2 सरकारी नौकरी छोड़ IPS बने शिवराम यादव:8 लोगों के सामूहिक हत्याकांड का खुलासा किया, जलती चौकी से साथियों को निकाला
'मैं जब छोटा था ताे सोचता था अच्छे से खेती करूंगा और गांव में जिंदगी गुजारूंगा। मेरी माता जी कहतीं, खेती कहां जा रही है, यहां रहोगे तो धूल ही फांकनी पड़ेगी। इसके बाद भैया IAS हो गए और यहीं से मेरे जीवन का रास्ता बदल गया। पुलिस की वर्दी बहुत अच्छी लगती थी इसलिए दो सरकारी नौकरी छोड़कर IPS बना। क्योंकि मेरा मानना है कि खाकी वर्दी में तत्काल किसी के साथ न्याय कर सकते हैं और ऐसा मैंने कई अपराधियों के साथ किया भी।' खाकी का ये जज्बा है IPS शिवराम यादव का। शिवराम ने न सिर्फ अपराधियों की कमर तोड़ी बल्कि, कई बार पुलिस वालों की भी जान बचाई। दैनिक भास्कर की स्पेशल सीरीज 'खाकी वर्दी' में आज IPS शिवराम यादव की कहानी 6 चैप्टर में पढ़ेंगे... यूपी के जौनपुर में जिला मुख्यालय से 16 किमी की दूरी पर एक गांव पड़ता है जंगीपुर। यहां के रहने वाले रामानंद यादव गांव के सम्पन्न किसान हैं। 18 अगस्त, 1969 को घर पर बेटे ने जन्म लिया। मां रामराजी देवी ने नाम रखा शिवराम। पिता उस समय खेती करते थे। शिवराम यादव बताते हैं कि पिता और बड़े भाइयों के साथ मैं भी बचपन में खेती करता था। कई बार घर से चोरी छिपे खेत पर चला जाता था। जहां से बड़े भैया मुझे फिर घर छोड़ जाते थे। शिवराम यादव तीन भाइयों में सबसे छोटे हैं। बड़े भाई जोखूराम यादव इंटर कॉलेज के रिटायर्ड प्रवक्ता हैं। दूसरे भाई सीताराम रिटायर्ड IAS अधिकारी हैं। पांचवी तक की पढ़ाई गांव के प्राथमिक स्कूल से की, उसके बाद कक्षा 6 में पड़ोस के गांव सराय हरकू इंटर कॉलेज में पैदल पढ़ने जाने लगे। इसी इंटर कॉलेज से 1984 में यूपी बोर्ड से प्रथम श्रेणी में 10 वीं पास की। 1986 में राजा हरपाल सिंह इंटर कॉलेज सिंघरामऊ से इंटर प्रथम श्रेणी में पास किया। मेरठ PTC (पुलिस ट्रेनिंग सेंटर) में एसपी पद पर तैनात शिवराम बताते हैं, 'जब मैं 12 साल का था, तब बड़े भैया सीताराम यादव सिविल सर्विसेज की तैयारी करने प्रयागराज चले गए। कुछ साल बाद उन्होंने पीसीएस परीक्षा पास कर ली। जब भैया को देखता कि उनके साथ गनर तैनात रहते तो मुझे भी लगने लगा कि अब खेती नहीं करनी। जैसे-जैसे भैया पढ़ते वही शेड्यूल बनाकर पढ़ाई करने लगा। अपने कॅरियर में भैया को ही आदर्श माना। क्योंकि, बड़े भाई भी एक टीचर की तरह समझाया करते थे। वह मुझे टिप्स देते रहते कि कैसे सिविल सर्विस की परीक्षा क्रैक की जाती है। शिवराम कहते हैं 1986 में इंटर करने के बाद भैया के कहने पर मैं इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़ने चला गया। जहां 1989 में बीए किया, उसके बाद दर्शनशास्त्र से पीजी की पढ़ाई पूरी की। यहीं से UPSC की तैयारी करनी शुरू कर दी। 1994 में यूपी PCS में चयन हुआ और ट्रेजरी अफसर बना। लेकिन इस नौकरी को ठुकरा दिया।