IIT रुड़की का नया इनोवेशन: भूसे से बने बायोडिग्रेडेबल टेबलवेयर से प्लास्टिक प्रदूषण का समाधान
रुड़की : IIT रुड़की ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम उठाया है। संस्थान की इनोपैप लैब ने औरंगाबाद की पैरासन मशीनरी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के सहयोग से गेहूं के भूसे से पर्यावरण-अनुकूल, बायोडिग्रेडेबल और खाद्य-सुरक्षित टेबलवेयर विकसित किया है। यह नवाचार न केवल पराली जलाने और एकल-उपयोग प्लास्टिक प्रदूषण की दोहरी चुनौतियों …

IIT रुड़की का नया इनोवेशन: भूसे से बने बायोडिग्रेडेबल टेबलवेयर से प्लास्टिक प्रदूषण का समाधान
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कम शब्दों में कहें तो, IIT रुड़की ने गेहूं के भूसे से सुरक्षित और पर्यावरण-अनुकूल टेबलवेयर का विकास किया है, जो पराली जलाने और प्लास्टिक प्रदूषण की समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करता है।
रुड़की : IIT रुड़की ने पर्यावरण रक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। संस्थान की इनोपैप लैब ने औरंगाबाद की पैरासन मशीनरी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के सहयोग से गेहूं के भूसे का उपयोग करके पर्यावरण-अनुकूल, बायोडिग्रेडेबल और खाद्य-सुरक्षित टेबलवेयर विकसित किया है। यह नवाचार न केवल पराली जलाने की समस्या को समाप्त कर रहा है, बल्कि एकल-उपयोग प्लास्टिक प्रदूषण के विरुद्ध भी एक सशक्त हल प्रस्तुत करता है। साथ ही, यह किसानों के लिए अतिरिक्त आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत बनता है।
मिट्टी से मिट्टी तक का सिद्धांत
यह अद्वितीय प्रौद्योगिकी "मिट्टी से मिट्टी तक" के सिद्धांत पर आधारित है, जो गेहूं के भूसे को मोल्डेड, जैव-अवक्रमणीय और कम्पोस्टेबल टेबलवेयर में बदलती है। इस प्रकार का टेबलवेयर उपयोग के बाद स्वाभाविक रूप से मिट्टी में मिल जाता है और पर्यावरण को कोई क्षति नहीं पहुंचाता। यह तकनीक स्वच्छ भारत, आत्मनिर्भर भारत तथा संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (SDG 12 और 13) के उद्देश्य के अनुरूप है।
समस्या का समाधान और आर्थिक लाभ
IIT रुड़की के कागज प्रौद्योगिकी विभाग के प्रो. विभोर के. रस्तोगी, जिन्होंने इस परियोजना का नेतृत्व किया, ने बताया, “हमारा शोध दर्शाता है कि फसल अवशेषों को उच्च-गुणवत्ता वाले, पर्यावरण-अनुकूल उत्पादों में बदला जा सकता है। यह तकनीक न केवल पर्यावरण संरक्षण का कार्य करती है, बल्कि साथ ही यह आर्थिक लाभ भी प्रदान करती है।”
भारत में प्रतिवर्ष लगभग 35 करोड़ टन कृषि अवशिष्ट उत्पन्न होता है, जिसका अधिकतर हिस्सा जलाया जाता है, जिससे पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचता है। यह नवाचार न केवल इस समस्या का समाधान करता है, बल्कि कृषि अपशिष्ट को संपदा में बदलकर चक्रीय अर्थव्यवस्था की दिशा में आगे बढ़ाता है।
राष्ट्रीय अभियान को मजबूती प्रदान करना
IIT रुड़की के निदेशक प्रो. कमल किशोर पंत ने इस नवाचार की प्रशंसा करते हुए कहा, “यह हमारे पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करने और स्वच्छ भारत, मेक इन इंडिया जैसे राष्ट्रीय अभियानों को मजबूती देने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह शोध से व्यावहारिक लागू करने की यात्रा का एक जीवंत उदाहरण है।”
महत्वपूर्ण योगदान देने वाले छात्र
इस परियोजना में पीएचडी छात्रा जैस्मीन कौर और पोस्ट-डॉक्टरल शोधकर्ता डॉ. राहुल रंजन ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह नवाचार न केवल पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान करता है, बल्कि किसानों, उद्योगों और समाज के लिए एक स्वच्छ और स्वस्थ भारत बनाने में मदद करता है।
इस प्रकार IIT रुड़की का यह नवीनतम प्रयास न केवल एक महत्वपूर्ण तकनीकी उपलब्धि है, बल्कि यह पर्यावरण और समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारियों को समझने और निभाने का एक उत्कृष्ट उदाहरण भी है।
स्रोत: India Twoday. Team India Twoday, लेखक: सुमन शर्मा
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