डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर मनाया छठ पर्व:मेरठ में जगह-जगह हुई भगवान सूर्य की उपासना: जलकुंड, सरोवर, नदी किनारे की सामूहिक पूजा

मेरठ में गुरुवार को छठ पूजा का पर्व उल्लास के साथ मनाया गया। शहर में दर्जनों जगहों पर डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पूजन किया गया। इस दौरान कई स्थानों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रही। गगोल तीर्थ पर मेला लगा। यहां पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भगवान भास्कर की पूजा की। मेरठ में गगोल तीर्थ के साथ ही हस्तिनापुर गंगा घाट, सरधना नानू नहर, भोला की झाल पर डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा की गई। शहर में कैंट रामताल वाटिका, सीसीएसयू, राधा गोविंद कॉलेज, पल्लवपुरम फेस टू, कंकरखेड़ा कासमपुर के अलावा भी कई जगहों पर आयोजन हुआ। 4 दिन का पर्व: छठ मैया की पूजा के साथ भगवान भास्कर की होती है उपासना दीपावली के छह दिन बाद देश के विभिन्न हिस्सों में छठ पर्व मनाने की परंपरा है। इसमें छठ मैया की पूजा के साथ भगवान भास्कर की उपासना की जाती है। छठ पूजा चार दिनों तक चलने वाला पर्व है। छठ पूजा नहाय-खाय से शुरू होती है। इस दिन घर का शुद्धिकरण किया जाता है। इसके बाद छठ व्रती स्नान कर शुद्ध सात्विक भोजन ग्रहण कर अपना व्रत शुरू करते हैं। नहाय-खाय में व्रती चावल के साथ लौकी की सब्जी, छोले और मूली आदि का सेवन करते हैं। उपवास करने वाले व्रती के भोजन करने के बाद ही परिवार के बाकी सदस्य इस महा प्रसाद का सेवन करते हैं। दूसरे खरना, तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दूसरे दिन खरना किया जाता है। इसमें महिलाएं उपवास रखकर छठी मैय्या का प्रसाद तैयार करती हैं। तीसरे दिन डूबते सूर्य को दिया जाता है अर्घ्य छठ पर्व के तीसरे दिन किसी सरोवर, नदी, जलकुंड के किनारे डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर भगवान भास्कर की पूजा की जाती है। छठ पर्व के अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। महापर्व छठ मनाए जाने के पीछे 4 कहानियां प्रचलित राजा प्रियंवद की छठ कथा पुराणों के मुताबिक, राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी। महर्षि कश्यप ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कराई और यज्ञ आहुति के लिए बनाई खीर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को दी। बाद में मालिनी को पुत्र हुआ, लेकिन वह मृत पैदा हुआ। प्रियंवद बहुत दुखी हो गए। वह पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में अपना प्राण त्यागने की कोशिश की। उसी वक्त भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री प्रकट हुईं। राजा ने पूछा कि आप कौन हैं। उन्होंने कहा सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी हूं। राजन तुम मेरी पूजा करो और इसके लिए दूसरों को भी प्रेरित करो तो तुम्हें इस दुख से मुक्ति मिल जाएगी। इसके बाद राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। तभी से षष्ठी यानी छठी मैया की पूजा होती चली आ रही है। सूर्य पुत्र कर्ण की छठ कथा एक अन्य मान्यता के अनुसार, छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले महादानी सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की थी। कर्ण बिहार के अंग प्रदेश (वर्तमान भागलपुर) के राजा थे और सूर्य और कुंती के पुत्र थे। सूर्यदेव से ही कर्ण को दिव्य कवच और कुंडल प्राप्त हुए थे, जो हर समय कर्ण की रक्षा करते थे। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है। द्रौपदी की छठ कथा छठ पर्व के बारे में एक कथा है। कथा के अनुसार, महाभारत काल में द्रौपदी परिवार की सुख-शांति और रक्षा के लिए छठ का पर्व बनाया था। जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। उनकी मनोकामनाएं पूरी हुईं और पांडवों को राजपाट वापस मिल गया। लोक परंपरा के अनुसार, सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई है। माता सीता की छठ कथा पौराणिक कथा के अनुसार, ऋषि मुद्गल ने माता सीता को छठ व्रत करने को कहा था। आनंद रामायण के अनुसार, जब भगवान राम ने रावण का वध किया था तब रामजी पर ब्रह्म हत्या का पाप लगा था। इस हत्या से मुक्ति पाने के लिए कुलगुरू मुनि वशिष्ठ ने ऋषि मुद्गल के साथ राम और सीता को भेजा था। भगवान राम ने कष्टहरणी घाट पर यज्ञ करवा कर ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति दिलाई थी। वहीं माता सीता को आश्रम में ही रहकर कार्तिक मास की षष्ठी तिथि को व्रत करने का आदेश दिया था। मान्यता है कि आज भी मुंगेर मंदिर में माता सीता के पैर के निशान मौजूद हैं।

