डॉलर के मुकाबले रुपया 84.11 के निचले स्तर पर आया:लोकल आउटफ्लो और शेयर मार्केट में गिरावट हैं कारण, इंपोर्ट महंगा होगा
भारतीय रुपया अपने निचले स्तर पर पहुंच गया है। सोमवार (4 नवंबर) को इसमें अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 2 पैसे की गिरावट हुई और यह 84.1055 रुपए प्रति डॉलर के स्तर पर बंद हुआ। इससे पहले 31 अक्टूबर को रूपया अपने सबसे निचले स्तर 84.0886 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था। रुपए में इस गिरावट का कारण लोकल स्टॉक्स से लगातार आउटफ्लो रहा। जिसके चलते डॉलर का प्रभाव और ज्यादा मजबूत हो गया। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, इससे अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावों से पहले डॉलर के लोकल पीयर्स (दूसरे करेंसीज) को ऊपर उठाने में भी मदद मिली। शेयर बाजार में 941 अंक की गिरावट रही सेंसेक्स में आज 941 अंक (1.18%) की गिरावट देखने को मिली । ये 78,782 के स्तर पर बंद हुआ। वहीं निफ्टी में भी 309 अंक (1.27%) की गिरावट रही, ये 23,995 के स्तर पर बंद हुआ। इंट्रा डे में भी रुपया सबसे निचले स्तर पर पहुंचा इंट्रा-डे में रुपया 84.1225 के निचले स्तर पर पहुंच गया, जो डॉलर के मुकाबले सबसे निचला स्तर है। रिपोर्ट के मुताबिक, सोमवार को रुपया डॉलर के मुकाबले 84.1125 के स्तर पर खुला और ट्रेडिंग के दौरान एक समय 84.1225 के निचले स्तर पर पहुंच गया था। मार्केट एक्सपर्ट्स का मानना है कि रुपया आने वाले दिनों में 84.25 के सबसे निचले स्तर पर पहुंच सकता है। इंपोर्ट करना होगा महंगा रुपए में गिरावट का मतलब है कि भारत के लिए चीजों का इंपोर्ट महंगा होना है। इसके अलावा विदेश में घूमना और पढ़ना भी महंगा हो गया है। मान लीजिए कि जब डॉलर के मुकाबले रुपए की वैल्यू 50 थी तब अमेरिका में भारतीय छात्रों को 50 रुपए में 1 डॉलर मिल जाते थे। अब 1 डॉलर के लिए छात्रों को 83.40 रुपए खर्च करने पड़ेंगे। इससे फीस से लेकर रहना और खाना और अन्य चीजें महंगी हो जाएंगी। करेंसी की कीमत कैसे तय होती है? डॉलर की तुलना में किसी भी अन्य करेंसी की वैल्यू घटे तो उसे मुद्रा का गिरना, टूटना, कमजोर होना कहते हैं। अंग्रेजी में करेंसी डेप्रिशिएशन। हर देश के पास फॉरेन करेंसी रिजर्व होता है, जिससे वह इंटरनेशनल ट्रांजैक्शन करता है। फॉरेन रिजर्व के घटने और बढ़ने का असर करेंसी की कीमत पर दिखता है। अगर भारत के फॉरेन रिजर्व में डॉलर, अमेरिका के रुपयों के भंडार के बराबर होगा तो रुपए की कीमत स्थिर रहेगी। हमारे पास डॉलर घटे तो रुपया कमजोर होगा, बढ़े तो रुपया मजबूत होगा। इसे फ्लोटिंग रेट सिस्टम कहते हैं।
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