कल शपथ लेंगे नए CJI संजीव खन्ना:आर्टिकल-370, EVM पर फैसले दिए; उनके चाचा को इंदिरा ने CJI नहीं बनने दिया था
CJI डीवाई चंद्रचूड़ के रिटायरमेंट के बाद जस्टिस संजीव खन्ना भारत के 51 वें चीफ जस्टिस बनेंगे। वे कल 11 नवंबर को CJI के पद की शपथ लेंगे। संजीव खन्ना की विरासत वकालत की रही है। उनके पिता देवराज खन्ना दिल्ली हाईकोर्ट के जज रहे हैं। वहीं चाचा हंसराज खन्ना सुप्रीम कोर्ट के मशहूर जज थे। उन्होंने इंदिरा सरकार के इमरजेंसी लगाने विरोध किया था। साथ ही राजनीतिक विरोधियों को बिना सुनवाई जेल में डालने पर भी नाराजगी जताई थी। 1977 में वरिष्ठता के आधार पर उनका चीफ जस्टिस बनना तय माना जा रहा था, लेकिन जस्टिस एमएच बेग को CJI बनाया गया। इसके विरोध में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से इस्तीफा दे दिया। इंदिरा की सरकार गिरने के बाद वह चौधरी चरण सिंह की सरकार में 3 दिन के लिए कानून मंत्री भी बने थे। संजीव खन्ना अपने चाचा से प्रभावित थे, इसलिए उन्होंने 1983 में दिल्ली यूनिवर्सिटी के कैंपस लॉ सेंटर से एलएलबी की। शुरुआती दौर में जस्टिस खन्ना ने दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट से वकालत शुरू की। उसके बाद दिल्ली सरकार के इनकम टैक्स डिपार्टमेंट और दीवानी मामलों के लिए स्टैंडिंग काउंसेल रहे। स्टैंडिंग काउंसेल का आम भाषा में अर्थ सरकारी वकील होता है। साल 2005 में जस्टिस खन्ना दिल्ली हाईकोर्ट के जज बने। 13 साल तक दिल्ली हाई कोर्ट के जज रहने के बाद 2019 में जस्टिस खन्ना का प्रमोशन सुप्रीम कोर्ट के जज के बतौर हो गया। संजीव खन्ना का हाईकोर्ट जज से प्रमोट होकर सुप्रीम कोर्ट का जज बनना भी विवादों में रहा था। 2019 में जब CJI रंजन गोगोई ने उनके नाम की सिफारिश की, तब जजों की सीनियोरिटी रैंकिंग में खन्ना 33वें स्थान पर थे। गोगोई ने उन्हें सुप्रीम कोर्ट के लिए ज्यादा काबिल बताते हुए प्रमोट किया। उनकी इस नियुक्ति के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस कैलाश गंभीर ने तब के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को चिट्ठी भी लिखी।कैलाश ने लिखा था- 32 जजों की अनदेखी करना ऐतिहासिक भूल होगी। इस विरोध के बावजूद राष्ट्रपति कोविंद ने जस्टिस खन्ना को सुप्रीम कोर्ट जस्टिस के बतौर अपॉइंट किया, 18 जनवरी 2019 को संजीव ने पद ग्रहण कर लिया। जस्टिस खन्ना ने सेम सेक्स मैरिज केस से जुड़ी याचिका की सुनवाई से खुद को दूर रखा था। उन्होंने इसके पीछे व्यक्तिगत कारण बताया था। जुलाई 2024 में समलैंगिक विवाह के मामले पर रिव्यू पिटीशन की सुनवाई के किए 4 जजों की बेंच बनाई गई थी, जस्टिस खन्ना भी इसमें शामिल थे। सुनवाई से पहले जस्टिस खन्ना ने कहा कि उन्हें इस मामले से छूट दी जाए। कानूनी भाषा में इसे खुद को केस से अलग करना कहते हैं। जस्टिस खन्ना के अलग होने के चलते सुनवाई अगली बेंच के गठन तक टालनी पड़ी। आर्टिकल-370, इलेक्टोरल बॉन्ड जैसे जस्टिस खन्ना के बड़े फैसले