1997 में UPSC क्रैक किया, 494वीं रैंक आई तो इंडियन रेलवे में अफसर बना। लेकिन यह नौकरी भी पसंद नहीं आई। तैयारी करते हुए मैंने UPPCS की परीक्षा दी थी। इसी दौरान 1996 बैच का रिजल्ट आया और मैं PPS बन गया। शिवराम बताते हैं कि अपने भाई को देखकर मैं पढ़ाई करता था। उनकी तैयारी देखकर वैसे ही मैं भी तैयारी करने लगा। परिवार ने हमेशा आगे बढ़ाने के लिए काम किया। जब छोटा था तो माता-पिता यही कहते थे कि बेटा पढ़ लेना, इस खेती का कुछ नहीं होना। गांव में रहकर तो मिट्टी ही फांकनी पड़ती है। खेती कहीं नहीं जाएगी, यह गांव में ही रहेगी। शिवराम बताते हैं कि ट्रेनिंग के बाद सहारनपुर जिले में पहली पोस्टिंग मिली। 2001 की बात है, मैं सीओ देवबंद था। सीनियर अफसर बताते थे कि अगर देवबंद संभाल लिया तो पूरा सहारनपुर चलता रहेगा। यही ऐसा सर्किल है जो हमेशा कानून व्यवस्था के लिए चुनौती बना रहा। जब भी बड़े बवाल हुए तो देवबंद में ही हुए। कई बार यहां पुलिस पर भी हमले हुए। 2002 में देवबंद में मामूली से विवाद के बाद हिंसा हो गई। जिसमें भीड़ सड़कों पर उतर आई। उस समय मेरे पास सिर्फ अपने गनर और थाने के 8 से 10 पुलिसकर्मी थे। सहारनपुर और दूसरे थानों से फोर्स आने में समय लगता। वायरलेस सेट पर उच्च अधिकारियों को सूचना दी। जब उपद्रवियों की भीड़ ने पुलिस पर पथराव व हमला शुरू किया उस वक्त हमारे पास 3 से 4 बैरियर थे। जब पुलिस पर पत्थरबाजी शुरू हुई तो लगा कि अगर कमजोर पड़े तो जान चली जाएगी। अचानक आइडिया आया, हमने बीच सड़क पर बैरियर लगा दिए, भीड़ को रोका। बैरियर की आड़ में दूसरी तरफ से उपद्रवी यह नहीं समझ पाए कि पुलिस फोर्स बहुत कम है। करीब 10 मिनट तक बचाव करते रहे कि किसी पुलिसकर्मी की जान न चली जाए। मन में ठान लिया कि हमें भीड़ को कंट्रोल करना ही है। जैसे ही मैं लाठी लेकर आगे बढ़ा तो भीड़ सड़क पर रुक गई, यह देखते ही मेरा व पुलिसकर्मियों का हौसला बढ़ गया। एक मिनट में ही भीड़ पर लाठीचार्ज कर दिया। जिसके बाद देखा तो धार्मिक स्थल व दूसरे स्थानों की तरफ भगदड़ मच गई। इतने में शहर से भी फोर्स आ गई। पुलिस में आने के बाद पहली बार बवाल देखा था। अगर लाठीचार्ज न करते तो पुलिस की भी जान फंस जाती। शिवराम कहते हैं कि 2002 में सहारनपुर के देवबंद में लूट के बाद 3 लोगों की हत्या कर दी गई। यह उस समय जिले की सबसे बड़ी वारदात थी। घटनास्थल से कुछ दूरी पर एक बिना नंबर की बाइक बरामद हुई। इस केस को सॉल्व करने के लिए सादे कपड़ों में जाकर अलग-अलग लोगों से मिला। जहां चाय के दुकान पर एक व्यक्ति ने बताया कि ट्रिपल मर्डर पड़ोस के गांव के बदमाश ने किया है। सटीक मुखबिरी से यह सबसे चर्चित मर्डर केस सॉल्व हुआ। शिवराम कहते हैं, 'मुजफ्फरनगर में साल 2011 की बात है। मैं सीओ सिटी था, जुलाई का महीना था। शहर कोतवाली क्षेत्र के बड़कली के निकट गन्ना समिति के पूर्व चैयरमैन उदयवीर सिंह समेत 8 लोगों के सामूहिक हत्या ने न सिर्फ कानून व्यवस्था को चुनौती दी, बल्कि पूरा प्रदेश भी इस वारदात के बाद हिल गया। 8 लोगों की सामूहिक हत्या को पूरी प्लानिंग के तहत अंजाम दिया गया था। पूरा परिवार कार से जा रहा था, तभी साजिश के तहत ट्रक ने कार को कुचल दिया। पहले लगा कि यह शायद हादसा है। एक साथ फोर्स के साथ मौके पर पह
