चारूकेन बिगाड़ सकती हैं भाजपा के समीकरण:जाटलैंड में सपा ने चारूकेन को बनाया है प्रत्याशी, जाट व जाटव समीकरण बना तो जीत तय
अलीगढ़ की खैर विधानसभा से समाजवादी पार्टी ने पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष तेजवीर सिंह गुड्डू की पुत्र वधू चारूकेन को अपना प्रत्याशी बनाया है। चारूकेन की घोषणा होने के बाद भाजपा के खेमे में खलबली का माहौल हैं। क्योंकि यह सीट वर्तमान में भले ही आरक्षित है, लेकिन यहां जाट समाज का वर्चस्व रहा है। सपा प्रत्याशी चारूकेन जाटव समाज से हैं। जिसके कारण उन्हें SC/ST आरक्षित सीट पर टिकट दिया गया है। लेकिन उनकी शादी पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष तेजवीर सिंह गुड्डू के बेटे दीपक चौधरी के साथ हुई है। जो कि जाट समाज से हैं। ऐसे में जाट व जाटव समीकरण बन गए तो यह सीट भाजपा के हाथ से निकल भी सकती है। 2022 में दूसरे नंबर पर थी चारूकेन समाजवादी की टिकट हासिल करने वाली चारूकेन बीते दिनों ही कांग्रेस में शामिल हुई थी। जिसके बाद उन्हें सपा-कांग्रेस गठबंधन की ओर से टिकट मिली है। इससे पहले वह 2022 में भी खैर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ी थी। 2022 में चारूकेन बहुजन समाज पार्टी से प्रत्याशी थी और दूसरे नंबर पर ही थी। जीत हासिल करने वाले भाजपा के अनूप प्रधान को 1,39,643 वोट मिले थे, जबकि दूसरे नंबर पर रही चारूकेन को 65,302 वोट मिले थे। जाट और जाटव वोटरों की संख्या 1.80 लाख अलीगढ़ की खैर विधानसभा सीट में 4.03 लाख वोटर हैं। इसमें 2.15 लाख पुरुष और 1.87 लाख महिलाएं हैं। इसमें सबसे ज्यादा वोटर 1.15 लाख जाट समाज के हैं। जो किंगमेकर कहे जाते हैं। इसके बाद SC/ST समाज के 1.10 लाख वोटर हैं। जिसमें 70 हजार जाटव, 30 हजार वाल्मीकि और 10 हजार अन्य आरक्षित वर्ग के हैं। जाट और SC/ST समाज के कुल 2.25 लाख वोटर हैं। वहीं अनूप वाल्मीकि ने 2022 में 1,39,673 वोट हासिल करके जीत दर्ज की थी। ऐसे में अगर चारूकेन को सिर्फ जाट और जाटव समाज का समर्थन मिल गया तो उनके लिए जीत हासिल करना मुश्किल नही है। क्योंकि जाटव समाज से होने के अलावा वह जाट समाज की पुत्रवधू हैं। वहीं गठबंधन प्रत्याशी होने के कारण उन्हें मुस्लिम और ओबीसी समाज के वोट व दोनों पार्टियों के परंपरागत वोट भी मिलेंगे। आरक्षण से पहले खैर में जाटों का रहा दबदबा अलीगढ़ की खैर विधानसभा सीट को जाटलैंड भी कहा जाता है। क्योंकि यहां जाट वोटर सर्वाधिक हैं और आजादी के बाद से ही जाट प्रत्याशियों का दबदबा रहा है। 1967, 1974 और 1980 में कांग्रेस प्रत्याशियों ने खैर विधानसभा से जीत हासिल की। 1985 में लोकदल और 1989 में जनता दल के खाते में जीत आई। 1991 में रामलहर आई तो फिर यहां भाजपा का खाता खुला। उस समय भी जाट प्रत्याशी चौधरी महेंद्र सिंह ने यहां से जीत हासिल की। 1993 में यह सीट फिर जनता दल के पास चली गई। 1996 में भाजपा ने चौधरी चरण सिंह की बेटी ज्ञानवती को प्रत्याशी बनाया।यह प्रयोग सफल रहा और ज्ञानवती कमल खिलाकर विधानसभा पहुंच गईं। बसपा ने रोका था जाट प्रत्याशियों का रथ जाट प्रत्याशियों की जीत का ट्रेंड 2002 में बसपा ने तोड़ा था। बसपा ने यहां से ब्राह्मण प्रत्याशी उतारा और प्रमोद गौड़ ने जीत हासिल की थी। ब्राह्मण-दलित समीकरण से बसपा ने परिणाम बदल दिए। हालांकि, 2007 में रालोद ने यह सीट फिर अपने खाते में डाल ली। 2008 में आरक्षित हुई थी खैर विधानसभा बदलते समय सके साथ 2008 में परिसीमन बदले गए। फिर 2008 में खैर विधानसभा सीट को SC/ST वर्ग के लिए आरक्षित कर दिया गया। आरक्षित होने के बाद भी 2012 ने इस सीट से रालोद ने जीत हासिल की थी। इस चुनाव में भाजपा के अनूप वाल्मीकि तीसरे नंबर पर रहे थे और उन्हें सिर्फ 26 हजार वोट मिले थे। 23 साल बाद खिला था 2017 में कमल 1991 में चौ. महेंद्र सिंह और 1996 में चौ. चरण सिंह की बेटी ज्ञानवती के बाद से भारतीय जनता पार्टी को इस सीट पर जीत के लिए 23 साल इंतजार करना पड़ा। 2017 में भाजपा के अनूप वाल्मीकि ने इस सीट से जीत हासिल की। अनूप पर पार्टी ने 2022 में भी भरोसा जताया और उन्होंने दुबारा जीत हासिल की और प्रदेश में राजस्व राज्य मंत्री बने। फिर पार्टी ने उन्हें हाथरस लोकसभा के लिए चुनाव और वह जीत गए। अनूप वाल्मीकि के हाथरस सांसद बनने के बाद ही यह सीट खाली हुई है और यहां उप चुनाव हो रहे हैं। यह हैं खैर के जातिगत समीकरण कुल वोटर - 4.03 लाख जाट वोटर - 1.15 लाख जाटव - 70 हजार वाल्मीकि - 30 हजार अन्य आरक्षित - 10 हजार ब्राह्मण - 60 हजार क्षत्रिय - 20-25 हजार वैश्य - 35 हजार ओबीसी - 35 हजार मुस्लिम - 30 हजार
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