कानपुर में 70 बच्चों का कराया गया स्वर्ण प्राशन:कानपुर विश्वविद्यालय ने पुष्प नक्षत्र के उपलक्ष्य में किया आयोजन, अभिभावकों को किया जागरूक

पुष्य नक्षत्र के उपलक्ष्य में छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर के स्कूल ऑफ हेल्थ साइंसेस अंतर्गत संचालित स्वास्थ्य केन्द्र, राजकीय बाल गृह कानपुर और आरोग्य क्लीनिक लाल बंगले में स्वर्ण प्राशन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें लगभग 70 बच्चों ने भाग लिया। कार्यक्रम में सम्मिलित होने वाले इन बच्चों का निःशुल्क रूप से स्वर्णप्राशन कराया गया। धन्वन्तरि पूजन के साथ हुआ शुभारंभ कार्यक्रम का शुभारंभ वरिष्ठ आयुर्वेदाचार्य डॉ. वंदना पाठक, संस्थान के निदेशक डॉ. दिग्विजय शर्मा, डॉ. राम किशोर, अनुराग मिश्रा, पंकज कुमार आदि ने दीप प्रज्वलन व धन्वन्तरि पूजन के साथ किया। इस अवसर पर वरिष्ठ आयुर्वेदाचार्य डॉ. वंदना पाठक ने उपस्थित अभिभावकों और लोगों को हेमंत ऋतु के अनुसार आहार-विहार और रोगों से बचाव पर विशेष रूप से परामर्श दिया। उन्होंने कहा इस समय ठंड के कारण शरीर की गर्मी शरीर से बाहर नहीं निकलती जिसके परिणामस्वरूप शरीर के अग्नि प्रखर हो जाती है। इस मौसम में भारी आहार जैसे-घी, तेल से बने खाद्य पदार्थ, गुड़ और मौसम के अनुसार फल और सब्जियां पर्याप्त मात्रा में सेवन करना चाहिए। भूख न लगना बीमारी आने का संकेत उन्होंने कहा कि भूख लगने पर भोजन न करने से विभिन्न प्रकार के रोग हो जाते हैं। यदि भूख नहीं लगती है तो.ये भी बीमारी आने का संकेत होता है। स्वर्णप्राशन संस्कार के बारे में बताते हुए कहा कि आयुर्वेद की ये विधा बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में काफी कारगर है। संस्कार की महत्ता बताते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति में प्रचलित 16 संस्कारों में से एक संस्कार है। यह बच्चों के शारीरिक, मानसिक विकास में विशेष योगदान करता है, जिन बच्चों में यह संस्कार नियमित रूप से होता है, उनमें मौसम और वातावरणीय प्रभाव के कारण होने वाली समस्याएं अन्य बच्चों की अपेक्षा कम देखी गई हैं। इन औषधियों का किया जाता है प्रयोग स्वर्णप्राशन में प्रयुक्त होने वाली औषधि स्वर्ण भस्म, वच, गिलोय, ब्राह्मी, गौघृत, मधु आदि द्रव्यों के सम्मिश्रण से बनाया जाता है। उन्होंने कहा बच्चों को नियंत्रित करने के लिए डांटना, पीटना आदि भी उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित करता है। बच्चों को प्यार से समझाना चाहिए। उन्होंने बच्चों को मौसम के अनुसार फल और सब्जियों के सेवन के साथ-साथ स्वच्छता स्नेहपूर्ण लालन पालन पर विशेष बल दिया।

Nov 22, 2024 - 14:35
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कानपुर में 70 बच्चों का कराया गया स्वर्ण प्राशन:कानपुर विश्वविद्यालय ने पुष्प नक्षत्र के उपलक्ष्य में किया आयोजन, अभिभावकों को किया जागरूक
पुष्य नक्षत्र के उपलक्ष्य में छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर के स्कूल ऑफ हेल्थ साइंसेस अंतर्गत संचालित स्वास्थ्य केन्द्र, राजकीय बाल गृह कानपुर और आरोग्य क्लीनिक लाल बंगले में स्वर्ण प्राशन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें लगभग 70 बच्चों ने भाग लिया। कार्यक्रम में सम्मिलित होने वाले इन बच्चों का निःशुल्क रूप से स्वर्णप्राशन कराया गया। धन्वन्तरि पूजन के साथ हुआ शुभारंभ कार्यक्रम का शुभारंभ वरिष्ठ आयुर्वेदाचार्य डॉ. वंदना पाठक, संस्थान के निदेशक डॉ. दिग्विजय शर्मा, डॉ. राम किशोर, अनुराग मिश्रा, पंकज कुमार आदि ने दीप प्रज्वलन व धन्वन्तरि पूजन के साथ किया। इस अवसर पर वरिष्ठ आयुर्वेदाचार्य डॉ. वंदना पाठक ने उपस्थित अभिभावकों और लोगों को हेमंत ऋतु के अनुसार आहार-विहार और रोगों से बचाव पर विशेष रूप से परामर्श दिया। उन्होंने कहा इस समय ठंड के कारण शरीर की गर्मी शरीर से बाहर नहीं निकलती जिसके परिणामस्वरूप शरीर के अग्नि प्रखर हो जाती है। इस मौसम में भारी आहार जैसे-घी, तेल से बने खाद्य पदार्थ, गुड़ और मौसम के अनुसार फल और सब्जियां पर्याप्त मात्रा में सेवन करना चाहिए। भूख न लगना बीमारी आने का संकेत उन्होंने कहा कि भूख लगने पर भोजन न करने से विभिन्न प्रकार के रोग हो जाते हैं। यदि भूख नहीं लगती है तो.ये भी बीमारी आने का संकेत होता है। स्वर्णप्राशन संस्कार के बारे में बताते हुए कहा कि आयुर्वेद की ये विधा बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में काफी कारगर है। संस्कार की महत्ता बताते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति में प्रचलित 16 संस्कारों में से एक संस्कार है। यह बच्चों के शारीरिक, मानसिक विकास में विशेष योगदान करता है, जिन बच्चों में यह संस्कार नियमित रूप से होता है, उनमें मौसम और वातावरणीय प्रभाव के कारण होने वाली समस्याएं अन्य बच्चों की अपेक्षा कम देखी गई हैं। इन औषधियों का किया जाता है प्रयोग स्वर्णप्राशन में प्रयुक्त होने वाली औषधि स्वर्ण भस्म, वच, गिलोय, ब्राह्मी, गौघृत, मधु आदि द्रव्यों के सम्मिश्रण से बनाया जाता है। उन्होंने कहा बच्चों को नियंत्रित करने के लिए डांटना, पीटना आदि भी उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित करता है। बच्चों को प्यार से समझाना चाहिए। उन्होंने बच्चों को मौसम के अनुसार फल और सब्जियों के सेवन के साथ-साथ स्वच्छता स्नेहपूर्ण लालन पालन पर विशेष बल दिया।

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