गौचर मेले की 73वीं वर्षगांठ: 14 नवंबर से शुरू होगा सांस्कृतिक उत्सव
जिला चमोली का ऐतिहासिक गौचर मेला 73वां राजकीय औद्योगिक विकास एवं सांस्कृतिक गौचर मेला तैयारी की प्रथम बैठक सम्पन्न जिलाधिकारी संदीप तिवारी की अध्यक्षता में संपन्न 14 नवंबर से शुरू होगा गौचर मेला चमोली, 07 अक्टूबर। आगामी 73वें राजकीय औद्योगिक विकास एवं सांस्कृतिक गौचर मेले की तैयारियों को लेकर मंगलवार को मेला अध्यक्ष/ जिलाधिकारी संदीप …

गौचर मेले की 73वीं वर्षगांठ: 14 नवंबर से शुरू होगा सांस्कृतिक उत्सव
जिला चमोली का ऐतिहासिक गौचर मेला
73वां राजकीय औद्योगिक विकास एवं सांस्कृतिक गौचर मेला - बैठक सम्पन्न
14 नवंबर से शुरू होगा गौचर मेला
चमोली, 07 अक्टूबर।
आगामी 73वें राजकीय औद्योगिक विकास एवं सांस्कृतिक गौचर मेले की तैयारियों को लेकर मंगलवार को मेला अध्यक्ष/ जिलाधिकारी संदीप तिवारी की अध्यक्षता में राजकीय इंटर कॉलेज गौचर के सभागार में एक महत्वपूर्ण बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक में अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों, व्यापार संघ के पदाधिकारियों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मेले को भव्य और सफल बनाने के लिए अपने-अपने विचार प्रस्तुत किए। गौचर मेला 14 नवंबर से आरंभ होगा, जिसका सभी को बेसब्री से इंतजार है।
बैठक में, उपजिलाधिकारी कर्णप्रयाग सोहन सिंह रांगण ने पिछले वर्ष आयोजित 72वें गौचर मेले की गेहूँ, फसल और लाभ की विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बताया कि मेले के खाते में ब्याज सहित कुल 57,206 रुपये की राशि अवशेष है, जिसके चलते इस वर्ष के मेले की भव्यता और दिव्यता को सुनिश्चित करने के लिए योजनाबद्ध तैयारियाँ की जा रही हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता भुवन नौटियाल ने सुझाव दिया कि मेले की भव्यता के लिए कम से कम 50 लाख रुपये की धनराशि शासन से मांगी जानी चाहिए, ताकि स्थानीय युवाओं को रोजगार के अवसर प्राप्त हों। उन्होंने नंदा देवी राजजात यात्रा को मेले से जोड़कर प्रचार-प्रसार करने का सुझाव भी दिया। इसी तरह, व्यापार संघ के अध्यक्ष राकेश लिंगवाल ने दुकानों के किराए में कमी लाने का आग्रह किया, ताकि अधिक व्यापारियों की भागीदारी सुनिश्चित हो सके।
हरिकेश भट्ट ने कहा कि मेले के दौरान युवाओं को आपदा प्रबंधन एवं बचाव का प्रशिक्षण देने के लिए एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के कैंप लगाए जाएं। सुरेंद्र कनवासी ने आपदा प्रभावित परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए आर्थिक सहयोग की अपील की। इसके अतिरिक्त, उन्होंने दुकानों के आवंटन में पारदर्शिता बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया।
स्थानीय समुदाय के सदस्यों ने सुझाव दिया कि मेले में आने वाले छात्र-छात्राओं के लिए कैरियर काउंसलिंग स्टॉल लगाए जाएँ, ताकि उन्हें भविष्य के रोजगार और स्वरोजगार के अवसरों की जानकारी मिल सके। चैतन्य बिष्ट ने स्किल इंडिया योजना के तहत युवाओं को स्वरोजगार प्रशिक्षण देने हेतु विशेष स्टॉल स्थापित करने का सुझाव दिया।
ताजगी और स्वच्छता के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए नवनिर्वाचित सभासदों ने मेले परिसर में प्लास्टिक प्रतिबंध लागू करने की मांग की। इसके साथ ही, पेयजल, पार्किंग, सुरक्षा और स्वच्छता व्यवस्था के लिए व्यापक कार्ययोजना तैयार करने का सुझाव दिया गया।
नगर पालिका अध्यक्ष गणेश शाह ने कहा कि गौचर मेला हमारी सांस्कृतिक विरासत और गौरव का प्रतीक है, और इसे भव्यता और परंपरा के साथ मनाने का हरसंभव प्रयास किया जाएगा।
इस अवसर पर, मेला अध्यक्ष जिलाधिकारी संदीप तिवारी ने वाल्मीकि जयंती की शुभकामनाएं देते हुए उपस्थित सभी जनप्रतिनिधियों, व्यापारियों, अधिकारियों और स्थानीय नागरिकों का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि बैठक में प्राप्त सभी सुझावों पर गंभीरता से विचार किया जाएगा।
जिलाधिकारी ने कहा कि कैरियर काउंसलिंग स्टॉल की व्यवस्था छात्रों के लिए उपयोगी होगी और स्थानीय कलाकारों को मंच प्रदान कर उनकी प्रतिभा को प्रोत्साहन दिया जाएगा। उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि प्लास्टिक मुक्त मेला बनाना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।
उन्होंने आश्वासन दिया कि दुकानों के किराए और आवंटन प्रक्रिया से संबंधित विषयों पर उचित विचार-विमर्श कर पारदर्शी निर्णय लिया जाएगा, ताकि हर वर्ग की सहभागिता सुनिश्चित हो सके। इस बैठक में अपर जिला अधिकारी विवेक प्रकाश, जिला विकास अधिकारी केके पंत, स्थानीय लोग, जनप्रतिनिधि, व्यापारी वर्ग एवं जनपद स्तरीय अधिकारी और कर्मचारी उपस्थित रहे।
गौचर मेला का इतिहास
उत्तराखंड राज्य के चमोली जनपद अंतर्गत गौचर (तहसील कर्णप्रयाग) में आयोजित गौचर मेला प्रदेश के प्रसिद्ध मेलों में से एक है। समुद्र तल से लगभग 800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गौचर अपने विशाल समतल मैदान और ऐतिहासिक व्यापारिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। वर्ष 1943 में तत्कालीन गढ़वाल के डिप्टी कमिश्नर के निर्देश पर यह मेला प्रारंभ हुआ था। प्रारंभ में यह एक व्यापारिक मेला था, जो समय के साथ औद्योगिक विकास एवं सांस्कृतिक महोत्सव के रूप में विकसित हुआ।
यह मेला हर वर्ष 14 नवंबर को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू जी के जन्मदिन पर प्रारंभ होता है। यह केवल व्यापारिक दृष्टि से नहीं, बल्कि लोक संस्कृति, लोककला और सामाजिक सद्भावना का प्रतीक भी है। यह उत्तराखंड की समृद्ध परंपरा एवं लोक जीवन का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है।
कम शब्दों में कहें तो, गौचर मेला एक सांस्कृतिक बुनियाद है, जो न केवल स्थानीय व्यापार को बढ़ावा देता है, बल्कि युवाओं के लिए रोजगार के अवसर उत्पन्न करता है।
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