उत्तराखंड हाईकोर्ट का बड़ा आदेश: संविदा और आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए नई उम्मीद

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने संविदा (कॉन्ट्रैक्ट) और आउटसोर्सिंग पर कार्यरत कर्मचारियों के नियमितीकरण को लेकर राज्य सरकार को छह महीने के भीतर नियम बनाने का निर्देश दिया है। मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंदर और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने इस संबंध में सुनवाई करते हुए कहा कि सरकार को जल्द ही इस मुद्दे पर अपनी …

Sep 7, 2025 - 18:27
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उत्तराखंड हाईकोर्ट का बड़ा आदेश: संविदा और आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए नई उम्मीद
नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने संविदा (कॉन्ट्रैक्ट) और आउटसोर्सिंग पर कार्यरत कर्मचारियों के नि

उत्तराखंड हाईकोर्ट का बड़ा आदेश: संविदा और आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए नई उम्मीद

नैनीताल: उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने कल अहम सुनवाई के दौरान संविदा (कॉन्ट्रैक्ट) और आउटसोर्सिंग के आधार पर कार्यरत कर्मचारियों के नियमितीकरण के लिए राज्य सरकार को छह महीने के भीतर नियम बनाने का निर्देश दिया है। मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंदर और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने यह स्पष्ट किया कि सरकार को इस मामले में जल्द से जल्द स्थिति स्पष्ट करनी होगी।

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याचिका का संदर्भ और मुख्य बिंदु

यह आदेश खासतौर पर देहरादून के स्टेट नर्सिंग कॉलेज में पिछले 15 वर्षों से असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत मयंक कुमार जामिनी की याचिका पर आया। याचिकाकर्ता ने अदालत में बताया कि उन्हें 2010 में लेक्चरर (अब असिस्टेंट प्रोफेसर) के पद पर संविदा के आधार पर नियुक्त किया गया था। हालांकि, 15 सालों की सेवा के पश्चात भी उन्हें न तो नियमितीकरण किया गया और न ही समान कार्य करने के लिए समान वेतन का लाभ दिया गया।

नए पदों का विज्ञापन और याचिका का अर्थ

हाल ही में, राज्य सरकार ने असिस्टेंट प्रोफेसर के 16 पदों के लिए विज्ञापन जारी किया जहां याचिकाकर्ता भी काम कर रहे हैं। याचिकाकर्ता ने इसे नियम विरुद्ध बताकर कोर्ट में चुनौती दी है। उनकी दलील थी कि इतने वर्षों की सेवा को देखते हुए न तो उन्हें आयु सीमा में छूट मिली और न ही अनुभव का कोई लाभ।

सरकार का तर्क और कोर्ट की तर्कशक्ति

राज्य सरकार ने कथित तौर पर अदालत को सूचित किया कि मुख्यमंत्री की घोषणा और कैबिनेट के निर्णयानुसार, संविदा और आउटसोर्स कर्मचारियों के नियमितीकरण की प्रक्रिया के लिए एक सात सदस्यीय उच्चस्तरीय समिति का गठन किया गया है। हालांकि, अदालत ने इस दावे पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब सरकार स्वयं नियमितीकरण की प्रक्रिया में है, तो लंबे समय से कार्यरत कर्मचारियों के अधिकारों का ध्यान रखना नितांत आवश्यक है।

कोर्ट के महत्वपूर्ण निर्देश

कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि नए विज्ञापन में याचिकाकर्ता और उनके समान स्थिति में कार्यरत एक अन्य कर्मचारी के पद को खाली रखा जाए। साथ ही, यह भी स्पष्ट किया गया कि जब तक नियमितीकरण के नियम नहीं बन जाते, याचिकाकर्ता की सेवा पूर्ववत जारी रहेगी। अदालत ने सरकार को इस मामले में छह माह का समय दिया है, जिसके पश्चात याचिकाकर्ता के नियमितीकरण पर निर्णय लिया जाएगा।

भविष्य की दिशा

यह निर्णय संविदा और आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए एक नई आशा का संचार करता है। यह केवल मयंक कुमार जामिनी जैसे कर्मचारियों के लिए नहीं, बल्कि ऐसे सभी व्यक्तियों के लिए सकारात्मक संकेत है जो लंबे समय से काम कर रहे हैं लेकिन नियमितीकरण और उनकें अधिकारों की अनदेखी की गई है। इसके अलावा, इस आदेश का दीर्घकालिक प्रभाव भी देखने को मिलेगा जब अन्य राज्य भी ऐसे मामलों पर ध्यान देंगे।

कम शब्दों में कहें तो, उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा दिया गया यह आदेश राज्य के संविदा और आउटसोर्स कर्मचारियों के लिए बड़ी राहत सिद्ध हो सकता है, और यह सुनिश्चित करता है कि उनकी मेहनत और समर्पण को उचित सम्मान मिले।

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साइनऑफ: टीम इंडिया टुडे - निशा शर्मा

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