अकाल मृत्यु की घटनाएं क्यों बढ़ीं? विचार करें:जौनपुर में कथावाचक बोले- कर्मों पर निर्भर करता है, कौन कितना जिएगा
जौनपुर के बीआरपी इंटर कॉलेज मैदान में आयोजित सप्त दिवसीय रामकथा के तीसरे दिन, व्यासपीठ से श्रीराम कथा का गायन करते हुए पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने सत्ययुग और त्रेतायुग के समय की तुलना में कलयुग में मनुष्य के जीवन की असुरक्षा पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि पहले मनुष्य की अकाल मृत्यु की कोई संभावना नहीं थी, लेकिन द्वापर युग से अकाल मृत्यु की घटनाएं शुरू हुईं और अब कलयुग में इसका प्रकोप इतना बढ़ गया है कि जन्म लेने वाले के लिए यह सुनिश्चित नहीं होता कि वह कितने दिन धरती पर रहेगा। महाराज श्री ने ज्ञान प्रकाश सिंह के पावन संकल्प से आयोजित रामकथा के दौरान धनुष भंग यज्ञ और भगवान श्रीराम के विवाह के प्रसंगों का सुंदर वाचन किया। उन्होंने बताया कि इस युग में मनुष्य का जीवन और मृत्यु किसी भी समय हो सकती है, और यह सब उसके कर्मों पर निर्भर करता है। भगवान की माया के अंतर्गत मनुष्य अपने कर्मों से ही अपना प्रारब्ध बनाता है और फिर अपनी राह पर चलता है। महाराज जी ने यह भी कहा कि भगवान के भक्तों की संख्या में कमी नहीं है, और जो व्यक्ति सच्चे मन से भक्ति करते हैं, उनका जीवन सुखमय बनता है। भक्तों के बारे में कहते हुए उन्होंने उदाहरण दिया कि जैसे नशेड़ी अपने नशे के लिए समय निकाल लेते हैं, वैसे ही भगत भी अपने भगवान का भजन करने के लिए समय निकाल लेते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि संसार में अच्छे-बुरे दोनों ही पहलू मौजूद हैं, और जो भगत अच्छे को अपनाते हैं, वे अपना जीवन धन्य बनाते हैं। "साधारण व्यक्ति के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने जीवन को धर्म के अनुसार ढाले, क्योंकि केवल धर्म के अनुसार किया गया कर्म ही सही परिणाम देता है," महाराज श्री ने कहा। उन्होंने यह भी बताया कि निरंतर भजन में रहने वाले व्यक्ति की मृत्यु नहीं होती, और वह अपनी कीर्ति से अमर हो जाते हैं। इसके अलावा, पूज्य श्री ने यह संदेश भी दिया कि हर व्यक्ति का अपना महत्व होता है और भगवान अपने कार्यों के लिए योग्य व्यक्ति को ही चुनते हैं। धनुष भंग और श्रीराम-सीता विवाह के प्रसंगों पर उन्होंने बताया कि जैसे काम के लिए सुई और तलवार का चयन सही होता है, वैसे ही कार्य का होना भी उसी के योग्य व्यक्ति से होता है। समाज और जीवन में धर्म का महत्व समझाते हुए पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने कहा, "सनातन धर्म में गृहस्थ जीवन को श्रेष्ठतम माना गया है। विवाह संस्कार को समाज का मेरुदंड बताया गया है।" इस मौके पर मुख्य यजमान श्री ज्ञान प्रकाश सिंह ने परिवार सहित व्यास पीठ का पूजन किया और भगवान की आरती उतारी। रामकथा के सुमधुर भजनों के बीच हजारों की संख्या में श्रोता भावविभोर होकर झूमते नजर आए।
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