'मैं जब छोटा था ताे सोचता था अच्छे से खेती करूंगा और गांव में जिंदगी गुजारूंगा। मेरी माता जी कहतीं, खेती कहां जा रही है, यहां रहोगे तो धूल ही फांकनी पड़ेगी। इसके बाद भैया IAS हो गए और यहीं से मेरे जीवन का रास्ता बदल गया। पुलिस की वर्दी बहुत अच्छी लगती थी इसलिए दो सरकारी नौकरी छोड़कर IPS बना। क्योंकि मेरा मानना है कि खाकी वर्दी में तत्काल किसी के साथ न्याय कर सकते हैं और ऐसा मैंने कई अपराधियों के साथ किया भी।' खाकी का ये जज्बा है IPS शिवराम यादव का। शिवराम ने न सिर्फ अपराधियों की कमर तोड़ी बल्कि, कई बार पुलिस वालों की भी जान बचाई। दैनिक भास्कर की स्पेशल सीरीज 'खाकी वर्दी' में आज IPS शिवराम यादव की कहानी 6 चैप्टर में पढ़ेंगे... यूपी के जौनपुर में जिला मुख्यालय से 16 किमी की दूरी पर एक गांव पड़ता है जंगीपुर। यहां के रहने वाले रामानंद यादव गांव के सम्पन्न किसान हैं। 18 अगस्त, 1969 को घर पर बेटे ने जन्म लिया। मां रामराजी देवी ने नाम रखा शिवराम। पिता उस समय खेती करते थे। शिवराम यादव बताते हैं कि पिता और बड़े भाइयों के साथ मैं भी बचपन में खेती करता था। कई बार घर से चोरी छिपे खेत पर चला जाता था। जहां से बड़े भैया मुझे फिर घर छोड़ जाते थे। शिवराम यादव तीन भाइयों में सबसे छोटे हैं। बड़े भाई जोखूराम यादव इंटर कॉलेज के रिटायर्ड प्रवक्ता हैं। दूसरे भाई सीताराम रिटायर्ड IAS अधिकारी हैं। पांचवी तक की पढ़ाई गांव के प्राथमिक स्कूल से की, उसके बाद कक्षा 6 में पड़ोस के गांव सराय हरकू इंटर कॉलेज में पैदल पढ़ने जाने लगे। इसी इंटर कॉलेज से 1984 में यूपी बोर्ड से प्रथम श्रेणी में 10 वीं पास की। 1986 में राजा हरपाल सिंह इंटर कॉलेज सिंघरामऊ से इंटर प्रथम श्रेणी में पास किया। मेरठ PTC (पुलिस ट्रेनिंग सेंटर) में एसपी पद पर तैनात शिवराम बताते हैं, 'जब मैं 12 साल का था, तब बड़े भैया सीताराम यादव सिविल सर्विसेज की तैयारी करने प्रयागराज चले गए। कुछ साल बाद उन्होंने पीसीएस परीक्षा पास कर ली। जब भैया को देखता कि उनके साथ गनर तैनात रहते तो मुझे भी लगने लगा कि अब खेती नहीं करनी। जैसे-जैसे भैया पढ़ते वही शेड्यूल बनाकर पढ़ाई करने लगा। अपने कॅरियर में भैया को ही आदर्श माना। क्योंकि, बड़े भाई भी एक टीचर की तरह समझाया करते थे। वह मुझे टिप्स देते रहते कि कैसे सिविल सर्विस की परीक्षा क्रैक की जाती है। शिवराम कहते हैं 1986 में इंटर करने के बाद भैया के कहने पर मैं इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़ने चला गया। जहां 1989 में बीए किया, उसके बाद दर्शनशास्त्र से पीजी की पढ़ाई पूरी की। यहीं से UPSC की तैयारी करनी शुरू कर दी। 