भास्कर ओपिनियन:महाराष्ट्र में महा विकास अघाडी, चूहों की लड़ाई में बिल्ली का न्याय

महाराष्ट्र में महा विकास अघाडी यानी उद्धव सेना, कांग्रेस और शरद पवार की पार्टी के गठबंधन में बड़े दिनों से तकरार चल रही थी। बुधवार को यह तकरार ख़त्म हो गई। दरअसल, कांग्रेस और उद्धव सेना ज़्यादा से ज़्यादा सीटें लेने पर अड़े हुए थे। कांग्रेस का तर्क था कि लोकसभा चुनाव में राज्य की सबसे ज़्यादा सीटें हमने जीतीं थीं इसलिए हमें ही विधानसभा चुनाव में भी ज़्यादा सीटें मिलनी चाहिए क्योंकि हमारी जीत की संभावना ज़्यादा है। उद्धव सेना का तर्क था कि हरियाणा चुनाव ने कांग्रेस की सारी पटेली निकाल दी है। लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस में जो धार थी, हरियाणा चुनाव के बाद वह बोथरी पड़ चुकी है। नौबत गठबंधन के टूटने तक आ पहुँची थी। इस बीच बुजुर्ग और अनुभवी शरद पवार ने हस्तक्षेप किया। वे छोटे- बड़े सबको एक घाट पर पानी पिलाने का फ़ार्मूला ले आए। सबको पसंद भी आ गया। निर्णय ये हुआ कि तीनों पार्टियाँ अब 85 - 85 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी। इसमें सर्वाधिक फ़ायदा शरद पवार की पार्टी को है। बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने से कोई एक पार्टी पहले से मुख्यमंत्री बनने के सपने नहीं पाल पाएगी। जो ज़्यादा सीटें लाएगा, वही राजा बनेगा। शरद पवार ने इस तरह से अपनी बेटी को मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल कर दिया है। हो सकता है शरद पवार की पार्टी को सबसे ज़्यादा सीटें न मिलें, लेकिन इसमें भी उन्हें कोई नुक़सान नहीं है लेकिन अगर ज़्यादा सीटें मिल गईं तो उद्धव सेना और कांग्रेस फिर पवार की पसंद का मुख्यमंत्री बनने से रोक नहीं पाएगी। हालाँकि राजनीति में कुछ भी हो सकता है क्योंकि यहाँ तर्क और तथ्य सबकुछ अक्सर शून्य हो ज़ाया करते हैं। उधर महायुती यानी भाजपा, शिंदे सेना और अजीत पवार ने धड़ाधड प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं लेकिन अब तक कोई फ़ार्मूला सामने नहीं आ पाया है। सब कुछ अंदाज़े पर चल रहा है। इस बीच एकनाथ शिंदे एक बार फिर कामाख्या देवी के दर्शन कर आए हैं। हो सकता है उन्हें वहाँ से नई ऊर्जा मिल गई हो, क्योंकि वहाँ से आकर सीधे दिल्ली जा धमके हैं।

Oct 24, 2024 - 05:35
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भास्कर ओपिनियन:महाराष्ट्र में महा विकास अघाडी, चूहों की लड़ाई में बिल्ली का न्याय
महाराष्ट्र में महा विकास अघाडी यानी उद्धव सेना, कांग्रेस और शरद पवार की पार्टी के गठबंधन में बड़े दिनों से तकरार चल रही थी। बुधवार को यह तकरार ख़त्म हो गई। दरअसल, कांग्रेस और उद्धव सेना ज़्यादा से ज़्यादा सीटें लेने पर अड़े हुए थे। कांग्रेस का तर्क था कि लोकसभा चुनाव में राज्य की सबसे ज़्यादा सीटें हमने जीतीं थीं इसलिए हमें ही विधानसभा चुनाव में भी ज़्यादा सीटें मिलनी चाहिए क्योंकि हमारी जीत की संभावना ज़्यादा है। उद्धव सेना का तर्क था कि हरियाणा चुनाव ने कांग्रेस की सारी पटेली निकाल दी है। लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस में जो धार थी, हरियाणा चुनाव के बाद वह बोथरी पड़ चुकी है। नौबत गठबंधन के टूटने तक आ पहुँची थी। इस बीच बुजुर्ग और अनुभवी शरद पवार ने हस्तक्षेप किया। वे छोटे- बड़े सबको एक घाट पर पानी पिलाने का फ़ार्मूला ले आए। सबको पसंद भी आ गया। निर्णय ये हुआ कि तीनों पार्टियाँ अब 85 - 85 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी। इसमें सर्वाधिक फ़ायदा शरद पवार की पार्टी को है। बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने से कोई एक पार्टी पहले से मुख्यमंत्री बनने के सपने नहीं पाल पाएगी। जो ज़्यादा सीटें लाएगा, वही राजा बनेगा। शरद पवार ने इस तरह से अपनी बेटी को मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल कर दिया है। हो सकता है शरद पवार की पार्टी को सबसे ज़्यादा सीटें न मिलें, लेकिन इसमें भी उन्हें कोई नुक़सान नहीं है लेकिन अगर ज़्यादा सीटें मिल गईं तो उद्धव सेना और कांग्रेस फिर पवार की पसंद का मुख्यमंत्री बनने से रोक नहीं पाएगी। हालाँकि राजनीति में कुछ भी हो सकता है क्योंकि यहाँ तर्क और तथ्य सबकुछ अक्सर शून्य हो ज़ाया करते हैं। उधर महायुती यानी भाजपा, शिंदे सेना और अजीत पवार ने धड़ाधड प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं लेकिन अब तक कोई फ़ार्मूला सामने नहीं आ पाया है। सब कुछ अंदाज़े पर चल रहा है। इस बीच एकनाथ शिंदे एक बार फिर कामाख्या देवी के दर्शन कर आए हैं। हो सकता है उन्हें वहाँ से नई ऊर्जा मिल गई हो, क्योंकि वहाँ से आकर सीधे दिल्ली जा धमके हैं।

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