कुशीनगर पुलिस ने महिला को बाल पकड़कर खींचा, VIDEO:जमीन बंटवारे को लेकर हुआ था विवाद, छत के लिंटर को रोकने की कोशिश
कुशीनगर के तमकुहीराज तहसील के तरयासुजान थाना क्षेत्र के गांव बेदुपार मुस्तकील में एक जमीनी विवाद को लेकर पुलिस की कथित बर्बरता का एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। इस वीडियो में देखा जा रहा है कि महिला पुलिसकर्मी के होने के बावजूद एक पुलिसकर्मी द्वारा एक महिला का बाल पकड़कर उसे छत से नीचे उतारा जा रहा है। वीडियो के वायरल होने के बाद पुलिस की कार्रवाई को लेकर लोग सवाल उठा रहे हैं। क्या है मामला? पीड़ित पक्ष के अनुसार, जमीनी विवाद की शुरुआत उस वक्त हुई जब एसडीएम न्यायालय ने धारा 24 के तहत आदेश पारित कर राजस्व टीम को भूमि का सीमांकन करने और पत्थर लगाने का निर्देश दिया था। इस आदेश के बाद भी विवादित भूमि पर निर्माण कार्य को लेकर विवाद बढ़ गया। पीड़ित पक्ष का कहना है कि सिविल जज कुशीनगर के न्यायालय में इस मामले में विचाराधीन होने के दौरान दोनों पक्षों के बीच समझौता हुआ था कि जब तक न्यायालय से कोई आदेश नहीं आता, तब तक भूमि पर कोई कार्य नहीं किया जाएगा। लेकिन, आरोप है कि विपक्षी ने पुलिस के दबाव में आकर निर्माण कार्य शुरू कर दिया। पीड़ित पक्ष का आरोप पीड़ित बिजाई पुत्र मुंसी ने आरोप लगाया कि जब विपक्षी ने निर्माण कार्य शुरू किया, तो उन्होंने पुलिस से शिकायत की, लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। इस पर उन्होंने अपने घर के छत के लिंटर को रोकने की कोशिश की, तब पुलिस ने तत्काल मौके पर पहुंचकर बुरी तरह से मारपीट की और उन्हें थाने ले गई। पीड़ित ने यह भी आरोप लगाया कि थाने में भी उनके साथ बुरी तरह से मारपीट की गई। सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया इस बर्बर पुलिस कार्रवाई का वीडियो जब सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, तो लोगों ने पुलिस की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए। वीडियो में देखा जा रहा है कि महिला पुलिसकर्मी के होते हुए भी एक पुलिसकर्मी महिला का बाल पकड़कर उसे घसीटते हुए नीचे उतारता है, जो कि पुलिस की बर्बरता को स्पष्ट रूप से दर्शाता है। इस वीडियो ने स्थानीय लोगों के बीच गुस्से की लहर पैदा कर दी है। पुलिस की प्रतिक्रिया वायरल वीडियो के बाद कुशीनगर पुलिस ने संज्ञान लिया और मामले की जांच शुरू की। तमकुहीराज के सीओ अमित सक्सेना ने इस पूरे घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए एक वीडियो जारी किया। सीओ ने बताया कि पुलिस की कार्रवाई के बाद पीड़ित परिवार के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है, जबकि न्यायालय के स्थगन आदेश के बावजूद विपक्षी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
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