Nov 8, 2024 - 05:15
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डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर मनाया छठ पर्व:मेरठ में जगह-जगह हुई भगवान सूर्य की उपासना: जलकुंड, सरोवर, नदी किनारे की सामूहिक पूजा
मेरठ में गुरुवार को छठ पूजा का पर्व उल्लास के साथ मनाया गया। शहर में दर्जनों जगहों पर डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पूजन किया गया। इस दौरान कई स्थानों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रही। गगोल तीर्थ पर मेला लगा। यहां पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भगवान भास्कर की पूजा की। मेरठ में गगोल तीर्थ के साथ ही हस्तिनापुर गंगा घाट, सरधना नानू नहर, भोला की झाल पर डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा की गई। शहर में कैंट रामताल वाटिका, सीसीएसयू, राधा गोविंद कॉलेज, पल्लवपुरम फेस टू, कंकरखेड़ा कासमपुर के अलावा भी कई जगहों पर आयोजन हुआ। 4 दिन का पर्व: छठ मैया की पूजा के साथ भगवान भास्कर की होती है उपासना दीपावली के छह दिन बाद देश के विभिन्न हिस्सों में छठ पर्व मनाने की परंपरा है। इसमें छठ मैया की पूजा के साथ भगवान भास्कर की उपासना की जाती है। छठ पूजा चार दिनों तक चलने वाला पर्व है। छठ पूजा नहाय-खाय से शुरू होती है। इस दिन घर का शुद्धिकरण किया जाता है। इसके बाद छठ व्रती स्नान कर शुद्ध सात्विक भोजन ग्रहण कर अपना व्रत शुरू करते हैं। नहाय-खाय में व्रती चावल के साथ लौकी की सब्जी, छोले और मूली आदि का सेवन करते हैं। उपवास करने वाले व्रती के भोजन करने के बाद ही परिवार के बाकी सदस्य इस महा प्रसाद का सेवन करते हैं। दूसरे खरना, तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दूसरे दिन खरना किया जाता है। इसमें महिलाएं उपवास रखकर छठी मैय्या का प्रसाद तैयार करती हैं। तीसरे दिन डूबते सूर्य को दिया जाता है अर्घ्य छठ पर्व के तीसरे दिन किसी सरोवर, नदी, जलकुंड के किनारे डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर भगवान भास्कर की पूजा की जाती है। छठ पर्व के अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। महापर्व छठ मनाए जाने के पीछे 4 कहानियां प्रचलित राजा प्रियंवद की छठ कथा पुराणों के मुताबिक, राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी। महर्षि कश्यप ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ कराई और यज्ञ आहुति के लिए बनाई खीर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को दी। बाद में मालिनी को पुत्र हुआ, लेकिन वह मृत पैदा हुआ। प्रियंवद बहुत दुखी हो गए। वह पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में अपना प्राण त्यागने की कोशिश की। उसी वक्त भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री प्रकट हुईं। राजा ने पूछा कि आप कौन हैं। उन्होंने कहा सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी हूं। राजन तुम मेरी पूजा करो और इसके लिए दूसरों को भी प्रेरित करो तो तुम्हें इस दुख से मुक्ति मिल जाएगी। इसके बाद राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। तभी से षष्ठी यानी छठी मैया की पूजा होती चली आ रही है। सूर्य पुत्र कर्ण की छठ कथा एक अन्य मान्यता के अनुसार, छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले महादानी सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की थी। कर्ण बिहार के अंग प्रदेश (वर्तमान भागलपुर) के राजा थे और सूर्य और कुंती के पुत्र थे। सूर्यदेव से ही कर्ण को दिव्य कवच और कुंडल प्राप्त हुए थे, जो हर समय कर्ण की रक्षा करते थे। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है। द्रौपदी की छठ कथा छठ पर्व के बारे में एक कथा है। कथा के अनुसार, महाभारत काल में द्रौपदी परिवार की सुख-शांति और रक्षा के लिए छठ का पर्व बनाया था। जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। उनकी मनोकामनाएं पूरी हुईं और पांडवों को राजपाट वापस मिल गया। लोक परंपरा के अनुसार, सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई है। माता सीता की छठ कथा पौराणिक कथा के अनुसार, ऋषि मुद्गल ने माता सीता को छठ व्रत करने को कहा था। आनंद रामायण के अनुसार, जब भगवान राम ने रावण का वध किया था तब रामजी पर ब्रह्म हत्या का पाप लगा था। इस हत्या से मुक्ति पाने के लिए कुलगुरू मुनि वशिष्ठ ने ऋषि मुद्गल के साथ राम और सीता को भेजा था। भगवान राम ने कष्टहरणी घाट पर यज्ञ करवा कर ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति दिलाई थी। वहीं माता सीता को आश्रम में ही रहकर कार्तिक मास की षष्ठी तिथि को व्रत करने का आदेश दिया था। मान्यता है कि आज भी मुंगेर मंदिर में माता सीता के पैर के निशान मौजूद हैं।

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