1994 में यूपी PCS में चयन हुआ और ट्रेजरी अफसर बना। लेकिन इस नौकरी को ठुकरा दिया।1997 में UPSC क्रैक किया, 494वीं रैंक आई तो इंडियन रेलवे में अफसर बना। लेकिन यह नौकरी भी पसंद नहीं आई। तैयारी करते हुए मैंने UPPCS की परीक्षा दी थी। इसी दौरान 1996 बैच का रिजल्ट आया और मैं PPS बन गया। शिवराम बताते हैं कि अपने भाई को देखकर मैं पढ़ाई करता था। उनकी तैयारी देखकर वैसे ही मैं भी तैयारी करने लगा। परिवार ने हमेशा आगे बढ़ाने के लिए काम किया। जब छोटा था तो माता-पिता यही कहते थे कि बेटा पढ़ लेना, इस खेती का कुछ नहीं होना। गांव में रहकर तो मिट्टी ही फांकनी पड़ती है। खेती कहीं नहीं जाएगी, यह गांव में ही रहेगी। शिवराम बताते हैं कि ट्रेनिंग के बाद सहारनपुर जिले में पहली पोस्टिंग मिली। 2001 की बात है, मैं सीओ देवबंद था। सीनियर अफसर बताते थे कि अगर देवबंद संभाल लिया तो पूरा सहारनपुर चलता रहेगा। यही ऐसा सर्किल है जो हमेशा कानून व्यवस्था के लिए चुनौती बना रहा। जब भी बड़े बवाल हुए तो देवबंद में ही हुए। कई बार यहां पुलिस पर भी हमले हुए। 2002 में देवबंद में मामूली से विवाद के बाद हिंसा हो गई। जिसमें भीड़ सड़कों पर उतर आई। उस समय मेरे पास सिर्फ अपने गनर और थाने के 8 से 10 पुलिसकर्मी थे। सहारनपुर और दूसरे थानों से फोर्स आने में समय लगता। वायरलेस सेट पर उच्च अधिकारियों को सूचना दी। जब उपद्रवियों की भीड़ ने पुलिस पर पथराव व हमला शुरू किया उस वक्त हमारे पास 3 से 4 बैरियर थे। जब पुलिस पर पत्थरबाजी शुरू हुई तो लगा कि अगर कमजोर पड़े तो जान चली जाएगी। अचानक आइडिया आया, हमने बीच सड़क पर बैरियर लगा दिए, भीड़ को रोका। बैरियर की आड़ में दूसरी तरफ से उपद्रवी यह नहीं समझ पाए कि पुलिस फोर्स बहुत कम है। करीब 10 मिनट तक बचाव करते रहे कि किसी पुलिसकर्मी की जान न चली जाए। मन में ठान लिया कि हमें भीड़ को कंट्रोल करना ही है। जैसे ही मैं लाठी लेकर आगे बढ़ा तो भीड़ सड़क पर रुक गई, यह देखते ही मेरा व पुलिसकर्मियों का हौसला बढ़ गया। एक मिनट में ही भीड़ पर लाठीचार्ज कर दिया। जिसके बाद देखा तो धार्मिक स्थल व दूसरे स्थानों की तरफ भगदड़ मच गई। इतने में शहर से भी फोर्स आ गई। पुलिस में आने के बाद पहली बार बवाल देखा था। अगर लाठीचार्ज न करते तो पुलिस की भी जान फंस जाती। शिवराम कहते हैं कि 2002 में सहारनपुर के देवबंद में लूट के बाद 3 लोगों की हत्या कर दी गई। यह उस समय जिले की सबसे बड़ी वारदात थी। घटनास्थल से कुछ दूरी पर एक बिना नंबर की बाइक बरामद हुई। इस केस को सॉल्व करने के लिए सादे कपड़ों में जाकर अलग-अलग लोगों से मिला। जहां चाय के दुकान पर एक व्यक्ति ने बताया कि ट्रिपल मर्डर पड़ोस के गांव के बदमाश ने किया है। सटीक मुखबिरी से यह सबसे चर्चित मर्डर केस सॉल्व हुआ। शिवराम कहते हैं, 'मुजफ्फरनगर में साल 2011 की बात है। मैं सीओ सिटी था, जुलाई का महीना था। शहर कोतवाली क्षेत्र के बड़कली के निकट गन्ना समिति के पूर्व चैयरमैन उदयवीर सिंह समेत 8 लोगों के सामूहिक हत्या ने न सिर्फ कानून व्यवस्था को चुनौती दी, बल्कि पूरा प्रदेश भी इस वारदात के बाद हिल गया। 