साढ़े तीन करोड़ की दवाएं और मशीनें मिलीं:आगरा में बन रही थीं पशुओं की नकली दवाएं, जीजा साला गिरफ्तार

आगरा के शास्त्रीपुरम में पशुओं की नकली दवा बनाने वाले दो फैक्ट्रियों से लगभग साढ़े तीन करोड़ रुपए की दवाइयां और मशीनें पकड़ी गई हैं। दोनों फैक्ट्रियां जीजा साला अश्वनी गुप्ता और सौरभ दुबे की है, जिन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। दोनों के पास फैक्ट्री का लाइसेंस नहीं है। उत्तराखंड के लोन लाइसेंस पर यहां फैक्ट्रियां चला रहे थे। पुलिस को सूचना मिली कि शास्त्रीपुरम में दो फैक्ट्रियां चल रही हैं, जिनमें पशुओं की नकली दवाएं बनाई जाती हैं। पुलिस ने एसओजी के साथ छापा मारा। पुलिस को पूछताछ में अश्वनी गुप्ता ने बताया कि डेढ़ साल पहले शारिक नाम के व्यक्ति से मैरिज होम किराए पर लिया था। यहां वेटनोसेफ रिसर्च मेडिकल प्राइवेट लिमिटेड के नाम से फैक्ट्री शुरू की। फैक्ट्री में पशुओं के बुखार, पेट दर्द, खुरपका, एंटी बायोटिक दवाएं बनाई जाती थीं। इन दवाइयों को एटा, मैनपुरी, राजस्थान, अलीगढ़, कानपुर में सप्लाई किया जाता था। 11 महीने पहले दीपक सिंह नाम के व्यक्ति का घर किराए पर लेकर दूसरी फैक्ट्री नोवीटास लाइफ साइंसेज के नाम से खोली। धीरे-धीरे क्षेत्र का विस्तार करते हुए दवाइयों को गुजरात और पंजाब तक बेचना शुरू किया। एमबीए पास है सौरभ अश्वनी का साला सौरभ एमबीए किया हुआ है। एक पशुओं की दवा फैक्ट्री में मैनेजर के रूप में काम कर चुका है। इसीलिए अश्वनी ने उसे अपने साथ लिया। सौरभ को बाजार की समझ थी। सौरभ ने ऑनलाइन ऑर्डर के साथ ही आसपास के जिलों में एजेंट बनाना शुरू किए। दूसरी कंपनियों के मुकाबले 20 प्रतिशत ज्यादा कमीशन देता था। इससे उनका कारोबार तेजी से आगे बढ़ा। दवाओं की सप्लाई अफगानिस्तान और अफ्रीका के अंगोला तक करने लगे। विदेशों में पार्टी से ऑनलाइन ऑर्डर लेकर शिप में कंटेनल से माल भेजते थे। 7 महीने पहले कमीशन कम होने के विवाद पर सौरभ नोवीटास फैक्ट्री के साथ अलग हो गया था। मकान मालिक को ही दे दी नौकरी पैकिंग और लेबलिंग के लिए आसपास के गांवों की महिलाओं को काम पर रखा हुआ था। महिलाओं को 5-5 हजार रुपए दिए जाते थे। फैक्ट्री अच्छी चल रही थी। शास्त्रीपुरम के लखनपुर गांव में जिस घर में फैक्ट्री चलाई जा रही थी, उस मकान के मालिक को ही 8 हजार रुपए में नौकरी दे दी थी। अश्वनी बन गया 66 प्रतिशत का हिस्सेदार पूछताछ में सौरभ ने बताया कि वो भी दवा की फैक्ट्री खोलना चाहता था। इसके लिए उसने अपने एक दोस्त के साथ प्लानिंग भी की थी। फिर जीजा अश्वनी ने उसे ऑफर दिया तो वो उनकी फैक्ट्री से जुड़ गया। अश्वनी ने वायदा किया था कि 50 प्रतिशत की हिस्सेदारी होगी। लेकिन अश्वनी ने अपनी पत्नी निधि गुप्ता को भी पार्टनर बना लिया। इस तरह से अश्वनी के पास 66 प्रतिशत की हिस्सेदारी हो गई। इसे लेकर ही फैक्ट्रियों में बंटवारा हुआ था।

