उत्तराखंड में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भारी जनाक्रोश, हल्द्वानी में धूमधाम से प्रदर्शन
सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2014 के काठगोदाम (हाल्द्वानी-क्षेत्र) में हुई सात वर्षीय नन्ही काशिश की हत्या मामले में मुख्य आरोपी के बरी किए जाने के बाद शहर में गुस्से की लहर दौड़ पड़ी। गुरुवार को सुबह से ही बुद्ध पार्क पर बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हुए और धीरे-धीरे प्रदर्शनकारियों की भीड़ एसडीएम कार्यालय तक पहुँच …

उत्तराखंड में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भारी जनाक्रोश, हल्द्वानी में धूमधाम से प्रदर्शन
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कम शब्दों में कहें तो, 2014 में काठगोदाम क्षेत्र में हुई नन्ही काशिश की हत्या मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरोपी को बरी किए जाने पर हल्द्वानी में जनाक्रोश फूट पड़ा। प्रदर्शनकारी न्याय की मांग के लिए जुटे और पूरे शहर में उनकी आवाज गूंज उठी।
गुरुवार की सुबह, हल्द्वानी के बुद्ध पार्क में भारी संख्या में लोग इकट्ठा हुए। धीरे-धीरे, ये प्रदर्शनकारी एसडीएम कार्यालय की ओर बढ़े, जहाँ उन्होंने अपने गुस्से और न्याय की मांग को लेकर जोरदार नारेबाजी की। नन्ही काशिश की हत्या के मामले में मुख्य आरोपी को सुप्रीम कोर्ट द्वारा बरी किए जाने के फैसले से शहरवासियों में आक्रोश फैल गया है। यह वही मामला है जिसने 2014 में कुमाऊं क्षेत्र में भारी विद्रोह की भावना को जन्म दिया था। अब, जब यह फैसला आया है, मौजूदा भावनाएं फिर से उभर आई हैं।
प्रदर्शन का कारण और जनभावना
प्रदर्शनकारियों ने न्याय की मांग करते हुए स्थानीय सरकार और न्यायिक प्रणाली के खिलाफ नारे लगाए। वे आरोपी को फाँसी की सजा वापस दिलाने की मांग कर रहे थे। इस प्रदर्शन में सामाजिक संगठनों, स्थानीय जनप्रतिनिधियों और लोककलाकारों ने भी हिस्सा लिया। उन्होंने राष्ट्रपति को ज्ञापन भेजकर न्याय की मांग की।
प्रदर्शन के दौरान, कुछ स्थानों पर पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच तनाव की स्थिति भी उत्पन्न हुई, लेकिन सूचनाएं यह बता रही हैं कि कहीं भी हिंसा की कोई घटना नहीं हुई। स्थानीय निवासियों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला पीड़ित परिवार और समाज के साथ एक बड़ा अन्याय है। उनके अनुसार, यह न्याय के लिए आवाज उठाने का समय है।
मामले की संवेदनशीलता और आगे की संभावना
नन्ही काशिश मामले की संवेदनशीलता और पिछले कई वर्षों से चल रही न्यायिक प्रक्रिया के चलते, इस मामले के संबंध में जन-आक्रोश को समझा जा सकता है। पीड़ित परिवार की ओर से न्याय की गुहार और समाज की प्रतिक्रिया आगे भी जारी रहने की संभावना है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला उस जख्म को फिर से हरा कर देता है जिसे समाज ने कभी भुला नहीं पाया। इससे पहले, इस मामले में हुए विरोध और आक्रोश ने प्रशासन को कार्रवाई करने के लिए मजबूर किया था और यह नई लहर भी इसी संदर्भ में सामने आई है। स्थानीय नागरिक, सरकार और न्यायपालिका से यह मांग कर रहे हैं कि कोई ठोस कदम उठाया जाए, ताकि पीड़ित परिवार को न्याय मिले।
हालाँकि, सामाजिक संगठनों की प्रतिक्रिया और स्थानीय जनप्रतिनिधियों द्वारा मुद्दे पर बाद में बयान देने की संभावना से दिख रहा है कि यह मामला सिर्फ एक घटना नहीं बल्कि आगे आने वाले समय में राजनीति और समाज में बड़े उठापटक का कारण बन सकता है।
इस मामले में न केवल स्थानीय बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा होनी चाहिए। सभी पक्षों का एक जगह पर आकर अपनी बात रखने से ही कुछ हल निकल सकता है। न्याय की मांग के इस महासंग्राम में अगर सच्चाई को आदर के साथ नहीं लिया गया, तो यह मामला एक बार फिर से सामाजिक विद्रोह को जन्म दे सकता है।
इस स्थिति को देखते हुए, यह आवश्यक है कि सभी पक्ष एक दूसरे की संवेदनाओं को समझें और उस अत्याचार के खिलाफ खड़े हों, जिससे न केवल नन्ही काशिश बल्कि ऐसे अन्य कई बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो सके।
अलीशा शर्मा द्वारा प्रस्तुत इस स्थिति से सभी को समाहित करना और भविष्य की दिशा को प्रभावित करना आज की जरूरत है। न्याय केवल उस समय मिल सकता है जब हम मिलकर एक सही दिशा में कदम बढ़ाएँगे। For more updates, visit https://indiatwoday.com
Team India Twoday - अलीशा शर्मा
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