वाराणसी की वरुणा का पानी छूने लायक नहीं:सेकेंड रिवर लाइफ लाइन वरुणा नदी भी सिसक रही, राज्यमंत्री बोले कुम्भ से पहले हो जाएगी साफ

महादेव की नगरी काशी का एक नाम वाराणसी है जो वरुणा और असी नदी के नाम को जोड़कर बना है। एनजीटी की रिपोर्ट कहती है कि गंगा का जल आचमन योग्य नहीं है लेकिन वाराणसी की सेकेंड लाइफ लाइन वरुणा जिसकी तुलना टेम्स नदी से होती थी आज उसका पानी तो छूने लायक भी नहीं बचा है। नदी के काले सीवर के पानी से उठती दुर्गंध विचलित करती है। बदलती सरकारों की खींचतान के चलते आज वरुणा नदी दम तोड़ रही है। उसके उद्धार को लेकर सिर्फ कागजी घोड़े ही सरपट दौड़ रहे हैं जबकि वरुणा का पानी ठहर गया है। पानी की हालत यह कि कोई इस्तेमाल कर ले तो उसे त्वचा की गंभीर समस्या का सामना करना पड़ सकता है। वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री अरुण सक्सेना से दैनिक भास्कर ने वरुणा की दुर्दशा को लेकर सवाल किया तो दवा किया कि महाकुंभ से पहले गंगा समेत यूपी की सभी सहायक नदियां साफ हो जाएंगी। कचरे का डंपिंग स्टेशन बन गई जीवनदायिनी कहने में संकोच नहीं कि आज प्रयागराज से लेकर वाराणसी तक नदी के दोनों छोर पर बसे सैकड़ों गांवों के किसानों के लिए जीवनदायिनी वरुणा कूड़े-कचरे का डंपिंग स्टेशन बनकर रह गया है। खेती-किसानी के लिए इसका उपयोग अब स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो रहा है। वाराणसी में आदिकेशव घाट से लेकर रामेश्वर तक वरुणा नदी गंदे नाले में तब्दील हो चुकी है। बड़े-बड़े सीवर और खुले हुए ड्रेनेज से मलजल सीधे वरुणा में गिर रहे हैं। नदी किनारे खुली फैक्ट्रियों के केमिकल के साथ ही होटलों का गंदा कूड़ा-करकट वरुणा में डाले जा रहे। नदी के किनारों पर चलने वाले कई कसाईखाने सिर्फ कागजों में बंद हैं, हकीकत खुद वरुणा नदी बयां कर रही है। कॉरिडोर की की रेलिंग के किनारे और नदी के तट पर कूड़े का अंबार है। खाने योग्य नहीं बची इसके पानी से पैदा होने वाली सब्जियां वाराणसी के लोहता, चमाव, शिवपुर, रामेश्वर समेत लगभग 40 गांवों में वरुणा के पानी से ही सब्जियां उगाई जाती थी और अभी भी उसी पानी से खेतों की सिंचाई होती है। नाले में तब्दील वरुणा के पानी में जिंक, क्रोमियम, मैग्नीज, निकल, कैडमियम, कापर, लेड की मात्रा मानक से अधिक है। इसी जहरीले हो चुके पानी से सब्जियां उगाई जा रही जिससे उसका सेवन करने वालो को पेट की बीमारी का सामना करना पड़ रहा। वरुणा कॉरिडोर की टूट गई रेलिंग, पाथवे के पत्थर जगह-जगह से उखड़े वरुणा को नया जीवन देने के लिए लगभग 11 किलोमीटर का कॉरिडोर बनाया गया। दैनिक भास्कर ने जब ग्राउंड रिपोर्टिंग की तो पाया कि जगह-जगह से नदी किनारे की रेलिंग उखड़ गई है। कुछ स्थानों से तो रेलिंग गायब हो चुकी है। पाथवे के पत्थर जगह-जगह से उखड़ गए हैं जो वरुणा कॉरिडोर मार्ग पर वाहन चलाने वालों के लिए कभी