कौशांबी में बौद्ध भिक्षुओं की चीवर पूजा:बुद्ध कालीन परंपरा को जीवंत रखने की कोशिश, शोभायात्रा में गूंजे मंत्र

तपोस्थली में बौद्ध भिक्षुओं ने विधि विधान से चीवर पूजा का आयोजन किया। इस धार्मिक अनुष्ठान में श्रीलंका, कंबोडिया और म्यांमार से आए बौद्ध उपासकों ने परंपरागत तरीके से शोभायात्रा निकाली। इस दौरान “धम्मम शरणम गच्छामि, बुद्धम शरणम गच्छामि, संघम शरणम गच्छामि” के मंत्र गूंजते रहे। बौद्ध धर्म में बच्चों के लिए वर्षावास काल का विशेष महत्व होता है, और भगवान बुद्ध ने भी त्रैमासिक वर्षावास काल व्यतीत किया था। बौद्ध भिक्षुओं को बरसात के मौसम में एक ऊंचे स्थान पर रहकर ज्ञान, साधना और पूजा-अर्चना में व्यतीत करने का उपदेश दिया गया था। यह बुद्धकालीन परंपरा आज भी जीवंत है, जिसे बौद्ध भिक्षु संजीवनी प्रदान कर रहे हैं। परंपरा के अनुसार, ऐसे बौद्ध भिक्षुओं के बीच बौद्ध उपासकों द्वारा दैनिक उपयोग की सामग्रियों का दान करना काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस समारोह में श्रीलंका बौद्ध विहार के प्रबंधक डॉक्टर टी श्री विशुद्ध तेरो के नेतृत्व में बौद्ध उपासकों ने विधि विधान से चीवर पूजा करते हुए शोभायात्रा निकाली। इसके बाद, परंपरागत तरीके से चीवर दान किया गया। भंते टी श्री विशुद्ध महातेरो ने बताया कि यहां बौद्ध विहार की स्थापना वर्ष 2006 में हुई थी, तब से यहां बौद्ध पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है। मंदिर बनने के बाद से वार्षिक कठिन जीवन पूजा की परंपरा भी चली आ रही है। श्रीलंका के उपासक बौद्ध भिक्षु हर वर्ष यहां आकर पूजन करने के बाद धम्मम शरणम गच्छामि, बुद्धम शरणम गच्छामि, संघम शरणम गच्छामि के मंत्रों के साथ शोभायात्रा निकालते हैं, जो बौद्ध संस्कृति और परंपरा की गहराई को दर्शाता है। 4o mini

Oct 28, 2024 - 09:55
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कौशांबी में बौद्ध भिक्षुओं की चीवर पूजा:बुद्ध कालीन परंपरा को जीवंत रखने की कोशिश, शोभायात्रा में गूंजे मंत्र
तपोस्थली में बौद्ध भिक्षुओं ने विधि विधान से चीवर पूजा का आयोजन किया। इस धार्मिक अनुष्ठान में श्रीलंका, कंबोडिया और म्यांमार से आए बौद्ध उपासकों ने परंपरागत तरीके से शोभायात्रा निकाली। इस दौरान “धम्मम शरणम गच्छामि, बुद्धम शरणम गच्छामि, संघम शरणम गच्छामि” के मंत्र गूंजते रहे। बौद्ध धर्म में बच्चों के लिए वर्षावास काल का विशेष महत्व होता है, और भगवान बुद्ध ने भी त्रैमासिक वर्षावास काल व्यतीत किया था। बौद्ध भिक्षुओं को बरसात के मौसम में एक ऊंचे स्थान पर रहकर ज्ञान, साधना और पूजा-अर्चना में व्यतीत करने का उपदेश दिया गया था। यह बुद्धकालीन परंपरा आज भी जीवंत है, जिसे बौद्ध भिक्षु संजीवनी प्रदान कर रहे हैं। परंपरा के अनुसार, ऐसे बौद्ध भिक्षुओं के बीच बौद्ध उपासकों द्वारा दैनिक उपयोग की सामग्रियों का दान करना काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इस समारोह में श्रीलंका बौद्ध विहार के प्रबंधक डॉक्टर टी श्री विशुद्ध तेरो के नेतृत्व में बौद्ध उपासकों ने विधि विधान से चीवर पूजा करते हुए शोभायात्रा निकाली। इसके बाद, परंपरागत तरीके से चीवर दान किया गया। भंते टी श्री विशुद्ध महातेरो ने बताया कि यहां बौद्ध विहार की स्थापना वर्ष 2006 में हुई थी, तब से यहां बौद्ध पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है। मंदिर बनने के बाद से वार्षिक कठिन जीवन पूजा की परंपरा भी चली आ रही है। श्रीलंका के उपासक बौद्ध भिक्षु हर वर्ष यहां आकर पूजन करने के बाद धम्मम शरणम गच्छामि, बुद्धम शरणम गच्छामि, संघम शरणम गच्छामि के मंत्रों के साथ शोभायात्रा निकालते हैं, जो बौद्ध संस्कृति और परंपरा की गहराई को दर्शाता है। 4o mini

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