कंबोडिया सायबर माफिया के जाल में फंसे गुजराती की आपबीती:कॉल सेंटर में कंप्यूटर ऑपरेटर की जॉब करने पहुंचा, पाकिस्तानी-चीनी एजेंट ले गए थे
ऑनलाइन फ्रॉड का जाल दुनियाभर में तेजी से फैल रहा है। फ्राड के रैकेट्स दुनिया भर से ऑपरेट हो रहे हैं। अकेले कंबोडिया जैसे छोटे से देश में ही करीब पांच हजार कॉल सेंटर्स चल रहे हैं। इन कॉल सेंटर्स में जॉब के लिए पहले जाल बिछाया जाता है और फिर संबंधित देश के व्यक्ति से ही उसके देश में धोखाधड़ी कराई जाती है। थाईलैंड और वियतनाम के बीच स्थित कंबोडिया में पाकिस्तान और चीन के एजेंट्स भी भारत विरोधी काम करने में सक्रिय हैं। ये एजेंट भारतीयों को नौकरी का झांसा देकर फंसाते हैं और भारत के लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी की साजिश रचते हैं। अगर कोई काम करने से मना करता है तो उसे हिरासत में ले लिया जाता है और उसका पासपोर्ट भी जब्त कर लिया जाता है। वहां वह व्यक्ति खाने-पीने तक के लिए मोहताज हो जाता है। ताजा मामला अहमदाबाद में रहने वाले गोविंद मेलका का है, जो माफिया के जाल में फंसकर नौकरी के लालच में कंबोडिया पहुंचा। इनका भी पासपोर्ट जब्त कर लिया गया। लेकिन वह किसी तरह कंबोडिया से निकलने में कामयाब रहे। गोविंद ने कंबोडियो के एक कॉल सेंटर का स्टिंग कर वहां की फोटो और वीडियो बना ली थी, जो भारत आकर पुलिस को सौंप दी। इसी मामले में दैनिक भास्कर ने उनसे बात की। आगे पढ़िए, भास्कर की इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट... अगस्त-2023 में अहमदाबाद के निकोल इलाके में रहने वाले 25 साल के गोविंद मेलका की सुरेंद्र साल्वी से मुलाकात हुई थी। गोविंद ने साल्वी से जॉब के सिलसिले में बात की तो साल्वी ने उन्हें विक्रम सिंह रावत नाम के एक व्यक्ति का नंबर दिया। विक्रम ने उन्हें बताया कि कंबोडिया में कंप्यूटर ऑपरेटर की पोस्ट है, सैलरी भी अच्छी है। यह सुनते ही गोविंद कंबोडिया जाने के लिए तैयार हो गए। विक्रम सिंह रावत ने उन्हें विजय सिंह नाम के शख्स का नंबर दिया। विजय सिंह ने उन्हें मनीष राठौड़ नाम का नंबर दिया। मनीष ने गोविंद को वडोदरा स्थित अपने ऑफिस बुलाया। मनीष ने उनसे कहा कि पूरे खर्च के लिए उन्हें 1 लाख 70 हजार रुपए का भुगतान करना होगा। डील तय होने के बाद गोविंद को कोलकाता से वियतनाम के हो ची मिन्ह सिटी एयरपोर्ट का टिकट मिला। टिकट के साथ 21 सितंबर 2023 से 20 अक्टूबर 2023 तक का वीजा भेजा गया था। टिकट और वीजा आने के बाद गोविंद ने दो किस्तों में वडोदरा के मनीष सिंह राठौड़ को पेटीएम के जरिए पैसे पहुंचाए। गोविंद कोलकाता से कंबोडिया पहुंचे
