ताज के साए से गुमनाम हो रही हस्तशिल्प कला, यूनेस्को:अंग्रेजी सीखेंगे 200 हस्त शिल्पकार, बच्चों का होगा स्किल डेवलपमेंट

आगरा में सफेद पत्थरों को तराश कर उसे ताजमहल बनाने वाले हस्त शिल्पकार मेहनत का पूरा भुगतान न मिल पाने से परेशान हैं। पिता का हाल देखकर बच्चे इस काम से दूरी बना रहे हैं। शिल्पकारों में छाई निराशा और मायूसी की वजह से यह कला अब गुमनामी की ओर कदम आगे बढ़ा रही है। अब यूनेस्को ने हस्तशिल्पकारों की मदद के लिए हाथ आगे बढाएं हैं। सफेद संगमरमर से बनी नायाब इमारत ताजमहल को देखने के लिए देशी विदेशी मेहमान सात समंदर पार से आगरा आते हैं। ताजमहल देखते हैं। ताजमहल के आसपास घूम कर सफेद संगमरमर से बने अपने पसंदीदा सामान को खरीदने हैं। इससे उन सभी शिल्पकारों की रोजी-रोटी और बच्चों के स्कूल की फीस भरी जाती है। जो ताज के साए में हस्त शिल्पकारी की कला को जिंदा रखे हुए हैं। लेकिन अब समय बदल रहा है। काम के तरीके हाईटेक हो रहे हैं। ऐसे में हस्त शिल्पकार की आर्थिक बदहाली के कारण ये कला अब गुमनामी के अंधेरे में गुम होती जा रही है। परिवार की नई पीढ़ी इस काम से दूरी बना रही है। वजह यह है कि इस काम से रोजी-रोटी चलाना कई हस्तशिल्प कारों के लिए बेहद मुश्किल हो गया है। कोविड के बाद से बढ़ी परेशानी हस्तशिल्पकारी के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित रफीकउद्दीन गुरु ने बताया कि स्थिति पहले जैसी नहीं है। पहले थोड़े काम में फायदा हो जाता था। कोविड के बाद से मंदी का माहौल है। आमदनी ठप्प होती जा रही है। आलम ये है कि काम में माहिर कारीगर दो जून की रोटी कमाने के लिए रिक्शा चलाने को मजबूर हैं। गोष्ठी में मौजूद करीब 40 कारीगरों ने उनकी बात का समर्थन किया। सभी ने कहा कि जो भी मुनाफा होता है। वह एंपोरियम, शोरूम वाले रख लेते हैं। उनके अनुसार उन्हें काम करना पड़ता है। उनकी जो रचनात्मकता है। आर्थिक अभाव के कारण आकर नहीं ले पाती। उनके बच्चे, अब पुरखों के इस काम में नहीं आना चाहते। आर्थिक तंगी के कारण ना तो उनके बच्चों को पूरी शिक्षा मिल पा रही है। न ही स्वस्थ जीवन। हस्त शिल्पकारों की मदद के लिए आगे आया यूनेस्को अब यूनेस्को ने हस्त शिल्पकारों और उनके परिवार की मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाया है। टीम के सदस्य आगरा में है। उन्होंने मंगलवार को हस्तशिल्पकारों और उनके परिवारों से मुलाकात की। यूनेस्को की चीफ ऑफ सेक्टर फॉर कल्चर जुन्ही हॉन ने अपनी टीम के चिरोंजीत गांगुली और स्नेहा दत्तात्रेय बोराते के साथ कारीगरों की समस्याएं सुनीं। यूनेस्को प्रतिनिधि ने कारीगरों को कौशल विकास और इंग्लिश स्पीकिंग की कार्यशाला के बारे में जानकारी दी। जुन्ही हॉन ने कारीगरों से पूछा क्या वे शोरूमों पर ही निर्भर रहना चाहते हैं। या अपना कुछ करना चाहते हैं। इस पर शिल्पकारों ने एक स्वर में सहमति जताई कि वे सभी अपनी रचनात्मकता को बढ़ाने के लिए ऑनलाइन व्यापार में आना चाहते हैं। सामाजिक संस्था एक पहल को मिली है स्किल डेवलपमेंट की जिम्मेदारी संस्था एक पहले के सचिव मनीष राय ने बताया कि सर्वे करवाकर शिल्पकार और उनके परिजनों को कौशल विकास के साथ इंग्लिश स्पीकिंग की ट्रेनिंग दी जाएगी। ताजगंज क्षेत्र में केंद्र शुरु किया जाएगा। संस्था शिल्पकारों की शिक्षा और स्वास्थ्य को बेहतर बनाने पर काम करेगी। स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम चलाया जाएगा। सभी को तकनीकी रूप से दक्ष बनाने का प्रयास किया जाएगा। बैठक में ये रहे मौजूद इस मौके पर संस्था के उपाध्यक्ष अंकित खंडेलवाल, मानस राय, अश्लेष मित्तल, मधु त्रिपाठी, संजना रावत आदि उपस्थित रहे।

