BRICS देशों के पास ग्लोबल GDP का 27% हिस्सा:दुनिया की 28% जमीन, 44% आबादी; कंज्यूमर मार्केट में 23% हिस्सेदारी
रूस के कजान शहर में आज दुनिया की प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं के समूह BRICS की 16वीं समिट का आयोजन होगा। इस समिट में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मंगलवार को रूस पहुंचे।इस समिट में हिस्सा लेने के लिए मोदी समेत 28 देशों के राष्ट्राध्यक्ष रूस पहुंचे हैं। BRICS की अध्यक्षता रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन कर रहे हैं। पिछले साल तक 5 देशों वाले इस समूह अब 9 देश हो गए हैं। इस साल इसमें UAE, ईरान, इजिप्ट और इथोपिया भी जुड़ गए हैं। इसके अलावा इसकी सदस्यता लेने के लिए 34 देशों ने इच्छा जाहिर की है। आज इस स्टोरी में हम BRICS की अहमियत के बारे में जानेंगे। साथ ही जानेंगे इस पर दुनियाभर की नजर क्यों है। दुनिया के कई देश इसका सदस्य क्यों बनना चाहते हैं… नए देशों के जुड़ने के बाद BRICS पर एक नजर... पश्चिमी देश मंदी में थे, तब BRICS देश तेजी से आगे बढ़े 2008-2009 में जब पश्चिमी देश आर्थिक संकट से गुजर रहे थे। तब भी BRICS देशों की अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ रही थी। जैसा कि पहले ही इसके सदस्य देशों को दुनिया की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था कहा गया। था। इसके बनने का कॉन्सेप्ट ही ‘राइजिंग इकोनॉमी’ के आधार पर टिका था। आर्थिक संकट के बाद ये साफ हो गया कि BRICS देशों की अर्थव्यवस्था में तेजी से बढ़ने और पश्चिमी देशों को टक्कर देने की हिम्मत है। पहले पश्चिमी देश दुनिया की 60% से 80% अर्थव्यस्था को कंट्रोल कर रहे थे। अब इनकी जगह धीरे-धीरे BRICS देश ले रहे हैं। वर्तमान में BRICS यूरोपियन यूनियन (EU) को पछाड़ कर दुनिया का तीसरा ताकतवर आर्थिक संगठन बन गया है। ग्लोबल जीडीपी में EU के देशों का 14% का हिस्सा हैं, वहीं BRICS देश का हिस्सा 27% है। इसके अलावा BRICS का अपना एक अलग बैंक भी है जिसे न्यू डेवलेपमेंट बैंक के नाम से जाना जाता है। इसका हेडक्वार्टर चीन के शंघाई में है। ये बैंक सदस्य देशों को सरकारी या प्राइवेट प्रोजेक्ट्स के लिए लोन देने का काम करता है। इसकी वजह से पिछले साल करीब 40 देशों ने इस संगठन में जुड़ने की इच्छा जताई थी। पश्चिमी देशों के लिए BRICS कितनी बड़ी चुनौती हाल ही रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने SWIFT पेमेंट सिस्टम की तरह BRICS देशों के लिए एक अलग पेमेंट सिस्टम बनाने को लेकर हो रही चर्चा को लेकर जानकारी दी थी। इससे पहले पिछले साल ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डा सिल्वा ने एक समिट के दौरान कहा था कि BRICS संगठन के देशों को व्यापार के लिए एक नई करेंसी बनाने की जरूरत है। हम क्यों डॉलर में ट्रेड कर रहे हैं। हालांकि, इस मामले में अभी तक कोई जरूरी डेवलपमेंट नहीं हुआ है। राष्ट्रपति पुतिन ने भी हालिया प्रेस कॉन्फ्रेंस में नई करेंसी बनाने से जुड़ी चर्चाओं को नकार दिया था। उन्होंन कहा कि ये बहुत आगे की बात है, फिलहाल इस पर कोई फैसला नहीं होने वाला है। हालांकि संगठन के कुछ देश जरूर अपनी नेशनल करेंसी में ट्रेड शुरू कर चुके हैं। चीन और रूस इन देशों में शामिल हैं। यूक्रेन जंग के बाद रूस नेशनल करेंसी के इस्तेमाल पर जोर दे रहा है। इसकी वजह ये है कि अमेरिका और पश्चिमी देशों ने रूस के एसेट्स को सीज करा दिया है। इससे रूस को काफी नुकसान हुआ है। नए देशों के शामिल होने कितना बदलाव होगा BRICS में नए देशों के शामिल होने से इसकी ताकत बढ़ी है। UAE, ईरान, इजिप्ट, इथियोपिया के जुड़ने BRICS देशों का बाजार बढ़ा है। UAE जैसी तेज गति से बढ़ती अर्थव्यस्था इससे जुड़ी है जिसकी ग्लोबल निर्यात क्षमता 2% से भी अधिक है। इसके इन देशों के साथ आने से BRICS के कुल लैंड एरिया और जनसंख्या में बढ़ोत्तरी हुई है। साथ ही इस संगठन की संयुक्त सैन्य क्षमता में भी इजाफा हुआ है। हालांकि BRICS कोई सैन्य संगठन नहीं है। 34 देशों ने ब्रिक्स में शामिल होने की इच्छा जताई BRICS समिट से पहले 18 अक्टूबर को रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने बताया कि 34 देशों ने ब्रिक्स में शामिल होने की इच्छा जताई है। इससे पहले पिछले साल भी लगभग 40 देश इसमें शामिल होने की इच्छा जता चुके हैं। भारत के पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान ने भी इसमें शामिल होने के लिए आधिकारिक तौर पर अप्लाई किया था। हालांकि भारत इसके विस्तार को लेकर हिचकिचाता रहा है। इसकी प्रमुख वजह ये है कि इसके सदस्य बनने का अभी नियम तय नहीं हुए है। फिलहाल BRICS में जो देश हैं उनका बड़ा आधार अर्थव्यवस्था है। ऐसे में बड़ा सवाल होता है कि नए सदस्यों को इकोनॉमी के आधार पर शामिल किया जाए या जियोग्राफी के आधार पर। प्रोफेसर राजन कुमार के मुताबिक BRICS में कम देश होने की वजह से फैसले लेने में आसानी होती है। ऐसे में ज्यादा सदस्यों को संगठन में शामिल करना बड़ी चुनौती होगी। दूसरी तरफ भारत चीन के मंसूबों को लेकर भी सतर्क रहना चाहता है। चीन और रूस दोनों BRICS संगठन को पश्चिमी देशों के खिलाफ बने समूह के तौर पर प्रोजेक्ट करना चाहते हैं।
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