25 सितंबर 2023 को गोविंद ट्रेन से अहमदाबाद से निकले। कोलकाता में एक रात रुकना था तो एक गुरुद्वारा में रुके। अगले दिन वह एपीबी फॉरेक्स प्राइवेट लिमिटेड पहुंचे, जहां उन्हें करेंसी एक्सचेंज करनी थी। यहां गोविंद ने 57,040/- रुपए अमेरिकी डॉलर में बदलवाए। इस रकम के बदले उन्हें 650 डॉलर मिले। इसके बाद गोविंद 27 सितंबर को कोलकाता से वियतनाम के हो ची मिन्ह सिटी हवाई अड्डे पर उतरे। एयरपोर्ट पर एक टैक्सी ड्राइवर आया। उसने टैक्सी में बैठने का इशारा किया। टैक्सी ड्राइवर उसे वियतनाम-कंबोडिया सीमा पर स्थित इमिग्रेशन ऑफिस ले गया। यहां इमिग्रेशन के किसी अधिकारी ने 150 डॉलर लेकर पासपोर्ट में 30 दिनों के कंबोडिया पर्यटन वीजा की मुहर लगा दी। इस प्रक्रिया को पूरा करने के बाद टैक्सी ड्राइवर उन्हें कंबोडिया की राजधानी नोम पेन्ह के उस घर तक ले गया, जहां राजूभाई नाम का युवक रहता था। दरअसल कंबोडिया में राजू ही गोविंद को कंपनी तक पहुंचाने वाला था। कंबोडिया पहुंचते ही वीजा जब्त कर लिया
गोविंद दो दिनों तक राजू के घर पर ही रुका। तीसरे दिन मेडीभाई नाम का एक आदमी राजूभाई के घर आया। वह मूल रूप से पाकिस्तान का रहने वाला था। राजूभाई ने गोविंद से कहा, यह मेडीभाई आप लोगों को सेहोनोक शहर ले जाएगा। इसके बाद मेडीभाई उन्हें सेहोनोक की बैशा हुनांगल इंटरनेशनल एंटरटेनमेंट सिटी-बैशा ग्रुप नाम की कंपनी में ले गया। इंटरव्यू के बाद कंप्यूटर ऑपरेटर की जॉब दे दी गई। कंपनी ने रहने के लिए एक बड़ा कमरा उपलब्ध कराया था, जिसमें सात लोग रहते थे। यहां मेडीभाई नें गोविंद का पासपोर्ट यह कहकर ले लिया कि वीजा केवल एक महीने के लिए है। इसे बढ़ाने के लिए आगे की प्रोसेस करनी है। कॉल सेंटर में कहा गयाा- सायबर फ्रॉड का काम करना गोविंद का कॉल सेंटर में काम का पहला दिन था। यहां बहुत से लोग हाईटेक कम्प्यूटर्स पर काम कर रहे थे। इनमें से अधिकतर भारतीय थे। गोविंद जैसे ही सीट पर बैठे तो उनसे कहा गया कि अब आपको कंप्यूटर ऑपरेटर नहीं, बल्कि सायबर फ्रॉड का काम करना है। यह सुनकर पहले तो गोविंद चौंक गए। ऑफिस में मौजूद शख्स ने कहा, हम आपको स्क्रिप्ट देंगे। इसके अनुसार आपको टेलीग्राम एप्लिकेशन के जरिए भारतीय अज्ञात नंबर पर संपर्क करना होगा। आपको उसे पैसे कमाने का लालच देकर उसके बैंक खाते से पैसे निकालने हैं। चूंकि आप गुजरात से हैं तो हम आपको गुजरातियों का डेटा देंगे। कुछ देर सोचने के बाद गोविंद ने ऑफिस में कहा, मैं ऐसी नौकरी नहीं करूंगा। सामने वाले व्यक्ति ने गोविंद को धमकी दी कि उसे यह काम करना पड़ेगा। यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो आपको खाना-पानी और पासपोर्ट भी नहीं मिलेगा। इसके बाद भी जब गोविंद काम करने तैयार नहीं हुए तो उन्हें दोबारा सोचने का कहकर वापस कमरे में भेज दिया गया। गोविंद रूम पर आए। यह तो साफ था कि अब वे माफियों के चंगुल में फंस गए थे। उन लोगों ने उनका पासपोर्ट भी जब्त कर लिया था। कमरे से बाहर निकलना मना था। गोविंद दस दिन तक रूम में रहे, लेकिन कॉल सेंटर में काम नहीं किया। बाद में गोविंद को जानकारी मिली की भारतीयों को चूना लगाने वाली कंपनी का सरगना असल में चीनी था। वह गोविंद को कहीं बाहर नहीं जाने देता था। इसके बाद गोविंद मेलका ने अपने मामा धर्मीचंदभाई को फोन कर उन्हें पूरी बात बताई। भारतीय दूतावास ने की मदद गोविंद मेलका के मामा ने कंबोडिया स्थित भारतीय दूतावास को सूचना दी कि उनका बेटा फंस गया है। गोविंद ने भी कंबोडिया स्थित भारतीय दूतावास को फोन किया। दूतावास से जवाब मिला कि आपके दूतावास आने के बाद भी हम आपक
ऑनलाइन फ्रॉड का जाल दुनियाभर में तेजी से फैल रहा है। फ्राड के रैकेट्स दुनिया भर से ऑपरेट हो रहे हैं। अकेले कंबोडिया जैसे छोटे से देश में ही करीब पांच हजार कॉल सेंटर्स चल रहे हैं। इन कॉल सेंटर्स में जॉब के लिए पहले जाल बिछाया जाता है और फिर संबंधित देश के व्यक्ति से ही उसके देश में धोखाधड़ी कराई जाती है। थाईलैंड और वियतनाम के बीच स्थित कंबोडिया में पाकिस्तान और चीन के एजेंट्स भी भारत विरोधी काम करने में सक्रिय हैं। ये एजेंट भारतीयों को नौकरी का झांसा देकर फंसाते हैं और भारत के लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी की साजिश रचते हैं। अगर कोई काम करने से मना करता है तो उसे हिरासत में ले लिया जाता है और उसका पासपोर्ट भी जब्त कर लिया जाता है। वहां वह व्यक्ति खाने-पीने तक के लिए मोहताज हो जाता है। ताजा मामला अहमदाबाद में रहने वाले गोविंद मेलका का है, जो माफिया के जाल में फंसकर नौकरी के लालच में कंबोडिया पहुंचा। इनका भी पासपोर्ट जब्त कर लिया गया। लेकिन वह किसी तरह कंबोडिया से निकलने में कामयाब रहे। गोविंद ने कंबोडियो के एक कॉल सेंटर का स्टिंग कर वहां की फोटो और वीडियो बना ली थी, जो भारत आकर पुलिस को सौंप दी। इसी मामले में दैनिक भास्कर ने उनसे बात की। आगे पढ़िए, भास्कर की इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट... अगस्त-2023 में अहमदाबाद के निकोल इलाके में रहने वाले 25 साल के गोविंद मेलका की सुरेंद्र साल्वी से मुलाकात हुई थी। गोविंद ने साल्वी से जॉब के सिलसिले में बात की तो साल्वी ने उन्हें विक्रम सिंह रावत नाम के एक व्यक्ति का नंबर दिया। विक्रम ने उन्हें बताया कि कंबोडिया में कंप्यूटर ऑपरेटर की पोस्ट है, सैलरी भी अच्छी है। यह सुनते ही गोविंद कंबोडिया जाने के लिए तैयार हो गए। विक्रम सिंह रावत ने उन्हें विजय सिंह नाम के शख्स का नंबर दिया। विजय सिंह ने उन्हें मनीष राठौड़ नाम का नंबर दिया। मनीष ने गोविंद को वडोदरा स्थित अपने ऑफिस बुलाया। मनीष ने उनसे कहा कि पूरे खर्च के लिए उन्हें 1 लाख 70 हजार रुपए का भुगतान करना होगा। डील तय होने के बाद गोविंद को कोलकाता से वियतनाम के हो ची मिन्ह सिटी एयरपोर्ट का टिकट मिला। टिकट के साथ 21 सितंबर 2023 से 20 अक्टूबर 2023 तक का वीजा भेजा गया था। टिकट और वीजा आने के बाद गोविंद ने दो किस्तों में वडोदरा के मनीष सिंह राठौड़ को पेटीएम के जरिए पैसे पहुंचाए। गोविंद कोलकाता से कंबोडिया पहुंचे
25 सितंबर 2023 को गोविंद ट्रेन से अहमदाबाद से निकले। कोलकाता में एक रात रुकना था तो एक गुरुद्वारा में रुके। अगले दिन वह एपीबी फॉरेक्स प्राइवेट लिमिटेड पहुंचे, जहां उन्हें करेंसी एक्सचेंज करनी थी। यहां गोविंद ने 57,040/- रुपए अमेरिकी डॉलर में बदलवाए। इस रकम के बदले उन्हें 650 डॉलर मिले। इसके बाद गोविंद 27 सितंबर को कोलकाता से वियतनाम के हो ची मिन्ह सिटी हवाई अड्डे पर उतरे। एयरपोर्ट पर एक टैक्सी