अपने 6 साल के सुप्रीम कोर्ट करियर में जस्टिस खन्ना 450 जजमेंट बेंचों का हिस्सा रहे हैं। उन्होंने खुद 115 जजमेंट लिखे। इसी साल जुलाई में जस्टिस खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल को जमानत दी थी। बीती 8 नवंबर को AMU से जुड़े फैसले में जस्टिस खन्ना ने यूनिवर्सिटी को माइनॉरिटी स्टेटस दिए जाने का समर्थन किया है। सुप्रीम कोर्ट का CJI बनने के लिए कॉलेजियम की व्यवस्था
हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों को चुनने के लिए एक तय प्रक्रिया है, जिसे सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम कहते हैं। इसमें सुप्रीम कोर्ट के सबसे सीनियर जज शामिल होते हैं। केंद्र इसकी सिफारिशों को स्वीकार करते हुए नए CJI और अन्य जजों की नियुक्ति करता है। परंपरा के तहत सुप्रीम कोर्ट में अनुभव के आधार पर सबसे सीनियर जज ही चीफ जस्टिस बनते हैं। यह प्रक्रिया एक ज्ञापन के तहत होती है, जिसे MoP यानी 'मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर फॉर द अपॉइंटमेंट ऑफ सुप्रीम कोर्ट जजेज' कहते हैं। साल 1999 में पहली बार MoP तैयार हुआ। यही डॉक्यूमेंट, जजों के अपॉइंटमेंट की प्रक्रिया में केंद्र, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के दायित्व तय करता है। MoP और कॉलेजियम के सिस्टम को लेकर संविधान में कोई अनिवार्यता या कानून नहीं बनाया गया है, लेकिन इसी के तहत जजों की नियुक्ति होती आ रही है। हालांकि 1999 में MoP तैयार होने के पहले से ही CJI के बाद सबसे सीनियर जज को पदोन्नत कर CJI बनाने की परंपरा है। साल 2015 में संविधान में एक संशोधन करके राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) बनाया गया था, यह जजों की नियुक्ति में केंद्र की भूमिका बढ़ाने वाला काम था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार दे दिया। इसके बाद MoP पर बातचीत जारी रही। बीते साल भी केंद्र सरकार ने कहा है कि अभी MoP को अंतिम रूप दिया जाना बाकी है। सबसे सीनियर जज को CJI बनाने की परंपरा अब तक दो बार टूटी
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दो मौकों पर परंपरा के खिलाफ जाकर बतौर CJI, सबसे सीनियर जज के बजाय दूसरे जजों की नियुक्ति की। 1973 में इंदिरा ने जस्टिस एएन रे को CJI बनाया, जबकि उनसे भी सीनियर तीन जज- जेएम शेलत, केएस हेगड़े और एएन ग्रोवर को दरकिनार किया गया। जस्टिस रे को इंदिरा सरकार की पसंद का जज माना जाता था। केशवानंद भारती मामले में आदेश आने के एक दिन बाद ही जस्टिस रे को CJI बना दिया गया था। 13 जजों की बेंच ने 7:6 के बहुमत से यह फैसला सुनाया था, जस्टिस रे अल्पमत वाले जजों में शामिल थे। जनवरी 1977 में इंदिरा ने एक बार फिर परंपरा तोड़ी। उन्होंने सबसे सीनियर जज हंसराज खन्ना की जगह जस्टिस एमएच बेग को CJI बनाया था। छोटे कार्यकाल में 5 बड़े मामलों की सुनवाई करेंगे जस्टिस खन्ना
पूर्व CJI चंद्रचूड़ का कार्यकाल करीब 2 साल का रहा है। इसकी तुलना में CJI संजीव खन्ना का कार्यकाल छोटा होगा। जस्टिस खन्ना बतौर चीफ जस्टिस सिर्फ 6 महीने पद पर रहेंगे। 13 मई 2025 को उन्हें रिटायर होना है। इस कार्यकाल में जस्टिस खन्ना को मैरिटल रेप केस, इलेक्शन कमीशन के सदस्यों की अपॉइंटमेंट की प्रोसेस, बिहार जातिगत जनसंख्या की वैधता, सबरीमाला केस के रिव्यू, राजद्रोह (sedition) की संवैधानिकता जैसे
