''अब देश में नहीं होता साधु-संतों का अपमान'':जौनपुर में रामकथा का पांचवा दिन, बोले कथा व्यास- आरक्षण रोग की तरह

जौनपुर के बीआरपी इंटर कालेज के मैदान में सेवा भारती के बैनर तले और समाजसेवी ज्ञान प्रकाश सिंह के संयोजन में आयोजित राम कथा के पांचवे दिन गुरुवार को कथा व्यास प्रेमभूषण महाराज जी ने भगवान राम की वन प्रदेश की मंगल यात्रा से जुड़े प्रसंगों का गायन किया। इस दौरान उन्होंने समाज और देश की आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था पर गहरी टिप्पणियां की। प्रेमभूषण महाराज जी ने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था और अन्य सामाजिक व्यवस्थाओं में आरक्षण की प्रथा प्रतिभा सम्पन्न बच्चों में रोग फैला रही है। उन्होंने यह भी कहा कि आजादी के बाद से ही देश के साधु-संतों का अपमान होता आया है, लेकिन पिछले एक दशक में यह स्थिति बदलने लगी है। उन्होंने भारत की भूमि को धर्म की भूमि, तीर्थों की भूमि, ऋषि-मुनियों की भूमि और महापुरुषों की भूमि बताते हुए कहा कि राघवजी की कृपा से देश को धर्मशील प्रशासक मिले हैं, जिससे सनातन धर्म की बाधाएं समाप्त हो रही हैं। राम और रावण के उदाहरण से महाराज जी ने कहा कि रावण ब्राह्मण कुल में जन्मा था, जबकि भगवान राम क्षत्रिय कुल में जन्मे थे। कुल के हिसाब से रावण श्रेष्ठ था, लेकिन व्यवहार और आचार में भगवान राम रावण से कहीं श्रेष्ठ थे। उन्होंने बताया कि राम और रावण दोनों शिवजी की पूजा करते थे, लेकिन राम की पूजा संसार को शांति प्रदान करने के लिए थी, जबकि रावण की पूजा दूसरों को संताप देने के लिए थी। समाज में आम लोग हमेशा श्रेष्ठ व्यक्तियों के आचार और व्यवहार का अनुसरण करते हैं, इसलिए सभी श्रेष्ठ व्यक्तियों को अपने आचार और आहार में श्रेष्ठता का प्रदर्शन करना चाहिए। उन्होंने भारतीय सनातन संस्कृति को भी रेखांकित करते हुए कहा कि जो व्यक्ति धर्म के मार्ग पर चलते हुए संसार में विचरण करते हैं, उनके घर से दुख दूर रहता है और ऐश्वर्य स्वयं उनके घर में आता है। महाराज जी ने आरक्षण की व्यवस्था पर भी टिप्पणी की, कहा कि लगभग 20% भारतीय प्रतिभा हर साल विदेश चली जाती है, और वहां जाकर ये बच्चे उन देशों की व्यवस्था की बड़ाई करते हैं। आरक्षण व्यवस्था में योग्य व्यक्ति को अवसर न मिलकर अयोग्य व्यक्ति को ही योग्य मान लिया जाता है। अंत में, उन्होंने महर्षि बाल्मीकि की शिक्षा का उद्धारण देते हुए कहा कि भगवत प्रसाद का रस पाने के लिए प्रयास आवश्यक होता है। जब मनुष्य इस रस से सराबोर हो जाता है, तो उसकी सभी कर्मेंद्रियां भगवान में लग जाती हैं और उसका जीवन धन्य हो जाता है। कथा के दौरान प्रेमभूषण महाराज जी ने यह भी कहा कि इस संसार में हर किसी के पास अपनी दुखद कहानी होती है, लेकिन जब हम प्रभु की कथा सुनते हैं, तो हमें आंतरिक सुख और उत्साह मिलता है।