भी खतरनाक साबित हो सकता है। नदी का पानी काला, जानलेवा जलकुंभी ने रोका पानी जम गई काई वरुणा में सीधे बहने वाले 11 नाले बन्दकर अपनी पीठ थपथपाने वाला प्रदूषण विभाग को शायद अब भी वरुणा का दुर्गंधयुक्त काला पानी नहीं दिखता। चौकाघाट के समीप वरुणा में जलकुंभी का जाल इस कदर बिछा है कि पानी मे प्रवाह थम गया है। नदी में जगह जगह काई है। गंदगी तैर रही है। नदी किनारे की सड़ांध उधर से गुजरना दूभर कर देती है। 201 करोड़ से तैयार वरुणा कॉरिडोर सपा-भाजपा की राजनीति का बन गया शिकार दरअसल, सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने गोमती रिवर फ्रंट की तर्ज पर वाराणसी में लगभग 11 किलोमीटर वरुणा कॉरिडोर बनाने की पहल शुरू की। वर्ष 2016 में 201 करोड़ की लागत से 10 किलोमीटर तक नदी के दोनों छोर पर रेलिंग बनाने के साथ ही पाथवे का निर्माण हुआ। इस बीच गोमती रिवर फ्रंट घोटाला जगजाहिर होने के बाद वरुणा के उद्धार की गति धीमी पड़ गई। समाजवादी पार्टी भी आरोप लगाती है कि वरुणा का विकास योगी सरकार ने सिर्फ इसलिए बंद कर दिया क्योंकि वरुणा का उद्धार अखिलेश यादव का ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल था । हालांकि योगी सरकार के कार्यकाल में ही डेनमार्क से टीम आई थी वरुणा के उद्धार को उसे कचरा मुक्त करने के लिए लेकिन उन्होंने भी बाद में हाथ खींच लिए। जानिए वरुणा का इतिहास वरुण का उद्गम स्थल प्रयागराज है। वहां की मैलहन झील से निकली वरुणा लगभग डेढ़ सौ किलोमीटर की यात्रा करते हुए जौनपुर, भदोही के रास्ते वाराणसी पहुंचती है। यहां 45 किलोमीटर का सफर तय करते हुए वरुणा आदिकेशव घाट से होकर गंगा में जाकर मिल जाती है। मान्यता है कि वरुणा गंगा से भी प्राचीन है। मैलहन झील के दक्षिण पूर्व में इंद्र, वरुण और यम देवता ने मिलकर त्रिदेवेश्वर शिवलिंग स्थापित कर यज्ञ किया। प्रसाद ग्रहण करने के बाद देवता व ऋषियों के हस्त प्रक्षालन से मैलहन झील भर गई। आज है लोटा भंटा मेला वाराणसी के रामेश्वर में वरुणा के तट पर प्रतिवर्ष लोटा भंटा का प्रसिद्ध मेला लगता है। गुरुवार को भी यहां आज मेला लग रहा है जहां हजारों की संख्या में आने वाले श्रद्धालु वरुणा में डुबकी के बाद रामेश्वर महादेव का दर्शन-पूजन करते हैं और प्रसाद के रूप में बाटी चोखा बनाकर उसका सेवन करते हैं। जानिए क्या कहा वन राज्यमंत्री ने वाराणसी आए वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री अरुण सक्सेना से एनजीटी का हवाला देते हुए गंगा जल आचमन योग्य नहीं, पूछा गया तो कहा कि गंगा को पीने योग्य बनाने के लिए सरकार लागतार प्रयासरत है। वरूणा की दुर्दशा के बाबत सवाल पर राज्यमंत्री ने जवाब देते हुए दावा किया कि महाकुंभ से पहले गंगा और सभी सहायक नदियों का जल स्वच्छ और इस्तेमाल करने के योग्य होगा।

Nov 21, 2024 - 08:45
