प्राइवेट प्रैक्टिस पर आगरा के डीजीसी क्रिमिनल से मांगा जवाब:इलाहाबाद हाईकोर्ट में आगरा की गीतिका अग्रवाल की याचिका पर आदेश, कहा- सरकारी वकील कर रहे प्राइवेट प्रैक्टिस
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आगरा के जिला शासकीय अधिवक्ता फौजदारी (डीजीसी क्रिमिनल) बसंत कुमार गुप्ता को नोटिस जारी कर उनसे याचिका पर जवाब मांगा है। यह आदेश न्यायमूर्ति शेखर बी सराफ एवं न्यायमूर्ति विपिन चंद्र दीक्षित की खंडपीठ ने गीतिका अग्रवाल की याचिका पर दिया है। गीतिका अग्रवाल ने याचिका में डीजीसी क्रिमिनल पर सरकारी वकील होने के बावजूद प्राइवेट प्रैक्टिस करने का आरोप लगाया है। याचिका में कहा गया है कि उन्होंने याची के पति की ओर से याची के माता-पिता व भाई को कानूनी नोटिस भेजा है। याची का कहना है कि उसका विवाह सौरव अग्रवाल से हुआ था। पति सहित ससुराल पक्ष ने दहेज की मांग की, जिस पर आगरा के जगदीशपुरा थाने में दहेज उत्पीड़न की एफआईआर दर्ज कराई गई। कहा गया कि ससुराल पक्ष की ओर से जिला शासकीय अधिवक्ता फौजदारी ने नोटिस भेजा है। जबकि उन्हें प्राइवेट प्रैक्टिस करने का अधिकार नहीं है। साथ ही आईसीआईसीआई बैंक के पैनल अधिवक्ता होने का भी आरोप लगाया। इस संबंध में उचित कार्रवाई के लिए अधिकारियों को प्रार्थना पत्र भेजा लेकिन सुनवाई नहीं हुई तो यह याचिका दाखिल की है।

प्राइवेट प्रैक्टिस पर आगरा के डीजीसी क्रिमिनल से मांगा जवाब
इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आगरा की गीतिका अग्रवाल की याचिका पर एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है। अदालत ने आगरा के डीजीसी क्रिमिनल से स्पष्ट जवाब मांगा है कि कैसे सरकारी वकील प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहे हैं। यह मामला न केवल कानूनी नैतिकता पर सवाल उठाता है, बल्कि सरकारी सेवाओं में पारदर्शिता और जिम्मेदारी की आवश्यकता को भी उजागर करता है।
प्राइवेट प्रैक्टिस का मामला
गौरतलब है कि सरकारी वकीलों का प्राइवेट प्रैक्टिस करना कानून के तहत निषिद्ध है। यह नियम सरकारी कामकाज और न्यायिक प्रक्रिया की प्रभावशीलता को सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए हैं। गीतिका अग्रवाल ने इस मुद्दे को उठाया, जिसके परिणामस्वरूप कोर्ट ने संबंधित अधिकारियों से जवाब तलब किया है। अदालत की इस कार्रवाई से प्रकरण के प्रति लोगों की नजरें टिक गई हैं।
क्या है कार्रवाई का उद्देश्य?
इस आदेश का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सरकारी वकील अपनी प्राथमिक जिम्मेदारी को निभाएं और प्राइवेट प्रैक्टिस से होने वाले संभावित टकराव को खत्म करें। इससे न केवल नियमों का पालन होगा, बल्कि न्यायिक प्रणाली पर विश्वास भी कायम रहेगा।
निष्कर्ष
इस आदेश से यह स्पष्ट होता है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट सरकारी वकीलों की प्राइवेट प्रैक्टिस के खिलाफ गंभीर है। आगामी सुनवाई इस मामले की सच्चाई और अधिकारियों की जवाबदेही को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
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