Nov 14, 2024 - 18:20
 0  356.1k
''अब देश में नहीं होता साधु-संतों का अपमान'':जौनपुर में रामकथा का पांचवा दिन, बोले कथा व्यास- आरक्षण रोग की तरह
जौनपुर के बीआरपी इंटर कालेज के मैदान में सेवा भारती के बैनर तले और समाजसेवी ज्ञान प्रकाश सिंह के संयोजन में आयोजित राम कथा के पांचवे दिन गुरुवार को कथा व्यास प्रेमभूषण महाराज जी ने भगवान राम की वन प्रदेश की मंगल यात्रा से जुड़े प्रसंगों का गायन किया। इस दौरान उन्होंने समाज और देश की आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था पर गहरी टिप्पणियां की। प्रेमभूषण महाराज जी ने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था और अन्य सामाजिक व्यवस्थाओं में आरक्षण की प्रथा प्रतिभा सम्पन्न बच्चों में रोग फैला रही है। उन्होंने यह भी कहा कि आजादी के बाद से ही देश के साधु-संतों का अपमान होता आया है, लेकिन पिछले एक दशक में यह स्थिति बदलने लगी है। उन्होंने भारत की भूमि को धर्म की भूमि, तीर्थों की भूमि, ऋषि-मुनियों की भूमि और महापुरुषों की भूमि बताते हुए कहा कि राघवजी की कृपा से देश को धर्मशील प्रशासक मिले हैं, जिससे सनातन धर्म की बाधाएं समाप्त हो रही हैं। राम और रावण के उदाहरण से महाराज जी ने कहा कि रावण ब्राह्मण कुल में जन्मा था, जबकि भगवान राम क्षत्रिय कुल में जन्मे थे। कुल के हिसाब से रावण श्रेष्ठ था, लेकिन व्यवहार और आचार में भगवान राम रावण से कहीं श्रेष्ठ थे। उन्होंने बताया कि राम और रावण दोनों शिवजी की पूजा करते थे, लेकिन राम की पूजा संसार को शांति प्रदान करने के लिए थी, जबकि रावण की पूजा दूसरों को संताप देने के लिए थी। समाज में आम लोग हमेशा श्रेष्ठ व्यक्तियों के आचार और व्यवहार का अनुसरण करते हैं, इसलिए सभी श्रेष्ठ व्यक्तियों को अपने आचार और आहार में श्रेष्ठता का प्रदर्शन करना चाहिए। उन्होंने भारतीय सनातन संस्कृति को भी रेखांकित करते हुए कहा कि जो व्यक्ति धर्म के मार्ग पर चलते हुए संसार में विचरण करते हैं, उनके घर से दुख दूर रहता है और ऐश्वर्य स्वयं उनके घर में आता है। महाराज जी ने आरक्षण की व्यवस्था पर भी टिप्पणी की, कहा कि लगभग 20% भारतीय प्रतिभा हर साल विदेश चली जाती है, और वहां जाकर ये बच्चे उन देशों की व्यवस्था की बड़ाई करते हैं। आरक्षण व्यवस्था में योग्य व्यक्ति को अवसर न मिलकर अयोग्य व्यक्ति को ही योग्य मान लिया जाता है। अंत में, उन्होंने महर्षि बाल्मीकि की शिक्षा का उद्धारण देते हुए कहा कि भगवत प्रसाद का रस पाने के लिए प्रयास आवश्यक होता है। जब मनुष्य इस रस से सराबोर हो जाता है, तो उसकी सभी कर्मेंद्रियां भगवान में लग जाती हैं और उसका जीवन धन्य हो जाता है। कथा के दौरान प्रेमभूषण महाराज जी ने यह भी कहा कि इस संसार में हर किसी के पास अपनी दुखद कहानी होती है, लेकिन जब हम प्रभु की कथा सुनते हैं, तो हमें आंतरिक सुख और उत्साह मिलता है।

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow