ब्रिटेन का बदला क्राउन बैज, वाराणसी के कारीगरों को जिम्मेदारी:बनारस की गलियों में हाथों से तैयार हो रहे दुनिया के 20 देशों की सेनाओं, आर्मी स्कूलों के बैज
भारत पर 190 साल तक राज करने वाली ब्रिटिश आर्मी से लेकर रॉयल फैमिली तक वाराणसी के कारीगरों के हाथों तैयार बैज सिर माथे सजा रही है। ब्रिटेन में क्वीन क्राउन की जगह अब किंग क्राउन का राज है। महारानी एलिजाबेथ की मृत्यु के बाद क्वीन क्राउन की जगह किंग क्राउन ने ले ली है। किंग क्राउन बैज का उपयोग वहां की रॉयल आर्मी से लेकर ब्रिटिश आर्मी तक को करना है। वाराणसी के कारीगरों को नए डिजाइन (किंग) क्राउन के बैज तैयार करने का ऑर्डर मिला है। अब तक पांच हजार से अधिक बैज ब्रिटिश आर्मी के लिए तैयार करके एक्सपोर्ट हो चुका है। लल्लापुरा के इस परिवार को मिली है जिम्मेदारी वाराणसी के लल्लापुरा क्षेत्र निवासी मुमताज आलम और उनके पूरा परिवार इस समय ब्रिटेन, फ्रांस, रूस समेत दुनिया के लगभग 20 देशों की सेना, सैनिक स्कूलों के लिए बैज तैयार करने में जुटा है। मुमताज आलम ने बताया कि महारानी की मौत से मौत के पहले क्वीन क्राउन की डिजाइन के बैज तैयार होते थे। उनके निधन के बाद ब्रिटेन की राजगद्दी पर प्रिंस चार्ल्स के बैठने के बाद अब वहां किंग क्राउन चिह्न लागू हो गया है। हमें अब किंग क्राउन की डिजाइन वाले बैज तैयार करने का ऑर्डर मिला है। 5 हजार से अधिक बैज एक्सपोर्ट किये जा चुके हैं जबकि 5 हजार बैज जाने के लिए तैयार हो चुके हैं। तीन पीढ़ी से बना रहे सेनाओं सरकार के लिए बैज लल्लापुरा के जरदोजी के कारीगर शादाब आलम ने बताया कि वह तीसरी पीढ़ी से हैं जो दुनिया के कई देशों की सेनाओं, राष्ट्रपति, सरकारों के चिह्न, बैज तैयार करते हैं। पढ़ाई पूरी करने के बाद पिता मुमताज़ आलम के साथ कढ़ाई की बारीकियां सीखी और फिर मैं भी जरदोजी के काम से जुड़ गया। चार से पांच दिन में तैयार होता है एक बैज मुमताज़ और शादाब बताते हैं कि एक साइज के हिसाब से एक बैज बनाने में चार से पांच दिनों का समय लगता है। कभी कभी सरकारी चिह्न बनाने में एक से दो महीने तक का समय लगता है। साइज और कढ़ाई पर निर्भर है कि कौन सा बैज कितने दिन में तैयार होगा। सोने-चांदी के तारों से बनते हैं बैज सेनाओं के साथ ही राष्ट्राध्यक्षों के लिए तैयार होने वाले बैज दो क्वालिटी के होते हैं। एक को कोरा डल और दूसरे को बुलियन कहते हैं। बुलियन बैज में सोना मिला होता है जबकि कोरा डल वाले बैज सिल्क के धागों से बनाये जाते हैं। बैज में सिल्वर का भी उपयोग होता है। मुमताज़ आलम बताते हैं कि बैज बनाने का पूरा काम हाथों से होता है। किसी तरह की कोई मशीन उपयोग में नहीं लाई जाती है। जरदोजी के हुनरमंदों की सरकार को फिक्र नहीं शादाब बड़े गर्व के साथ कहते है कि उनके परिवार के हाथों तैयार बैज दुनिया के तमाम सेना अधिकारियों के माथे और सीने पर सजता है लेकिन सरकार सिर्फ बुनकर भाइयों पर ध्यान देती है, मशीन से बिनकारी करने वालों को सब्सिडी से लेकर तमाम सुविधाएं मुहैया करा रही लेकिन हाथों की कलाकारी दिखाने वाले जरदोजी से जुड़े लोगों की झोली अभी तक खाली है। जीआई टैग मिले तो संरक्षित होगी कला वाराणसी के लल्लापुरा इलाके के लगभग पांच सौ लोग जरदोजी के काम से जुड़े हैं। शादाब ने कहा कि वाराणसी के कई प्रोडक्ट को जीआई टैग मिल जिससे उस कारोबार को पंख लग गए। सरकार अगर हमारे हुनर पर जीआई टैग लगा दे तो इस कारोबार की किस्मत भी चमक उठेगी। मोदी सरकार में वर्कलोड बढ़ा शादाब बताते हैं कि मोदी सरकार आने के बाद से वर्कलोड बढ़ गया है। नए ऑर्डर मिलने के साथ ही पेमेंट भी सही तरीके से हो रहा है। पहले वर्ष के तीन महीने हमारे पास काम नहीं होते थे, ऑर्डर भी कम आने लगे थे। सरकार की नई विदेश नीति के चलते अब ऑर्डर इतना बढ़ गया है कि 12 महीने लगातार काम हो रहा है। पीएम से है बहुत उम्मीद मुमताज़ आलम कहते हैं कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हम जरदोजी के कारीगरों पर अपना हाथ रख देंगे तो पूरी दुनिया में बनारस के कारीगरों का डंका बजेगा, नई पीढ़ी इस काम से मुंह मोड़ रही है। हम लोगों की समस्याओं को सरकार अगर दूर कर दे तो इस कारीगरी के बाजार में एक बार फिर रौनक आ जायेगी।
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