लखनऊ में 'शोध विधि' पर व्याख्यान का आयोजन:शोध के स्रोतों पर हुई चर्चा; प्रोफेसरों ने दिए छात्रों के सावालों का जबाव
लखनऊ विश्वविद्यालय के शिक्षा शास्त्र विभाग में 'ऐतिहासिक शोध विधि' विषय पर एक महत्वपूर्ण व्याख्यान आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में प्रो.राजशरण शाही बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय लखनऊ, स्कूल ऑफ एजुकेशन के विभागाध्यक्ष शामिल हुए।कार्यक्रम की शुरुआत में प्रोफेसर दिनेश कुमार शिक्षा शास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष ने प्रो.शाही को अंगवस्त्र और पुष्पगुच्छ देकर सम्मानित किया। प्रोफेसर राजशरण शाही ने अपने व्याख्यान में ऐतिहासिक शोध विधि के महत्व पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि समाजशास्त्र और अन्य सामाजिक विज्ञानों में ऐतिहासिक शोध विधि की खास भूमिका है। भारतीय शिक्षा में ऐतिहासिक रिसर्च के उद्देश्य और उसकी जरूरतों के बारे में बताया । व्याख्यान में प्राथमिक और द्वितीयक स्रोतों की चर्चा प्रो. शाही ने ऐतिहासिक शोध में स्रोतों को समझाया। सबसे पहले उन्होंने लार्ड मैकाले द्वारा लिखित दो महत्वपूर्ण पत्रों का उदाहरण दिया, जिन्हें ऐतिहासिक शोध में 'प्राथमिक स्रोत' के रूप में देखा जाता है। इसके बाद, द्वितीयक स्रोतों पर भी उन्होंने चर्चा की, जिसमें उन्होंने उदाहरणों के माध्यम से समझाया कि ये शोध में किस प्रकार मददगार होते हैं। छात्रों ने शोध के विधि संबधित प्रश्न पूछे व्याख्यान के बाद, शोध के छात्रों ने ऐतिहासिक शोध के विधि से संबंधित अपने प्रश्न पूछे, जिनका प्रो. राजशरण शाही ने विस्तार से उत्तर दिया। इस दौरान उन्होंने शोध विधि को लेकर उठ रही शंकाओं का समाधान किया। कार्यक्रम के समापन पर विभाग के शोधार्थी सना नाहिद ने प्रो. शाही का धन्यवाद दिया और उनके योगदान के लिए आभार व्यक्त किया।कार्यक्रम की संयोजिका डॉ. नीतू सिंह और सह-संयोजक डॉ. सूर्यनारायण गुप्ता ने इस आयोजन को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई। कार्यक्रम में विभाग के अन्य प्रोफेसर और शोध के छात्र भी उपस्थित रहे।
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