क्या वायनाड से शुरू होगा प्रियंका का संसदीय सफर:लोग ने कहा- 5 साल में राहुल से बात नहीं कर सके; लोकल सांसद हमारी मुश्किलें समझता

आम लोगों के लिए राहुल और प्रियंका जैसे नेताओं तक पहुंचना आसान नहीं है। कड़ी सुरक्षा के कारण हम राहुल से कभी बात नहीं कर सके। अगर बात हुई भी, तो भाषा के कारण कोई दूसरा व्यक्ति उन्हें हमारी बात समझाता था। इससे हमारी भावनाएं उन तक पहुंच ही नहीं पाती थीं। मुझे नहीं लगता कि अगर प्रियंका जैसे हाई-प्रोफाइल लोग सांसद बनेंगे तो यह बदलेगा। अगर हमारा सांसद स्थानीय होता तो लोग उससे बात कर सकते थे। यह कहने वाली 25 साल की काव्यांजलि वायनाड की युवा आदिवासी वोटर हैं। वायनाड में केरल की सबसे ज्यादा आदिवासी आबादी रहती है। यहां एक साल के भीतर दूसरी बार लोकसभा चुनाव हुए हैं। अप्रैल, 2024 में राहुल गांधी यहां से दूसरी बार सांसद बने, लेकिन उत्तर प्रदेश की रायबरेली सीट जीतने के बाद उन्होंने वायनाड छोड़ दिया था। अब राहुल ने बहन प्रियंका गांधी वाड्रा ​​​​​को मैदान में उतारा है। यह प्रियंका का पहला चुनाव है और जीतने पर उन्हें संसद में एंट्री मिलेगी। वायनाड उपचुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टियों में जितना उत्साह है, वोटर्स में उतनी ही निराशा दिखाई देती है। वायनाड ऐतिहासिक रूप से कांग्रेस का गढ़ रहा है। यहां उपचुनाव के लिए 13 नवंबर को वोटिंग हो चुकी है। दैनिक भास्कर ने वोटिंग से पहले यहां पहुंचकर वोटर्स और नेताओं से बात की थी। हमने जिन वोटर्स से बात की, वे प्रियंका की उम्मीदवारी से ज्यादा खुश नहीं दिखे। लोग बोले- राहुल ने 5 साल कुछ नहीं किया वायनाड के कट्टीकुलम में कट्टुनायकन आदिवासी समुदाय के राकेश ने बताया कि सत्ता में चाहे कोई भी आए-जाए, हमारे जीवन में कोई बदलाव नहीं आता। 28 साल के राकेश पर्यावरण विकास के लिए काम करने वाले एक NGO में काम करते हैं। उन्होंने कहा, 'कोई भी नेता फॉरेस्ट राइट्स एक्ट (शेड्यूल ट्राइब्स एंड अदर ट्रेडिशनल फॉरेस्ट ड्वेलर्स), रेकगनिशन ऑफ फॉरेस्ट राइट्स एक्ट्स-2006 को लागू करने की बात नहीं करता है। अगर यह लागू होता तो हम अपनी जमीन और संसाधनों पर दावा कर सकते थे। राहुल गांधी ने 5 साल सांसद रहने के दौरान कुछ भी नहीं किया। उन्होंने कोई बड़ा बदलाव नहीं किया है। चुनाव के दौरान आदिवासियों को हमेशा लुभाने की कोशिश होती रही है। हम सिर्फ एक भारतीय नागरिक के नाते वोट दे रहे हैं। इसके अलावा कुछ भी अलग नहीं है।' राकेश के साथ काम करने वाली काव्यांजलि निराश होकर कहती हैं, 'लोकतंत्र हम आदिवासियों का भी है न? लेकिन जब बाहर के लोग हमारी पारंपरिक संपत्तियों की कीमत तय करते हैं, तो ऐसा लगता है कि हम सिर्फ एक दर्शक बनकर रह गए हैं। हमारी राय पूछने की भी कोई जहमत नहीं उठाता। उपचुनाव की कोई जरूरत ही नहीं थी।' किसान ने कहा- उपचुनाव पैसे की बर्बादी वायनाड जिले के थ्रिसिलरी में 60 साल के किसान जॉनसन ओवी भी उपचुनाव को लेकर नाखुश दिखे। उन्होंने कहा, 'बार-बार चुनाव करवाना पैसों की बर्बादी है। न जाने उम्मीदवारों, राजनीतिक दलों और चुनाव आयोग ने कितने करोड़ रुपए खर्च किए होंगे। उस पैसे से करोड़ों किसानों की मदद की जा सकती थी। दोष सिस्टम में है, जो नेताओं को एक साथ दो सीटों से चुनाव लड़ने की इजाजत देता है।' जॉनसन धान की खेती करते हैं। वे वायनाड स्थित थिरुनेली एग्री प्रोड्यूसर कंपनी (TAPCo) के अध्यक्ष भी हैं। वे कहते हैं कि मैंने पहले वोट नहीं देने का मन बनाया था, लेकिन ये मेरा लोकतांत्रिक अधिकार हैं। इसलिए मैंने अपना मन बदल लिया। लैंडस्लाइड में घर, खेत गंवाए, फिर भी वापस लौटने को तैयार वायनाड वही जगह है, जहां इस साल 30 जुलाई को भारत के इतिहास का सबसे बड़ा लैंडस्लाइड हुआ था। इसमें मुंडक्कई और चूरलमाला गांव पूरी तरह तबाह हो गए। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि त्रासदी वाले इलाके और पास के मलप्पुरम जिले के चलियार नदी में 231 शव और 222 शरीर के अंग पाए गए। चुरलमाला में हमें 65 साल के अन्नय्यन मिले। उन्होंने बताया कि वे एक किसान हैं। कॉफी की खेती करते हैं। लैंडस्लाइड के बाद वह अपने परिवार के साथ चूरलमाला से 13 किलोमीटर दूर मेप्पडी में किराए के घर में रहने लगे। उन्होंने बताया, 'मैंने लैंडस्लाइड में अपना घर, दो एकड़ कॉफी बागान और चार दुकानें खो दीं। हालांकि, मैं इससे दुखी नहीं हूं। मुझे अपने आस-पास रहने वाले लोगों की मौत पर दुख है। वे सभी हमारे दिल के बेहद करीब थे।' 'हम चुनाव से एक दिन पहले तैयारियों में अधिकारियों की मदद करते थे। चुनाव से पहले हम वोटिंग बूथ के पास इकट्ठा होते थे। साथ में समय बिताते थे। अब हममें से कुछ ही लोग बचे हैं। हमें लगता है जैसे हम कहीं खो गए हैं। हम अपनी जमीन से बहुत लगाव है। अगर सरकार कहे कि यह इलाका रहने लायक है तो हम अब भी वहां लौटने को तैयार हैं।' CPI नेता बोले- राहुल ने वायनाड के लोगों को धोखा दिया दूसरी तरफ, लेफ्ट पार्टियों का कहना है कि राहुल ने रायबरेली को चुनकर वायनाड के साथ विश्वासघात किया है। लेफ्ट ने चुनाव-प्रचार के दौरान ये मुद्दा खूब उठाया। CPI के स्टेट सेक्रेटरी ​​​​​बिनॉय विश्वम ने कहा कि कांग्रेस ने वायनाड के लोगों के साथ बेईमानी की है। बिनॉय विश्वम ने कहा, 'राहुल गांधी 2019 के मुकाबले अप्रैल, 2024 में वायनाड के लोगों के प्रति ज्यादा प्यार दिखा रहे थे। उन्होंने कहा था कि वह जीवन भर वायनाड के साथ रहेंगे। उन्होंने रायबरेली को चुनकर वायनाड के लोगों को धोखा दिया। जब लैंडस्लाइड हुआ तो संसद में वायनाड के लिए आवाज उठाने वाला कोई नहीं था। कांग्रेस ने वायनाड के अहम मुद्दों को भी दरकिनार किया। प्रियंका का सत्यन मोकेरी और नव्या हरिदास से मुकाबला 2024 के उपचुनाव में यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) की तरफ से कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी चुनावी मैदान में हैं। सत्तारूढ़ लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF) ने सत्यन मोकेरी को मैदान में उतारा है। सत्यन मोकेरी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) से तीन बार के विधायक हैं। वह अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय संयुक्त सचिव भी हैं। भाजपा ने प्रियंका के खिलाफ उतारा नव्या हरिदास को उतारा है। नव्या क

Nov 14, 2024 - 05:05
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क्या वायनाड से शुरू होगा प्रियंका का संसदीय सफर:लोग ने कहा- 5 साल में राहुल से बात नहीं कर सके; लोकल सांसद हमारी मुश्किलें समझता
आम लोगों के लिए राहुल और प्रियंका जैसे नेताओं तक पहुंचना आसान नहीं है। कड़ी सुरक्षा के कारण हम राहुल से कभी बात नहीं कर सके। अगर बात हुई भी, तो भाषा के कारण कोई दूसरा व्यक्ति उन्हें हमारी बात समझाता था। इससे हमारी भावनाएं उन तक पहुंच ही नहीं पाती थीं। मुझे नहीं लगता कि अगर प्रियंका जैसे हाई-प्रोफाइल लोग सांसद बनेंगे तो यह बदलेगा। अगर हमारा सांसद स्थानीय होता तो लोग उससे बात कर सकते थे। यह कहने वाली 25 साल की काव्यांजलि वायनाड की युवा आदिवासी वोटर हैं। वायनाड में केरल की सबसे ज्यादा आदिवासी आबादी रहती है। यहां एक साल के भीतर दूसरी बार लोकसभा चुनाव हुए हैं। अप्रैल, 2024 में राहुल गांधी यहां से दूसरी बार सांसद बने, लेकिन उत्तर प्रदेश की रायबरेली सीट जीतने के बाद उन्होंने वायनाड छोड़ दिया था। अब राहुल ने बहन प्रियंका गांधी वाड्रा ​​​​​को मैदान में उतारा है। यह प्रियंका का पहला चुनाव है और जीतने पर उन्हें संसद में एंट्री मिलेगी। वायनाड उपचुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टियों में जितना उत्साह है, वोटर्स में उतनी ही निराशा दिखाई देती है। वायनाड ऐतिहासिक रूप से कांग्रेस का गढ़ रहा है। यहां उपचुनाव के लिए 13 नवंबर को वोटिंग हो चुकी है। दैनिक भास्कर ने वोटिंग से पहले यहां पहुंचकर वोटर्स और नेताओं से बात की थी। हमने जिन वोटर्स से बात की, वे प्रियंका की उम्मीदवारी से ज्यादा खुश नहीं दिखे। लोग बोले- राहुल ने 5 साल कुछ नहीं किया वायनाड के कट्टीकुलम में कट्टुनायकन आदिवासी समुदाय के राकेश ने बताया कि सत्ता में चाहे कोई भी आए-जाए, हमारे जीवन में कोई बदलाव नहीं आता। 28 साल के राकेश पर्यावरण विकास के लिए काम करने वाले एक NGO में काम करते हैं। उन्होंने कहा, 'कोई भी नेता फॉरेस्ट राइट्स एक्ट (शेड्यूल ट्राइब्स एंड अदर ट्रेडिशनल फॉरेस्ट ड्वेलर्स), रेकगनिशन ऑफ फॉरेस्ट राइट्स एक्ट्स-2006 को लागू करने की बात नहीं करता है। अगर यह लागू होता तो हम अपनी जमीन और संसाधनों पर दावा कर सकते थे। राहुल गांधी ने 5 साल सांसद रहने के दौरान कुछ भी नहीं किया। उन्होंने कोई बड़ा बदलाव नहीं किया है। चुनाव के दौरान आदिवासियों को हमेशा लुभाने की कोशिश होती रही है। हम सिर्फ एक भारतीय नागरिक के नाते वोट दे रहे हैं। इसके अलावा कुछ भी अलग नहीं है।' राकेश के साथ काम करने वाली काव्यांजलि निराश होकर कहती हैं, 'लोकतंत्र हम आदिवासियों का भी है न? लेकिन जब बाहर के लोग हमारी पारंपरिक संपत्तियों की कीमत तय करते हैं, तो ऐसा लगता है कि हम सिर्फ एक दर्शक बनकर रह गए हैं। हमारी राय पूछने