ड्राइवर आया। उसने टैक्सी में बैठने का इशारा किया। टैक्सी ड्राइवर उसे वियतनाम-कंबोडिया सीमा पर स्थित इमिग्रेशन ऑफिस ले गया। यहां इमिग्रेशन के किसी अधिकारी ने 150 डॉलर लेकर पासपोर्ट में 30 दिनों के कंबोडिया पर्यटन वीजा की मुहर लगा दी। इस प्रक्रिया को पूरा करने के बाद टैक्सी ड्राइवर उन्हें कंबोडिया की राजधानी नोम पेन्ह के उस घर तक ले गया, जहां राजूभाई नाम का युवक रहता था। दरअसल कंबोडिया में राजू ही गोविंद को कंपनी तक पहुंचाने वाला था। कंबोडिया पहुंचते ही वीजा जब्त कर लिया
गोविंद दो दिनों तक राजू के घर पर ही रुका। तीसरे दिन मेडीभाई नाम का एक आदमी राजूभाई के घर आया। वह मूल रूप से पाकिस्तान का रहने वाला था। राजूभाई ने गोविंद से कहा, यह मेडीभाई आप लोगों को सेहोनोक शहर ले जाएगा। इसके बाद मेडीभाई उन्हें सेहोनोक की बैशा हुनांगल इंटरनेशनल एंटरटेनमेंट सिटी-बैशा ग्रुप नाम की कंपनी में ले गया। इंटरव्यू के बाद कंप्यूटर ऑपरेटर की जॉब दे दी गई। कंपनी ने रहने के लिए एक बड़ा कमरा उपलब्ध कराया था, जिसमें सात लोग रहते थे। यहां मेडीभाई नें गोविंद का पासपोर्ट यह कहकर ले लिया कि वीजा केवल एक महीने के लिए है। इसे बढ़ाने के लिए आगे की प्रोसेस करनी है। कॉल सेंटर में कहा गयाा- सायबर फ्रॉड का काम करना गोविंद का कॉल सेंटर में काम का पहला दिन था। यहां बहुत से लोग हाईटेक कम्प्यूटर्स पर काम कर रहे थे। इनमें से अधिकतर भारतीय थे। गोविंद जैसे ही सीट पर बैठे तो उनसे कहा गया कि अब आपको कंप्यूटर ऑपरेटर नहीं, बल्कि सायबर फ्रॉड का काम करना है। यह सुनकर पहले तो गोविंद चौंक गए। ऑफिस में मौजूद शख्स ने कहा, हम आपको स्क्रिप्ट देंगे। इसके अनुसार आपको टेलीग्राम एप्लिकेशन के जरिए भारतीय अज्ञात नंबर पर संपर्क करना होगा। आपको उसे पैसे कमाने का लालच देकर उसके बैंक खाते से पैसे निकालने हैं। चूंकि आप गुजरात से हैं तो हम आपको गुजरातियों का डेटा देंगे। कुछ देर सोचने के बाद गोविंद ने ऑफिस में कहा, मैं ऐसी नौकरी नहीं करूंगा। सामने वाले व्यक्ति ने गोविंद को धमकी दी कि उसे यह काम करना पड़ेगा। यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो आपको खाना-पानी और पासपोर्ट भी नहीं मिलेगा। इसके बाद भी जब गोविंद काम करने तैयार नहीं हुए तो उन्हें दोबारा सोचने का कहकर वापस कमरे में भेज दिया गया। गोविंद रूम पर आए। यह तो साफ था कि अब वे माफियों के चंगुल में फंस गए थे। उन लोगों ने उनका पासपोर्ट भी जब्त कर लिया था। कमरे से बाहर निकलना मना था। गोविंद दस दिन तक रूम में रहे, लेकिन कॉल सेंटर में काम नहीं किया। बाद में गोविंद को जानकारी मिली की भारतीयों को चूना लगाने वाली कंपनी का सरगना असल में चीनी था। वह गोविंद को कहीं बाहर नहीं जाने देता था। इसके बाद गोविंद मेलका ने अपने मामा धर्मीचंदभाई को फोन कर उन्हें पूरी बात बताई। भारतीय दूतावास ने की मदद गोविंद मेलका के मामा ने कंबोडिया स्थित भारतीय दूतावास को सूचना दी कि उनका बेटा फंस गया है। गोविंद ने भी कंबोडिया स्थित भारतीय दूतावास को फोन किया। दूतावास