8 लोगों की सामूहिक हत्या को पूरी प्लानिंग के तहत अंजाम दिया गया था। पूरा परिवार कार से जा रहा था, तभी साजिश के तहत ट्रक ने कार को कुचल दिया। पहले लगा कि यह शायद हादसा है। एक साथ फोर्स के साथ मौके पर पहुंचा। जैसे ही पता चला कि मरने वालों में पूर्व चैयरमैन उदवीर सिंह व उनका पूरा परिवार है। तभी संदेह हो गया कि यह कहीं न कहीं साजिश है। गैंगवार में पूरी प्लानिंग के साथ हत्या की गई। इस वारदात में एसएसपी मुजफ्फरनगर के अलावा मेरठ जोन के अधिकारी भी पहुंचे। फोरेंसिक एक्सपर्ट बुलाकर जांच कराई। क्राइम सीन देखकर लग रहा था कि यह सामूहिक हत्या है। ट्रक से कार को कुचला गया है। टक्कर भी इतनी बुरी तरह से मारी गई कि कार के परखच्चे बिखर गए। इस घटना में उदयवीर, गौरव वीर, श्यामवीर, समरवीर, दिव्या, प्रणव, भोला और परिवार की महिला कल्पना की मौत हुई। यह केस सॉल्व करने के लिए उच्च अधिकारियों ने मुझे जिम्मेदारी दी। मोबाइल की सीडीआर से पता चला कि सामूहिक हत्याकांड को वेस्ट यूपी के कुख्यात रहे पूर्व ब्लॉक प्रमुख विक्की त्यागी ने अपनी पत्नी के साथ मिलकर अंजाम दिया है। इसके लिए ट्रक को हायर किया गया और रेकी की गई। ट्रक ड्राइवर को इसके लिए मोटी रकम दी गई थी। जब इस केस में गिरफ्तारी हुई और आरोपियों ने पूरी कहानी बताई तो पुलिस के भी रोंगटे खड़े हो गए। इस घटना में पुलिस ने 19 लोगों को अरेस्ट किया। जहां पता चला कि दोनों पक्षों में पहले से गैंगवार चल रही है। पूर्व ब्लॉक प्रमुख विक्की त्यागी पहले भी कई हत्याएं करा चुका है।' शिवराम बताते हैं इस सामूहिक हत्याकांड में पुलिस ने पूरे साक्ष्यों के साथ चार्जशीट दाखिल की। बाद में 2015 में मुख्य आरोपी विक्की त्यागी की भी हत्या कर दी गई। विक्की की पत्नी मीनू त्यागी समेत 16 लोगों को कोर्ट ने दोषी माना और उम्रकैद की सजा सुनाई। यह यूपी के सबसे बड़े सामूहिक हत्याकांड में से एक था। IPS बताते हैं, साल 2018 की बात है, जब मैं एसपी क्राइम मेरठ था। अप्रैल, 2018 में एससी-एसटी एक्ट में संशोधन माहौल गर्म था। शहर के कई क्षेत्रों में पुलिस बल की तैनाती की गई थी। उस समय मंजिल सैनी एसएसपी मेरठ थीं। सुबह करीब 9 बजे का वक्त था। सूचना मिली कि भीड़ ने कंकरखेड़ा की शोभापुर पुलिस चौकी को घेर लिया। एसपी देहात राजेश कुमार शहर में थे, जबकि एसपी सिटी और एसपी ट्रैफिक को कंकरखेड़ा में तैनात किया गया था। मैं जैसे ही चौकी पर पहुंचा तो देखा कि भीड़ ने सिपाहियों को पुलिस चौकी में बंद कर दिया और आग लगा दी