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वाराणसी की वरुणा का पानी छूने लायक नहीं:सेकेंड रिवर लाइफ लाइन वरुणा नदी भी सिसक रही, राज्यमंत्री बोले कुम्भ से पहले हो जाएगी साफ
महादेव की नगरी काशी का एक नाम वाराणसी है जो वरुणा और असी नदी के नाम को जोड़कर बना है। एनजीटी की रिपोर्ट कहती है कि गंगा का जल आचमन योग्य नहीं है लेकिन वाराणसी की सेकेंड लाइफ लाइन वरुणा जिसकी तुलना टेम्स नदी से होती थी आज उसका पानी तो छूने लायक भी नहीं बचा है। नदी के काले सीवर के पानी से उठती दुर्गंध विचलित करती है। बदलती सरकारों की खींचतान के चलते आज वरुणा नदी दम तोड़ रही है। उसके उद्धार को लेकर सिर्फ कागजी घोड़े ही सरपट दौड़ रहे हैं जबकि वरुणा का पानी ठहर गया है। पानी की हालत यह कि कोई इस्तेमाल कर ले तो उसे त्वचा की गंभीर समस्या का सामना करना पड़ सकता है। वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री अरुण सक्सेना से दैनिक भास्कर ने वरुणा की दुर्दशा को लेकर सवाल किया तो दवा किया कि महाकुंभ से पहले गंगा समेत यूपी की सभी सहायक नदियां साफ हो जाएंगी। कचरे का डंपिंग स्टेशन बन गई जीवनदायिनी कहने में संकोच नहीं कि आज प्रयागराज से लेकर वाराणसी तक नदी के दोनों छोर पर बसे सैकड़ों गांवों के किसानों के लिए जीवनदायिनी वरुणा कूड़े-कचरे का डंपिंग स्टेशन बनकर रह गया है। खेती-किसानी के लिए इसका उपयोग अब स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो रहा है। वाराणसी में आदिकेशव घाट से लेकर रामेश्वर तक वरुणा नदी गंदे नाले में तब्दील हो चुकी है। बड़े-बड़े सीवर और खुले हुए ड्रेनेज से मलजल सीधे वरुणा में गिर रहे हैं। नदी किनारे खुली फैक्ट्रियों के केमिकल के साथ ही होटलों का गंदा कूड़ा-करकट वरुणा में डाले जा रहे। नदी के किनारों पर चलने वाले कई कसाईखाने सिर्फ कागजों में बंद हैं, हकीकत खुद वरुणा नदी बयां कर रही है। कॉरिडोर की की रेलिंग के किनारे और नदी के तट पर कूड़े का अंबार है। खाने योग्य नहीं बची इसके पानी से पैदा होने वाली सब्जियां वाराणसी के लोहता, चमाव, शिवपुर, रामेश्वर समेत लगभग 40 गांवों में वरुणा के पानी से ही सब्जियां उगाई जाती थी और अभी भी उसी पानी से खेतों की सिंचाई होती है। नाले में तब्दील वरुणा के पानी में जिंक, क्रोमियम, मैग्नीज, निकल, कैडमियम, कापर, लेड की मात्रा मानक से अधिक है। इसी जहरीले हो चुके पानी से सब्जियां उगाई जा रही जिससे उसका सेवन करने वालो को पेट की बीमारी का सामना करना पड़ रहा। वरुणा कॉरिडोर की टूट गई रेलिंग, पाथवे के पत्थर जगह-जगह से उखड़े वरुणा को नया जीवन देने के लिए लगभग 11 किलोमीटर का कॉरिडोर बनाया गया। दैनिक भास्कर ने जब ग्राउंड रिपोर्टिंग की तो पाया कि जगह-जगह से नदी किनारे की रेलिंग उखड़ गई है। कुछ स्थानों से तो रेलिंग गायब हो चुकी है। पाथवे के पत्थर जगह-जगह से उखड़ गए हैं जो वरुणा कॉरिडोर मार्ग पर वाहन चलाने वालों