भास्कर ओपिनियन:महाराष्ट्र चुनाव- उनके घरों में कपास और सोयाबीन पड़ा सड़ रहा है, वे किसे वोट दें?

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में प्रचार आज खत्म हो जाएगा। छह पार्टियों में तीन-तीन के दो खेमे हैं। यही वजह है कि अभी भी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि कौन जीतेगा। इतना तय है कि सबसे बड़ी पार्टी बनने के लिए भाजपा और कांग्रेस में जोर आजमाइश रहेगी। भाजपा की अगुवाई वाले महायुति में अजित पवार सबसे कमजोर कड़ी हैं। जबकि महाविकास अघाड़ी (एमवीए) में कमजोर कोई नहीं है। कांग्रेस और शरद पवार की एनसीपी अच्छा कर सकती है। तीसरे नंबर पर उद्धव ठाकरे की शिव सेना रह सकती है। हालांकि वह अजित पवार जितनी कमजोर नहीं रहेगी। अब बात करते हैं योजनाओं की। भाजपा और महायुति की सारी ताकत ‘लाडकी बहिन’ योजना पर ही निर्भर है। शहरों और गांव दोनों इलाकों में इसका प्रभाव भी है। हालांकि, दिवाली के बाद गांवों में खुलने वाले कपास खरीदी केंद्र, अब तक नहीं खुल पाए हैं। सोयाबीन के भाव भी रसातल में चले गए हैं। मराठवाड़ा और विदर्भ की 100 से ऊपर सीटों पर इसका प्रभाव रहेगा। शादियों के मौसम में सोयाबीन और कपास लोगों के घरों में पड़ा है, यह विडंबना लाडकी बहिन के प्रभाव को कम कर सकती है। ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ का अचूक नारा कितना असर डालेगा यह तो 23 नवंबर को पता चलेगा, लेकिन अभी तो इन नारों को लेकर महायुति ही एकजुट नहीं है। अजित पवार कह चुके हैं कि यह नारा महाराष्ट्र में काम नहीं करेगा। भाजपा नेता पंकजा मुंडे और अशोक चव्हाण भी अजित दादा से सहमति जता चुके हैं। अब देवेंद्र फडणवीस भले कहते रहें कि ये लोग नारे का मतलब नहीं समझ पाए, पर हकीकत यह है कि वे समझा भी नहीं पा रहे हैं। दरअसल, जिनके प्रभाव क्षेत्र में मुस्लिम मतदाता ज्यादा हैं वे महायुति में होते हुए भी इस नारे को गले लगाने से डर रहे हैं। भाजपा को फायदे में देखने वाले लाडकी बहिन योजना को मास्टर स्ट्रोक बता रहे हैं। दूसरी ओर, भाजपा के नुकसान की आशंका जताने वालों का कहना है कि पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में मराठा समुदाय ने जिस तरह वोटिंग की थी, इस बार वैसी नहीं होने वाली। इसलिए उसका सौ से पार जाना मुश्किल लग रहा है। परिणाम की बात करें तो अगर महायुति को बहुमत मिला तो सरकार बनाने में देर नहीं लगेगी। क्योंकि उसे सीएम तय करने में समय नहीं लगेगा। अजित दादा पहले ही तौबा कर चुके हैं। दूसरी ओर, एमवीए को बहुमत मिला तो सरकार गठन से बड़ी चुनौती सीएम तय करना होगा। टिकट बंटवारे के दौरान कांग्रेस और उद्धव सेना के बीच खींचतान जगजाहिर है। ऐसे में राष्ट्रपति शासन लगना लगभग तय माना जा रहा है। दरअसल, 23 नवंबर को परिणाम आएंगे और मौजूदा विधानसभा की मियाद 26 नवंबर तक है। नियमानुसार इसके बाद राष्ट्रपति शासन लग जाएगा। फिर ‘आधी रात’ की कोई सरकार सामने आएगी या ‘अल सुबह की’, कुछ भी कहा नहीं जा सकता!

