्रुटिपूर्ण था। भविष्य में इसका ध्यान दिया जाएगा। ऐसे में साफ है कि प्राधिकरण ने रियल स्टेट कंपनियों को अनुचित फायदा देने के लिए ही योजना में खेल स्ट्रक्चर संबंधित कोई शर्त शामिल नहीं की और कम दरों पर भूखंड आवंटित कर करीब 9000 करोड़ का वित्तीय फायदा दिया। अब इस मामले में सीबीआई ने अपनी जांच शुरू कर दी है। सोमवार को सीबीआई की टीम एक बार फिर से अधिकारियों से सवाल जवाब कर सकती है। 11 स्पोर्ट्स एक्टिविटी को बनाया जाना था

बिना खेल अनुभव कंपनियों को प्लाट किए थे आवंटित: CAG की आपत्ति पर प्राधिकरण ने खुद माना हो गई गलती, 9000 करोड़ का घोटाला
भारत में खेल जगत में घोटालों की कोई कमी नहीं है, लेकिन हाल ही में CAG (कैग) द्वारा उठाए गए एक गंभीर मुद्दे ने सबको चौंका दिया है। नवीनतम रिपोर्ट में यह सामने आया है कि कई कंपनियों को, जिनके पास खेल के क्षेत्र में कोई अनुभव नहीं था, प्लाट आवंटित किए गए थे। यह मामला लगभग 9000 करोड़ रुपये के घोटाले का संकेत देता है।
CAG की रिपोर्ट और इसका महत्व
CAG द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि निर्धारित मानदंडों का पालन नहीं किया गया। रिपोर्ट में यह बताया गया है कि कई कंपनियों को बिना किसी खेल अनुभव के प्लाट दिए गए, जिससे न केवल वित्तीय नुकसान हुआ, बल्कि यह सरकार की छवि पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है। इसके पीछे जो तथ्य हैं वे बहुत चिंताजनक हैं और सरकार को सोचना होगा कि ऐसी स्थितियों को कैसे रोका जाए।
प्राधिकरण की स्वीकार्यता
रिपोर्ट सामने आने के बाद, संबंधित प्राधिकरण ने अपनी गलती स्वीकार की है। यह पहला उदाहरण नहीं है जब सरकारी प्राधिकरण ने अपनी गलतियों का सामना किया है, लेकिन यह सबसे बड़ा गलती में से एक है। अब प्रश्न यह उठता है कि ऐसे मामलों में जिम्मेदार लोगों के खिलाफ क्या कदम उठाए जाएंगे।
इस घोटाले का प्रभाव
इस प्रकार के घोटाले न केवल वित्तीय हानि का कारण बनते हैं बल्कि खेल की गुणवत्ता और विकास को भी प्रभावित करते हैं। सरकार को सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है और यह सुनिश्चित करने की कि भविष्य में इस तरह की अनियमितताएं न हों। इससे देश के युवाओं और खेल प्रेमियों को भी बड़ा धक्का लगा है।
हल करने के उपाय
इस मामले में आगे बढ़ते हुए, यह आवश्यक है कि सरकार और अन्य संबंधित संस्थाएं मिलकर ऐसे घोटालों को रोकने के लिए ठोस नीतियां व्यवस्था करें। खिलाड़ियों और खेल कंपनियों की सही चयन प्रक्रिया को निर्धारित करना बेहद जरूरी है।
खेल की प्रगति के लिए यह आवश्यक है कि सरकार ओर प्राधिकरण दोनों ही सही दिशा में कार्य करें और सरकारी धन का सही उपयोग करें। विशेष रूप से 9000 करोड़ रुपये जैसे बड़े राशि के मामले में, सावधानी बरतना आवश्यक है।
नवीनतम घटनाक्रमों को देखते हुए, यह उम्मीद की जाती है कि अब इस क्षेत्र में कुछ सुधार किए जाएंगे। इसके अलावा, हर एक स्थिति की संबद्धता को देखकर और जरूरतों के अनुसार नीति में बदलाव लाना बेहद ज़रूरी है।
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