के लिए कभी भी खतरनाक साबित हो सकता है। नदी का पानी काला, जानलेवा जलकुंभी ने रोका पानी जम गई काई वरुणा में सीधे बहने वाले 11 नाले बन्दकर अपनी पीठ थपथपाने वाला प्रदूषण विभाग को शायद अब भी वरुणा का दुर्गंधयुक्त काला पानी नहीं दिखता। चौकाघाट के समीप वरुणा में जलकुंभी का जाल इस कदर बिछा है कि पानी मे प्रवाह थम गया है। नदी में जगह जगह काई है। गंदगी तैर रही है। नदी किनारे की सड़ांध उधर से गुजरना दूभर कर देती है। 201 करोड़ से तैयार वरुणा कॉरिडोर सपा-भाजपा की राजनीति का बन गया शिकार दरअसल, सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने गोमती रिवर फ्रंट की तर्ज पर वाराणसी में लगभग 11 किलोमीटर वरुणा कॉरिडोर बनाने की पहल शुरू की। वर्ष 2016 में 201 करोड़ की लागत से 10 किलोमीटर तक नदी के दोनों छोर पर रेलिंग बनाने के साथ ही पाथवे का निर्माण हुआ। इस बीच गोमती रिवर फ्रंट घोटाला जगजाहिर होने के बाद वरुणा के उद्धार की गति धीमी पड़ गई। समाजवादी पार्टी भी आरोप लगाती है कि वरुणा का विकास योगी सरकार ने सिर्फ इसलिए बंद कर दिया क्योंकि वरुणा का उद्धार अखिलेश यादव का ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल था । हालांकि योगी सरकार के कार्यकाल में ही डेनमार्क से टीम आई थी वरुणा के उद्धार को उसे कचरा मुक्त करने के लिए लेकिन उन्होंने भी बाद में हाथ खींच लिए। जानिए वरुणा का इतिहास वरुण का उद्गम स्थल प्रयागराज है। वहां की मैलहन झील से निकली वरुणा लगभग डेढ़ सौ किलोमीटर की यात्रा करते हुए जौनपुर, भदोही के रास्ते वाराणसी पहुंचती है। यहां 45 किलोमीटर का सफर तय करते हुए वरुणा आदिकेशव घाट से होकर गंगा में जाकर मिल जाती है। मान्यता है कि वरुणा गंगा से भी प्राचीन है। मैलहन झील के दक्षिण पूर्व में इंद्र, वरुण और यम देवता ने मिलकर त्रिदेवेश्वर शिवलिंग स्थापित कर यज्ञ किया। प्रसाद ग्रहण करने के बाद देवता व ऋषियों के हस्त प्रक्षालन से मैलहन झील भर गई। आज है लोटा भंटा मेला वाराणसी के रामेश्वर में वरुणा के तट पर प्रतिवर्ष लोटा भंटा का प्रसिद्ध मेला लगता है। गुरुवार को भी यहां आज मेला लग रहा है जहां हजारों की संख्या में आने वाले श्रद्धालु वरुणा में डुबकी के बाद रामेश्वर महादेव का दर्शन-पूजन करते हैं और प्रसाद के रूप में बाटी चोखा बनाकर उसका सेवन करते हैं। जानिए क्या कहा वन राज्यमंत्री ने वाराणसी आए वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री अरुण सक्सेना से एनजीटी का हवाला देते हुए गंगा जल आचमन योग्य नहीं, पूछा गया तो कहा कि गंगा को पीने योग्य बनाने के लिए सरकार लागतार प्रयासरत है। वरूणा की दुर्दशा के बाबत सवाल पर राज्यमंत्री ने जवाब देते हुए दावा किया कि महाकुंभ से पहले गंगा और सभी सहायक नदियों का जल स्वच्छ और इस्तेमाल करने के योग्य होगा।

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