ज्ञानवापी मुकदमे में पक्षकार बनाने पर अंतिम जिरह आज:33 साल पुराने केस में सभी वादियों की हो चुकी मौत, वादमित्र लड़ रहे 'उम्मीद' की लड़ाई

वाराणसी के सबसे चर्चित स्थल यानी ज्ञानवापी परिसर पर अधिकार को लेकर दायर प्राचीन लार्ड विश्वेश्वर में वादी रहे हरिहर पांडेय के बेटों को पक्षकार बनाने सबंधित निगरानी अर्जी पर विशेष न्यायाधीश (आवश्यक वस्तु अधिनियम) की कोर्ट में कुछ देर में सुनवाई होगी। वादी हरिहर पांडे के बेटों ने पक्षकार बनने की गुजारिश की है। ​​​​​ निगरानीकर्ता प्रणय पांडेय और करण शंकर पांडेय ने पिछली तिथि पर वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी के बहस के खिलाफ जवाबी दलील पेश की थी। निगरानीकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता आशीष कुमार श्रीवास्तव ने दलील कि कानून में यह कहीं नहीं उल्लेखित है कि वादी की मृत्यु पर उनके बेटों को प्रतिस्थापित करने पर रोक सबंधित व्यवस्था है। वादी पुत्रों ने केस को आगे बढ़ाने की बात कहते हुए बताया कि वादमित्र ने कोई ऐसी विधि व्यवस्था भी कोर्ट में दाखिल भी नहीं की है। केस के वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने प्रार्थना पत्र पर आपत्ति दाखिल की है जिसका जवाब वादी पक्ष के वकील दे रहे हैं। अदालत ने बहस जारी रखते हुए आज की तिथि नियत की थी, जिस पर दोनों पक्षों को तलब किया गया है। ज्ञानवापी में नया मंदिर निर्माण और पूजा-पाठ करने को लेकर 15 अक्टूबर 1991 में दायर किया गया था। केस को आज 33 साल बाद भी न्याय की आस है और इसके इंतजार में केस के मुख्य वादी हरिहर पांडे दिवंगत हो गए। अब केस वादमित्र के हवाले है और तारीख पर तारीख जारी है। वादी स्व. पं. सोमनाथ व्यास, डा. रामरंग शर्मा व पं. हरिहर नाथ पांडेय के परिजन भी केस से दूर हैं। केस में हरिहर पांडे के बेटों ने रुचि दिखाते हुए मुकदमे में पक्षकार बनाए जाने के लिए हरिहर पांडेय के बेटों प्रणय कुमार पांडेय व कर्ण शंकर पांडेय ने सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्टट्रैक) की अदालत में प्रार्थना पत्र दिया था। अदालत ने बीते 28 फरवरी को प्रार्थना पत्र निरस्त कर दिया था। विशेष न्यायाधीश (आवश्यक वस्तु अधिनियम) की कोर्ट ने गुरुवार को प्राचीन लार्ड विश्वेश्वर के वर्ष 1991 के मामले में वादी रहे हरिहर पांडेय के बेटों को पक्षकार बनाने सबंधित निगरानी अर्जी पर सुनवाई की जाएगी। बता दें कि ज्ञानवापी ज्ञानवापी का विवाद 1991 से ही चल रहा है लेकिन 33 साल बाद भी मुकदमे की सुनवाई फैसले तक नहीं पहुंच सकी। एक पक्ष द्वारा दावा किया जाता है कि मंदिर तोड़कर ज्ञानवापी ज्ञानवापी निर्माण किया गया था। सिविल जज की अदालत में मुकदमे के वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी की ओर से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) से अतिरिक्त सर्वे की मांग कर रहे हैं। पहले आपको बताते हैं मूलवाद के दायर होने का घटनाक्रम प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान आदि विश्वेश्वर की ओर से 15 अक्टूबर 1991 को पंडित सोमनाथ व्यास, हरिहर पांडेय और संस्कृत विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे डॉ. रामरंग शर्मा ने वाराणसी कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें ज्ञानवापी में नए मंदिर के निर्माण और हिंदुओं को पूजा- पाठ का अधिकार देने की मांग की गई। पंडित सोमनाथ व्यास, हरिहर पांडेय और डॉ. रामरंग शर्मा की ओर से दायर याचिका पर मुस्लिम पक्ष की ओर से आपत्ति दर्ज कराई गई है। केस में देवता 'स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर' के नाम पर भक्तों ने दावा किया कि ज्ञानवापी ज्ञानवापी एक मंदिर के स्थान पर बनाई गई। पिछले साल हरिहर पांडे के दिवंगत होने के साथ ही इस केस के तीनों याचिकाकर्ताओं की मृत्यु हो चुकी है। याचिका में कहा गया है कि इस मंदिर को मुगल बादशाह औरंगजेब ने वर्ष 1669 में ध्वस्त करा दिया था। हिंदू पक्ष ने मांग की कि उन्हें अपने मंदिर का जीर्णोद्धार और पुनर्निर्माण करने की अनुमति दी जाए। अपने पक्ष में उन्‍होंने तर्क दिया कि पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 ज्ञानवापी पर लागू नहीं होता। ऐसा इसलिए क्योंकि यह पुराने विश्वेश्वर मंदिर के अवशेषों पर बनाया गया था। वादमित्र विजय शंकर लड़ रहे केस सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्टट्रैक) की अदालत में वादमित्र विजय शंकर केस लड़ रहे हैं। कोर्ट में उन्होंने जिरह की और बताया कि ने आठ अप्रैल 2021 के अपने आदेश में ज्ञानवापी के आराजी नंबर 9130 के सर्वे का आदेश दिया था। आराजी नंबर 9130 के साथ आराजी नंबर 9131 और 9132 के सर्वे के लिए निवेदन किया। वादमित्र ने न्याय में देरी के चलते मुकदमा हाईकोर्ट स्थानांतरित करने की याचिका भी दायर की है। एएसआई की रिपोर्ट में सामने आए थे मंदिर के साक्ष्य काशी के ज्ञानवापी परिसर में विशाल हिंदू मंदिर होने के कई और सबूत सामने आए थे। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की रिपोर्ट से यह भी साफ है कि परिसर में मंदिर होने के सबूत छिपाने की कोशिश की गई थी, फिर भी इन्हें मिटाया नहीं जा सका। रिपोर्ट के बाद दावा किया गया कि मंदिर होने के 32 सबूत हैं। दीवारों पर कन्नड़, तेलुगु, देवनागरी और ग्रंथ भाषाओं में लेखनी मिली है। दीवारों पर भगवान शिव के 4 में से 3 नाम हैं। जीपीआर से हुई जांच के आधार पर एएसआई ने बताया कि तहखाने में 2 मीटर चौड़ा कुआं भी छिपा है। विवादित इमारत का सर्वे करने वाली टीम में मुस्लिम समुदाय के भी दो पुरातत्वविद (डॉ. इजहार आलम हाशमी, और डॉ. आफताब हुसैन) शामिल थे। ASI ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि वैज्ञानिक अध्ययन, सर्वेक्षण, वास्तुशिल्प, अवशेषों के अध्ययन, कलाकृतियों, शिलालेख, कला और मूर्तियों के आधार पर ऐसा कहा जा सकता है कि मौजूदा संरचना के निर्माण से पहले यहां एक विशाल मंदिर मौजूद था। वाराणसी ज्ञानवापी में नए मंदिर के निर्माण व हिंदुओं को पूजा-पाठ करने का अधिकार देने को लेकर 1991 में स्व. पं. सोमनाथ व्यास, रासरंग शर्मा, हरिहर पांडेय की ओर से दाखिल मुकदमे में पक्षकार बनने को लेकर दाखिल पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई के लिए विशेष न्यायाधीश (आवश्यक वस्तु अधिनियम) मनोज कुमार सिंह की अदालत ने 24 अक्टूबर की तारीख दे दी है।

Oct 24, 2024 - 07:50