से जवाब मिला कि आपके दूतावास आने के बाद भी हम आपकी कोई मदद कर पाएंगे। गोविंद मौके की तलाश में रहने लगा। एक रात सभी लोग कमरे में सोए हुए थे। इन पर नजर रखने वाला चीनी व्यक्ति भी सो रहा था। मौके का फायदा उठाकर गोविंद आधी रात को अपना सामान लेकर कमरे से भाग निकले। वह नजदीकी पुलिस स्टेशन पहुंचे और पुलिस की मदद से भारतीय दूतावास पहुंचे। गोविंद ने अधिकारी को अपनी कहानी बताई। भारतीय दूतावास में उनसे ऑनलाइन फॉर्म भरवाकर कहा कि आप पासपोर्ट गुम होने की एक शिकायत पुलिस थाने में दर्ज करा दो। इसके बाद आपको दूसरा पासपोर्ट मिल जाएगा। गोविंद ने पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई और उसका लेटर लेकर दोबारा दूतावास पहुंचे। दूतावास ने उनके लिए लकी गेस्ट हाउस नामक स्थान पर रहने की व्यवस्था की। गोविंद यहां चार दिन रुके। फिर वह एक होटल में शिफ्ट हो गए। वहां 11 दिन रुके। इस तरह 15 दिनों के इंतजार के बाद उन्हें भारत का आपातकालीन पासपोर्ट और वीजा मिल गया। एक महीने की प्रताड़ना के बाद गोविंद मेल्का कंबोडिया से सकुशल अपने घर लौट आए। वडोदरा ऑफिस का स्टाफ गायब
अब गोविंद मेल्का को वडोदरा के उन एजेंटेस से पैसे वसूलना थे, जिन्होंने उन्हें कंबोडिया भेजा था। गोविंद ने पहले विजय सिंह उर्फ मनीष सिंह राठौड़ को फोन लगाया। उसने अपने ऑफिस बुलाया, लेकिन जब गोविंद ऑफिस पहुंचे तो वहां का पूरा स्टाफ गायब था। गोविंद ने अपने संपर्क में आए सभी लोगों को फोन किया। एजेंट्स ने उन्हें पैसे वापस करने का दिलासा तो दिया, लेकिन आज तक पैसे नहीं मिल सके हैं। गोविंद ने इस मामले में शिकायत भी दर्ज करवाई है और आरोपियों की तलाश जारी है। कंबोडिया में 5000 कॉल सेंटर हैं
सीआईडी क्राइम एसपी संजय खरात ने इस मामले पर दिव्य भास्कर से बात करते हुए कहा कि यह विदेश में बैठे भारतीयों को ठगने का काला कारोबार है। तुर्की, कंबोडिया, म्यांमार, थाईलैंड ऐसे देश हैं, जहां भारतीय और फिलिपींस के नागरिक नौकरी की तलाश में कॉल सेंटर से जुड़ते हैं और फिर पछताते हैं। कंबोडिया के खमेर न्यूज अखबार की एक रिपोर्ट में लिखा गया है कि एक कॉल सेंटर इंडस्ट्री उभरी है, जो कंबोडिया की अर्थव्यवस्था बदल सकती है। यहां गली-गली में कॉल सेंटर्स खुल चुके हैं। कंबोडिया में 5 हजार से ज्यादा कॉल सेंटर हैं। पता चला है कि इस कॉल सेंटर में मणिपुर, ओडिशा, गुजरात, दिल्ली, तेलंगाना जैसे राज्यों के युवक ज्यादा हैं और ज्यादातर वहां फंसे हुए हैं। गोविंद जैसा ही कोई होगा, जो बेधड़क नौकरी ठुकराकर पाकिस्तानी-चीनी एजेंट्स के चंगुल से बच निकला होगा। ये खबर भी पढ़ें...
गुजरात में डिजिटल अरेस्ट करने वाला रैकेट बेनकाब देश भर में ‘डिजिटल अरेस्ट’ रैकेट चलाने वाले नेटवर्क का पर्दाफाश कर अहमदाबाद पुलिस ने सोमवार को 18 लोगों को गिरफ्तार किया था। इनसे पूछताछ में कई खुलासे हुए हैं। गैंग ने ठगी के 5 हजार करोड़ रु. चीन व ताइवान भेजे हैं। आरोपियों में 4 ताइवानी नागरिक हैं, बाकी 13 अहमदाबाद-वडोदरा सहित गुजरात के हैं। पूरी खबर पढ़ें...