है। चौकी को हजारों की भीड़ घेरे हुए थी। पता चला कि सिपाही व दरोगा अंदर फंसे हुए हैं। भीड़ पर लाठीचार्ज कर दिया। चौकी की खिड़कियां तोड़कर पुलिसकर्मियों की जान बचाई। आगजनी के बीच अगर कुछ मिनट और न पहुंचता तो बड़ी अनहोनी हो जाती। चौकी में पुलिस के असलहे तक जल गए थे। भीड़ को आधे घंटे की मशक्कत के बाद कंट्रोल किया। इसके बाद हजारों की भीड़ शहर में उतर आई। कचहरी में आगजनी कर अंबेडकर चौराहे पर नौचंदी इंस्पेक्टर की जीप फूंक दी गई थी। जहां अलग-अलग स्थानों पर भीड़ को खदेड़ने के लिए पुलिस को हवाई फायरिंग व लाठीचार्ज करना पड़ा। बुलंदशहर की एक घटना को याद करते हुए शिवराम कहते हैं, ' 2018 से 20 तक मैं एसपी क्राइम बुलंदशहर रहा। नवंबर, 2020 में नरौरा में सर्राफ रोहताश वर्मा की बदमाशों ने दुकान में घुसकर लूट के बाद हत्या कर दी। इस हत्याकांड को सॉल्व करने के लिए बड़े गैंग पर काम किया। पुलिस की जांच में आया कि ताऊ गैंग के गुर्गों ने इस हत्याकांड को अंजाम दिया था। ताऊ गैंग का सरगना इंद्रपाल था, जिसने 2013 में बुलंदशहर में बड़े ज्वैलर्स के यहां 4 करोड़ की डकैती को अंजाम दिया। बदमाश पुलिस की वर्दी में वारदात को अंजाम देने पहुंचे थे। सर्राफ हत्याकांड में फिर से इसी गैंग का नाम सामने आया। पता चला कि वारदात को अंजाम देने के बाद बदमाश हिमाचल प्रदेश व दिल्ली जाकर छिप गए। पुलिस ने इस गैंग के गोलू समेत दोनों बदमाशों को एनकाउंटर में गोली मारकर अरेस्ट किया। इनसे पूछताछ में पता चला कि गैंग ने बुलंदशहर में डिबाई, शिकारपुर, खुर्जा और शहर क्षेत्र में बड़ी वारदातें की हैं। पूरे गैंग की रीढ़ तोड़ते हुए 11 बदमाशों को अरेस्ट किया गया। परिवार की मर्जी से की शादी, घर वालों की खुशी सबसे बड़ी
शिवराम यादव बताते हैं कि साल 1998 में परिवार की मर्जी से शादी की। पहले शुरुआत में शादी करने से मना करता रहा। फिर घर वालों ने कहा कि अब नौकरी मिल गई तो शादी करनी ही होगी। जहां फैमिली की पसंद से रेखा यादव से शादी की। मेरा मानना है कि परिवार की खुशी सबसे बड़ी होती है। अचीवमेंट्स --- यह पढ़ें :
लेडी IPS...जिसने सुंदर भाटी गैंग की कमर तोड़ी: मर्डर केस में MLC को अरेस्ट किया, अमेरिका की नौकरी ठुकराकर सुनीति ने पहनी वर्दी लेडी IPS सुनीति, जिनकी पहचान क्राइम के खिलाफ उनके तेज तर्रार रवैया से बनी। नोएडा में सुंदर भाटी गैंग के शूटर को पकड़कर सबको चौंका दिया। औरैया में डबल मर्डर के बाद MLC को अरेस्ट करके जेल भेजा। उन्होंने जिन जिलों की कमान संभाली, वहां महिला अपराध करने वाले की सिर्फ एक जगह रही, जेल। चंडीगढ़ में पैदा हुई सुनीति अपने पापा की तरह इंजीनियर बनना चाहती थीं। बन भी गईं। अच्छे पैकेज पर नौकरी भी करने लगीं। मगर कंपनी से जब विदेश जाने का ऑफर मिला, तब उन्हें लगा कि देश के लिए वह कुछ नहीं कर पा रही हैं। इसके बाद उन्होंने जॉब ठुकरा दी। पढ़िए पूरी खबर...