हिमाचल में आज दिवाली को लेकर असमंजस:कल मनाने की तैयारी; राज्यपाल, सीएम, डिप्टी-सीएम ने दी बधाई; 10 दिन चलेगा बूढ़ी दिवाली का जश्न
हिमाचल प्रदेश में इस बार दिवाली को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। बहुत कम लोग ही आज दिवाली मना रहे है। यहां तक की आज दिवाली की पूजा भी नहीं की जा रही। प्रदेश में अगले कल दिवाली मनाने की तैयारी है। वहीं दिन के वक्त लोगों ने बाजारों में जमकर पटाखों और मिठाइयों की खरीददारी की। राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल, मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू, डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री और नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने भी प्रदेशवासियों को दीपावली की शुभकामनाएं दी। वहीं दोपहर बाद मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू और कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष प्रतिभा सिंह ने राजभवन पहुंचकर राज्यपाल को दीपावली की बधाई दी। प्रदेश में दिवाली पर लोगों के घरों जैसी सेलिब्रेशन देवी-देवताओं के मंदिरों में होती है। मंदिरों में सांस्कृतिक एवं रंगारंग कार्यक्रम रखे गए हैं। एक सप्ताह तक मनाई जाएगी बूढ़ी दिवाली देश में दिवाली का पर्व आज मनाया जा रहा है। मगर हिमाचल में अगले 10 दिन तक इसका सेलिब्रेशन चलता रहेगा। दरअसल, हिमाचल में बूढ़ी दिवाली मनाई जाती है। सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र में बूढ़ी दिवाली पर सांस्कृतिक रंगारंग कार्यक्रम चलेंगे। इनमें प्रदेश के नामी कलाकार प्रस्तुतियां देंगे। 10 दिन चलने वाले इस पर्व पर लोग खाने-पीने और नाच गाने में व्यस्त रहते हैं। गांव गांव में पारंपरिक लोक नृत्य होंगे और इसकी शुरुआत मशालें जलाकर होगी। वहीं शिमला जिले की देवठियों में भी एक सप्ताह तक सांस्कृतिक एवं रंगारंग कार्यक्रम चलेंगे। बूढ़ी दिवाली पर क्या होता है? बूढ़ी दीवाली के दिन लोग सुबह उठकर अंधेरे में घास और लकड़ी की मशाल जलाकर एक जगह में एकत्रित होते है। अंधेरे में ही माला नृत्य गीत और संगीत का कार्यक्रम शुरू हो जाता है। कुछ घंटों तक टीले और धार पर लोक नृत्य व वीरगाथाएं गाकर लोग वापस अपने गांव के सांझा आंगन में आ जाते है। इसके बाद दिनभर लोकनृत्य का कार्यक्रम होता है। बूढ़ी दिवाली के पीछे क्या मान्यता? बूढ़ी दीवाली के संबंध में क्षेत्र के बुजुर्ग बताते है कि दीपावली के समय के बाद सर्दी का मौसम शुरू होता है। किसानों को अपनी फसल और पशुओं का चारा एकत्रित करना होता है। इसलिए एक महीने तक सारा काम निपटाने के बाद आराम से बूढ़ी दीवाली का आनंद उठाते है। एक अन्य मान्यता के अनुसार ये क्षेत्र पहले अन्य शहरी इलाकों से कटा रहता था। जिस कारण इस पर्व की जानकारी देरी से मिली। पहले पटाखे नहीं होते थे तो मशाल जलाते हैं।
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