कैलाश मानसरोवर मुक्ति अभियान:मथुरा में संतों ने की बैठक,NRI भक्त ने की अभियान की शुरुआत
पवित्र तीर्थ स्थल कैलाश मानसरोवर मुक्ति के लिए कान्हा की नगरी से आंदोलन का शंखनाद हो गया है। संत विद्वतजनों ने इस अभियान को आगे बढ़ाने की रणनीति पर मंथन किया। मथुरा मार्ग स्थित बृज धाम कालोनी के सियापति राम मंदिर में विद्वत सभा का आयोजन महंत नीलमणि दास महाराज के सान्निध्य में किया गया। 30 से ज्यादा संत,धर्माचार्य रहे मौजूद कैलाश मुक्ति आंदोलन के लिए मथुरा के वृंदावन में धर्म संसद का आयोजन किया गया। जिसमें 30 से अधिक प्रमुख संत, कथा वाचक,और मठाधीश शामिल हुए।इस सम्मेलन में अशोक जी व्यास, पंडित बापू जी, सुमंत कृष्ण, कैलाशी स्वामी अनंत गोस्वामी महाराज, आचार्य मृदुल शास्त्री, पंडित नागेंद्र, कार्तिक गोस्वामी (राधा रमन), अभिषेक कृष्ण, रसिया बाबा, महेंद्र सिंह,बाबा बलराम दास सहित कई कई प्रमुख आध्यात्मिक जगत से जुड़ी हस्तियां मौजूद रहीं। सम्मेलन में शामिल सभी ने कैलाश मुक्ति को पूरा समर्थन देने की बात कही। पांच कैलाश में से मुख्य कैलाश है चीन के अधीन कार्यक्रम का आयोजन एनआरआई आचार्य हरि गुप्ता ने किया। जो दुबई में 30 से अधिक वर्षों से रह रहे हैं। उन्होंने बताया कि भोलेनाथ ने कई बार दर्शन दिए हैं और कैलाश मुक्ति के लिए आवश्यक कार्य करने के लिए मार्गदर्शन दिया है। आचार्य हरि गुप्ता ने बताया पांच कैलाश हैं, जिनमें भोलेनाथ की अलग-अलग लीलाएं हैं। इनमें से एक मुख्य कैलाश वर्तमान में तिब्बत के अंतर्गत है, जो चीन के अंतर्गत आता है। हिंदू ही नहीं सिख और जैन धर्म के लिए भी महत्वपूर्ण है कैलाश आचार्य हरि गुप्ता ने कहा कि कैलाश न केवल हिंदुओं के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि यह सिख, जैन और बौद्ध के लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण है। ऐसा कहा जाता है कि सिखों के पहले गुरु नानक ने भी कैलाश की यात्रा की थी। पहले जैन गुरु ऋषभदेव जी ने भी कैलाश की यात्रा की थी। यह एक विडंबना है कि पिछले 5 सालों से भारतीय पासपोर्ट धारकों को मानसरोवर जाने की अनुमति नहीं है। जबकि अन्य देशों के नागरिक आसानी से वहां जा सकते हैं। किसी भी सरकार द्वारा किसी भी कारण से हिंदू धर्म की तीर्थ यात्रा को रोकना उचित नहीं है। यह हिंदू शिव भक्तों के मानवाधिकारों के बिल्कुल खिलाफ है। भारत सरकार ने 50 किलोमीटर दूर से कैलाश पर्वत को देखने के लिए कुछ मार्ग बनाए हैं। लेकिन यह कुछ ऐसा है जैसे भोजन की थाली को देखना लेकिन उसे सूंघना, छूना, महसूस करना या खाना नहीं। जब भोजन को देखकर सामान्य भूख नहीं मिटती है तो 50 किलोमीटर दूर से उसे देखने से आध्यात्मिक भूख कैसे मिटेगी।
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