की भी कोई जहमत नहीं उठाता। उपचुनाव की कोई जरूरत ही नहीं थी।' किसान ने कहा- उपचुनाव पैसे की बर्बादी वायनाड जिले के थ्रिसिलरी में 60 साल के किसान जॉनसन ओवी भी उपचुनाव को लेकर नाखुश दिखे। उन्होंने कहा, 'बार-बार चुनाव करवाना पैसों की बर्बादी है। न जाने उम्मीदवारों, राजनीतिक दलों और चुनाव आयोग ने कितने करोड़ रुपए खर्च किए होंगे। उस पैसे से करोड़ों किसानों की मदद की जा सकती थी। दोष सिस्टम में है, जो नेताओं को एक साथ दो सीटों से चुनाव लड़ने की इजाजत देता है।' जॉनसन धान की खेती करते हैं। वे वायनाड स्थित थिरुनेली एग्री प्रोड्यूसर कंपनी (TAPCo) के अध्यक्ष भी हैं। वे कहते हैं कि मैंने पहले वोट नहीं देने का मन बनाया था, लेकिन ये मेरा लोकतांत्रिक अधिकार हैं। इसलिए मैंने अपना मन बदल लिया। लैंडस्लाइड में घर, खेत गंवाए, फिर भी वापस लौटने को तैयार वायनाड वही जगह है, जहां इस साल 30 जुलाई को भारत के इतिहास का सबसे बड़ा लैंडस्लाइड हुआ था। इसमें मुंडक्कई और चूरलमाला गांव पूरी तरह तबाह हो गए। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि त्रासदी वाले इलाके और पास के मलप्पुरम जिले के चलियार नदी में 231 शव और 222 शरीर के अंग पाए गए। चुरलमाला में हमें 65 साल के अन्नय्यन मिले। उन्होंने बताया कि वे एक किसान हैं। कॉफी की खेती करते हैं। लैंडस्लाइड के बाद वह अपने परिवार के साथ चूरलमाला से 13 किलोमीटर दूर मेप्पडी में किराए के घर में रहने लगे। उन्होंने बताया, 'मैंने लैंडस्लाइड में अपना घर, दो एकड़ कॉफी बागान और चार दुकानें खो दीं। हालांकि, मैं इससे दुखी नहीं हूं। मुझे अपने आस-पास रहने वाले लोगों की मौत पर दुख है। वे सभी हमारे दिल के बेहद करीब थे।' 'हम चुनाव से एक दिन पहले तैयारियों में अधिकारियों की मदद करते थे। चुनाव से पहले हम वोटिंग बूथ के पास इकट्ठा होते थे। साथ में समय बिताते थे। अब हममें से कुछ ही लोग बचे हैं। हमें लगता है जैसे हम कहीं खो गए हैं। हम अपनी जमीन से बहुत लगाव है। अगर सरकार कहे कि यह इलाका रहने लायक है तो हम अब भी वहां लौटने को तैयार हैं।' CPI नेता बोले- राहुल ने वायनाड के लोगों को धोखा दिया दूसरी तरफ, लेफ्ट पार्टियों का कहना है कि राहुल ने रायबरेली को चुनकर वायनाड के साथ विश्वासघात किया है। लेफ्ट ने चुनाव-प्रचार के दौरान ये मुद्दा खूब उठाया। CPI के स्टेट सेक्रेटरी ​​​​​बिनॉय विश्वम ने कहा कि कांग्रेस ने वायनाड के लोगों के साथ बेईमानी की है। बिनॉय विश्वम ने कहा, 'राहुल गांधी 2019 के मुकाबले अप्रैल, 2024 में वायनाड के लोगों के प्रति ज्यादा प्यार दिखा रहे थे। उन्होंने कहा था कि वह जीवन भर वायनाड के साथ रहेंगे। उन्होंने रायबरेली को चुनकर वायनाड के लोगों को धोखा दिया। जब लैंडस्लाइड हुआ तो संसद में वायनाड के लिए आवाज उठाने वाला कोई नहीं था। कांग्रेस ने वायनाड के अहम मुद्दों को भी दरकिनार किया। प्रियंका का सत्यन मोकेरी और नव्या हरिदास से मुकाबला 2024 के उपचुनाव में यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) की तरफ से कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी चुनावी मैदान में हैं। सत्तारूढ़ लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF) ने सत्यन मोकेरी को मैदान में उतारा है। सत्यन मोकेरी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) से तीन बार के विधायक हैं। वह अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय संयुक्त सचिव भी हैं। भाजपा ने प्रियंका के खिलाफ उतारा नव्या हरिदास को उतारा है। नव्या कोझिकोड नगर निगम में पार्षद हैं। वह एक पूर्व सॉफ्टवेयर इंजीनियर और भाजपा महिला मोर्चा की राज्य महासचिव भी हैं। राहुल को 2019 के मुकाबले 2024 में 67 हजार कम वोट मिले केरल में कुल 20 लोकसभा सीटें हैं। अप्रैल 2024 के चुनाव में कांग्रेस ने 14 सीटें जीती थीं। राज्य में भाजपा का केवल एक सांसद है, जबकि 140 सदस्यों वाले विधानसभा में विधायक एक भी नहीं है। पिछले दो लोकसभा चुनावों में वायनाड सबसे चर्चित सीट रहा है। इस लोकसभा क्षेत्र में 14 लाख से ज्यादा वोटर्स हैं। 2019 में वायनाड से राहुल गांधी की उम्मीदवारी की घोषणा ने केरल में चुनावी माहौल को काफी हद तक बदल दिया था। उन्होंने 4 लाख 31 हजार वोटों से सीट जीती। हालांकि, अप्रैल 2024 के चुनाव में वायनाड से उनके दोबारा चुनाव लड़ने तक मतदाताओं में उत्साह कम हो गया। उन्हें 2019 की तुलना में 67 हजार कम वोट मिले। अप्रैल के चुनाव में प्रतिद्वंद्वी CPI के एनी राजा ने राहुल के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। उन्होंने आरोप लगाया है कि 5 साल के दौरान राहुल ने संसद में वायनाड का नाम तक नहीं लिया। जून 2019 से फरवरी 2024 तक लोकसभा में राहुल की उपस्थिति 51% थी, जबकि राष्ट्रीय औसत 79% और राज्य का औसत 83% था। हालांकि, राहुल ने अप्रैल, 2024 में एनी राजा को 3 लाख 64 हजार 422 वोटों के भारी अंतर से हरा दिया। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के सुरेंद्रन 1 लाख 41 हजार 45 वोट हासिल कर तीसरे स्थान पर रहे। कांग्रेस को जीत का भरोसा, राहुल बोले- वायनाड के दो सांसद होंगे कांग्रेस वायनाड से जीत को लेकर आश्वस्त है। केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता वीडी सतीसन ने कहा कि पार्टी यह सुनिश्चित करेगी कि प्रियंका गांधी अपना पहला चुनाव जीतें। प्रियंका गांधी ने वायनाड में कई चुनावी रैलियां की हैं। प्रियंका ने एक चुनावी रैली में कहा, 'जिस प्राकृतिक आपदा ने वायनाड के लोगों को सबसे ज्यादा पीड़ा पहुंचाई, भाजपा ने उसमें भी पॉलिटिक्स की। आप (वायनाड के लोग) अपनी जरूरतों और अपने देश में किस तरह की राजनीति चाहते हैं, उसके बारे में आपको सोचना चाहिए।' 11 नवंबर को प्रियंका के चुनाव अभियान के अंतिम दिन राहुल गांधी उनके साथ पहुंचे। राहुल ने कहा कि वायनाड भारत का एकमात्र लोकसभा क्षेत्र होगा जहां दो सांसद होंगे- एक ऑफिशियल और दूसरा नन-ऑफिशियल। आप दोनों को संसद में वायनाड के मुद्दे उठाते हुए देखेंगे।'

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