मैरिटल रेप पर सरकार बोली-सहमति बिना संबंध हमारा मुद्दा नहीं:CJI बोले- बहस में समय लगेगा; 4 हफ्ते बाद दूसरी बेंच इस पर सुनवाई करेगी
मैरिटल रेप पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार (23 अक्टूबर) को सुनवाई हुई। केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील रखी। मेहता ने कहा- यह मामला बहुत बड़ा है, हमारा तर्क यह नहीं है कि संबंध बिना सहमति के बनाए जा सकते हैं। इस पर बहस के लिए पूरा दिन चाहिए। इस पर CJI ने कहा- हमें नहीं लगता है कि इस मामले पर दलीलें इतनी जल्दी खत्म हो पाएंगी। हम इसे रिलिस्ट करते हैं लेकिन दलीलें सभी को देनी होंगी। मामले की सुनवाई 4 हफ्ते बाद दूसरी बेंच करेगी क्योंकि 10 नवंबर को CJI चंद्रचूड़ रिटायर हो जाएंगे। इससे पहले मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने से जुड़ी याचिकाओं पर गुरुवार (17 अक्टूबर) को 3 घंटे सुनवाई चली थी। CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने मामले की सुनवाई की थी। केस में दो याचिकाकर्ता हैं। एक याचिकाकर्ता की एडवोकेट करुणा नंदी ने कहा था- पत्नी के साथ जबरन संबंध बनाने में पति को सिर्फ इसलिए छूट मिल रही, क्योंकि पीड़ित पत्नी है। यह जनता बनाम पितृसत्ता की लड़ाई है, इसलिए हम अदालत में आए हैं। 17 अक्टूबर की सुनवाई में क्या हुआ था CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने मामले की सुनवाई की थी। याचिकाकर्ता की तरफ से एडवोकेट करुणा नंदी और एडवोकेट कॉलिन गोंजाल्विस ने दलीलें रखीं।CJI ने कहीा था कि जब पत्नी 18 साल से कम की होती है, तो यह रेप है और जब यह 18 साल से अधिक की होती है, तो यह नहीं है। यही BNS और IPC में अंतर है। इस पर एडवोकेट नंदी ने कहा यदि पति एनल सेक्स करता है, तो उसे अपवाद 2 के तहत छूट दी जाती है, जबकि यह 'यौन क्रिया' नहीं है। इसके बाद जस्टिस पारदीवाला ने कहा, पति की मांग (यौन संबंध) के बावजूद पत्नी मना करे, उसे लगे कि पति को ऐसा नहीं करना था, और वह केस दर्ज करा दे तो, क्या होगा? इस पर एडवोकेट नंदी ने जवाब दिया कि फिलहाल ‘ना’ कहने का मेरा अधिकार स्वतंत्र और खुशी से ‘हां’ कहने का अधिकार छीन लेता है। इस अपवाद ने मुझे (महिला को) यौन वस्तु बना दिया है। पूरी खबर पढ़ें... मैरिटल रेप का मामला सुप्रीम कोर्ट कैसे पहुंचा मैरिटल रेप को लेकर नए कानून बनाने की मांग काफी समय से हो रही थी। पिछले दो सालों में दिल्ली हाईकोर्ट और कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद इसकी मांग और तेज हो गई। सुप्रीम कोर्ट में दो मुख्य याचिकाएं हैं, जिन पर सुनवाई हो रही है। एक याचिका पति की तरफ से लगाई गई, तो दूसरी याचिका एक अन्य मामले में एक महिला ने दायर की थी। याचिकाकर्ताओं ने BNS की धारा 63 से अपवाद हटाने के लिए 3 तर्क दिए हैं सरकार इसके विरोध में, कहा-ये कानूनी नहीं सामाजिक मुद्दा मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की मांग का सरकार ने विरोध किया है। 3 अक्टूबर को दायर हलफनामे में केंद्र ने दलील दी कि अगर किसी व्यक्ति का अपनी पत्नी के साथ संबंध बनाना बलात्कार के रूप में दंडनीय किया जाता है तो इससे वैवाहिक संबंधों पर गंभीर असर पड़ सकता है। मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इसके लिए कई अन्य सजाएं भारतीय कानून में मौजूद हैं। मैरिटल रेप को अपराध मानने से इनकार कर चुकी है भारत सरकार 2016 में मोदी सरकार ने मैरिटल रेप के विचार को खारिज कर दिया था। सरकार ने कहा था कि देश में अशिक्षा, गरीबी, ढेरों सामाजिक रीति-रिवाजों, मूल्यों, धार्मिक विश्वासों और विवाह को एक संस्कार के रूप में मानने की समाज की मानसिकता जैसे विभिन्न कारणों से इसे भारतीय संदर्भ में लागू नहीं किया जा सकता है। 2017 में, सरकार ने मैरिटल रेप को अपराध न मानने के कानूनी अपवाद को हटाने का विरोध किया था। सरकार ने तर्क दिया था कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने से विवाह की संस्था अस्थिर हो जाएगी और इसका इस्तेमाल पत्नियों द्वारा अपने पतियों को सजा देने के लिए किया जाएगा। केंद्र ने पिछले साल दिल्ली हाई कोर्ट में मैरिटल रेप पर चल रही सुनवाई के दौरान कहा था कि केवल इसलिए कि अन्य देशों ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित कर दिया है, भारत को भी ऐसा करने की जरूरत नहीं है। 19वीं सदी में इंग्लैंड के कानून ने माना कि मैरिटल रेप होता है जोनाथन हेरिंग की किताब फैमिली लॉ (2014) के मुताबिक, ऐतिहासिक रूप से दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में ये धारणा थी कि पति पत्नी का रेप नहीं कर सकता, क्योंकि पत्नी को पति की संपत्ति माना जाता था। 20वीं सदी तक अमेरिका और इंग्लैंड के कानून मानते थे कि शादी के बाद पत्नी के अधिकार पति के अधिकारों में समाहित हो जाते हैं। 19वीं सदी की शुरुआत में नारीवादी आंदोलनों के उदय के साथ ही इस विचार ने भी जन्म लिया कि शादी के बाद पति-पत्नी के सेक्स संबंधों में महिलाओं की सहमति का अधिकार उनका मौलिक अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें... सुप्रीम कोर्ट बोला- चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना, डाउनलोड करना अपराध: मद्रास हाईकोर्ट का फैसला पलटा सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना और देखना POCSO और IT एक्ट के तहत अपराध है। CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए फैसला सुनाया। पढ़ें पूरी खबर...
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