CJI डीवाई चंद्रचूड़ के रिटायरमेंट के बाद जस्टिस संजीव खन्ना भारत के 51 वें चीफ जस्टिस बनेंगे। वे कल 11 नवंबर को CJI के पद की शपथ लेंगे। संजीव खन्ना की विरासत वकालत की रही है। उनके पिता देवराज खन्ना दिल्ली हाईकोर्ट के जज रहे हैं। वहीं चाचा हंसराज खन्ना सुप्रीम कोर्ट के मशहूर जज थे। उन्होंने इंदिरा सरकार के इमरजेंसी लगाने विरोध किया था। साथ ही राजनीतिक विरोधियों को बिना सुनवाई जेल में डालने पर भी नाराजगी जताई थी। 1977 में वरिष्ठता के आधार पर उनका चीफ जस्टिस बनना तय माना जा रहा था, लेकिन जस्टिस एमएच बेग को CJI बनाया गया। इसके विरोध में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से इस्तीफा दे दिया। इंदिरा की सरकार गिरने के बाद वह चौधरी चरण सिंह की सरकार में 3 दिन के लिए कानून मंत्री भी बने थे। संजीव खन्ना अपने चाचा से प्रभावित थे, इसलिए उन्होंने 1983 में दिल्ली यूनिवर्सिटी के कैंपस लॉ सेंटर से एलएलबी की। शुरुआती दौर में जस्टिस खन्ना ने दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट से वकालत शुरू की। उसके बाद दिल्ली सरकार के इनकम टैक्स डिपार्टमेंट और दीवानी मामलों के लिए स्टैंडिंग काउंसेल रहे। स्टैंडिंग काउंसेल का आम भाषा में अर्थ सरकारी वकील होता है। साल 2005 में जस्टिस खन्ना दिल्ली हाईकोर्ट के जज बने। 13 साल तक दिल्ली हाई कोर्ट के जज रहने के बाद 2019 में जस्टिस खन्ना का प्रमोशन सुप्रीम कोर्ट के जज के बतौर हो गया। संजीव खन्ना का हाईकोर्ट जज से प्रमोट होकर सुप्रीम कोर्ट का जज बनना भी विवादों में रहा था। 2019 में जब CJI रंजन गोगोई ने उनके नाम की सिफारिश की, तब जजों की सीनियोरिटी रैंकिंग में खन्ना 33वें स्थान पर थे। गोगोई ने उन्हें सुप्रीम कोर्ट के लिए ज्यादा काबिल बताते हुए प्रमोट किया। उनकी इस नियुक्ति के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस कैलाश गंभीर ने तब के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को चिट्ठी भी लिखी।कैलाश ने लिखा था- 32 जजों की अनदेखी करना ऐतिहासिक भूल होगी। इस विरोध के बावजूद राष्ट्रपति कोविंद ने जस्टिस खन्ना को सुप्रीम कोर्ट जस्टिस के बतौर अपॉइंट किया, 18 जनवरी 2019 को संजीव ने पद ग्रहण कर लिया। जस्टिस खन्ना ने सेम सेक्स मैरिज केस से जुड़ी याचिका की सुनवाई से खुद को दूर रखा था। उन्होंने इसके पीछे व्यक्तिगत कारण बताया था। जुलाई 2024 में समलैंगिक विवाह के मामले पर रिव्यू पिटीशन की सुनवाई के किए 4 जजों की बेंच बनाई गई थी, जस्टिस खन्ना भी इसमें शामिल थे। सुनवाई से पहले जस्टिस खन्ना ने कहा कि उन्हें इस मामले से छूट दी जाए। कानूनी भाषा में इसे खुद को केस से अलग करना कहते हैं। जस्टिस खन्ना के अलग होने के चलते सुनवाई अगली बेंच के गठन तक टालनी पड़ी। आर्टिकल-370, इलेक्टोरल बॉन्ड जैसे जस्टिस खन्ना के बड़े फैसले
अपने 6 साल के सुप्रीम कोर्ट करियर में जस्टिस खन्ना 450 जजमेंट बेंचों का हिस्सा रहे हैं। उन्होंने खुद 115 जजमेंट लिखे। इसी साल जुलाई में जस्टिस खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल को जमानत दी थी। बीती 8 नवंबर को AMU से जुड़े फैसले में जस्टिस खन्ना ने यूनिवर्सिटी को माइनॉरिटी स्टेटस दिए जाने का समर्थन किया है। सुप्रीम कोर्ट का CJI बनने के लिए कॉलेजियम की व्यवस्था
हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों को चुनने के लिए एक तय प्रक्रिया है, जिसे सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम कहते हैं। इसमें सुप्रीम कोर्ट के सबसे सीनियर जज शामिल होते हैं। केंद्र इसकी सिफारिशों को स्वीकार करते हुए नए CJI और अन्य जजों की नियुक्ति करता है। परंपरा के तहत सुप्रीम कोर्ट में अनुभव के आधार पर सबसे सीनियर जज ही चीफ जस्टिस बनते हैं। यह प्रक्रिया एक ज्ञापन के तहत होती है, जिसे MoP यानी 'मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर फॉर द अपॉइंटमेंट ऑफ सुप्रीम कोर्ट जजेज' कहते हैं। साल 1999 में पहली बार MoP तैयार हुआ। यही डॉक्यूमेंट, जजों के अपॉइंटमेंट की प्रक्रिया में केंद्र, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के दायित्व तय करता है। MoP और कॉलेजियम के सिस्टम को लेकर संविधान में कोई अनिवार्यता या कानून नहीं बनाया गया है, लेकिन इसी के तहत जजों की नियुक्ति होती आ रही है। हालांकि 1999 में MoP तैयार होने के पहले से ही CJI के बाद सबसे सीनियर जज को पदोन्नत कर CJI बनाने की परंपरा है। साल 2015 में संविधान में एक संशोधन करके राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) बनाया गया था, यह जजों की नियुक्ति में केंद्र की भूमिका बढ़ाने वाला काम था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार दे दिया। इसके बाद MoP पर बातचीत जारी रही। बीते साल भी केंद्र सरकार ने कहा है कि अभी MoP को अंतिम रूप दिया जाना बाकी है। सबसे सीनियर जज को CJI बनाने की परंपरा अब तक दो बार टूटी
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दो मौकों पर परंपरा के खिलाफ जाकर बतौर CJI, सबसे सीनियर जज के बजाय दूसरे जजों की नियुक्ति की। 1973 में इंदिरा ने जस्टिस एएन रे को CJI बनाया, जबकि उनसे भी सीनियर तीन जज- जेएम शेलत, केएस हेगड़े और एएन ग्रोवर को दरकिनार किया गया। जस्टिस रे को इंदिरा सरकार की पसंद का जज माना जाता था। केशवानंद भारती मामले में आदेश आने के एक दिन बाद ही जस्टिस रे को CJI बना दिया गया था। 13 जजों की बेंच ने 7:6 के बहुमत से यह फैसला सुनाया था, जस्टिस रे अल्पमत वाले जजों में शामिल थे। जनवरी 1977 में इंदिरा ने एक बार फिर परंपरा तोड़ी। उन्होंने सबसे सीनियर जज हंसराज खन्ना की जगह जस्टिस एमएच बेग को CJI बनाया था। छोटे कार्यकाल में 5 बड़े मामलों की सुनवाई करेंगे जस्टिस खन्ना
पूर्व CJI चंद्रचूड़ का कार्यकाल करीब 2 साल का रहा है। इसकी तुलना में CJI संजीव खन्ना का कार्यकाल छोटा होगा। जस्टिस खन्ना बतौर चीफ जस्टिस सिर्फ 6 महीने पद पर रहेंगे। 13 मई 2025 को उन्हें रिटायर होना है। इस कार्यकाल में जस्टिस खन्ना को मैरिटल रेप केस, इलेक्शन कमीशन के सदस्यों की अपॉइंटमेंट की प्रोसेस, बिहार जातिगत जनसंख्या की वैधता, सबरीमाला केस के रिव्यू, राजद्रोह (sedition) की संवैधानिकता जैसे कई बड़े मामलों की सुनवाई करनी है। सुप्रीम कोर्ट से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें...
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