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ज्ञानवापी मुकदमे में पक्षकार बनाने पर अंतिम जिरह आज:33 साल पुराने केस में सभी वादियों की हो चुकी मौत, वादमित्र लड़ रहे 'उम्मीद' की लड़ाई
वाराणसी के सबसे चर्चित स्थल यानी ज्ञानवापी परिसर पर अधिकार को लेकर दायर प्राचीन लार्ड विश्वेश्वर में वादी रहे हरिहर पांडेय के बेटों को पक्षकार बनाने सबंधित निगरानी अर्जी पर विशेष न्यायाधीश (आवश्यक वस्तु अधिनियम) की कोर्ट में कुछ देर में सुनवाई होगी। वादी हरिहर पांडे के बेटों ने पक्षकार बनने की गुजारिश की है। ​​​​​ निगरानीकर्ता प्रणय पांडेय और करण शंकर पांडेय ने पिछली तिथि पर वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी के बहस के खिलाफ जवाबी दलील पेश की थी। निगरानीकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता आशीष कुमार श्रीवास्तव ने दलील कि कानून में यह कहीं नहीं उल्लेखित है कि वादी की मृत्यु पर उनके बेटों को प्रतिस्थापित करने पर रोक सबंधित व्यवस्था है। वादी पुत्रों ने केस को आगे बढ़ाने की बात कहते हुए बताया कि वादमित्र ने कोई ऐसी विधि व्यवस्था भी कोर्ट में दाखिल भी नहीं की है। केस के वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने प्रार्थना पत्र पर आपत्ति दाखिल की है जिसका जवाब वादी पक्ष के वकील दे रहे हैं। अदालत ने बहस जारी रखते हुए आज की तिथि नियत की थी, जिस पर दोनों पक्षों को तलब किया गया है। ज्ञानवापी में नया मंदिर निर्माण और पूजा-पाठ करने को लेकर 15 अक्टूबर 1991 में दायर किया गया था। केस को आज 33 साल बाद भी न्याय की आस है और इसके इंतजार में केस के मुख्य वादी हरिहर पांडे दिवंगत हो गए। अब केस वादमित्र के हवाले है और तारीख पर तारीख जारी है। वादी स्व. पं. सोमनाथ व्यास, डा. रामरंग शर्मा व पं. हरिहर नाथ पांडेय के परिजन भी केस से दूर हैं। केस में हरिहर पांडे के बेटों ने रुचि दिखाते हुए मुकदमे में पक्षकार बनाए जाने के लिए हरिहर पांडेय के बेटों प्रणय कुमार पांडेय व कर्ण शंकर पांडेय ने सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्टट्रैक) की अदालत में प्रार्थना पत्र दिया था। अदालत ने बीते 28 फरवरी को प्रार्थना पत्र निरस्त कर दिया था। विशेष न्यायाधीश (आवश्यक वस्तु अधिनियम) की कोर्ट ने गुरुवार को प्राचीन लार्ड विश्वेश्वर के वर्ष 1991 के मामले में वादी रहे हरिहर पांडेय के बेटों को पक्षकार बनाने सबंधित निगरानी अर्जी पर सुनवाई की जाएगी। बता दें कि ज्ञानवापी ज्ञानवापी का विवाद 1991 से ही चल रहा है लेकिन 33 साल बाद भी मुकदमे की सुनवाई फैसले तक नहीं पहुंच सकी। एक पक्ष द्वारा दावा किया जाता है कि मंदिर तोड़कर ज्ञानवापी ज्ञानवापी निर्माण किया गया था। सिविल जज की अदालत में मुकदमे के वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी की ओर से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) से अतिरिक्त सर्वे की मांग कर रहे हैं। पहले आपको बताते हैं मूलवाद के दायर होने का घटनाक्रम प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान आदि विश्वेश्वर की ओर से 15 अक्टूबर 1991 को पंडित सोमनाथ व्यास, हरिहर पांडेय और संस्कृत विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे डॉ. रामरंग शर्मा