लखनऊ में दैनिक भास्कर दफ्तर पहुंचे पेरेंट्स:बोले- बच्चों को जबरन खुद के प्रोफेशन में लाना ठीक नहीं, उन्हें लॉजिक के साथ समझाएं
लखनऊ के दैनिक भास्कर कार्यालय में शुक्रवार को पेरेंट्स पहुंचे। इस दौरान बच्चों के करियर और उनसे जुड़ी चुनौतियों पर चर्चा हुई। बातचीत में सभी ने माना कि बच्चों को खुद से डिसिशन लेने लायक बनाना होगा। साथ ही एजुकेशन और जॉब के अलावा उन्हें हॉबीज और स्पोर्ट्स जैसी तमाम पॉजिटिव एक्टिविटी में भी सक्रिय करना होगा। पेरेंट्स ने कहा- बच्चों में जनरेशन के साथ बड़ा बदलाव आ रहा है। उन्हें अब अलग तरीके से गाइड करने की जरूरत है। उन्हें सबसे ज्यादा मोटिवेशन की जरूरत रहती है। साथ ही उन पर निगरानी भी जरूर रखनी चाहिए। पेरेंट्स ने ये भी माना कि बच्चों को सही मार्गदर्शन देने के साथ कठिन समय में उनका साथ देना भी जरूरी है। बच्चों को लॉजिक देकर समझाइए लखनऊ में खुद का स्कूल चला रही मेधा खत्री कहती है कि बच्चों को धर्म और ग्रंथ के बारे में भी जानकारी देना बेहद जरूरी है। साथ ही उनको लॉजिकली सेटिस्फाई भी करना होगा। एक दौर था जब धर्म, इतिहास और परंपरा के बारे में स्कूलों में बताया जाता था पर आज के दौर के स्कूलों में पूरा फोकस सिर्फ पढ़ाई तक है। पेरेंट्स और टीचर्स से सबसे ज्यादा सीखते बच्चे लखनऊ के अटल बिहारी वाजपेयी नगर निगम डिग्री कॉलेज के हिंदी विभाग में लेक्चरर डॉ.उपेंद्र कहते है कि जब बच्चों को उनकी खुद की मातृभाषा में पढ़ाई कराई जाएगी। इसका असर उनके व्यवहार और संस्कारों पर भी दिखेगा। सबसे जरूरी है कि बच्चों को बताना होगा कि विद्या के साथ विनम्रता भी को भी ग्रहण करना होगा। सफलता कोई मंजिल नहीं ये यात्रा है पेरेंट पवन शुक्ला ने कहा- मेरा मानना है कि बच्चों के लिए सबसे अहम उनका सफल होना नहीं बल्कि जानकार होना है। जबकि आज के दौर में सफलता को ही सब कुछ माना जा रहा है। ये समझना होगा कि सफल होना कोई एक डेस्टिनेशन या मंजिल नहीं है। ये एक सतत प्रक्रिया है। हर मौके पर बच्चों का दें साथ पेरेंट ज्योति कहती है कि हम चाहते हैं कि बच्चे हमसे पूछ कर अपने भविष्य के निर्णय लें। पर कई बार ऐसा होता है कि डिशिसन लेने के बाद बच्चे पेरेंट्स से बताते हैं। इसमें कोई बुराई नहीं है पर यदि उनका डिशिसन ठीक नहीं है तो इस बारे में उनका ठीक तरीके से अवगत कराने का काम पेरेंट्स का है। बच्चों को बताना होगा अभिवादन करने का तरीका पेरेंट ललित कुमार कहते है कि हमको तो बचपन से ही हमारे घर वालों ने यह सिखाया था कि कैसे चरण स्पर्श किया जाता है। आजकल के बच्चे घुटनों पर हाथ लगाकर पैर छूने की खानापूर्ति कर लेते हैं। ऐसे में अब जरूरी यह है उन्हें इसके पीछे के वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बताया जाए। साथ ही हमारी परंपरा में इसका क्या महत्व है यह भी सिखाया जाए। खुद मंजिल चुनने का दें मौका हाईकोर्ट के वकील रोशन खत्री ने कहा- आज का दौर ऐसा है कि बच्चे खुद से ही कैरियर को लेकर डिशिसन ले रहें। ऐसे में उनके लिए सबसे जरूरी गाइडेंस है। उनको हमेशा मोटिवेट करते रहें। उनसे बर्ताव हमेशा मृदुभाषा में करें। जहां कहीं भी उनको एडवाइस की जरूरत है उपलब्ध कराएं।
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