गृह राज्यमंत्री बोले- कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास की पॉलिसी नहीं:अब पंडितों ने खुद बनाई सोसायटी; कश्मीर लौटने के लिए 500 परिवारों ने संपर्क किया
अनुच्छेद 370 हटने के बाद से केंद्र सरकार से अपने पुनर्वास यानी कश्मीर घाटी में फिर से बसाए जाने की आस में बैठे कश्मीरी पंडित इस बार खुद आगे बढ़े हैं। इसके लिए कश्मीरी पंडितों ने पहली बार एक हाउसिंग सोसायटी रजिस्टर कराई है। पिछले चार दिन में देशभर में मौजूद 500 कश्मीरी पंडित परिवारों ने घाटी में बसने के लिए सोसायटी से संपर्क किया है। वे कश्मीर लौटकर नए सिरे से जिंदगी शुरू करना चाहते हैं। सोसायटी के सचिव सतीश महालदार ने भास्कर को बताया कि सोसायटी का नाम डिस्प्लेस्ड कश्मीरी पंडित हाउसिंग कॉपरेटिव है। इसे जम्मू-कश्मीर के रजिस्ट्रार ऑफिस से मंजूरी मिल गई है। यह पुनर्वास का पहला कदम है। हमें यकीन है कि केंद्र सरकार अब खुद पहल करेगी। सोसायटी के 9 सदस्य प्रवासी कश्मीरी पंडित, 2 गैर प्रवासी पंडित और एक सिख सदस्य है। इनमें से तीन सदस्यों ने हाल ही में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय से नई दिल्ली में मुलाकात कर हाउसिंग सोसायटी बनाने की जानकारी दी थी। इसके साथ ही उनसे पंडित परिवारों को बसाने के लिए सब्सिडी रेट पर जमीन की मांग भी की थी। सदस्य बोले- सरकार के पास पुनर्वास की कोई नीति नहीं सोसायटी के सदस्य संजय टिक्कू के मुताबिक सियासी पार्टियां 35 साल से अपने नारों, चुनावी घोषणा पत्रों में कश्मीरी पंडितों को जगह तो दे रही हैं, लेकिन हमें बसाने की उनके पास कोई नीति नहीं है। केंद्रीय मंत्री नित्यानंद से हमने पुनर्वास नीति के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि हमारे पास ऐसी कोई नीति नहीं है। ये सुनकर हम हैरान थे, इसलिए अब हम खुद कश्मीरी पंडितों को बसाने के लिए आगे आए हैं। हम जल्द ही मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला से भी मिलेंगे। पहले फेज में श्रीनगर में ही बसने की ख्वाहिश सोसायटी के सचिव महालदार के मुताबिक पुनर्वास के पहले फेज में सरकार से श्रीनगर में जमीन मांगी गई है। 35 साल पहले जब हमें श्रीनगर से निकाला गया था, तब हम सब-कुछ छोड़कर गए थे। आज भी हमारे टूटे घर यहां हैं, इसलिए हम चाहते हैं कि पहले हमें यहीं बसाया जाए। पीएम पैकेज के तहत कश्मीर में काम कर रहे पंडित दंपती हमेशा ट्रांजिट घरों में नहीं रह सकते। अब ऐसे परिवार हमसे जुड़ रहे हैं। जल्द इनकी संख्या हजारों में होगी, क्योंकि हर कोई यहां स्थायी आवास चाहता है। घर वापसी के लिए गृह मंत्रालय का ब्लू प्रिंट, 4600 विस्थापित परिवारों की लिस्ट तैयार जम्मू-कश्मीर में सरकार बनने के बाद कश्मीरी पंडितों की घर वापसी की प्रक्रिया नए सिरे से शुरू हुई थी। इसके लिए करीब एक महीने पहले 4600 परिवारों की सूची तैयार की गई थी। इनमें करीब 175 परिवारों की पहले फेज के तहत अगले तीन महीने में कश्मीर वापसी सुनिश्चित कराने की कोशिश है। इसे गृह मंत्रालय और राज्य सरकार मिलकर अमल में लाने की कोशिस करेंगी। गृह मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, कश्मीरी पंडितों की वापसी प्रक्रिया को लेकर इस बार जो ब्लू प्रिंट तैयार हुआ है, उसे व्यावहारिक रखने की कोशिश की गई है। पहले घर वापसी को पूर्णरूपेण रखा गया था। यानी जो विस्थापित होकर बाहर चले गए हैं, वे अपने परिवार और सामान सहित कश्मीर में अपने मूल स्थान पर लौट आएं। उन्हें कश्मीर में बसने के लिए आर्थिक मदद, नौकरी, सुरक्षा और बाकी सुविधा देने की बात थी। लेकिन पूर्ण वापसी का यह प्रयोग अधिक सफल नहीं हो सका। इस बार कश्मीरी पंडितों की पूर्ण रूप से घर वापसी को शिथिल किया गया है। विस्थापितों की जगह इन्हें प्रवासी की श्रेणी में रखा गया है। यानी ऐसे लोग जो रोजगार या शिक्षा के लिए बाहर हैं और छुट्टी या त्योहार पर अपने घर वापस आएंगे। पूरी खबर पढ़ें... 65 हजार पंडित परिवारों ने घाटी छोड़ी, 775 अभी भी रह रहे गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक कश्मीर में अभी 775 कश्मीरी पंडित परिवार रहते हैं। 1990 में 64,827 परिवारों ने घाटी छोड़ दी थी। इनमें 43,618 परिवार जम्मू और 19,338 परिवार दिल्ली-एनसीआर में शिफ्ट हुए। बाकी देश के अन्य राज्यों में रहते हैं। कश्मीरी पंडितों के लिए केंद्र सरकार ने 2008 और 2015 में पैकेज घोषित किए थे। इसमें 6000 जॉब और छोटे मकान दिए गए थे। 5700 प्रवासी पंडितों को नौकरी मिली है। उन्हें बडगाम जिले के ओमपोरा में ट्रांजिट घर दिए गए हैं, लेकिन ये स्थायी आवास नहीं है। प्रोजेक्ट खत्म होने या रिटायर होने पर उन्हें घर खाली करने होंगे। ----------------------------------------------------------- कश्मीरी पंडितों से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए 8465 करोड़ का बजट, लेकिन खर्च को ग्रीन सिग्नल नहीं अनुच्छेद 370 हटने के बाद भी घाटी में कश्मीरी पंडितों की वापसी मुश्किल बनी हुई है। 419 परिवारों ने बिना सरकारी मदद के घाटी में लौटने के लिए हिम्मत दिखाई और केंद्रीय गृह मंत्रालय में आवेदन दिया, लेकिन 5 साल बाद भी उन्हें जवाब नहीं मिला। पूरी खबर पढ़ें...
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