ने वाराणसी कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें ज्ञानवापी में नए मंदिर के निर्माण और हिंदुओं को पूजा- पाठ का अधिकार देने की मांग की गई। पंडित सोमनाथ व्यास, हरिहर पांडेय और डॉ. रामरंग शर्मा की ओर से दायर याचिका पर मुस्लिम पक्ष की ओर से आपत्ति दर्ज कराई गई है। केस में देवता 'स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर' के नाम पर भक्तों ने दावा किया कि ज्ञानवापी ज्ञानवापी एक मंदिर के स्थान पर बनाई गई। पिछले साल हरिहर पांडे के दिवंगत होने के साथ ही इस केस के तीनों याचिकाकर्ताओं की मृत्यु हो चुकी है। याचिका में कहा गया है कि इस मंदिर को मुगल बादशाह औरंगजेब ने वर्ष 1669 में ध्वस्त करा दिया था। हिंदू पक्ष ने मांग की कि उन्हें अपने मंदिर का जीर्णोद्धार और पुनर्निर्माण करने की अनुमति दी जाए। अपने पक्ष में उन्‍होंने तर्क दिया कि पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 ज्ञानवापी पर लागू नहीं होता। ऐसा इसलिए क्योंकि यह पुराने विश्वेश्वर मंदिर के अवशेषों पर बनाया गया था। वादमित्र विजय शंकर लड़ रहे केस सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्टट्रैक) की अदालत में वादमित्र विजय शंकर केस लड़ रहे हैं। कोर्ट में उन्होंने जिरह की और बताया कि ने आठ अप्रैल 2021 के अपने आदेश में ज्ञानवापी के आराजी नंबर 9130 के सर्वे का आदेश दिया था। आराजी नंबर 9130 के साथ आराजी नंबर 9131 और 9132 के सर्वे के लिए निवेदन किया। वादमित्र ने न्याय में देरी के चलते मुकदमा हाईकोर्ट स्थानांतरित करने की याचिका भी दायर की है। एएसआई की रिपोर्ट में सामने आए थे मंदिर के साक्ष्य काशी के ज्ञानवापी परिसर में विशाल हिंदू मंदिर होने के कई और सबूत सामने आए थे। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की रिपोर्ट से यह भी साफ है कि परिसर में मंदिर होने के सबूत छिपाने की कोशिश की गई थी, फिर भी इन्हें मिटाया नहीं जा सका। रिपोर्ट के बाद दावा किया गया कि मंदिर होने के 32 सबूत हैं। दीवारों पर कन्नड़, तेलुगु, देवनागरी और ग्रंथ भाषाओं में लेखनी मिली है। दीवारों पर भगवान शिव के 4 में से 3 नाम हैं। जीपीआर से हुई जांच के आधार पर एएसआई ने बताया कि तहखाने में 2 मीटर चौड़ा कुआं भी छिपा है। विवादित इमारत का सर्वे करने वाली टीम में मुस्लिम समुदाय के भी दो पुरातत्वविद (डॉ. इजहार आलम हाशमी, और डॉ. आफताब हुसैन) शामिल थे। ASI ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि वैज्ञानिक अध्ययन, सर्वेक्षण, वास्तुशिल्प, अवशेषों के अध्ययन, कलाकृतियों, शिलालेख, कला और मूर्तियों के आधार पर ऐसा कहा जा सकता है कि मौजूदा संरचना के निर्माण से पहले यहां एक विशाल मंदिर मौजूद था। वाराणसी ज्ञानवापी में नए मंदिर के निर्माण व हिंदुओं को पूजा-पाठ करने का अधिकार देने को लेकर 1991 में स्व. पं. सोमनाथ व्यास, रासरंग शर्मा, हरिहर पांडेय की ओर से दाखिल मुकदमे में पक्षकार बनने को लेकर दाखिल पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई के लिए विशेष न्यायाधीश (आवश्यक वस्तु अधिनियम) मनोज कुमार सिंह की अदालत ने 24 अक्टूबर की तारीख दे दी है।

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