Nov 14, 2024 - 08:40
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साढ़े तीन करोड़ की दवाएं और मशीनें मिलीं:आगरा में बन रही थीं पशुओं की नकली दवाएं, जीजा साला गिरफ्तार
आगरा के शास्त्रीपुरम में पशुओं की नकली दवा बनाने वाले दो फैक्ट्रियों से लगभग साढ़े तीन करोड़ रुपए की दवाइयां और मशीनें पकड़ी गई हैं। दोनों फैक्ट्रियां जीजा साला अश्वनी गुप्ता और सौरभ दुबे की है, जिन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। दोनों के पास फैक्ट्री का लाइसेंस नहीं है। उत्तराखंड के लोन लाइसेंस पर यहां फैक्ट्रियां चला रहे थे। पुलिस को सूचना मिली कि शास्त्रीपुरम में दो फैक्ट्रियां चल रही हैं, जिनमें पशुओं की नकली दवाएं बनाई जाती हैं। पुलिस ने एसओजी के साथ छापा मारा। पुलिस को पूछताछ में अश्वनी गुप्ता ने बताया कि डेढ़ साल पहले शारिक नाम के व्यक्ति से मैरिज होम किराए पर लिया था। यहां वेटनोसेफ रिसर्च मेडिकल प्राइवेट लिमिटेड के नाम से फैक्ट्री शुरू की। फैक्ट्री में पशुओं के बुखार, पेट दर्द, खुरपका, एंटी बायोटिक दवाएं बनाई जाती थीं। इन दवाइयों को एटा, मैनपुरी, राजस्थान, अलीगढ़, कानपुर में सप्लाई किया जाता था। 11 महीने पहले दीपक सिंह नाम के व्यक्ति का घर किराए पर लेकर दूसरी फैक्ट्री नोवीटास लाइफ साइंसेज के नाम से खोली। धीरे-धीरे क्षेत्र का विस्तार करते हुए दवाइयों को गुजरात और पंजाब तक बेचना शुरू किया। एमबीए पास है सौरभ अश्वनी का साला सौरभ एमबीए किया हुआ है। एक पशुओं की दवा फैक्ट्री में मैनेजर के रूप में काम कर चुका है। इसीलिए अश्वनी ने उसे अपने साथ लिया। सौरभ को बाजार की समझ थी। सौरभ ने ऑनलाइन ऑर्डर के साथ ही आसपास के जिलों में एजेंट बनाना शुरू किए। दूसरी कंपनियों के मुकाबले 20 प्रतिशत ज्यादा कमीशन देता था। इससे उनका कारोबार तेजी से आगे बढ़ा। दवाओं की सप्लाई अफगानिस्तान और अफ्रीका के अंगोला तक करने लगे। विदेशों में पार्टी से ऑनलाइन ऑर्डर लेकर शिप में कंटेनल से माल भेजते थे। 7 महीने पहले कमीशन कम होने के विवाद पर सौरभ नोवीटास फैक्ट्री के साथ अलग हो गया था। मकान मालिक को ही दे दी नौकरी पैकिंग और लेबलिंग के लिए आसपास के गांवों की महिलाओं को काम पर रखा हुआ था। महिलाओं को 5-5 हजार रुपए दिए जाते थे। फैक्ट्री अच्छी चल रही थी। शास्त्रीपुरम के लखनपुर गांव में जिस घर में फैक्ट्री चलाई जा रही थी, उस मकान के मालिक को ही 8 हजार रुपए में नौकरी दे दी थी। अश्वनी बन गया 66 प्रतिशत का हिस्सेदार पूछताछ में सौरभ ने बताया कि वो भी दवा की फैक्ट्री खोलना चाहता था। इसके लिए उसने अपने एक दोस्त के साथ प्लानिंग भी की थी। फिर जीजा अश्वनी ने उसे ऑफर दिया तो वो उनकी फैक्ट्री से जुड़ गया। अश्वनी ने वायदा किया था कि 50 प्रतिशत की हिस्सेदारी होगी। लेकिन अश्वनी ने अपनी पत्नी निधि गुप्ता को भी पार्टनर बना लिया। इस तरह से अश्वनी के पास 66 प्रतिशत की हिस्सेदारी हो गई। इसे लेकर ही फैक्ट्रियों में बंटवारा हुआ था।

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