लखनऊ से दिल्ली तक मांगेराम ने फैला रखा था काला-साम्राज्य:डिप्टी सीएम से सेंटर का उद्घाटन कराने की थी प्लानिंग; नकली डिग्री गिरोह का पर्दाफाश
लखनऊ के निशातगंज में फर्जी मार्कशीट और प्रमाणपत्र बनाने वाला गिरोह पकड़ा गया है। पुलिस ने गिरोह में शामिल कंप्यूटर ऑपरेटर राम प्रकाश वर्मा को गिरफ्तार किया, लेकिन सरगना अभी फरार है। गिरोह अब तक हजारों फर्जी मार्कशीट और डिग्रियां बेच चुका है। सरगना मनीष प्रताप सिंह उर्फ मांगेराम ने गाजियाबाद में कौशल विकास मिशन की आड़ में फर्जीवाड़े का जाल बिछाया था। मांगेराम पिछले 9 साल से फर्जीवाड़ा कर रहा था। मांगेराम कई बार जेल जा चुका है और गैंगस्टर एक्ट भी लग चुका है। मांगेराम जेल जाता तो गाजियाबाद का सेंटर गिरोह के लोग चलाते। 5 महीने पहले जेल से बाहर आया और 3 महीने बाद लखनऊ के महानगर में सेंटर खोल दिया। इसी सेंटर का डिप्टी सीएम से उद्घाटन कराने की प्लानिंग में था। निशातगंज इलाके के एक मकान में फर्जी मार्कशीट बनाने की सूचना पुलिस को मिली। पुलिस ने छापामारा तो मौके से लैपटॉप, प्रिंटर, पेपर कटिंग मशीन और बड़ी संख्या में फर्जी मार्कशीट बरामद हुई। कंप्यूटर ऑपरेटर राम प्रकाश वर्मा ने पूछताछ में गिरोह के सरगना मांगेराम के बारे में बताया। कहा- गिरोह का नेटवर्क पूरे देश में है। पहले जानते हैं मांगेराम कैसे मैनेज करता था पूरा नेटवर्क और कैसे लोकल लेवल पर दलालों के पास पहुंचती मार्कशीट... असली प्रमाणपत्र की स्कैनिंग यह गिरोह पिछले नौ साल से सक्रिय था। फर्जी मार्कशीट बनाने के लिए ये पहले असली प्रमाणपत्रों की स्कैनिंग कर नकल तैयार करते। हाई लेवल सॉफ्टवेयर का उपयोग गिरोह के पास हाई लेवल के सॉफ्टवेयर और उपकरण थे। इससे 10वीं 12वीं, ग्रेजुएशन, मास्टर के साथ-साथ आयुर्वेद संस्थानों और मुक्त विश्वविद्यालयों की डिग्री बनाते थे। NBCTE का केंद्र से लगाता सील साइन गाजियाबाद में कौशल विकास के नाम पर NBCTE का केंद्र खोला था। यहीं से फर्जी प्रमाण-पत्र में सील-साइन लगाकर असली बनाया जाता। दलाल तय करते दाम प्रमाणपत्रों की कीमत 25 हजार से 50 हजार रहती। इसका उपयोग नौकरी, प्रमोशन और एडमिशन के लिए होता था। जैसा ग्राहक, वैसी कीमत गिरोह का नेटवर्क यूपी के साथ बिहार, दिल्ली और मध्य प्रदेश में सक्रिय है। कई राज्य ऐसे हैं जहां गिरोह के सदस्यों ने लोकल लेवल पर डीलर बनाए हैं। इनकी मदद से ही ग्राहक फंसाते हैं। ग्राहक जैसी डिग्री लेता है उसी हिसाब से दलालों को पैसा मिलता है। अब जान लीजिए सरगना का आपराधिक इतिहास सरगना मनीष प्रताप सिंह उर्फ मांगेराम मथुरा का रहने वाला है। इसके खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज हैं। मांगेराम कौशल विकास केंद्र खोलकर अपनी गतिविधियों को वैध दिखाने की कोशिश की। वह गिरोह का नेतृत्व तो करता था लेकिन ग्राहकों से सीधा संपर्क नहीं करता था। उसके गुर्गे सौदा फाइनल करते और पैसे का लेनदेन संभालते थे। पहले गिरफ्तार हो चुका है सरगना गिरोह का सरगना मांगेराम के हुसैनगंज और हीवेट रोड पर दो मकान थे। सितंबर 2021 में चिनहट पुलिस ने फर्जी मार्कशीट के मामले में गिरफ्तार कर जेल भेजा था। इसके बाद अमीनाबाद पुलिस ने 11 फरवरी 2022 में गिरफ्तार कर जेल भेजा था। उस समय हीवेट रोड पर रहता था। 2023 में पॉक्सो एक्ट में भी जेल गया। मांगेराम पर मानव तस्करी, यौन शोषण, गैंगस्टर एक्ट और अनैतिक व्यापार करने, बलात्कार, हत्या, हथियारों और नशीले पदार्थों का गैरकानूनी उपयोग करने का भी आरोप है। एडीसीपी मध्य मनीषा सिंह ने बताया- गिरोह में 12 से अधिक लोग सक्रिय सदस्य हैं। मांगेराम की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने मेरठ, बिहार और अन्य जगहों पर दबिश दी जा रही है। सरगना की गिरफ्तारी के लिए टीमों को लगाया गया है। गिरोह के शिकार लोगों की कहानी श्रीकांत (बदला हुआ नाम) ने कहा- मैंने प्रमोशन के लिए इंटर की मार्कशीट खरीदी। अब पुलिस जांच के कारण नौकरी पर संकट आ गया है। वहीं अर्चना (बदला हुआ नाम) ने कहा- मैंने प्राइवेट कंपनी में नौकरी पाने के लिए स्नातक की फर्जी डिग्री ली थी। मामला उजागर होने के बाद अब डर लग रहा है। पुलिस के सामने 3 चुनौतियां 1- तकनीकी प्रमाणपत्रों की पहचान : गिरोह द्वारा बनाई गई नकली मार्कशीट असली से लगभग मिलती-जुलती थीं, जिससे असली-नकली की पहचान करना मुश्किल हो जाता था। 2- फरार सरगना: सरगना मनीष उर्फ मांगेराम की गिरफ्तारी पुलिस के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है। 3- अंतरराज्यीय नेटवर्क: गिरोह का नेटवर्क कई राज्यों में फैला हुआ है, जिससे मामले की जांच और कार्रवाई कठिन हो जाती है।
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