Nov 18, 2024 - 07:30
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भास्कर ओपिनियन:महाराष्ट्र चुनाव- उनके घरों में कपास और सोयाबीन पड़ा सड़ रहा है, वे किसे वोट दें?
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में प्रचार आज खत्म हो जाएगा। छह पार्टियों में तीन-तीन के दो खेमे हैं। यही वजह है कि अभी भी पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि कौन जीतेगा। इतना तय है कि सबसे बड़ी पार्टी बनने के लिए भाजपा और कांग्रेस में जोर आजमाइश रहेगी। भाजपा की अगुवाई वाले महायुति में अजित पवार सबसे कमजोर कड़ी हैं। जबकि महाविकास अघाड़ी (एमवीए) में कमजोर कोई नहीं है। कांग्रेस और शरद पवार की एनसीपी अच्छा कर सकती है। तीसरे नंबर पर उद्धव ठाकरे की शिव सेना रह सकती है। हालांकि वह अजित पवार जितनी कमजोर नहीं रहेगी। अब बात करते हैं योजनाओं की। भाजपा और महायुति की सारी ताकत ‘लाडकी बहिन’ योजना पर ही निर्भर है। शहरों और गांव दोनों इलाकों में इसका प्रभाव भी है। हालांकि, दिवाली के बाद गांवों में खुलने वाले कपास खरीदी केंद्र, अब तक नहीं खुल पाए हैं। सोयाबीन के भाव भी रसातल में चले गए हैं। मराठवाड़ा और विदर्भ की 100 से ऊपर सीटों पर इसका प्रभाव रहेगा। शादियों के मौसम में सोयाबीन और कपास लोगों के घरों में पड़ा है, यह विडंबना लाडकी बहिन के प्रभाव को कम कर सकती है। ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ का अचूक नारा कितना असर डालेगा यह तो 23 नवंबर को पता चलेगा, लेकिन अभी तो इन नारों को लेकर महायुति ही एकजुट नहीं है। अजित पवार कह चुके हैं कि यह नारा महाराष्ट्र में काम नहीं करेगा। भाजपा नेता पंकजा मुंडे और अशोक चव्हाण भी अजित दादा से सहमति जता चुके हैं। अब देवेंद्र फडणवीस भले कहते रहें कि ये लोग नारे का मतलब नहीं समझ पाए, पर हकीकत यह है कि वे समझा भी नहीं पा रहे हैं। दरअसल, जिनके प्रभाव क्षेत्र में मुस्लिम मतदाता ज्यादा हैं वे महायुति में होते हुए भी इस नारे को गले लगाने से डर रहे हैं। भाजपा को फायदे में देखने वाले लाडकी बहिन योजना को मास्टर स्ट्रोक बता रहे हैं। दूसरी ओर, भाजपा के नुकसान की आशंका जताने वालों का कहना है कि पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में मराठा समुदाय ने जिस तरह वोटिंग की थी, इस बार वैसी नहीं होने वाली। इसलिए उसका सौ से पार जाना मुश्किल लग रहा है। परिणाम की बात करें तो अगर महायुति को बहुमत मिला तो सरकार बनाने में देर नहीं लगेगी। क्योंकि उसे सीएम तय करने में समय नहीं लगेगा। अजित दादा पहले ही तौबा कर चुके हैं। दूसरी ओर, एमवीए को बहुमत मिला तो सरकार गठन से बड़ी चुनौती सीएम तय करना होगा। टिकट बंटवारे के दौरान कांग्रेस और उद्धव सेना के बीच खींचतान जगजाहिर है। ऐसे में राष्ट्रपति शासन लगना लगभग तय माना जा रहा है। दरअसल, 23 नवंबर को परिणाम आएंगे और मौजूदा विधानसभा की मियाद 26 नवंबर तक है। नियमानुसार इसके बाद राष्ट्रपति शासन लग जाएगा। फिर ‘आधी रात’ की कोई सरकार सामने आएगी या ‘अल सुबह की’, कुछ भी कहा नहीं जा सकता!

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