टिकैतराय की होली-अवध के नवाब ने शुरू कराया था रंगोत्सव:लखनऊ में मोहर्रम के दिन होली पड़ी तो नमाज बाद में हुई
नवाबों के शहर लखनऊ में त्योहार भी तहजीब के गवाह रहे हैं। इनमें राजा टिकैत राय की होली खासतौर पर गिनी जाती है। उनकी होली नवाबी ठाट-बाट और हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल बन गई। राजा टिकैत राय और नवाब आसिफ-उद-दौला में दोस्ती थी। दोनों ने हिंदु-मुस्लिमों के एक साथ होली खेलने की व्यवस्था की। नवाब वाजिद अली शाह ने इस रिवायत को और आगे बढ़ाया। उनके दौर में एक बार होली और मोहर्रम एक ही दिन पड़ गए। तब वाजिद अली शाह ने अनूठा फैसला लिया। उन्होंने तय किया कि पहले होली खेली जाएगी, उसके बाद मोहर्रम का जुलूस निकलेगा। राजा-नवाब की दोस्ती और होली के यादगार किस्से... राजा की होली नवाबी हो गई राजा टिकैत राय अवध के नवाब आसफ-उद-दौला (1775-1797) के करीबी मंत्री थे। लखनऊ की राजनीतिक और सांस्कृतिक विरासत में उनका अहम योगदान रहा। नवाब आसफ-उद-दौला ने 1775 में अपनी राजधानी फैजाबाद से लखनऊ ला दी। उसके बाद से लखनऊ में गंगा-जमुनी तहजीब का रंग और गहरा होता गया। नवाब और राजा की दोस्ती सिर्फ शासन-प्रशासन तक सीमित नहीं थी, बल्कि यह हिंदू-मुस्लिम संस्कृति के संगम की प्रतीक भी बनी। राजा ने जब लखनऊ में भव्य होली उत्सव शुरू किया तो उसमें नवाब सहित मुस्लिम समुदाय की बड़े स्तर पर भागीदारी होने लगी। इस तरह राजा की होली नवाबी हो गई और यह लखनऊ की तहजीब बनी। रंगों से सराबोर होती थी राजा की हवेली होली के दिन राजा टिकैत राय की हवेली का नजारा देखने लायक होता था। सुबह से ही ढोल-मजीरे बजने लगते। फाग शुरू होता और गुलाल-अबीर-रंगों से पूरी हवेली रंग जाती थी। इतिहासकारों का मानना है कि इस दौरान नवाब भी अपने दरबारियों और मित्रों के साथ राजा टिकैत राय की होली का आनंद लेने आते थे। यह होली सिर्फ रंगों का उत्सव नहीं, बल्कि सांस्कृतिक महोत्सव होता। यहां कवि, शायर और संगीतकार प्रस्तुतियां देते थे। कहा जाता है कि इस आयोजन में उस दौर के मशहूर शायर मीर तकी मीर और जौक भी शामिल होते थे। उन शायरों के कलाम से होली की शाम और भी खास बन जाती थी। गंगा-जमुनी तहजीब की नींव आज भी मजबूत नवाबीन-ए-अवध के वंशज नवाब मसूद अब्दुल्ला कहते हैं- 1791 से 1796 के बीच का समय नवाब आसफ-उद-दौला और महाराज टिकैत राय का स्वर्णिम युग था। नवाब 1775 में फैजाबाद से लखनऊ आए और इसे अपनी राजधानी बनाई। तभी से यहां गंगा-जमुनी तहजीब की नींव मजबूत हुई। चौक की गलियों में फाग गूंजता है होलिकोत्सव समिति के महामंत्री विनोद माहेश्वरी बताते हैं- चौक की गलियों में जब फाग गूंजता है, गुलाल उड़ता है और ढोल-नगाड़े बजते हैं, तो लखनऊ नवाबी दौर की होली को जीता हुआ महसूस करता है। होली बारात में मुस्लिम भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं और जगह-जगह स्वागत करते हैं। आज भी है राजा टिकैत राय की होली की विरासत समय के साथ राजा टिकैत राय की हवेली की भव्यता कम हुई है, लेकिन वहां की होली आज भी उसी जोश और परंपरा के साथ मनाई जाती है। यह उत्सव सिर्फ रंगों का नहीं, बल्कि इतिहास का भी है, जहां हर साल लखनऊ की गलियां नवाबी दौर की उस गंगा-जमुनी तहजीब से सराबोर हो जाती हैं। इस साल रमजान के पाक महीने में होली