Nov 27, 2024 - 06:05
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ताज के साए से गुमनाम हो रही हस्तशिल्प कला, यूनेस्को:अंग्रेजी सीखेंगे 200 हस्त शिल्पकार, बच्चों का होगा स्किल डेवलपमेंट
आगरा में सफेद पत्थरों को तराश कर उसे ताजमहल बनाने वाले हस्त शिल्पकार मेहनत का पूरा भुगतान न मिल पाने से परेशान हैं। पिता का हाल देखकर बच्चे इस काम से दूरी बना रहे हैं। शिल्पकारों में छाई निराशा और मायूसी की वजह से यह कला अब गुमनामी की ओर कदम आगे बढ़ा रही है। अब यूनेस्को ने हस्तशिल्पकारों की मदद के लिए हाथ आगे बढाएं हैं। सफेद संगमरमर से बनी नायाब इमारत ताजमहल को देखने के लिए देशी विदेशी मेहमान सात समंदर पार से आगरा आते हैं। ताजमहल देखते हैं। ताजमहल के आसपास घूम कर सफेद संगमरमर से बने अपने पसंदीदा सामान को खरीदने हैं। इससे उन सभी शिल्पकारों की रोजी-रोटी और बच्चों के स्कूल की फीस भरी जाती है। जो ताज के साए में हस्त शिल्पकारी की कला को जिंदा रखे हुए हैं। लेकिन अब समय बदल रहा है। काम के तरीके हाईटेक हो रहे हैं। ऐसे में हस्त शिल्पकार की आर्थिक बदहाली के कारण ये कला अब गुमनामी के अंधेरे में गुम होती जा रही है। परिवार की नई पीढ़ी इस काम से दूरी बना रही है। वजह यह है कि इस काम से रोजी-रोटी चलाना कई हस्तशिल्प कारों के लिए बेहद मुश्किल हो गया है। कोविड के बाद से बढ़ी परेशानी हस्तशिल्पकारी के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित रफीकउद्दीन गुरु ने बताया कि स्थिति पहले जैसी नहीं है। पहले थोड़े काम में फायदा हो जाता था। कोविड के बाद से मंदी का माहौल है। आमदनी ठप्प होती जा रही है। आलम ये है कि काम में माहिर कारीगर दो जून की रोटी कमाने के लिए रिक्शा चलाने को मजबूर हैं। गोष्ठी में मौजूद करीब 40 कारीगरों ने उनकी बात का समर्थन किया। सभी ने कहा कि जो भी मुनाफा होता है। वह एंपोरियम, शोरूम वाले रख लेते हैं। उनके अनुसार उन्हें काम करना पड़ता है। उनकी जो रचनात्मकता है। आर्थिक अभाव के कारण आकर नहीं ले पाती। उनके बच्चे, अब पुरखों के इस काम में नहीं आना चाहते। आर्थिक तंगी के कारण ना तो उनके बच्चों को पूरी शिक्षा मिल पा रही है। न ही स्वस्थ जीवन। हस्त शिल्पकारों की मदद के लिए आगे आया यूनेस्को अब यूनेस्को ने हस्त शिल्पकारों और उनके परिवार की मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाया है। टीम के सदस्य आगरा में है। उन्होंने मंगलवार को हस्तशिल्पकारों और उनके परिवारों से मुलाकात की। यूनेस्को की चीफ ऑफ सेक्टर फॉर कल्चर जुन्ही हॉन ने अपनी टीम के चिरोंजीत गांगुली और स्नेहा दत्तात्रेय बोराते के साथ कारीगरों की समस्याएं सुनीं। यूनेस्को प्रतिनिधि ने कारीगरों को कौशल विकास और इंग्लिश स्पीकिंग की कार्यशाला के बारे में जानकारी दी। जुन्ही हॉन ने कारीगरों से पूछा क्या वे शोरूमों पर ही निर्भर रहना चाहते हैं। या अपना कुछ करना चाहते हैं। इस पर शिल्पकारों ने एक स्वर में सहमति जताई कि वे सभी अपनी रचनात्मकता को बढ़ाने के लिए ऑनलाइन व्यापार में आना चाहते हैं। सामाजिक संस्था एक पहल को मिली है स्किल डेवलपमेंट की जिम्मेदारी संस्था एक पहले के सचिव मनीष राय ने बताया कि सर्वे करवाकर शिल्पकार और उनके परिजनों को कौशल विकास के साथ इंग्लिश स्पीकिंग की ट्रेनिंग दी जाएगी। ताजगंज क्षेत्र में केंद्र शुरु किया जाएगा। संस्था शिल्पकारों की शिक्षा और स्वास्थ्य को बेहतर बनाने पर काम करेगी। स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम चलाया जाएगा। सभी को तकनीकी रूप से दक्ष बनाने का प्रयास किया जाएगा। बैठक में ये रहे मौजूद इस मौके पर संस्था के उपाध्यक्ष अंकित खंडेलवाल, मानस राय, अश्लेष मित्तल, मधु त्रिपाठी, संजना रावत आदि उपस्थित रहे।

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