आई है या कहें होली के दरम्यान इबादत का महीना आया है। आज जुमे की नमाज अदा की जा रही है, साथ ही लखनऊ की गलियों में होली के रंग भी उड़ रहे हैं। यह नजारा दुनिया को बताने के लिए काफी है कि यह शहर मोहब्बत और तहज़ीब की जिंदा मिसाल है। नवाब वाजिद अली शाह ने भी रखी मिसाल लखनऊ की गंगा-जमुनी तहजीब का एक और यादगार उदाहरण नवाब वाजिद अली शाह के काल में आया। बताया जाता है कि एक बार होली और मोहर्रम एक ही दिन पड़े। उस स्थिति में वाजिद अली शाह ने अनूठा फैसला लिया। तय किया कि पहले होली खेली जाएगी, उसके बाद मोहर्रम मनाया जाएगा। सुबह उन्होंने हिंदू भाइयों के साथ होली खेली, रंग और गुलाल उड़ाया। उसके बाद नहा-धोकर मोहर्रम के जुलूस में शामिल हुए। .............................. यह खबर भी पढ़े लखनऊ की बाहुबली गुजिया ने बनाया रिकॉर्ड:वजन 6 kg-25 इंच लंबाई, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज हुआ होली पर मिठाइयों की बात हो और लखनऊ पीछे रह जाए। ऐसा कैसे हो सकता है। इस बार शहर के स्वाद प्रेमियों के लिए कुछ अनोखी गुजिया पेश की गई है। नाम रखा गया ‘बाहुबली गुजिया’। यहां पढ़े पूरी खबर

टिकैतराय की होली: अवध के नवाब ने शुरू कराया था रंगोत्सव
उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक विविधता में होली का त्योहार एक महत्वपूण स्थान रखता है। लखनऊ में, टिकैतराय की होली ने विशेष पहचान बनाई है। इतिहास में गहराई से उतरते हुए, यह जानना जरूरी है कि अवध के नवाबों ने इस रंगोत्सव को बड़े धूमधाम से मनाने की परंपरा को कैसे शुरू किया। नवाबों द्वारा आयोजित होने वाली विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों में होली का रंगोत्सव विशेष रूप से उल्लेखनीय रहा है।
टिकैतराय की होली का इतिहास
टिकैतराय की होली की कहानी नवाबों के समय की है, जब लखनऊ में रंगों का समारोह पूरे राजकीय धूमधाम से मनाया जाता था। यह त्योहार न केवल रंगों का पर्व है, बल्कि यह एकता और भाईचारे का प्रतीक भी है। नवाबों द्वारा होली का यह आयोजन एक अद्वितीय मिलनसार संस्कृति का हिस्सा था, जिसमें सभी समुदाय एक साथ मिलकर उत्सव मनाते थे।
मोहर्रम के दिन होली का समारोह
हाल ही में लखनऊ में मोहर्रम के दिन जब होली का जश्न मनाया गया, तो यह एक अनोखा दृश्य था। अगरچہ यह दिन पारंपरिक रूप से शोक मनाने का होता है, परंतु लखनऊ के लोग अपने ऐतिहासिक परंपराओं का पालन करते हुए रंगों से भरा यह त्योहार मनाना उचित समझते हैं। इस मौके पर नमाज के बाद होली मनाई गई, जो यह बताता है कि कैसे विभिन्न धर्मों के लोग एक-दूसरे के त्योहारों का सम्मान करते हैं।
इस त्यौहार के दौरान हर किसी के चेहरे पर हंसी और आनंद होता है। होली का रंग वातावरण में प्रेम की भावना को फैलाता है और यही बात इसे विशेष बनाती है।
अवध की संस्कृति में ऐसे अनगिनत रंग हैं, जो भारतीय परंपरा को समृद्ध बनाते हैं। लखनऊ में होने वाली होली न केवल पर्व की प्रगति का प्रतीक है, बल्कि यह स्थानीय समुदाय की एकता और सामंजस्य को भी दर्शाता है।
अंत में, टिकैतराय की होली एक सामूहिक उत्सव है, जो सदियों से चला आ रहा है। यह त्योहार न केवल रंगों का है, बल्कि यह हमें एकजुटता, प्रेम और भाईचारे का संदेश भी देता है।
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